स्वर्गीय दीनबंधु एंड्रूज बड़े ही उदारमना थे। गरीबों की सेवा ही वे सबसे बड़ा धर्म मानते थे। एक बार शिमला जाने के लिए उनके मित्र ने उन्हें डेढ़ सौ रुपये दिए। एंड्रूज स्टेशन पर पहुँचे ही थे कि एक प्रवासी भारतीय से भेंट हो गई। उसने अपनी विपत्तियों की करुण कहानी सुनाते हुए कहा – “मैं आपकी ही तलाश में आया था। बाल- बच्चों के भूखे मरने की नौबत आ गई है!”
एंड्रूज महोदय का दिल करुणा से ओत-प्रोत हो गया। झट उन्होंने डेढ़ सौ रुपये उसे दे दिए और जरूरत पड़ने पर पत्र लिखने की भी सलाह दी।
अगले दिन, जब उनके मित्र को सारी कहानी मालूम हुई, तो वे स्वयं स्टेशन आए और टिकट खरीदकर एंड्रूज महोदय को गाड़ी में बिठाने के बाद घर लौटे।