Class +2 Second Year CHSE, BBSR Sahitya Sudha Solutions Subhadra Kumari Chouhan, Jhansi Ki Rani सुभद्राकुमारी चौहान झाँसी की रानी

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 को प्रयाग के निहालपुर मुहल्ले में हुआ था। सन् 1919 में इनका विवाह खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान के साथ हुआ। दानों ही राष्ट्रीय विचारों के निकले। कलकत्ते के कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव पास होने पर सुभद्राजी ने पढ़ना छोड़ दिया और उनके पति ने भी एल. एल. बी. करके भी वकालत न करने का निश्चय किया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में दोनों साथ-साथ गिरफ़्तार हुए।

बीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय कवि तो अनेक हुए, पर वीर भाव की कवयित्री में वे अकेली थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान भारतीय नवजागरण काल की एक ऐसी इकलौती महिला लेखिका हैं जिन्होंने सामाजिक वर्चस्व और उससे उत्पन्न अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई है। पुरुष और नारी दोनों की स्वतंत्रता को उन्होंने महत्त्वपूर्ण माना। उन्होंने देशानुराग की कविता लिखी है जिसमें अपने अंतर के राष्ट्र प्रेम को पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। चितौड़ की महारानी पद्मिनी और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई इनका आदर्श रही हैं। महात्मा गाँधी जी के आदर्शों में ढलकर इन्होंने उनके असहयोग, स्वाधीनता और स्वराज्य संबंधी विचारों का प्रचार किया।

बुंदेलखंड की लोक शैली में लिखी गई उनकी कविता ‘झांसी की रानी’ आज भी अमर है। आजादी की लड़ाई के दौरान इस कविता ने भारतीयों

में ऐसी हिम्मत और संघर्ष की शक्ति भरी कि अंग्रेजों की शासन सत्ता डोल उठी।

काव्य के अतिरिक्त कहानी के क्षेत्र में भी सुभद्रा कुमारी ने कलम चलाई है। राष्ट्रीय भावनाएँ, आदर्श तथा यथार्थ के धरातल पर उनकी कहानियाँ आधारित हैं। ‘पापी पेट’, ‘वेश्या की लड़की’, ‘ताँगेवाला’, ‘हींगवाला’ और ‘सुभागी’ उनकी कुछ चर्चित कहानियाँ हैं जो बिखरे मोती, उन्मादिनी तथा सीधे-सादे चित्र संग्रहों में संकलित हैं। कथा-लेखन के लिए इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की ओर से दो बार ‘सेकसरिया पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ है।

15 फरवरी 1948 ई. को सिवनी (मध्यप्रदेश) के निकट मोटर दुर्घटना से इनकी मृत्यु हो गई।

झाँसी की रानी

सिंहासन हिल उठे,राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन सत्तावन में

वह तलवार पुरानी थी।

बुन्देले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी।  

कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह सन्तान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेलती थी,

बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थीं,

वीर शिवाजी की गाथाएँ

उसको याद जबानी थीं।

बुन्देले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता का अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्ट्र-कुल देवी उसकी

भी आराध्य भवानी थी।

बुन्देले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

झांसी वाली रानी थी।

सिंहासन हिल उठे – राजाओं में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की चेतना जागृत हुई।

राजवंशों ने भृकुटी तानी- तत्कालीन भारतीय राजाओं में देश को आजाद करने के लिए आक्रोश की भावना भड़क उठी।

फिरंगी – विदेशी (अंग्रेज)

ठानी – दृढ़ निश्चय करना

गुमी हुई – खोई हुई

चमक उठी – म्यान में रखी हुई तलवार लड़ने के लिए म्यान से बाहर चमकती निकल आई।

हरबोलों के मुँह – जन-जन के मुख से।

मुँहबोली – रिश्ते की नहीं, मानी हुई बहन।

छबीली – सुंदर, आकर्षक

बरछी, ढाल – लड़ाई में उपयोग किए जाने वाले अस्त्र

गाथाएँ – वीरता भरी कहानियाँ

लक्ष्मी – धन की देवी

दुर्गा – शक्ति का प्रतीक, देवी

पुलकित – रोमांचित

वीर – साहसी 

प्रहार – आक्रमण

दुर्ग तोड़ना – किला तोड़ना

आराध्य देवी- इष्ट देवी

‘झाँसी की रानी’ कविता के पूर्वार्द्ध में सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अथक संघर्ष का उल्लेख है। कवयित्री कहती हैं कि इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम में सभी राजाओं में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की चेतना जाग्रत हुई। सभी भारतीयों ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का निर्णय ले लिया था। तत्कालीन भारतीय राजाओं में आक्रोश की भावना भड़क उठी। पराधीन भारत मानो बूढ़ा हो चुका था अब उसमें नई जवानी के रूप में राष्ट्रीय भावना का संचार हो रहा था। आजादी प्रत्येक के लिए प्यारी और बेशकीमती होती है; जो अंग्रेजों के हाथ में सत्ता आने के बाद खो चुकी थी। अब भारतीय जनता आजादी की कीमत को समझ रही थी। अतः सबने यह ठान लिया था कि फिरंगियों से देश को आजाद करना है। सोए हुए भारत में फिर से चेतना का संचार हो गया था और इस स्वाधीनता की क्रांति की प्रवर्त्तक थीं रानी लक्ष्मीबाई।

अतः, म्यान में जो तलवार इतने दिनों से रखी हुई थी वह लड़ने के लिए म्यान से बाहर निकल आई। और यह तलवार सिद्ध तलवार थी अर्थात् इस तलवार की मदद से अतीत में बहुत सारे युद्धों को जीता गया था। ‘वह तलवार पुरानी थी’ का आशय है कि यह तलवार परीक्षित थी। यह अपनी बहादुरी के मिसाल की पुष्टि कर रही थी।

कानपुर के नाना की वह मुँहबोली बहन थी और दोनों के बीच भाई बहन का प्यार था। लक्ष्मीबाई का व्यक्तित्व बहुत सुंदर और आकर्षक था। वह अपने पिता की इकलौती पुत्री थी। नाना के संग पढ़ने और खेलने में उनका सारा समय व्यतीत होता था। बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई को वीरगाथाएँ और वीरतापूर्ण चरित्र वाले महापुरुष विशेष रूप से पसंद थे। अपने बाल्यकाल से ही रानी लक्ष्मीबाई ने वीर शिवाजी की संपूर्ण कहानियाँ कंठस्थ कर ली थीं। अतः कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान बुंदेलखंड के लोगों की दुहाई देते हुए कहती हैं कि बुंदेलखंड के जन-जन के मुँह से उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की अनेक कहानियाँ सुनी थीं। रानी लक्ष्मीबाई की मर्दानी वीर की तरह बहादुरी से लड़ने वाली।

कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर उन्हें धन का प्रतीक लक्ष्मी और शक्ति का प्रतीक दुर्गा से तुलना की है। मराठे उनकी तलवार का वार यानी कौशल को देखकर प्रसन्न हो जाते थे। उनके व्यक्तित्व का निर्माण बचपन से ही होने लगा था। बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई विभिन्न घातक अस्त्रों से क्रीड़ा करती थी; और शिकार खेलना, नकली युद्ध व्यूह की रचना, सैन्य टुकड़ियों को घेरना, दुर्ग को ध्वस्त करना जैसे वीरतापूर्ण खेलों में शामिल होती थी। रानी लक्ष्मीबाई की आराध्य देवी महाराष्ट्र की कुलदेवी भवानी थी।

कविता के अंत में पुनः झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रशंसा करती हुई कवयित्री कहती हैं कि बुंदेलखंड के जन-जन के मुँह से सबने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की यह कहानी सुनी थी कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ मर्दों की तरह बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी।

i) क्या हिल उठे?

(क) कुर्सियाँ

(ख) सिंहासन

(ग) आसन

(घ) पीढ़ा

उत्तर – (ख) सिंहासन

ii) किसमें फिर से नयी जवानी आई?

(क) औरत में

(ख) यूरोप में

(ग) बूढ़े भारत में

(घ) अमेरीका में

उत्तर – (ग) बूढ़े भारत में

iii) किसकी कीमत सबने पहचानी थी?

(क) गुमी हुई आजादी की

(ख) व्यक्तित्व की

(ग) अस्मिता की

(घ) क्रोध की

उत्तर – (क) गुमी हुई आजादी की

iv) सन् सत्तावन में चमकने वाली तलवार कैसी थी?

(क) नयी

(ख) तेज

(ग) बेकार

(घ) पुरानी

उत्तर – (घ) पुरानी

v) किसके मुँह से कहानी सुनी थी?

(क) घरवालों के

(ख) बुंदेले हरबोलों के

(ग) बाहर वालों के

(घ) सबके

उत्तर – (ख) बुंदेले हरबोलों के

vi) किसकी मुँहबोली बहन छबीली थी?

(क) कानपुर के नाना की

(ग) राणा प्रताप की

(ख) शिवाजी की

(घ) हिमू की।

उत्तर – (क) कानपुर के नाना की

vii) तलवारों के वार को देखकर कौन पुलकित होते थे?

(क) बंगाली

(ख) ओड़िआ

(ग) मराठे

(घ) तमिल

उत्तर – (ग) मराठे

i) ‘झाँसी की रानी’ कविता के आधार पर बताइए किसने भृकुटी तानी थी?

उत्तर – ‘झाँसी की रानी’ कविता के आधार पर राजवंशों के राजाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ भृकुटी तानी थी।

ii) किसकी कीमत सबने पहचानी?

उत्तर – भारतवर्ष की खोई हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी।

iii) छबीली किसकी मुँहबोली बहन थी?

उत्तर – छबीली कानपुर के नाना (धोंडू पंत) की मुँहबोली बहन थी।

iv) रानी लक्ष्मीबाई किन हथियारों के संग खेला करती थी?

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई बरछी, ढाल, तलवार (कृपाण), कटारी आदि हथियारों से खेला करती थी।

v) लक्ष्मीबाई को किसकी गाथाएँ जबानी याद थीं?

उत्तर – लक्ष्मीबाई को वीर छत्रपति शिवाजी की गाथाएँ जबानी याद थीं।

vi) नकली युद्ध-व्यूह की रचना कौन करती थी?

उत्तर – नकली युद्ध-व्यूह की रचना रानी लक्ष्मीबाई करती थी।

vii) बुंदेले हरबोले किसकी कहानी कहा करते थे?

उत्तर – बुंदेले हरबोलो वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम की कहानी कहा करते थे।

viii) महाराष्ट्र की कुलदेवी किसकी आराध्य देवी थी?

उत्तर – महाराष्ट्र की कुलदेवी माँ भवानी रानी लक्ष्मीबाई की आराध्य देवी थी।

i) सुमद्रा कुमारी चौहान की किन्हीं दो काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश

डालिए।

उत्तर – सुभद्रा कुमारी चौहान भारतीय नवजागरण काल की एक ऐसी इकलौती महिला लेखिका हैं जिन्होंने सामाजिक वर्चस्व और उससे उत्पन्न अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई है। महात्मा गाँधी जी के आदर्शों में ढलकर इन्होंने उनके असहयोग, स्वाधीनता और स्वराज्य संबंधी विचारों का समावेश अपनी रचनाओं में किया है।

ii) फिरंगी को दूर करने की सबने मन में क्यों ठान ली?

उत्तर – फिरंगियों (अंग्रेज) को दूर करने की सबने मन में ठान ली थी क्योंकि विदेशी होते हुए भी ये भारतवर्ष पर अपना मनमाना अधिकार स्थापित कर रहे थे जिससे भारत की समृद्धि और संस्कृति यदा-कदा क्षत-विक्षत हो रही थी।

iii) झाँसी की रानी ने किस तरह लड़ाई की?

उत्तर – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने मातृत्व की भूमिका का निर्वहन करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ़ अद्वितीय साहस का परिचय देते हुए वीरांगना मर्दानी की तरह लड़ाई की।

iv) नाना के संग लक्ष्मीबाई का समय किस तरह बीतता था?

उत्तर – नाना के संग रानी लक्ष्मीबाई का समय युद्ध कौशल में पारंगत होने तथा विद्या अर्जन में निष्णात बनने में बीतता था।

i) राजवंशों के भृकुटी तानने के कारणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – राजवंशों के भृकुटी तानने अर्थात् फिरंगियों से युद्ध करने के कारण कुछ इस प्रकार हैं –

– अंग्रेजों द्वारा लागू हड़प नीति या व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of lapse) के विरोध में आवाज़ उठाने के लिए।

–  अंग्रेजों द्वारा भारतीय संस्कृति और समृद्धि के नष्ट होने के कारण।

– अंग्रेजों द्वारा भारतीय राजाओं से मनमाने रूप से कर वसूलने के विरोध में।

ii) रानी लक्ष्मीबाई कैसे खेल खेला करती थी?

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई के खेल साहस और वीरता से भरे होते थे। वे तरह-तरह के घातक हथियारों जैसे- बरछी, ढाल कृपाण आदि से खेला करती थीं। खेल के दौरान ही वह दुर्ग तोड़ना, चक्रव्यूह रचना, सैन्य घेरना, शिकार आदि किया करती थीं। वास्तव में यही उनके प्रिय खेल हुआ करते थे। 

iii) बुंदेले हरबोलों ने किसकी कहानी सुनाई थी?

उत्तर – बुंदेले हरबोलों वास्तव में दो जातियाँ हैं और इन समुदाय के लोग वीर गाथाओं को लयबद्ध तरीके से गाने के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने ही रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी जन-जन को सुनाई थी।

iv) रानी लक्ष्मीबाई के साहस का परिचय दीजिए।

उत्तर – आजन्म साहसी रानी लक्ष्मीबाई साहस का दूसरा नाम है। उन्होंने यह भ्रम तोड़ डाला कि स्त्रियाँ अबला होती है। साक्षात रणचंडी और माँ दुर्गा का रूप धारण करके फिरंगियों का संहार करने वह रणभूमि में उतरीं और अपने तलवार की प्यास शत्रुओं के रक्त से बुझाई।  

i) सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक परिचय दीजिए

उत्तर – बीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय कवि तो अनेक हुए, पर वीर भाव की कवयित्री में वे अकेली थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान भारतीय नवजागरण काल की एक ऐसी इकलौती महिला लेखिका हैं जिन्होंने सामाजिक वर्चस्व और उससे उत्पन्न अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई है। पुरुष और नारी दोनों की स्वतंत्रता को उन्होंने महत्त्वपूर्ण माना। उन्होंने देशानुराग की कविता लिखी है जिसमें अपने अंतर के राष्ट्र प्रेम को पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। चितौड़ की महारानी पद्मिनी और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई इनका आदर्श रही हैं। महात्मा गाँधी जी के आदर्शों में ढलकर इन्होंने उनके असहयोग, स्वाधीनता और स्वराज्य संबंधी विचारों का प्रचार किया। काव्य के अतिरिक्त कहानी के क्षेत्र में भी सुभद्रा कुमारी ने कलम चलाई है। राष्ट्रीय भावनाएँ, आदर्श तथा यथार्थ के धरातल पर उनकी कहानियाँ आधारित हैं। ‘पापी पेट’, ‘वेश्या की लड़की’, ‘ताँगेवाला’, ‘हींगवाला’ और ‘सुभागी’ उनकी कुछ चर्चित कहानियाँ हैं जो बिखरे मोती, उन्मादिनी तथा सीधे-सादे चित्र संग्रहों में संकलित हैं। कथा-लेखन के लिए इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की ओर से दो बार ‘सेकसरिया पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ है।

ii) भारत में आजादी पाने के लिए कैसी भावना जाग उठी?

उत्तर – तत्कालीन समाज में अंग्रेजों का दुराचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। जब यह अत्याचार सभी के लिए असह्य हो गया तब भारतीयों में आजादी पाने के लिए उत्कट भावना जाग उठी। इसे स्वतन्त्रता का बीजवपन कहा जा सकता है। सभी ने अपने-अपने स्तर पर अंग्रेजों की जड़ों को उखाड़ फेंकने की पुरजोर कोशिश की। उन्हें कुछ हद तक सफलता भी प्राप्त हुई पर कुछ देशद्रोहियों ने इस मंगल कार्य में विघ्न डाल दिया। परिणाम भले ही सुखद न हो पर वीरता के ऐसे दृष्टांत सामने आए जो ‘न भूतो न भविष्यति’ की उक्ति को चरितार्थ करते हैं। 

iii) रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का चित्र आँकिए।

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई (मणिकर्णिका) का बचपन सभी बालिकाओं के लिए अनुकरणीय है। जब लड़कियाँ मिट्टी के घरौंदे से खेला करती थीं तब लक्ष्मीबाई दुर्ग तोड़ने का साहसिक कार्य किया करती थी। छुआ-छुऔवल खेलने की जगह वह चक्रव्यूह निर्माण के दिमागी कार्य में संलग्न थी। लड़कियाँ आमतौर पर जब मिट्टी के खिलौने से घर-घर खेला करती हैं तब लक्ष्मीबाई ढाल, बरछी, कृपाण, कटारी से युद्ध विद्या सीख रही थी तथा परीक्षार्थ शिकार खेलने जाया करती थी। अपने मुँहबोले भाई नाना साहब के साथ उसने पढ़ाई-लिखाई का कार्य भी पूरे मनोयोग से किया था। कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि बचपन में ही उन्होंने अपने सशक्त युवा होने को गढ़ना शुरू कर दिया था।  

iv) रानी लक्ष्मीबाई किस तरह वीरता का अवतार थी?

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का उद्देश्य था स्वतंत्रता प्राप्ति या वीरगति। अपनी मातृसुलभ क्रियाओं का बखूबी निर्वहन करते हुए अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। यह इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि वीरता उनके व्यक्तित्व की सहचरी थी। बचपन में भी वह युद्ध कौशल में पारंगत होने हेतु बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी आदि घातक हथियारों से खेला करती थी। दुर्ग तोड़ना, चक्रव्यूह रचना, सैन्य घेरना और शिकार करना उन्हें अति प्रिय थे। बचपन से ही वीर छत्रपति शिवाजी की गाथाएँ सुनकर बड़ी हुई थी। माँ भवानी की भक्त रानी लक्ष्मीबाई साक्षात् रणचंडी का उग्र रूप धारण किए फिरंगियों का संहार करने के लिए युद्ध भूमि में उतर पड़ी थीं।        

v) झाँसी की रानी कविता का मर्म समझाइए।

उत्तर – ‘झाँसी की रानी’ कविता हम पाठकों को भारतीय नारी प्रधान संस्कृति और वीरांगना के साहसिक सौंदर्य से अवगत कराता है। कहते हैं जब विपदा आती है तो कायर को ही दहलाती हैं, सुरमा न तो विचलित होते हैं और न ही पल भर के लिए साहस खोते हैं। रानी लक्ष्मीबाई इसी कथन को चरितार्थ करती हुए हमारे मानस पटल पर अंकित होती हैं और साहस की साक्षात् प्रतिमूर्ति के रूप में अधिष्ठित हो जाती हैं। राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत यह कविता हममें इस भावना का संचार करती है कि राष्ट्र सर्वोपरि होता है। इसकी उन्नति में ही सभी जनों की उन्नति है और महान कार्य में अगर हमें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो इसे अपना सौभाग्य ही मानना चाहिए।  

You cannot copy content of this page