4 अक्तूबर 1957 का दिन संसार के वैज्ञानिक इतिहास में बहुत क्रांतिकारी और महत्त्वपूर्ण गिना जाएगा। इस दिन संसार ने अचानक सुना कि रूस के वैज्ञनिकों ने एक उपग्रह छोड़ा है, जो पृथ्वी से 560 मील ऊपर आकाश में पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है। यह उपग्रह वज़न में 185 पौंड का है। इसका व्यास 25 इंच का है। यह अण्डाकार मार्ग पर 17,000 मील प्रति घंटे की चाल से पृथ्वी की परिक्रमा करने लगा। इन पंक्तियों के लिखने तक (21 अक्तूबर प्रातः 8 बजकर 32 मिनट) यह उपग्रह निरंतर पृथ्वी की 243 बार परिक्रमा कर चुका है और आगे भी करता जा रहा है। 65 मिनट में यह एक बार पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है और इस तरह यह एक दिन में 15 बार पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। उपग्रह के साथ उसे ऊपर ले जाने वाला राकेट भी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है और 21 अक्तूबर तक वह उपग्रह से 11,250 मील आगे निकल गया था, और उसकी गति 36 मिनट तेज हो गई थी।
चंद्रलोक की यात्रा का स्वप्न अनेक वर्षों से वैज्ञानिक ले रहे थे। अंतरिक्ष लोक में परमात्मा की प्रतिस्पर्द्धा करके ग्रहों की नई सृष्टि का निर्माण करने के प्रयत्न में अब वह सफल भी होने लगे हैं। हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार हजारों वर्ष पूर्व ऋषि विश्वामित्र ने एक नई सृष्टि के निर्माण का प्रयत्न किया था और त्रिशंकु को सदेह द्युलोक में भेजने की कोशिश की थी। यह पौराणिक कथाएँ अब सत्य बन रही हैं। गत विश्व व्यापी युद्ध में शत्रु संहार के लिए राकेट नामक अस्त्र बनाए गए थे, जो बहुत दूर और बहुत ऊँचाई तक अत्यंत तीव्र गति से चलते थे।
भू-भौतिक वर्ष
युद्ध समाप्ति के बाद वैज्ञानिक इस आविष्कार का लाभ उठाने के लिए तत्पर हो उठे और अंतरिक्ष की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए संसार के वज्ञानिकों ने 18 महीनों का एक भू-भौतिक विज्ञान वर्ष मनाने का निश्चय किया। यह वर्ष जुलाई 1957 से शुरू हो गया। एक योजना बनाई गई, जिसमें पृथ्वी तल से कृत्रिम चाँदों को आकाश में भेजने का भी निश्चय किया गया। रूस और अमेरिका दोनों इस दिशा में प्रयत्न कर रहे थे; किंतु रूस ने अचानक ही 4 अक्तूबर को राकेट के द्वारा एक उपग्रह प्रकाश में छोड़कर अंतरिक्ष यात्रा के प्रारंभ का श्रेय प्राप्त कर लिया। इस उपग्रह या बालचंद्र को एक बहुत तीव्रगामी राकेट के द्वारा छोड़ा गया है। इस राकेट ने पृथ्वी से 560 मील ऊपर जाकर उपग्रह को छोड़ दिया।
उपग्रह या बालचंद्र
इस उपग्रह या अंतरिक्ष यात्रा के अग्रदूत बालचंद्र को अलुमीनीयम धातु के मिश्रण से बनाया गया है। यह आकार में गोल है। इसके बीचो-बीच ऊपर से नीचे की ओर एक नली गई है, जिसके ऊपरी भाग में गामा किरण मापक यंत्र रखा है। उसके नीचे ही इलेक्ट्रोनों का हिसाब करने वाला यंत्र है। बायीं तरफ ट्रांसमीटर तथा रेडार-संकेतक यंत्र एक आयताकार बक्से में पड़े हैं। निचले हिस्से में बैटरी है। मध्य में बाहर वाले खोल के अंदर रेकॉर्ड करने के साधन जुटाए गए हैं। घूमता हुआ रेकॉर्ड करने वाला ढोल भी वहीं है। मोटर और गियरवाला बक्स भी केंद्र में ही है। बीच वाली नली के निचले हिस्से में कास्मिक (ब्रह्माण्ड) किरणों तथा अरोरा (ध्रुवीय प्रकाश) को नापने के उपकरण है। यह बालचंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता हुआ अंतरिक्ष लोक के वातावरण, वायु और सूर्य किरणों के संबंध में काफी जानकारी प्राप्त कर रहा है। इस उपग्रह या बालचंद्र से जो रेडियो – तसवीरें प्राप्त हुई, उन्हें चार सौ गुना बड़ा करके काफी सूचना प्राप्त की जा सकेगीं। इन पंक्तियों के लिखने तक भिन्न-भिन्न वैज्ञानिकों ने इस बात पर भिन्न-भिन्न मत प्रकट किए हैं कि इसकी आयु कितनी है। कोई कुछ सप्ताह इसका जीवन-काल मानता है, तो कोई 15-20 वर्ष तक। इस उपग्रह के ऊपर दो रेडियो ट्रांस- मीटर हैं, जिनकी आवाज दुनिया भर में रेडियो पर सुनी जा रही है।
चंद्रलोक की यात्रा
रूसी वैज्ञानिकों ने यह प्रथम परीक्षण किया है। वास्तविक उपग्रह इससे बड़े रहेंगे और एक के बाद एक करके 120 कृत्रिम चाँद आकाश में छोड़े जाएँगे। रूस का वास्तविक ध्येय चंद्र तक पहुँचना है। रूस के वैज्ञानिकों का ख्याल है कि 1960 और 65 के बीच में चाँद पर और 1965-66 तक मंगल और शुक्र पर चढ़ाई की जा सकेगी। एक वैज्ञानिक ने बताया है कि चाँद तक पहुँचने की सारी टैक्नीकल समस्याएँ हल हो गई हैं। समय आ गया है, जब हम सब लोग चाँद को अपने टैलीविज़न के परदे पर देख सकेंगे। वैज्ञानिक ऐसे विशेष खोल बना रहे हैं, जिनके अंदर मनुष्य, जीवित रहकर चाँद तक पहुँच सकेगा। हम चाँद के ऊपर शहर के शहर बसते हुए देख सकेंगे, जिसमें मनुष्य जीवित रह सकेगा और संसार की बढ़ती हुई जनसंख्या का शायद समाधान किया जा सके। चाँद पर पहले ऐसे राकेट गिराए जाएँगे, जो रेडियो, टेलीविज़न और भू-नियंत्रण राकेटों से चाँद की जमीन और वायुमंडल का परिचय देगे। इसके बाद अंतरिक्षी जहाज छोड़ा जाएगा जो अभी छोड़े गए उपग्रह की तरह आसमान में लटक जाएगा और पृथ्वी का चक्कर काटेगा। इसके बाद रेडियो से चालित राकेट उस पर फेंका जाएगा जो उस जहाज को नया ईंधन देकर उसे आगे बढ़ाएगा और चाँद तक ले जाएगा। चाँद पर पहुँचकर यह जहाज खुल जाएगा और उसके अंदर से एक प्रयोगशाला निकल आएगी। यह प्रयोगशाला चाँद पर दौड़ेगी और चाँद का सारा विवरण पृथ्वी को भेजेगी। इस प्रकार भविष्य में मनुष्य की यात्रा का मार्ग साफ हो जाएगा।
तीव्रगामी राकेट
वैज्ञानिकों के यह साहस और प्रतिभापूर्ण परीक्षण संसार की सभ्यता में क्रांतिकारी युग का सूत्रपात कर रहे हैं। अभी रूस ने इस दिशा में पहल की है, किंतु अमेरिका भी इस दिशा में असाधारण प्रगति कर रहा है। अमेरिका की ओर से 12 या अधिक उपग्रह छोड़ने की योजना है। उच्च आकाश मंडल के दबाव, तापमान तथा घनता के मापने के लिए अलग अलग किस्म के सैकड़ों राकेट सूर्य के संपूर्ण रंग-बिरंगे प्रकाश के चित्र लेंगे और अल्ट्रा वायलॅट किरणों के बारे में काफी जानकारी देंगे। रॉकेटों की सहायता से भूमि के ऊपर 50 से 250 मील की दूरी तक फैले हुए अयनमंडलों की भी जानकारी प्राप्त की जाएगी। अयनमंडल एक विद्युतयुक्त परत है और समुद्र पार तथा दूरवर्ती स्थानों को रेडियो समाचार भेजने की दृष्टि से इसका बड़ा महत्त्व है। पृथ्वी से भेजी गई तरंगें अयनमंडल द्वारा पुनः पृथ्वी पर भेज दी जाती हैं। इसके बाद वे फिर अयनमंडल में जाती हैं और फिर भूमि की ओर लौटती हैं। गन्तव्य स्थान पर पहुँचने तक यह क्रम जारी रहता है। राकेटों की सहायता के बिना प्रकाश धाराओं, अयनमंडल, भूमि की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के क्षेत्र में घटा-बढ़ी, बहुत अधिक ऊँचाई पर वायु की सामान्य गति तथा सब प्रकार की शक्तियों के स्रोत और केंद्र, सूर्य का भूमि से क्या संबंध है, इस दिशा में जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती। अमेरिका के वैज्ञानिक यह अनुभव करते हैं कि कृत्रिम उपग्रह 10-12 सेर से भारी यंत्र नहीं ले जा सकता, जबकि रॉकेट सवा-डेढ़ मन तक यंत्र ले जा सकता है। इसलिए वे उपग्रहों की अपेक्षा ज्ञान- वर्द्धन के लिए राकेटों पर अधिक निर्भर करते हैं।
वैज्ञानिकों की यह दौड़ विश्व को कहाँ ले जाएगी, यह कहना अति कठिन है। ब्रह्माण्ड के विशाल क्षेत्र में जहाँ अभी तक विश्व स्रष्टा भगवान् का एकमात्र अधिकार है, मानव का यह हस्तक्षेप और नई सृष्टि निर्माण करने की यह प्रतिस्पर्द्धा अंत में विश्व के लिए मंगलकारी होगी या अमंगलकारी इस विवादास्पद प्रश्न में न जाते हुए भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव भगवान् के प्रतिस्पद्ध के रूप में खड़ा हो गया है।