Prerak Prasang

महर्षिजी की शिक्षा

maharshi ji ki shixa hindi short story

एक घोर वेश्यागामी युवक को उसके हितैषी मित्र महर्षिजी के पास लाए कि इसे सत्पथ पर ले आइए। महर्षिजी ने वेश्यावृत्ति से होने वाले आत्मिक, शारीरिक और सामाजिक पतन का चित्र उसके सामने खींचा। फिर उन्होंने पूछा – “युवको, भला यह तो बताओ कि वेश्यासक्ति से यदि लड़की उत्पन्न हो, तो वह लड़की किसकी हुई?” युवक के मित्रों ने कहा- “उस वेश्यासक्त पुरुष की।” महर्षिजी ने पूछा – “युवती होकर वह क्या काम करेगी?” वह युवक स्वयं बोला “भला और क्या करेगी? बाज़ार में बैठेगी।”

तब महर्षिजी ने मर्मस्पर्शी शब्दों में कहा-  “देखिए, संसार में कोई भी भला मनुष्य नहीं चाहता कि उसकी पुत्री अपना शरीर बेचे। परंतु वेश्योन्मुख  जन ही ऐसे हैं जो अपनी ही बेटियों को वेश्या बनाते हैं। आप ही सोचिए कि क्या  यह बहुत बुरी बात नहीं है?”

यह सुनकर उस  के रोंगटे बड़े हो गए। उसने महर्षिनी के चरण छूकर सदाचार का व्रत लिया। बाद में यह महर्षिजी का भावनानाम  शिष्य बन गया और उनके कार्यों में सहायता देता रहा।

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