अमेरिका : अहिंसावादी अश्वेत नेता
जन्म : 1929
मृत्यु : 1968
समानता के सिद्धान्त के महान पक्षधरों में डॉ. मार्टिन लूथर किंग का नाम उल्लेखनीय है। मात्र 39 वर्ष की आयु में ही गांधीवादी सिद्धांतों को जैसा व्यावहारिक रूप उन्होंने दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता। डॉ. किंग का अहिंसात्मक संघर्ष ही एक दिन नीग्रो जाति के उत्थान का कारण बना और वे पतितों के हित में लड़ते हुए ही शहीद हुए। अश्वेत जाति के प्रबल पक्षधर डॉक्टर किंग स्वयं एक अश्वेत बैप्टिस्ट (Baptist) पादरी थे। उन्होंने अमरीकी नीग्रो लोगों को संगठित किया और उनको नागरिक अधिकार दिलाने के लिए सदर्न क्रिश्चियन लीडरशिप कांफ्रेंस (Southern Christian Leadership Conference) आंदोलन आरंभ किया। उन्होंने ही संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में, छठे दशक के मध्य में व्यापक, नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Right Movement) का भी नेतृत्व किया था। 1959 में डॉ. किंग भारत आये थे तब उन्होंने गांधी-नेहरु दर्शन में अपनी पूरी आस्था व्यक्त की थी। उन्होंने रंगभेद (Apartheid) का सबल प्रतिकार किया था पर श्वेत अमरीकी भी उनका हार्दिक सम्मान करते थे। उन्हें 1964 में शांति के लिए ‘नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया था। भारत ने भी उन्हें मृत्यु के उपरान्त अंतर्राष्ट्रीय ‘नेहरु पुरस्कार’ से सम्मानित किया था।
डॉ. किंग का जन्म अमेरिका के एक पराधीन नीग्रो परिवार में हुआ था। बचपन में उन्होंने ‘थोरो’ के साहित्य का अध्ययन किया था। नीग्रो जाति के कल्याण के लिए उन्होंने जो आंदोलन आरंभ किया उसमें उन्होंने सदा अहिंसात्मक पद्धतियों को ही बढ़ावा दिया जो उग्रवादी अश्वेतों को स्वीकार नहीं था और उन्होंने 1965 के बाद से डॉ. किंग के नेतृत्व को चुनौती देना आरंभ कर दिया था। डॉ. किंग ने अपने आंदोलन में सभी जातियों के निर्धन व्यक्तियों को ‘शामिल किया था जो रंगभेद के समर्थकों को रुचिकर नहीं हुआ और उन्होंने इस उदार नेता की हत्या करवा दी।
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