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राज भाषा आयोग

rajbhasha-aayog par hindi nibandh

भारतीय संविधान में यह निश्चित किया गया है कि देश की राजभाषा हिंदी होगी। संविधान के बनाते समय यह भी तय किया गया था कि राष्ट्रपति समय-समय पर हिंदी की प्रयोग संबंधी प्रगति की जाँच के लिए आयोग नियत किया करेंगे, जो यह बताएगा कि देश के शासन में हिंदी के प्रयोग को किस तरह बढ़ाया जाए। इसलिए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने श्री बाल गंगाधर खेर के नेतृत्व में एक राज भाषा आयोग नियत किया था। इसने गत 31 जुलाई सन् 1956 को अपनी महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित कर दी।

हिंदी के भविष्य और देश में हिंदी के प्रचार और सार्वजनिक तथा प्रशासनिक जीवन में हिंदी के बढ़ते हुए प्रयोग के संबंध में इस आयोग की सिफारिशें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। अभी सरकार ने इस आयोग की सिफारिशों पर अपना अभिमत प्रकट नहीं किया है। संभव है, कुछ परिवर्तन इनमें कर दिया जाए, किंतु इन सिफारिशों का हिंदी के प्रसार में असाधारण महत्त्व रहेगा। इसलिए इनमें से कुछ मुख्य सिफारिशें नीचे दी जा रही है-

यह कहना आवश्यक नहीं है और न संभव है कि 1965 तक हिंदी सामान्यतया अंग्रेजी का स्थान ले लेगी। यह उन प्रयत्नों पर निर्भर होगा, जो इस बीच में इसके लिए किए जाएँगे। परंतु यह स्पष्ट है कि संविधान में जिस प्रकार के लोकतन्त्रीय विधान की कल्पना की गई है, उसको देखते हुए अंग्रेजी भारतीय जनता की आम भाषा नहीं हो सकती। अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा की योजनाएँ भारतीय भाषाओं में ही बनाई जा सकती है।

स्पष्ट रूप से अखिल भारतीय कार्यों के लिए भाषा माध्यम हिंदी ही है।  

संविधान में यह संघ की भाषा और अंतर्राज्यीय संचार की भाषा इसलिए मानी गई है कि इसे अधिक आदमी बोलते और समझते हैं।

आयोग ने इस बात का समर्थन किया है कि संघ की भाषा के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाएँ भी देवनागरी लिपि में स्वेच्छा से लिखी जाएँ। इनसे सब भाषाएँ एक दूसरे के संपर्क में आ सकेंगी। आयोग ने यह सिफ़ारिश की है कि इस समय संघ के किसी प्रयोजन के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर प्रतिबंध न लगाया जाए। प्रशासनिक कार्यों में हिंदी का प्रयोग आरंभ करने के लिए संघ सरकार ऐसे विभागों को, जिनका कार्य सारे देश में फैला होता है जैसे— रेलें, डाक-तार, उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर विभाग आदि, स्थायी रूप से दो भाषाओं का सहारा लेना पड़ेगा। ये विभाग अपने आंतरिक कार्यो के लिए हिंदी का प्रयोग करेंगे और विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक कार्यों के लिए वहाँ की प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करेंगे।

संक्रांतिकाल में विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी के अवसर कम न हो जाएँ, इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि आरंभ में हिंदी के ज्ञान पर अधिक जोर न दिया जाए और इस कमी को भरती के बाद नौकरी करते समय प्रशिक्षण देकर पूरा किया जाए।

आयोग का कहना है कि संघ सरकार सेवाओं में नए उम्मीदवारों की भरती के लिए हिंदी के ज्ञान की एक उचित सीमा निर्धारित कर सकती है, बशर्ते कि वह एक काफी लंबी सूचना दे और भाषा संबंधी योग्यता का स्तर नीचा ही रखे।

आयोग ने सिफारिश की है कि यदि कोई हिंदी भाषी राज्य यह प्रार्थना करे कि अंग्रेजी के मूल के साथ हिंदी अनुवाद भी हो, तो संघ सरकार को चाहिए कि वह यह व्यवस्था करे कि वह उस राज्य के साथ जो भी पत्र-व्यवहार करे, उसके साथ हिंदी अनुवाद भी भेजे।

अदालत की भाषा

जब भाषा-परिवर्तन होगा, तब उच्चतम न्यायालय को अपनी कार्रवाई सिर्फ हिंदी भाषा में करनी होगी। उच्चतम न्यायालय के फैसलों का अधिकृत पाठ भी हिंदी में ही प्रकाशित होगा।

नीचे की अदालतों यानी पंचायतों की अदालतों तथा तहसीलों की दीवानी और फौजदारी अदालतों की कार्रवाई निश्चय ही राज्यों की प्रादेशिक भाषाओं में होनी चाहिए।

जब उच्चतम न्यायालय का क्रम हिंदी में और नीचे की अदालतों का काम प्रादेशिक भाषाओं में होगा, तो कोई ऐसा स्थल अवश्य होना चाहिए, जहाँ विभिन्न भाषाओं के कार्य को समन्वित किया जाए। यह कार्य उच्च न्यायालय के स्तर पर होना चाहिए और वहाँ हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाओं, दोनों का काम सँभालने की व्यवस्था होनी चाहिए। फिर भी, जब भाषा परिवर्तन होगा, तब उच्च न्यायालयों के फैसले, डिग्रियाँ और आदेश देश भर के लिए एक ही भाषा में होने चाहिए।

आयोग यह जरूरी समझता है कि परिवर्तन के समय देश के सभी कानून हिंदी में होने चाहिए। इसलिए राज्यों और संसदों द्वारा बनाए जाने वाले कानूनों की भाषा तथा किसी कानून के अंतर्गत निकाले गए आदेशों, नियमों आदि की भाषा हिंदी होनी चाहिए। आयोग का मत है कि, जनता की सुविधा के लिए, इन कानूनों का विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में भी अनुवाद होना चाहिए।

भविष्य में माध्यमिक स्कूलों में अंग्रेजी को मुख्यतः ‘बोलचाल की भाषा’ के रूप में पढ़ना चाहिए, न कि ‘साहित्यिक भाषा’ के रूप में, बशर्ते कि विद्यार्थी ने स्वेच्छा से अंग्रेजी को ‘साहित्यिक भाषा’ के रूप में पढ़ने की इच्छा व्यक्त न की हो।

प्रतिवेदन में यह सुझाव दिया गया है कि हिंदी पढ़ाना प्रारंभिक शिक्षा समाप्त होने पर शुरू करके दसवीं कक्षा तक चालू रखना चाहिए। देश भर के अहिंदी भाषा-भाषी क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य रूप से हिंदी में होनी चाहिए। हाँ, यह निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ देना चाहिए कि हिंदी को कब से अनिवार्य बनाया जाए।

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