Prerak Prasang

शेख सादी

shekh saadi hindi short story

शेख सादी सफर करते हुए एक गाँव से गुजरे। गाँव वाले सबके सब जाहिल थे। उनके पीरसाहब भी जाहिल थे। शेख सादी को गाँव वालों ने हाथोंहाथ लिया और बड़ी खातिर की पीर साहब यह देखकर घबराए और डरे कि कहीं शेख सादी उनकी गद्दी पर कब्जा न कर लें। आख़िर शेख सादी की जाँच करने के लिए पहुँचे और कड़ककर बोले – “तुम बड़े काबिल समझे जाते हो – ज़रा इस शकल का मतलब बताओ ! “ शकल क्या थी, सिर्फ एक दायरा था, जिसके बीच एक लकीर खिंची हुई थी। सादी ने बहुत सोचा कि यह ज्योमेट्री की कौन-सी शकल है; मगर चूँकि सवाल पूरा न था, इसलिए जवाब न दे सके।

पीर साहब हँसकर बोले – “बस ! इसीपर काबिल बनते हो ! भला इस शकल में क्या धरा है, बाजरे की एक रोटी है, जिसपर तरकारी की एक फाँक रखी हुई है।”

सादी ने देखा कि पीर साहब ने जाहिल होने पर भी जलील कर दिया। इसलिए बदला लेने के लिए पीर साहब की बड़ाई करते हुए आगे बढ़कर उनकी दाढ़ी में से एक बाल उखाड़कर उन्होंने अपने बाजू पर बाँध लिया।

लोगों ने कहा कि यह क्या? सादी ने कहा – “पीर साहब अल्लामा हैं, उनकी दाढ़ी के बाल की बर्कत से हम भी आलिम हो जाएँगे।” सादी की बात ख़त्म भी न हुई थी कि लोग पीर साहब की दाढ़ी पर टूट पड़े और उनके चिल्लाने पर भी उनकी दाढ़ी का एक- एक बाल नोच लिया।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page