Prerak Prasang

त्याग की परिभाषा

tyaag par short stories

एक बार एक व्यक्ति संत एकनाथ जी के पास आया और बोला, “महाराज! मुझे भगवद्प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइए। मैं आपके पास यही जिज्ञासा लेकर आया हूँ।”

एकनाथ जी ने उनसे पूछा, “तुम अकेले रहते हो या विवाह कर चुके हो?”

“नहीं महाराज! मेरा विवाह हो चुका है, परंतु मैं स्त्री और बच्चों का त्यागकर भगवद्प्राप्ति हेतु सदा के लिए आपके पास आया हूँ।” शिष्य ने उत्तर दिया।

महाराज बोले, “क्या तुम्हारी पत्नी और बच्चे ने तुम्हें आने के लिए अनुमति दी है?”

उसने जवाब दिया, “नहीं महाराज ! वे लोग सो रहे थे तभी मैं नींद में उन्हें छोड़कर भाग आया क्योंकि जगे में वे मुझे कभी आने की अनुमति नहीं देते। मैंने घर-गृहस्थी का संपूर्णता से त्याग कर दिया है। अब भगवद्प्राप्ति में लगना चाहता हूँ, इसलिए आप मुझे निराश न करें और अपने पास रख लें।”

“मूर्ख, जिस भगवान की प्राप्ति के उद्देश्य से तू यहाँ आया है वह तो तुम्हारे घर में ही मिल जाएगा। अपने पत्नी-बच्चों को छोड़कर अपने कर्त्तव्यों को त्याग देने से तू क्या समझता है कि भगवान तुझ पर खुश हो जाएँगे? नहीं। त्याग अपने मन के विकारों का करना होता है, आत्मीयजनों का नहीं। त्याग संसार की विषय-वासनाओं का किया जाता है। जाओ और अनासक्त होकर अपने कर्त्तव्यों का पालन करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। भगवान इसी से तुम पर खुश होंगे, एकनाथ जी ने उसे समझाते हुए कहा।

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