Prerak Prasang

काका कालेलकर की अर्जी  

Kaka-Kalelkar Hindi Short Story1

अंग्रेजी शासन का एक दिलचस्प किस्सा सुना था। एक सरकारी संस्था के लिए सरकार ने एक मकान बनवा दिया। बड़े जिलाधीश द्वारा मकान का उद्घाटन हुआ। अच्छे-अच्छे भाषण हुए। अंत में संस्था के संचालक ने जिलाधीश के हाथ में एक अर्जी दे दी। संचालक ने कहा कि जिस मकान का उद्घाटन आपने किया है, उसकी मरम्मत के लिए पैसा मंजूर करने के लिए यह अर्जी है।

जिलाधीश ने कहा- “अभी तो मकान तैयार हुआ है। आज ही उसकी मरम्मत की बात क्यों छेड़ रहे हो?” संचालक ने कहा – “सो तो मैं भी जानता हूँ। पर इन दिनों सरकारी मकान कंट्रक्टरों के जरिए बनवाए जाते हैं। वे देखते-देखते ही काबिले- मरम्मत हो जाते हैं. दूसरे, यदि आज अर्जी दूँ, तो मंजूरी में चंद साल लग ही जाएँगे। तीसरे, यह अर्जी नीचे से ऊपर भेजूँ, तो शायद आप तक पहुँच ही नहीं पाए। आपकी मुलाकात तो और भी दुश्वार। आज अर्जी पर आपके हस्ताक्षर होंगे। अर्जी ऊपर से नीचे भेजी जाएगी। उसे ताक में रखने की किसी की भी हिम्मत नहीं होगी।”

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