इंग्लैंड में एक बहुत बड़ा संगीतकार था जिसकी प्रसिद्धि केवल यूरोप में ही नहीं बल्कि अमेरिका तक फैली हुई थी। वह साल में एक बार अपनी कला का प्रदर्शन केवल आधे घंटे के लिए किया करता था। वर्षभर लोग बड़ी बेताबी से उस तारीख का इंतजार करते रहते। तारीख का एलान होते ही लोग टिकट खरीदना शुरू कर देते। कई बार वह टिकटें ब्लैक मार्केट में बिकने लगतीं। वह संगीतकार अपने समय पर आता और अपनी कला का प्रदर्शन करके चला जाता। उसकी उँगलियाँ जब वायलीन पर थिरकती तो लोग दीवाने हो जाते। यह मशहूर था कि उसकी संगीत में वह जादू था कि मुर्दे भी जीवित हो उठते। वह एक विशेष धुन बजाता तो लोग रोने लगते। दूसरी धुन बजाने पर लोग हँसने लगते। तीसरी और अंतिम धुन सबको मस्त-सा बना देती और लोगों को उसके रंगमंच से जाने का पता तक न चलता था। एक बार जब वह संगीतकार अपनी कला का प्रदर्शन करके जा रहा था तो एक युवक ने पूछा- आप केवल आध घंटे के लिए कई हजार रुपये बटोर लेते हैं। कितना महँगा है आपका संगीत प्रदर्शन!”
संगीतकार यह बात सुनकर युवक की ओर देखता हुआ बोला- मैं केवल आधे घंटे के संगीत की इतनी फीस नहीं लेता, वर्ष के 364 दिन और साढ़े तेईस घंटों के परिश्रम और अभ्यास का मूल्य लेता हूँ। इतना अभ्यास न करूँ तो मेरे सुरों में वह दर्द और जादू न उत्पन्न हो सके जो लोगों को मस्त बना देता है।”
जैसे आधे घंटे के संगीत के कार्यक्रम के पीछे उसके कई महीनो की रियाजत तथा दिन-रात का परिश्रम और अभ्यास छिपा होता है इसी प्रकार हर रचना न जाने कितनी मेहनत, त्याग और बलिदान माँगती है। फूल का रंग, सुंगध, उसकी सुंदरता और आर्कषण को देखकर यदि कल्पना की जाए तो माली का कठिन परिश्रम स्पष्ट दिखाई देने लगता है। किसी मुँह बोलते बुत को देखकर सहसा बुत बनानेवाले की तस्वीर आँखों के सामने आ जाती है। केवल बनानेवाला ही नहीं जानता देखनेवाली आँखे भी जान लेती हैं कि उस मूर्ति के एक-एक अंग में जीवन डालने के लिए मूर्तिकार ने कितने दिनों तक खून पसीने के समान बहाए होंगे। कितनी रातों की नींद छेनी और हथौड़ी हाथों में लिए एक-एक अंग को सँवारने में हराम की होंगी।