प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण के समय ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि आर्थिक विकास के लिए यह तो पहला कदम है। इसके बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी योजना बनेगी और इस तरह हम आर्थिक विकास के मार्ग पर चलते जाएँगे। उस योजना को बनाते समय न सरकारी अधिकारियों व योजना निर्माताओं को कुछ अनुभव था, न उन्हें यह मालूम था कि देश के साधन कितने हैं, कार्यक्षमता कितनी है। देश की वास्तविक समस्याओं व मार्ग में आने वाली कठिनाइयों के संबंध में तथा सामुदायिक योजना आदि संचालन के लिए छोटे-बड़े प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं व अफसरों का भी सर्वथा अभाव था। इसलिए बहुत संकोच के साथ प्रथम योजना बनाई गई थी। पर दूसरी योजना बनाते समय ये सब कठिनाइयाँ नहीं थीं। प्रथम योजना के कार्य- संचालन ने हमें अनुभव दे दिया, प्रशिक्षित व अनुभवी कार्यकर्त्ता दिए, सुलभ साधनों की जानकारी प्राप्त हुई और मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का भी पूरा ज्ञान हो गया। यह भी कल्पना कर ली गई कि देश की जनता का कितना रुपया और किस रूप में मिल सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रथम योजना की सफलता ने हमारा उत्साह बढ़ा दिया। हमने अपने लक्ष्य ऊँचे किए और महत्त्वाकांक्षाएँ ऊँची कीं तथा अपनी शक्ति पर विश्वास के साथ दूसरी योजना पहली से बहुत बड़ी बनाई। प्रथम योजना थी 22 अरब रुपए की, नई योजना बनी 48 अरब रुपए की अर्थात् पहली योजना से करीब सवा दो गुनी। पर पीछे से यह भी बढ़ाकर करीब 60 अरब रुपए कर दी गई। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निजी क्षेत्र के लिए 24 अरब रुपए के व्यय का अनुमान इस राशि से पृथक् है।
इस दूसरी योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित रखे गए –
(1) राष्ट्रीय आय में प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि।
(2) तेजी से उद्योगों की वृद्धि; विशेष रूप से मूल उद्योगों तथा बड़े-बड़े उद्योगों की वृद्धि और घरेलू तथा छोटे उद्योगों का योजनापूर्वक अधिक से अधिक विकास।
(3) रोजगार की व्यापक वृद्धि।
(4) आय और संपत्ति की असमानता में कमी तथा आर्थिक साधनों का समान वितरण।
आरंभ में 48 अरब रुपये की जो योजना बनाई गई थी उसमें व्यय का अनुपात निम्नलिखित रखा गया था, यद्यपि अब योजनाओं में कुछ परिवर्तन तथा मूल्य वृद्धि के कारण कुछ तवदीलियाँ कर दी गई हैं, किंतु इन संख्याओं से यह अवश्य मालूम हो जाएगा कि योजना में विभिन्न मदों को किस अनुपात से महत्त्व दिया गया है।
1. कृषि और सामुदायिक विकास 568 करोड़ रुपए
2. सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण 486 करोड़ रुपए
3. बिजली 427 करोड़ रुपए
4. उद्योग और खनिज पदार्थ 860 करोड़ रुपए
5. परिवहन और संचार 1,385 करोड़ रुपए
6. समाज सेवा, आवास तथा पुनस्संस्थापन 645 करोड़ रुपए
7. विविध 66 करोड़ रुपए
कुल 4,800 करोड़ रुपए
यद्यपि देश ने समाजवादी लक्ष्य को स्वीकार कर लिया है, तथापि निजी उद्योग के महत्त्व को योजना निर्माताओं ने स्वीकार किया है और प्रथम योजना की अपेक्षा बहुत बड़ी राशि 24 अरब रुपए निजी क्षेत्रों के लिए अनुमानित की गई है। वस्तुस्थिति भी ऐसी है, जिसमें निजी उद्योग की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उसके सहयोग के बिना औद्योगिक उन्नति संभव नहीं है।
दूसरी पंचवर्षीय योजना में पहली योजना से 75 प्रतिशत अधिक पूँजी कारोबार में लगाई जाएगी। सरकारी और निजी क्षेत्र में पूँजी नियोजन का अनुपात प्राय 61 : 30 का होगा।
इतनी बड़ी योजनाएँ बना लेने से कागज पर लिख लेने से काम नहीं बनता। इसके लिए साधन जुटाने पड़ते हैं। केंद्र और राज्यों की सरकारों को विकास कार्यक्रम पर अमल करने के लिए जो धन की आवश्यकता होगी उसके जुटाने की योजना इस प्रकार सोची गई है-
1. चालू राजस्व से बचत 1200 करोड़ रुपए
(क) करों की वर्तमान (55-56) दर से 350 करोड़ रुपए
(ख) अतिरिक्त करों से 850 करोड़ रुपए
2. जनता से उधार 1,200 करोड़ रुपए
(क) कर्ज 700 करोड़ रुपए
(ख) छोटी बचत 500 करोड़ रुपए
3. बजट की अन्य मदों से 400 करोड़ रुपए
क) विकास कार्यक्रम में रेलों का योग 150 करोड़ रुपए
ख) प्रावीडेंट फंड इत्यादि से 250 करोड़ रुपए
4. विदेशों से सहायता 800 करोड़ रुपए
5. घाटे की अर्थ व्यवस्था से 1,200 करोड़ रुपए
कुल 4,800 करोड़ रुपए
विभिन्न कारणों से दुनिया के बाजारों में मशीनरी आदि के दाम बहुत बढ़ गए हैं। कुछ योजनाओं के लक्ष्य बढ़ाए गए और कुछ मजदूरी में भी मँहगाई के कारण वृद्धि करनी पड़ी। इन सब कारणों से योजना का प्रस्तावित व्यय 60 अरब से भी ऊपर हो गया है। देश के वर्तमान साधनों से इतना रुपया मिलना असंभव है। देश के नेताओं के ख्याल में योजना के लक्ष्यों में कमी करना हमारी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। इसीलिए एक ओर जनता पर पुराने करों में वृद्धि की जा रही है, संपत्ति कर तथा व्यय-कर आदि नए कर लगाए जा रहे हैं; दूसरी ओर विदेशों से पर्याप्त ऋण की प्राप्ति के प्रयत्न किए जा रहे हैं।
इन अंकों से दो-तीन बातें स्पष्ट हैं। पहली तो यह कि कृषि की अपेक्षा उद्योग पर इसमें बहुत बल दिया गया है। प्रथम योजना के समय अन्न संकट मुँह बाये खड़ा था, इसलिए उसमें कृषि विकास पर जोर दिया गया था। कृषि और सिंचाई पर कुल योजना का 43.2 प्रतिशत व्यय का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जब कि नई योजना में 30.8 प्रतिशत राशि व्यय की जाएगी। किंतु इससे इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए कि कृषि योजनाओं पर पहले से व्यय कम होगा, वह तो बहुत बढ़ा दिया गया है। पिछली योजनाओं में कुल व्यय 1,018 करोड़ रुपए था, अब बढ़ाकर 1,481 करोड़ रुपए नियत किया गया है, तथापि उद्योग विकास आदि पर बहुत अधिक राशि बढ़ाई गई है। सिर्फ उद्योग में 179 करोड़ रुपए (76 प्रतिशत) की जगह 860 करोड़ रुपए (185 प्रतिशत) तथा उद्योग में परम सहायक परिवहन व्यवस्था के विकास के लिए 557 करोड़ रुपए की जगह 1,385 करोड़ रुपए व्यय नियत किया गया है। यह अच्छी तरह समझ लिया गया है कि उद्योग के सामान्य विकास के लिए बड़ी मशीनों का निर्माण और इस्पात उद्योगों का विकास आवश्यक है। इस्पात का उत्पादन 1955-56 के 13 लाख टन से बढ़कर 1960-61 में 43 लाख टन करने की योजना है। इसी प्रकार कोयले का उत्पादन 3 करोड़ 80 लाख टन से 6 करोड़ टन, सीमेंट का 48 लाख टन से 1 करोड़ 30 लाख टन और मुख्य रासायनिक पदार्थों का 2 लाख 75 हजार टन से 5 लाख 20 हजार टन करने का लक्ष्य है।
अन्य भी अनेक उद्योगों का विकास केंद्र व राज्यों की सरकारें स्वयं अपने हाथ में ले रही हैं।” निजी क्षेत्र में भी अनेक उद्योगों के विकास की प्रशा है। ग्रामोद्योगों के विकास के लिए नई योजना में विशेष राशि नियत की गई है।
कृषि और उद्योग दोनों के विकास का यह स्वाभाविक परिणाम होगा कि देश की राष्ट्रीय आय बढ़ेगी। जितना अधिक उत्पादन होगा, उतनी ही आमदनी बढ़ेगी। एक अनुमान के अनुसार दूसरी योजना के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत वृद्धि होने की आशा है, यानी 1955-56 की राष्ट्रीय आय 10,800 करोड़ रुपए से बढ़ कर 1960-61 में 13,480 करोड़ हो जाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि प्रति व्यक्ति आय में 18 प्रतिशत की वृद्धि होगी अर्थात् 1960-61 में 330 रुपए हो जाएगी, जो 1955-56 में 280रुपए थी। लगभग 1 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार मिल सकेगा। इस अवधि में हर साल 60 लाख मजदूर बढ़ेंगे और कुछ कम आय वाले लोगों को अच्छा काम मिल जाएगा।
कृषि व उद्योग में उत्पादन की नई पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य नहीं है। भारत के जनसाधारण और विशेषकर ग्राम ग्राम की जनता को स्वावलंबी, परिश्रमी, संपन्न, सुखी व खुशहाल बनाना भी इसका उद्देश्य है। इस उद्देश्य के लिए एक ओर ग्रामों के विकास के लिए सामुदायिक योजनाओं का क्षेत्र विस्तृत किया जा रहा है, जिसमें ग्रामवासी अपने पैरों पर स्वयं खड़े हो सकें, दूसरी ओर समाज सेवा का विस्तृत कार्यक्रम रखा गया है। इस कार्य के लिए 645 करोड़ रुपये की राशि नियत की गई है। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास पिछडी जातियों व श्रमिकों का कल्याण तथा पुनः संस्थापन आदि कार्य किए जाएँगे।
जन- सहयोग
किंतु ये सब योजनाएँ केवल सरकार पूर्ण नहीं कर सकती। इसके लिए समस्त देश के जनबल के सक्रिय सहयोग की अपेक्षा होगी। भारत माता को यदि समृद्ध, सुखी और संपन्न बनाना है, दरिद्रता के अभिशाप से उसे मुक्त करना है, तो यह जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक इसमें सहयोग दे। इन योजनाओं के लिए अरबों रुपये की जरूरत है। सरकार करों द्वारा, बैंकों में बचत के द्वारा हम से रुपया लेना चाहे तो हमें सहयोग देना होगा। इस योजना पूर्ति के लिए सरकार ने 800 करोड़ रुपए अतिरिक्त कर लगाने का निश्चय किया है। श्रम- दान करके करोड़ों रुपए का कार्य हमने मिलकर करना है। तभी तो हम अपनी पुण्य भारतजननी को सुजला, शस्यश्यामला बना सकेंगे।