Prerak Prasang

मेरे लिए भोजन से जरूरी सत्य की प्राप्ति

phoinix ashram par hindi short story

फीनिक्स आश्रम में एक दिन एक बालक को एक शिलिंग (सिक्का) कहीं पड़ा हुआ मिला। सब विद्यार्थी सोचने लगे कि उसका क्या उपयोग किया जाए? तभी एक और विद्यार्थी को चौथाई शिलिंग का एक सिक्का और मिला। बहुमत खाने की चीजें मँगाने के पक्ष में था। इस बात की पूरी सावधानी रखी गई कि वह बात किसी को मालूम न हो।

गाँधी जी किसी दिन अन्यत्र गए। उनके जाने के बाद एक शिलिंग की पकौड़ियाँ और चौथाई शिलिंग के कुछ चित्र मँगाए गए। उन्हें आपस में बाँट लिया गया।

कुछ दिन बाद विद्यार्थियों के दो दल हो गए। फिर तो वह बात छिपी न रह सकी। गाँधीजी तक पहुँच गई। वे अत्यंत गंभीर हो उठे। उन्होंने एक अध्यापिका से, जो उसमें शामिल थीं, बहुत देर तक बातें कीं। फिर देवदास (गाँधीजी का पुत्र) गाँधी को भी बुलाया। सब लोग बड़े चिंतित ये और बाहर खड़े थे। सहसा उन्हें लगा कि गाधीजी किसी को पीट रहे हैं। लेकिन वह तो स्वयं अपने गाल पर तमाचे लगा रहे थे। उन्हें अपार वेदना हो रही थी कि यह बात उनसे छिपाई क्यों गई? आश्रम के वातावरण में जैसे उदासी और खिन्नता छा गई। संध्या के समय प्रार्थना के अवसर पर गाँधीजी ने शांत और धीमी आवाज में कहा, “आज दोपहर में मैंने खाना खा लिया, लेकिन शाम को कुछ नहीं खाऊँगा।” पानी भी जहर-सा लग रहा था। बेटे- बाप को किस हद तक धोखा दे सकता है, यह जानकर मेरा अंतर छिट रहा था लेकिन मै शांत रहा। मुझे जब रहा ही नहीं गया तब मैंने अपनी गाल पर पाँच तमाचे लगा दिए। किसी और को मैं मारूँ, इससे बेहतर है कि अपने आप को ही मार लूँ। कुछ लड़के कोई बात कह रहे हैं, कुछ कोई अन्य। सच्ची बात अभी तक वे नहीं बता रहे हैं। मैंने सबसे बड़े निहोरे किए पर कोई सत्य बोलना ही नहीं चाहता। असत्य मेरे पास बना रहे तो मेरा जीवन तो मिट्टी में मिल जाए। मैने इस बात पर बहुत मनन किया और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मेरे लिए अन्न-जल त्याग ही उचित है। जब तक लड़के स्वयं आकर सही-सही बात नहीं बताएँगे तब तक मैं अपने मुँह में न अन्न का दाना डालूँगा, न पानी की बूँद। मेरे लिए भोजन से जरूरी सत्य की प्राप्ति है।”

दो दिन से उन्होंने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था और तीसरे दिन कहीं बाहर जाना था। इसी तरह वे स्टेशन पर पहुँचे। गाड़ी में सवार हो गए तब सभी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और बहुत माफी माँगी। उन्होंने भविष्य में सदाचरण करने की शपथ ली। गाँधीजी ने उत्तर दिया, “मेरे लिए भोजन से अधिक सत्य की प्राप्ति है। मुझे वह प्राप्त हो गया। यही मेरी असली खुराक है। आज तो अब उपवास ही करूँगा, कल भोजन कर लूँगा।”

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