Sahityik Nibandh

हिंदी साहित्य में सूफी-साहित्य धारा (लघु निबंध)

Sufi kavya Dhara Hindi Sahitya Notes

पंद्रहवीं शताब्दी के अंतिम भाग से लेकर सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक हिंदी साहित्य में निर्गुण तथा सगुण दोनों ही धाराओं का प्रचार समान रूप से चलता हुआ दृष्टिगोचर होता है। निर्गुण भक्ति के क्षेत्र में जहाँ संत साहित्य का प्रसार दिखाई देता है वहाँ तक उसी के साथ-साथ विशुद्ध प्रेम की भावना से ओत-प्रोत साहित्य भी मिलता है। इसे और अधिक स्पष्ट शब्दों में यों समझना चाहिए कि निगुर्ण भक्ति-धारा के दो पृथक्-पृथक् रूप बन गए, जिसके पहले रूप का नाम ज्ञानाश्रयी शाखा पड़ा और दूसरी का प्रेमाश्रयी शाखा।

प्रेमाश्रयी शाखा विशुद्ध सूफी सिद्धांतों के आधार पर हिंदी कवियों ने अपनायी जिसके फलस्वरूप हिंदी में प्रेम-आख्यायिकाओं के साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ। इस शाखा के कवियों ने अपने प्रेम मार्ग और उसके सिद्धांतों का प्रतिपादन कल्पित कहानियों द्वारा किया। इन कवियों के लौकिक प्रेम में इश्वरीय झलक डालने का प्रयत्न किया है और अपनी कविताओं में ‘प्रेम की पीर’ पर विशेष रूप से लिखा है। इन कहानियों में राजकुमार और राजकुमारियों के प्रेम को लेकर ही कवि चलता है। राजकुमार राजकुमारी के अलौकिक सौंदर्य पर आसक्त होकर संसार की सब विभूतियों, यहाँ तक कि अपनी स्त्री और घर-वार से भी नाता तोड़ देता है, और पागल वैरागी बनकर उस राजकुमारी को प्राप्त करने के लिए निकल पड़ता है। उस राजकुमारी को प्राप्त करने में अनेकों कष्ट उठाता है और अंत में उसके लिए अपने प्राणों तक को त्यागने को उद्यत हो जाता है। इस त्याग के फलस्वरूप वह उस राजकुमारी को प्राप्त कर लेता है और इस प्रकार कवि के विचार से आत्मा और परमात्मा का मिलन हो जाता है।

इन सूफी कवियों ने प्रायः वही कहानियाँ ली हैं जिनकी कथाएँ हिंदू-गाथाओं में प्रसिद्ध हैं और इस प्रकार हिंदू-कथाओं में सूफी सिद्धांतों की पुट देकर उन्होंने अपने काव्यों को हिंदू-मुस्लिम समन्वय के योग्य बनाने का प्रयत्न किया है। संत कवियों की ही भाँति इन कवियों में भी जाति-भेद-भाव के लिए कोई स्थान नहीं पाया जाता।

प्रेम मार्गी शाखा के कवि संत कवियों की अपेक्षा अधिक सहृदय थे। इनकी कविताओं में भी स्थान-स्थान पर योग की रूढ़ियाँ मिलती अवश्य हैं परंतु फिर भो कविता के अधिकांश भाग सरसतापूर्ण ही हैं। प्रेम-चित्रण कवियों ने खूब किया है और स्थान-स्थान पर मनुष्य के साथ-साथ, पक्षी, पेड़-पौधों तक के साथ सहानुभूति और उससे कविता का महत्त्व उथलेपन के साधारण स्तर से उठकर विचार-क्षेत्र के इन कवियों की विशेषता है।

इन सूफी कवियों के प्रेम-काव्यों में संत कवियों जैसी खंडन और मंडन की प्रवृत्ति नहीं मिलती। इनकी कविता आद्योपांत मनुष्य के हृदय को स्पर्श करने वाली होती थी। प्रेम का जितना सजीव चित्रण इन कवियों ने किया है उतना हिंदी साहित्य में अन्य कवि नहीं कर पाए। सरस कविता के बीच-बीच में जो इन्होंने रहस्यमय परोक्ष की भावना का समावेश किया है वह कविता को बहुत रहस्यमय बना देता है और उससे कविता का महत्त्व उथलेपन के साधारण स्तर से उठकर विचार-क्षेत्र के ऊँचे धरातल पर पहुँच जाता है।

प्रेम मार्ग की इस शाखा का प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी है और ‘पद्मावत’ इस काल का सर्व प्रसिद्ध एवं सुंदर ग्रंथ है। हिंदी साहित्य के प्रबंध काव्यों में रामचरितमानस के पश्चात् पद्मावत का ही स्थान है। प्रेमाश्रयी शाखा के रहस्यवाद में भावनात्मकता का अभाव नहीं पाया जाता। जायसी के अतिरिक्त कुतुबन, मंझन, उसमान, शेख नवी कासिमशाह और नूर मुहम्मद इस धारा के अन्य प्रसिद्ध कवि हैं।

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