यदि बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध विद्युत् युग था तो उसका उत्तरार्द्ध अणु युग है, मानव समाज दीर्घ काल से शक्ति का आविष्कार कर रहा है। छोटे-छोटे यंत्र मानव-शक्ति को बढ़ाने के लिए आविष्कृत किए गए। अग्नि का प्रयोग अनादि काल से मनुष्य को मालूम है। इसके द्वारा उसने भोजन पकाने से लेकर शत्रु के विनाश तक की लीलाएँ की है। बड़े-बड़े कल-कारखानों के साथ शक्ति की अधिक आवश्यकता प्रतीत होती गई है। लकड़ी और पत्थर के कोयले ने अग्नि के ईंधन का काम दिया है, परंतु रेलगाड़ियों और हजारों कारखानों के नित नए निर्माण ने यह भय पैदा कर दिया कि इस वसुन्धरा के गर्भ में जो करोड़ों अरबों टन कोयला छिना हुआ है, जिस गति से उसका व्यय हो रहा है उसे देखते हुए वह किसी दिन भी समाप्त हो सकता है। मिट्टी के तेल ने शक्ति का एक अनंत स्रोत मानव को दिया, पर नित बढ़ते हुए शक्ति के व्यय को देखते हुए वह भंडार अक्षय नहीं रहेगा। इसलिए जब बिजली का आविष्कार हुआ तो लोगों ने ठंडी साँस ली कि कोयले व तेल की जगह मानव विद्युत् से काम चला लेगा, किंतु मानव को इस शक्ति से भी संतोष नहीं हुआ। वह एक ऐसी शक्ति के आविष्कार में लग गया, जो विद्युत् से भी अधिक तीव्र और अनंत शक्ति प्रकट करे।
शक्ति का बढ़ता हुआ प्रयोग
संसार में मानव सभ्यता की उन्नति के साथ-साथ शक्ति का प्रयोग कल्पनातीत मात्रा में बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के लिए यदि हम 33 अरब टन कोयले से उत्पन्न होने वाली शक्ति को ‘x’ कहें तो ईसा के बाद साढ़े अट्ठारह शताब्दी तक प्रतिशतक औसतन आधा ‘x’ शक्ति खर्च हुई, किंतु 1850 के बाद प्रतिशत खर्च ‘x’ हो गया और आजकल तो यह 10 ‘क्ष’ प्रति शताब्दी हो गया है। शक्ति के इतने अधिक खर्च के दो मुख्य कारण हैं। एक तो यह कि संसार की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। 1900 ई. में जनसंख्या डेढ़ अरब थी। सन् 1650 में 2 अरब 30 करोड़ हो गई और 2000 ई. तक साढ़े तीन अरब से भी अधिक हो जाने की संभावना है। दूसरा मुख्य कारण यह है कि औद्योगिक विकास के साथ-साथ मानव का जीवन स्तर बढ़ रहा है और प्रति व्यक्ति शक्ति का प्रयोग कई गुना बढ़ गया है।
अणु शक्ति का आविष्कार
शक्ति के नए स्रोतों का आविष्कार करने के लिए बीसियों वर्षों से जो प्रयत्न हो रहे थे, उन्हीं के परिणामस्वरूप अणुशक्ति का आविष्कार हुआ है। सांख्य दर्शन के आचार्य महर्षि कणाद ने इस सिद्धांत की घोषणा की थी कि यह सृष्टि कणों से बनी है। ग्रीस और रोम में भी यह विचार अंकुरित हो चुका था, किंतु वर्तमान अणुवाद का आरंभ डॉ. डाल्टन की ‘टामिक- थ्यूरी से होता है। उन्होंने यह मत प्रतिपादित किया था कि सभी पदार्थ परमाणु से बने हैं और यह परमाणु टूटता नहीं। किंतु समय पाकर वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुँचे कि परमाणु टूट सकता है और परमाणु में भी एक संसार छिपा रहता है। जिस प्रकार सूर्य के चारों ओर ग्रह घूमते हैं, परमाणुओं के मध्य में भी एक केंद्र होता है, जिसके चारों ओर ऐलेक्ट्रोन घूमते रहते हैं। इस अणु को यदि किसी तरह खंडित कर दिया जाए तो एक भयंकर विस्फोट हो सकता है जो अनंत शक्ति उत्पन्न कर सकता है। यूरेनियम नामक धातु के परमाणुओं को तोड़ने से बहुत अधिक शक्ति का आविर्भाव होता है। एक पौंड यूरेनियम से 10 हजार पौंड कोयले की शक्ति प्राप्त की जा सकती है, यों उसमें 10 लाख पौंड कोयले तक की शक्ति है।
अणु शक्ति के आविष्कार में शायद अभी और समय लगता, यदि विश्व-व्यापी युद्ध प्रारंभ न हो गया होता। शत्रु के संहार के लिए जर्मनी के वैज्ञानिकों ने अणुबम बनाने का प्रयत्न किया, किंतु उसे सफलता मिलने से पूर्व ही अमेरिका ने प्रमुख जर्मन वैज्ञानिक ओटोहान को गिरफ्तार कर लिया और उसे अमेरिका भेज दिया गया। उससे अणुशक्ति का रहस्य प्राप्त करके अमेरिका ने पहला अणुबम बनाया। संसार के इतिहास में प्रथम बार भीषण प्रलय ‘शक्ति रखने वाले अणु बमों का प्रयोग जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर किया गया। एक बम ने 40-50 हजार नगरनिवासियों को एक क्षण में भस्मसात् कर दिया। जापान की बहादुर जाति को घुटने टेक देने पड़े। युद्ध तो समाप्त हो गया, परंतु विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों में अणु शक्ति के आविष्कार की तीव्र प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई। बड़े-बड़े विशाल समुद्र- खंडों पर अणुबमों के परीक्षण किए जाने लगे। अमेरिका के बाद रूस ने भी अणुबम का आविष्कार कर लिया। ब्रिटेन भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहा।
उद्जन बम
इसलिए अणुबम से भी अधिक शक्तिशाली अस्त्र का आविष्कार किया जाने लगा और उद्जन बम के रूप में उसका आविष्कार हो गया। यह अणुबम से भी कई गुना शक्तिशाली होता है। मार्च 1954 में प्रशांत महासागर के बिकनी द्वीप पर इसका प्रयोग किया गया। इसके भीषण परिणामों से समस्त संसार के वैज्ञानिक चकित हो गए। सैंकड़ों मील के क्षेत्र का समस्त वातावरण रेडियो-सक्रिय हो गया। समुद्र के असंख्य जीव-जन्तु मर गए। परीक्षण केंद्र से बहुत दूर रहने वाले जापानी मछियारे अवर्णनीय यातना सहकर के मर गए। इस कारण एक ओर विभिन्न सरकारें, परमाणु और अणुबमों की होड़ में एक-दूसरे से आगे बढ़ रही हैं, दूसरी ओर संसार के वैज्ञानिक भारी भय के साथ इन आविष्कारों के कारण मानव जाति के विनाश को देख रहे हैं। इसलिए सभी वैज्ञानिकों और देश नेताओं की ओर से यह आवाज उठने लगी है कि इन बमों का न केवल युद्ध में प्रयोग न किया जाए, अपितु इनके परीक्षण भी बंद कर दिए जाएँ। पंडित जवाहरलाल नेहरू अणु और उद्जन बमों के परीक्षणों को बंद कराने के लिए तीव्र आंदोलन कर रहे थे। इन परीक्षणों से जो रेडियो – सक्रियता उत्पन्न होती है वह अत्यंत विशाल प्रदेश के प्राणियों और मानवों पर असर डालती है। यह मानव की सन्तानोत्पादन की शक्ति को नष्ट कर देती है, गर्भस्थ की प्रकृति को विकृत कर देती है और मस्तिष्क रोग तथा पक्षाघात के रोगों को बढ़ा देगी। वह हमारे भोजन की फसलों पर भी अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। इसलिए अणुबमों के परीक्षण सर्वथा बंद करने का आंदोलन बढ़ता जा रहा है।
अणु शक्ति के लाभ
किंतु, हर एक चीज के दो पहलू होते हैं। बहुत से वैज्ञानिकों का यह ख्याल है कि अणु शक्ति का आविष्कार मानव जाति का विनाश नहीं करेगा, परंतु उससे हम चिकित्सा और कृषि क्षेत्र में असाधारण उन्नति कर सकेंगे। उनका ख्याल यह है कि रेडियो – सक्रियता आदि के दुष्परिणामों को रोका जा सकता है। त्वचा के अनेक रोगों को इसकी शक्ति से ठीक किया जा सकता है, खेती की फसलों को बढ़ाया जा सकता है और रेलों, जहाजों, वायुयानों तथा कारखानों के लिए अनंत शक्ति प्राप्त की जा सकती है। अनेक लोक कल्याणकारी कार्यो में इसका प्रयोग प्रारंभ भी कर दिया गया है। संसार के समुद्रों में बहुत प्रचुर मात्रा में उद्जन का भंडार विद्यमान है और उससे अपार शक्ति उत्पन्न की जा सकती है। जिन देशों में कोयले या तेल का अभाव है, वहाँ समुद्रों से प्रचुर मात्रा में ईंधन प्राप्त किया जा सकता है। यदि किसी तरह समुद्री पानी को उद्जन शक्ति में परिणत करने के लिए ऐसे किसी यंत्र का आविष्कार हो गया, जो इस क्रिया के लिए आवश्यक प्रचंड ताप को सहन कर सके, तो मानव- जाति के लिए शक्ति का ऐसा स्रोत हाथ लगेगा, जो कभी समाप्त नहीं हो सकेगा। वस्तुतः प्रकृति का एक नया रहस्य हमारे सामने खुल गया है। यह मानव जाति के लिए अनंत कल्याण का साधन हो सकता है और इससे प्राणी मात्र के अस्तित्व का लोप भी संभव है। संसार के विचारक इस प्रश्न पर विचार कर रहे हैं कि अणुशक्ति का यह आविष्कार मानवता के इतिहास के नए युग का सूचक है अथवा मानव जाति के अनंत का सूत्रपात।”