भारत : भोगवाद के जनक
जन्म : 1931
मृत्यु : 1990
रजनीश स्वयं को 20वीं सदी के सबसे बड़े तमाशेबाजों में से एक मानते हैं। अपने अद्वितीय बुद्धि और कौशन से उन्होंने विश्वभर के अनुनायियों को जिस सूत्र में बाँधा वह काफी हंगामेदार साबित हुआ। उनकी भोगवादी विचारधारा के अनुयायी सभी देशों में पाए जाते हैं। रजनीश ने पुणे में ‘रजनीश केंद्र’ की स्थापना की और अपने विचित्र भोगवादी दर्शन के कारण शीघ्र ही विश्व में चर्चित हो गए। एक दिन बिना अपने शिष्यों को बताए वे चुपचाप अमेरिका चले गए। वहाँ भी उन्होंने अपना जाल फैलाया। मई 1981 में उन्होंने ओरेगॉन (यू.एस.ए.) में अपना कम्यून बनाया। ओरेगॉन के निर्जन भूखंड को रजनीश ने जिस तरह आधुनिक, भव्य और विकसित नगर का रूप दिया वह उनके बुद्धिमतता का साक्षी है। रजनीश ने सभी विषयों पर जो सबसे पृथक और आपत्तिजनक भी विचार व्यक्त किए हैं वह उनकी एक अलग छवि बनाते हैं। उन्होंने पुरातनवाद के ऊपर नवीनता तथा क्रांतिकारी विजय पाने का प्रयास किया है.. रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रही हैं इनमें ‘संभोग से समाधि तक’, ‘मृत्यु है द्वार अमृत का’, ‘संभावनाओं की आहट’, ‘प्रेमदर्शन’ के नाम प्रमुख हैं। अपना निजी अध्यात्म गढ़कर उसका ‘काम’ के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अद्भुत मायालोक की सृष्टि की है।
रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उन्हें बचपन में ‘रजनीश चंद्रमोहन’ के नाम से जाना जाता था। 1955 में जबलपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक एवं सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1959 में व्याख्याता का पद संभाला। वह इस समय तक धर्म एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता बन चुके थे। कुछ समय बाद उन्होंने अपने को ‘भगवान’ घोषित कर दिया। 1980-86 तक के काल में वे ‘विश्व – सितारे’ बन गए। बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनकुबेर, फिल्म अभिनेता उनके शिष्य रहे हैं।
1985 में रजनीश को अमेरिका छोड़कर वापस भारत आना पड़ा, जिससे उनकी लोकप्रियता को चोट पहुँची। बाद में उन्होंने स्वयं को ‘ओशो’ घोषित कर दिया। 1990 में उनकी मृत्यु हो गई। उनके शिष्यों का मानना है कि अमेरिका में उन्हें थैलियम नामक जहर दिया गया था।