Prerak Prasang

राम एक मिस्ट्री हैं

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अमेरिका में एक सुंदर युवती ने स्वामी रामतीर्थ से कुछ बातें करने के लिए अलग समय माँगा। स्वामी जी ने उसको दूसरे दिन सुबह मिलने को कहा।

वह युवती स्वामी रामतीर्थ से मिलने के लिए उनके निवासस्थान पर गई। उसने स्वामी जी से कहा “मैं एक धनाढ्य पिता की पुत्री हूँ। मैं संसार भर में आपके नाम से कॉलेज, स्कूल, पुस्तकालय इत्यादि खोलना चाहती हूँ। मैं सर्वत्र आपके नाम से मिशन खुलवा दूँगी।”

स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि दुनिया में जितने भी धार्मिक मिशन हैं वे सब राम के ही मिशन हैं। राम जो कुछ कहता है, वह शाश्वत सत्य है। राम के पैदा होने से हजारों वर्ष पूर्व वेदों और उपनिषदों ने दुनिया को जो संदेश सुनाया है वहीं राम आपलोगों के समक्ष यहाँ अमेरिका में प्रस्तुत कर रहा है। अतः राम को अपने नाम से अलग मिशन चलाने की कोई लालसा नहीं है। नाम तो केवल एक ईश्वर का ही है जो सदा-सदा रहेगा। व्यक्तिगत नाम तो ओस की बूँद की तरह नाशवान है।”

उस युवती ने जब बार-बार खैराती अस्पताल और कॉलेज इत्यादि खोलने की बात की तब स्वामी रामतीर्थ ने बहुत शांतिपूर्ण ढंग से पूछा कि आखिर आपकी आंतरिक इच्छा क्या है? आप चाहती क्या हैं? इस सीधे प्रश्न पर उस युवती ने स्वामी राम को घूरकर देखा, कुछ झिझकी व शरमायी फिर रहस्यमय चितवन से देखकर मुस्कुराती हुई बोली

– “मैं कुछ नहीं चाहती। केवल मैं अपना नाम मिसेज राम लिखना चाहती हूँ। मैं आपके नजदीक से नजदीक रहकर आपकी सेवा करना चाहती हूँ। बस, आप मुझे अपना लें।”

स्वामी रामतीर्य अपने स्वभाव के अनुसार खिलखिलाकर हँस पड़े और बोले

“राम न तो मास्टर है, न मिस न मिस्टर है, न मिसेज जब राम मिस्टर ही नहीं तो उसकी मिसेज होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।”

वह युवती लज्जित होकर व्याकुल हो उठी। वह खीझकर बोली “जब तुम मास्टर और

मिस्टर कुछ नहीं हो तो तुम क्या हो?”

स्वामी राम फिर मुस्कुराये और बोले “राम एक मिस्ट्री है, एक रहस्य।” वह युवती अब बिल्कुल बौखला उठी “नहीं-नहीं, मैं फिलॉसफी नहीं चाहती। मैं तुमसे नजदीक का रिश्ता चाहती हूँ।”

स्वामी राम ने कहा “मैं तुमसे नजदीक से नजदीक तो हूँ ही। कहने को हम दोनों अलग-अलग दिखलाई देते हैं, किंतु आत्मा के रिश्ते से हम दोनों एक ही हैं। इससे ज्यादा नजदीक का रिश्ता और क्या हो सकता है?”

उसने परेशानी दिखलाते हुए कहा कि मैं आत्मा का रिश्ता नहीं शारीरिक रिश्ता चाहती हूँ। राम! मुझे निराश मत करो।

स्वामी रामतीर्थ शांत भाव से बैठे थे। वे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहा ‘जानती हो हाड़ और मांस का नजदीक से नजदीक का रिश्ता माँ और बेटे का होता है जिससे आदमी का खून और हाड़-मांस बनता है। बस, आज से तुम मेरी माँ हुई और मैं तुम्हारा बेटा। “यह उत्तर सुनकर युवती ने अपना माथा पीट लिया और बोली ‘You have completely defeated me Ram.’

अर्थात् आपने मुझे पूर्ण रूप से परास्त कर दिया।

युवती फूट-फूटकर रोने लगी। उधर स्वामी रामतीर्थ ने अपनी आँखें बंद कर लीं और वे समाधिस्थ हो गए। कुछ देर बाद आँखें खुलीं तो वह स्त्री जा चुकी थी।

उस घटना के पश्चात् ‘मनोरीना’ नाम की वह युवती बराबर स्वामी रामतीर्थ के व्याख्यानों में आती तो रही, किंतु दूर एक कोने में बैठकर रोती रहती थी।

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