प्लेटो एक भाषण कला विद्यालय चलाते थे। उनके पास एक लड़का पहुँचा और उसने विद्यादान की याचना की। प्लेटो ने कहा “पहले मैं तुम्हारी परीक्षा लूँगा। तुमसे दो-चार सवाल पूछूँगा। अपने उत्तर से अगर तुम मुझे संतुष्ट कर दोगे तो मैं अवश्य तुम्हें शिष्य के रूप में स्वीकार कर लूँगा।”
लड़के ने कहा “पूछा जाए, मैं तैयार हूँ।” प्लेटो ने पूछा “दो और दो मिलने पर क्या
होता है?”
लड़के ने उत्तर दिया – “उसका अनंतर परिणाम पाँच भी हो सकता है, सात, दस और हजार भी हो सकता है। फिर तीन, दो, एक और शून्य भी हो सकता है। मगर हाँ, यदि वह दो और दो मृत हैं, जड़ हैं, निष्क्रिय हैं तो उसका परिणाम चार ही रह जाएगा।”
प्लेटो उस लड़के का उत्तर सुनकर अवाक् रह गए। कुछ देर तक उसकी ओर देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। फिर दौड़कर उसे पकड़ लिया, अपने सीने से लगाया, उसके माथे में आशीर्वाद का चुम्मा दिया और फिर उसे अपनी गोद में बिठाते हुए कहने लगे “बेटा, मानवता जबतक कायम रहेगी, तुम्हारा नाम अमिट रहेगा।”
वही लड़का बाद में अरस्तू बना। कितने प्यार और निष्ठा से प्लेटो उस लड़के को तालीम देते रहे, बयान करना कठिन है। यहीं है गुरु-शिष्य संबंध। वर्षों तक अरस्तू प्लेटो के पास रह गया था। वहीं अरस्तू कभी सिकंदर का गुरु बना।