Prerak Prasang

गाँधी जी का रुमाल

gandhiji ka roomal hindi short story

हरिजन प्रवास के समय एक बार गाँधी जी का रुमाल काम की भीड़ में पिछले पड़ाव पर छूट गया। शायद किसी ने धोकर सुखा दिया था। चलते समय उसे उठाना भूल गया। गाँधी जी को उसकी ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने महादेव भाई से कहा, “मेरी रुमाल लाओ!”

महादेव भाई ने उत्तर दिया, “अभी लाता हूँ।”

लेकिन लाए तो तब जब कहीं हो! बहुत खोजा पर नहीं मिला। आखिर गाँधी जी को इस बात की सूचना दी गई। सुनकर कुछ क्षण वे मौन बैठे रहे, फिर पूछा, “वह रुमाल कितने दिन और चल सकती थी?”

महादेव भाई ने उत्तर दिया, “चार महीने तो चल ही जाती। गाँधी जी बोले, “तो फिर मैं चार महीने बिना रुमाल के ही चलाऊँगा। जो भूल हो गई है, उसका यही प्रायश्चित हो सकता है। इसके बाद ही दूसरा रुमाल लेंगे।”

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