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नए दशमिक सिक्के व नाप-तोल
अज्ञात काल से भारत में रुपये, आने, पाई आदि सिक्कों ; तोला, माशा, छटाँक, सेर और मनों आदि का प्रयोग होता रहा है। इसलिए जब यह निर्णय किया गया कि पहली अप्रैल 1957 से इस क्रम को बदल दिया जाए, इन सिक्कों तथा नाप-तोल के परिमाण बदल दिए जाएँ, नए किस्म के सिक्के, नाप व तोल जारी किए जाएँ, तो बहुत से लोग ऐसा करने वालों की बुद्धिमत्ता पर स्वभावतः संदेह करने लगे। उन्होंने इसे एकदम अनावश्यक तथा व्यर्थ भी बताया। देश में सोलह आने का रुपया और सोलह छटाँक का सेर, चवन्नी तथा पाव की गणीतीय समानता के कारण हिसाब के ऐसे गुर भी कितनी सदियों से चले आ रहे हैं, जिन्हें याद रखकर दुकानदार अपना हिसाब-किताब मिनटों में कर लेता है। इसलिए वे इस सामान्य नाप-तोल या सिक्का – प्रणाली बदलने का प्रस्ताव सुनकर आश्चर्यचकित व विस्मित से रह गए।
100 तरह के मन
किंतु यह प्रस्ताव इतना अविचारणीय नहीं है। जब हमें यह मालूम हो कि देश में यद्यपि पैसे, आने, रुपये आदि तो सब एक से हैं, किंतु बाकी नाप- तोल में कोई समानता नहीं है, तब इस प्रस्ताव के औचित्य पर विचार करना कुछ आवश्यक जान पड़ता है। हमारे देश में करीब 100 तरह के मन हैं। यदि कहीं 2,800 तोले का मन है, तो कहीं 8,320 तोले का है। स्टैण्डर्ड मन 3,200 तोले का माना जाता है। यद्यपि हम सब जानते हैं कि 80 तोले का एक सेर होता है, तथापि इनमें से बहुत-सों को भारत के विभिन्न स्थानों में जाने पर कभी-कभी आश्चर्य होता है कि कहीं सेर 40 तोले का है तो कहीं सौ तोले का। 1,100 गाँवों के नमूने की पड़ताल करने से पता लगा था कि उनमें 143 प्रकार के बाटों व नापों का प्रयोग हो रहा था। साधारणतः एक व्यक्ति अपने आस-पास प्रचलित नाप-तोल को जानता है, इसलिए दूसरी जगह जाकर दुकान से सौदा लेने पर वह परेशान हो जाता और भोले ग्राहक को दुकानदार धोखा देने से बाज नहीं आता। और फिर यह भी कहाँ उचित है कि देश के एक स्थान पर एक सेर 10 तोले का हो, दूसरे स्थान पर 40 या 100 तोले का। इसलिए बहुत समय से यह सोचा जा रहा था कि समस्त देश में नाप-तोल की एक परिपाटी चलाई जाए। 1871 ई. में भारत सरकार ने मीटर प्रणाली के अनुसार एक-से बाट व सिक्के चलाने के लिए कानून बनाया था, पर उस पर अमल नहीं हो सका। इसलिए हिसाब-किताब की जटिलता बनी रही। एक गज 36 इंच का होता है पर कहीं गिरहों में गज माना जाता है। एक रुपये के 64 पैसे होते हैं, पर गज के 36 इंच ही मन के 40 सेर होते हैं। इस प्रश्न पर इस दृष्टि से विचार किया गया कि क्यों न नाप-तोल व सिक्का सभी में एक- सी गणित का प्रयोग किया जाए।
105 देशों में
पाठकों को यह जानकर संभवतः आश्चर्य होगा कि इंगलैंड आदि कुछ देशों में भले ही पैसा, शिलिंग, पौण्ड या इंच, फुट, गज चलते हैं, संसार के प्रायः सभी उन्तत देशों ने दशमिक प्रणाली को अपना लिया है। इस प्रणाली का अर्थ है छोटे-बड़े सिक्के, नाप व तोल के परिमाण 10 के गुणितों या दसवें, सौवें और हजारवें हिस्से के बराबर रखे जाने चाहिए। यदि छोटा सिक्का एक के बराबर है तो बड़े 10, 100 या 1,000 के बराबर हों और उससे छोटे सिक्के .1, .01, .001 के क्रम से। यही बात नाप-तोल की इकाइयों में भी होनी चाहिए। दस के पहाड़े को याद रखना सबसे सरल होता है। इसीलिए जिस- जिस देश में भी यह पद्धति जारी की गई, लोकप्रय हो गई। संसार के 140 ऐसे देशों में से 105 में दशमिक प्रणाली चालू है। सबसे पहले अमरीका में इस प्रणाली के सिक्के का चलन हुआ और डालर को इकाई माना गया। इसके बाद रूस, जर्मनी और स्केण्डीनेविया में क्रमश: इस पद्धति के सिक्के चलते गए। बाद में तो आस्ट्रिया, हंगरी व रूस में इसका अनुसरण किया गया। जापान तक ने 1878 में इसी पद्धति को अपना लिया।
भारतीय पद्धति
यह दशमिक पद्धति भारत के लिए नई नहीं है। सच्चाई तो यह है कि भारत ने इस गणना पद्धति का आविष्कार किया। वेदों में इस गणना के मंत्र आते हैं। 1 से 10 तक, 100 तक या 1,000 आदि तक की गिनती भारत- वर्ष से ही अन्य देशों ने सीखी है। संख्याओं को दहाई में लिखने का चमत्कारी आविष्कार संसार को भारत की बहुत बड़ी देन है। आज समस्त अंकगणित का आधार दहाई क्रम की गणना है। पर यह सरलतम और वैज्ञानिक पद्धति हमारे नाप-तोल व सिक्कों में जाने क्यों नहीं आ सकी? यह इतनी सरल है कि एक से शुरू होकर बाईं ओर का हर अंक दायें वाले अंक से दस गुणा होता है। 888 का मतलब है 800+80+8 साइमन स्टीवंस ने इसी प्रणाली को दाई ओर लिखकर उसी प्रकार 10 गुणा घटाए जाने का आविष्कार किया। इसको दशमिक (डेसिमल) प्रणाली कहते हैं। इसमें सही बटों की आवश्यकता नहीं होती।
आधुनिक भारत में
पिछले कुछ वर्षों में बहुत से भारतीयों और व्यापारिक संस्थाओं ने दशमिक प्रणाली के सिक्के चलाने के महत्त्व पर जोर दिया। 1946 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने भी इस ओर ध्यान दिया। इस कांग्रेस में सिक्कों और नाप-तोल की दशमिक प्रणाली का समर्थन किया गया। तत्कालीन केंद्रीय विधान सभा में सिक्कों की दशमिक प्रणाली शुरू करने के लिए 1946 में भी विधेयक पेश किया गया था, पर बाद के राजनैतिक परिवर्तनों के कारण आगे नहीं बढ़ सका। 1946 में भारतीय प्रतिमानशाला ने भी सिक्कों, माप और तोल, तीनों को दशमिक प्रणाली अपनाने की जोरदार सिफारिश की थी।
इसके बाद देश में दशमिक सिक्के चलाने के पक्ष का समर्थन बराबर बढ़ता गया। 1955 में भारत सरकार ने संसद में एक विधेयक पेश किया और सितम्बर 1955 में यह अधिनियम बन गया। इसका नाम है 1955 का भारतीय सिक्का (संशोधन) अधिनियम। इसके द्वारा सरकार को सिक्कों की दशमिक प्रणाली प्रारंभ करने का अधिकार मिल गया और 1 अप्रैल 1957 से देश में नए सिक्के चलने लग गए। इसमें भी रुपये की कीमत पहले जैसी ही रहेगी, पर 1 रुपये में 192 पाइयों की जगह 100 नए पैसे होंगे। पुराने धन्नी, इकन्नी, चवन्नी अठन्नी की जगह 2, 5, 10, 25 और 50 नए पैसों के नए सिक्के चल रहे हैं।
नाप-तोल की नई पद्धति से
यह दशमिक प्रणाली केवल सिक्कों में ही नहीं अपनायी जा रही है। यह निश्चय किया गया है कि 1 जनवरी सन् 1958 से नाप-तोल के लिए भी यह प्रणाली लागू कर दी जाए। फिलहाल यह विचार किया गया है कि गज, फुट, इंच की जगह मीटर प्रणाली अपनायी जाए। अंग्रेजी प्रणाली में इंचों को 12 से भाग देकर फुट और फुटों को तीन से भाग देकर गज बनाने पड़ते हैं, पर मीटर प्रणाली में दशमलव को एक स्थान दाई ओर बढ़ाते जाने से भी काम चल जाएगा। घन और वर्ग इंच फुट या गज बनाने में तो और भी मुश्किल पड़ती है। नाप-तोल में यह विचार है कि सभी यूरोपियन नाम स्वीकार किए जाएँ। इन अंतरर्राष्ट्रीय नामों में किसी को मतभेद हो सकता है, पर सब स्थानों पर एक-सी दशमिक प्रणाली अपनाने से हिसाब- किताब सरल हो जाएगा, इसमें संदेह नही। नाप-तोल व सिक्कों में सभी जगह इकाई, दहाई, सैकड़ा, या दसवाँ, सौवाँ और हजारवाँ भाग चलेंगे। आज तो कुछ वर्षों तक लोगों को नए सिक्के व नए नाप अपनाने में कुछ समय लगेगा, कुछ कठिनाई होगी, परंतु कुछ समय तक प्रचार व शिक्षा से सब लोग नए सिक्कों से तथा नए नाप-तोल से परिचित हो जाएँगे। दरअसल सब जगह एक-सी दशमिक पद्धति से काम बहुत आसान हो जाएगा
लागत या मूल्य का हिसाब लगाना जो आजकल एक अच्छा-खासा सिर दर्द समझा जाता है, नाप-तोल की मीटर प्रणाली और सिक्कों की दशमिक प्रणाली से कितना सरल हो जाएगा इसका एक और उदाहरण लीजिए-
यदि 1 मीट्रिक टन (मान लीजिए चाँदी) का दाम है – 80,00000 रुपए
तो 1 किलोग्राम का 80.00
और 1 ग्राम का .08
इसके मुकाबले वर्तमान अंग्रेजी प्रणाली का हिसाब देखिए–
यदि 1 लीप टन का मूल्य 80,00000 रुपए
तो 1 पौंड का 35 रुपए 11 आने 5 पैसे
और 1 औंस का 2 रुपए 3 आने 8 पैसे
विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने भी इस प्रणाली की बहुत प्रशंसा की है और इसको अपनाने का प्रबल समर्थन किया है। हमें आशा करनी चाहिए कि भारतीय भी शीघ्र ही इस प्रणाली के अभ्यस्त हो जाएँगे।