संत एकनाथ किसी पर क्रोध नहीं करने के लिए प्रसिद्ध थे सभी लोग उनकी सहनशीलता और विनम्रता की प्रशंसा किया करत थे। एक दिन कुछ विरोधियों ने उन्हें कुद्ध करने को सोचा। इसके लिए उन्होंने एक दुष्ट व्यक्ति को चुना और उन्हें संत एकनाथ जी को क्रुद्ध कर देने के लिए रुपयों का लालच दिया।
एकनाथ जी भजन कर रहे ये तभी वह दुष्ट आया। उनके कंधे पर चढ़कर वह उनका ध्यान भंग करने लगा। एकनाथ जी आँखें खोलते हुए बोले, ‘बंधु! आपके जैसी आत्मीयता दिखानेवाला कोई भी अतिथि आज तक नहीं आया। बड़ी कृपा की जो आज आप आए। आज आपको बिना भोजन कराए जाने नहीं दूँगा।”
यह सुनकर वह शर्म के मारे उनके चरणों में गिर पड़ा और सचमुच ही उन्होंने उसे प्रेमपूर्वक भोजन करवाकर भेजा।