एक बार मूसा इस्लाम कहीं जा रहे थे। उन्होंने रास्ते में एक गड़रिए को कुछ बोलते सुना। वे गौर से उसकी बातें सुनने लगे। गड़रिया अपने में ही बड़बड़ाता जा रहा था “हे भगवन्! मुझे तो पाँच सौ भेड़े चराने में ही नहाने-खाने का वक्त नहीं मिलता, तुम्हें तो सारी सृष्टि की संभाल करनी पड़ती है। इसके चलते तुम्हारे कपड़े जरूर गंदे हो गए होंगे, केशों में जूँ पड़ गए होंगे। बिना नहाए तुम्हारे केश उलझ गए होंगे। प्रभो! अगर तुम मिल जाते तो मैं तुम्हें नहला देता, तुम्हारे केशों को झाड़ देता जूँएँ निकाल देता, कपड़े साफ कर देता।”
गड़रिए की बातें सुनकर मूसा ने कहा ‘अरे काफिर! तू यह क्या बकता है? हमारा खुदा गंदा कहाँ है जो तू उसकी सफाई करेगा? बंद कर यह बकवास। गड़रिए को भ्रम हो गया कि शायद भगवान के बारे में वह गलत अनुमान लगा रहा या। मूसा की बातों से उसका ख्याल बदल गया।
जब मूसा ध्यान करने बैठे तो जो नूर उन्हें रोज दिखाई पड़ता था वह दिखाई ही नहीं पड़ा। बड़े हैरान हुए। तत्काल इल्हाम हुआ “ऐ मूसा ! तूने हमारे भक्त का दिल तो लगाया नहीं, उसे तोड़ जरूर दिया। उसका विश्वास जब तक पुनः दृढ़ नहीं हो जाता, तुझे मेरा नूर नहीं दिखाई पड़ेगा।”
अब मूसा चौंके। दौड़े-दौड़े गड़रिए के पास पहुँचे। कहा “भैया, तू ठीक ही कह रहा था। मैं अभी-अभी खुदा को देखकर आ रहा हूँ। दुनिया भर की देखभाल करने में वह सचमुच इतना परेशान रहता है कि उसे नहाने-धोने की भी फुर्सत नहीं मिलती। वह बेतरह गंदी हालत में है। तू जाकर उसकी सफाई जरूर कर दे। इस पर गड़रिए का विश्वास फिर पक्का हो गया। वह भोला भक्त भगवान की सफाई करने के लिए दिन-रात उसकी खोज करने लगा और उसी गंदी हालत में उसे प्रभु का दर्शन हुआ। उसने उनकी खूब खिदमत की।
मतलब यह है कि भक्त जिस भावना से भगवान की याद करता है वह उसे उसी भाव में मिलता है।