एक बिल्ली चूहों को पकड़कर खा जाती थी। चूहों ने मिलकर सलाह की कि उनमें जो बड़ा हो उसे मालिक बना दिया जाए। मालिक की पहचान के लिए उसकी पूँछ में लकड़ी बाँध दी जाए। तय हुआ कि जब बिल्ली आएगी तब वह लकड़ी को फटाफट बजा देगा और सभी चूहे बिल में घुस जाएँगे। बदले में वे लोग जो कुछ खाना ले आएँगे उसमें से मुखिया चूहे को भी खिलाएँगे।
इस प्रकार बड़े चूहे की पूँछ में मालिक की पहचान के लिए लकड़ी बाँध दी गई। इतने में बिल्ली आ गई। तब सारे चूहे आहट पाकर भागकर बिल में घुस गए। मालिक चूहे ने भी भीतर घुसना चाहा मगर बिल्ली की नजर में वह चढ़ गया। बिल्ली ने उसकी पूँछ पकड़ ली। मुसीबत तो यह खड़ी हो गई कि पूँछ की लकड़ी बिल के मुँह में अटक गई। उसके कारण मालिक चूहा अंदर जा नहीं पाया। जब भीतर से बाकी चूहों ने अंदर आने को कहा तब वह बोला “आ तो रहा हूँ, पर यह मुखियागिरी आने नहीं देती। मालिक बनने से मेरा बड़ा नुकसान हुआ।” चूहे की पूँछ पकड़कर बिल्ली ने बाहर खींच लिया और उसे मरोड़कर चट कर गई।
उसी प्रकार तुम्हें भी मुखियागिरी तंग कर रही है। अतः मुखियागिरी छोड़ दो। मालिक तो केवल भगवान हैं। उन्हें उनका स्वामित्व सौंप दो और निश्चित हो जाओ। कर्म करने में आलस्य मत करो। तुम कर्म करने में ही सक्षम हो, फल के मामले में सर्वथा विवश हो। सभी कर्म चुस्ती से करो, नफा-नुकसान मालिक पर छोड़ दो क्यों व्यर्थ हर्ष शोक करते हो? याद रखो कि माँ कभी बच्चे का अहित नहीं करती। भगवान तो हमें बहत्तर माताओं के बराबर प्यार करता है तब क्या वही तुम्हारा अहित करेगा?