विश्वविजित होने का स्वप्न देखने वाले सिकंदर और उनके गुरु अरस्तू एक बार घने जंगल में कहीं जा रहे थे। रास्ते में उफनता हुआ एक बरसाती नाला पड़ा।
अरस्तू और सिकंदर इस बात पर एकमत न हो सके कि पहले कौन नाला पार करे। उस पर वह रास्ता अनजान था, नाले की गहराई से दोनों नावाकिफ थे। कुछ देर विचार करने के बाद सिकंदर इस बात पर ठान बैठे कि नाला तो पहले वह स्वयं ही पार करेंगे। कुछ देर के वाद विवाद के बाद अरस्तू ने सिकंदर की बात मान ली। पर बाद में वे इस बात पर नाराज हो गए कि तुमने मेरी अवज्ञा की तो क्यों की इस पर सिकंदर ने एक ही बात कही, मेरे मान्यवर गुरु जी मेरे कर्तव्य ने ही मुझे ऐसा करने को प्रेरित किया। क्योंकि अरस्तू रहेगा तो हजारों सिकंदर तैयार कर लेगा। पर सिकंदर तो एक भी अरस्तू नहीं बना सकता।
गुरु शिष्य के इस उत्तर पर मुस्कुरा कर निरुत्तर हो गए।