विनोबा जी के आश्रम में एक बार एक राजनीतिक नेता आए थे, जो विनोबा के परम मित्र थे। वे चुनाव में खड़े होनेवाले ये किंतु उनके और विनोबा के विचार में बहुत मतभेद था।
उनके साथ चर्चा करते हुए विनोबा ने कहा “आपके प्रति मुझे बहुत प्रेम है, इसलिए मैं आपके लिए जान भी दे सकता हूँ। परंतु आपको मैं अपना मत नहीं दे सकता; क्योंकि आपके विचार मुझे जँचते नहीं। हम एक ही आश्रम में रह सकते हैं, परंतु जबतक हमारे विचारों में अन्तर है तबतक लोगों से मैं यही कहता रहूँगा कि यह मेरा मित्र जरूर है, परंतु इसे वोट नहीं देना; क्योंकि इसके विचारों में दोष है। आप भी, जो लोग मेरे विचार के हो उनके बारे में यही कहिए कि इन विचारों में दोष है। फिर लोग इच्छानुसार जिसको चुनना होगा, चुनेंगे और जो चुनकर आएगा वह सरकार में जाकर जनता की सेवा करेगा और जो चुनकर नहीं आएगा, वह सीधा जनता में जाकर सेवा करेगा।”