एक व्यक्ति गांधीजी के परम भक्त थे। बहुत से अनुयायियों की अपेक्षा उनके अत्यंत समीप भी थे। वे विवाहित थे; पर एक अविवाहित युवती से प्रेम करने लगे थे।
बातों ही बातों में बापू ने कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी से उनके संबंध में सारी बातें बताई :
“मैंने उनसे सत्य स्वीकार कर लेने को कहा। उन्होंने वैसा ही किया भी। तब से मैंने उस युवती को अपने संरक्षण में ले लिया, अभी कुछ दिन पूर्व उसने एक शिशु को जन्म दिया है। मैं नवजात शिशु तथा उसकी माँ की देखरेख करूँगा। वे सज्जन भी मेरे साथ ही हैं।”
फिर क्षणभर रुककर बोले – “अन्य तरीकों द्वारा जनता के तिरस्कार से वे बच नहीं सकते थे। लेकिन प्रेम क्या ऐसी गाँठ है जिसपर तलवार से प्रहार किया जाए?”
ज्यों ही उन्होंने यह कहा, मुझे ईसा की याद आ गई, जिसने मेरी नामक एक युवती को ऐसे ही दोष से मुक्त कर दिया था।