एक बार नानकदेव “लालो बढ़ई” के घर गए। उस गाँव में एक धनाढ्य व्यक्ति रहता था जिसका नाम “मालिक भागो” था। उस दिन उसके घर भोज था। गाँव के सारे लोग वहाँ खाने गए थे। सबके खा चुकने के बाद उसने अपने नौकरों से पूछा “गाँव के सभी लोग खा चुके न? कोई बाकी तो नहीं रह गया। नौकरों ने कहा “सभी तो खा चुके परंतु लालो बढ़ई के घर एक साधु आया हुआ है, उसने नहीं खाया।” यह सुनकर भागो ने गुरु नानकदेव को बुलवाया और पूछा “आप मेरे यहाँ जाने क्यों नहीं आए? यहाँ इतने अच्छे-अच्छे पकवान और मिठाइयाँ बनी हैं, उस लालो के घर आपको क्या मिला होगा सूखी रोटी के अलावा?” नानकदेव बोले “अच्छा, अब आया हूँ। करा लो भोजन।” भागो ने भीतर से पकवान मँगवाने को कहा। उधर नानक देव ने भी लालो से उसके घर की बनी सूखी रोटी मँगवाई। दोनों के यहाँ बनी खाद्य सामाग्रियाँ आ जाने के बाद नानक ने उस अमीर सेठ की घी में सनी हुई रोटी को हाथ में लेकर दबाया तो उससे खून निकलने लगा। उधर जब गरीब लालो की सूखी रोटी को दबाया तो उसमें से दूध निकलने लगा। यह देख वहाँ उपस्थित लोग आश्चर्यचकित हो गए। नानकदेव ने बताया “भागो ने गरीबों को लूटा है, इसीलिए इसकी रोटी में गरीबों का खून है। उधर लालो ने अपनी ईमानदारी से कमाया है अतः उसकी रोटी से दूध निकला।”