Prerak Prasang

काका कालेलकर और मौन

Kaka-Kalelkar Hindi Short Story

जब मैं हिमालय में था, तब मेरे पड़ोस की एक कुटिया में रहने वाला एक साधक ब्रह्मचारी मुझसे हमेशा कहता था – “तुम्हें मौन का महत्त्व अब तक जँचा नहीं है : सच्चे साधकों को कभी भी मौन का भंग नहीं करना चाहिए।” इस संबंध में हम दोनों का मतभेद रहा धौर हमने एक-दूसरे से बोलना बंद कर दिया।

बाद में लंका से एक दूसरा मौनवादी आया। मैंने उन दोनों का परिचय करा दिया। तब से दोनों साधक बहुधा साथ-साथ दिखाई देते ओर मौन के माहात्म्य पर दोनों की चर्चा चलती रहती।

उसी समय मैंने समझा कि मौन पर बोलने से मौन का भंग नहीं होता।

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