एवरेस्टः मेरी शिखर यात्रा
इस पाठ को पढ़ने के बाद आप ये जान/बता पाएँगे
- एवरेस्ट नाम के पीछे का इतिहास।
- बचेंद्री पाल का संघर्षमयी जीवन।
- पर्वतारोहण से जुड़ी जानकारियाँ।
- समूह में कार्य करने के लाभ।
- तकनीकी भाषा का ज्ञान
- अन्य जीवनोपयोगी जानकारियाँ
लेखिका परिचय – बचेंद्री पाल (1954 – से अब तक)
जीवन वृत्त
बचेंद्री पाल
(जन्म 24 मई 1954)
बचेंद्री पाल का जन्म उत्तरांचल के चमोली जिले के बंपा गाँव में 24 मई 1954 को हुआ। उनके पिता का नाम किशन सिंह पाल और माता का नाम हंसा देई नेगी था। बचेंद्री अपने माता-पिता की तीसरी संतान थीं। अर्थाभाव के कारण सिलाई- कढ़ाई करके उन्हें अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाना पड़ा। घर की तंगी हालत के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी। बड़ी मुश्किल से मैट्रिक उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उनके माता-पिता उन्हें और ज्यादा पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्य के कहने पर बचेंद्री ने कॉलेज में दाखिला ले लिया। वहाँ शूटिंग भी सीखी। आगे चलकर संस्कृत में एम. ए. और फिर बी. एड. की डिग्री हासिल की। वे इस्पात कंपनी ‘टाटा स्टील’ में कार्यरत रहीं जहाँ वे चुने हुए लोगों को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती रहीं।
बचेंद्री को बचपन से ही पर्वतारोहण का शौक था। चूँकि उनका परिवार पहाड़ी इलाके में रहता था इसलिए पहाड़ों पर चढ़ने की इच्छा पूरी हो जाती थीं। पढ़ाई खत्म होने पर बचेंद्री ने पर्वतारोही बनने की इच्छा जाहिर की; लेकिन घरवालों को उनका पर्वतारोही बनना पसंद नहीं था, क्यों कि वे चाहते थे वे किसी स्कूल में शिक्षिका बनजाए फिर उनकी शादी करा दी जाए। परंतु अपनी जिद के कारण बचेंद्री ने उतरकाशी के ‘नेहरू इंस्टिच्यूट ऑफ माउंटेनियारिंग’ में प्रवेश ले लिया। इस तरह पर्वतारोहण प्रशिक्षण के दौरान वे मानसिक रूप से एवरेस्ट चढ़ने के लिए तैयार हो गई। सन 1984 ई में एवरेस्ट 84’ नामक एवरेस्ट पर चढ़नेवाले अभियान दल में बचेंद्री का नाम चयन कर लिया गया जिसमें ग्यारह पुरुष और छह महिलाएँ शामिल थीं। फिर एक साधारण परिवार में जन्मे इन आत्मविश्वासी ओर बहादुर महिला माउंट एवरेस्ट पर चढ़नेवाली पहली भारतीय महिला बनीं। सन् 1990 ई. में गिनिज बुक ऑफ रेकर्ड में उनका नाम लिपिबद्ध हुआ। सन् 1986 ई. में उन्हें अर्जुन पुरस्कार, सन् 1994 ई. में पद्मश्री सम्मान, तथा सन् 1994 ई. में राष्ट्रीय साहसिकता पुरस्कार प्राप्त हुआ।
पाठ प्रवेश
बचेंद्री ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण—यात्रा का संपूर्ण विवरण स्वयं ही कलमबद्ध किया है। प्रस्तुत अंश उसी विवरण में से लिया गया है। यह लोमहर्षक अंश बचेंद्री के उस अंतिम पड़ाव से शिखर तक पहुँचकर तिरंगा लहराने के पल—पल का ब्योरा बयान करता है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है, मानो पाठक भी उनके कदम-से-कदम मिलाता हुआ, सभी खतरों को खुद झेलता हुआ एवरेस्ट के शिखर पर जा रहा हो। ।
एवरेस्टः मेरी शिखर यात्रा
एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।
नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ और तिब्बतियों में ‘चोमुलुंगमा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।
एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत—शिखर पर लहराता एक ध्वज—सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण—पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।
जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम—स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान—दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।
इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी—कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप—एक (6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।
‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।
एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फ़ीली टेढ़ी—मेढ़ी नदी को निहारती रही।
हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी—बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्रायः खतरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे—चौड़े हिम—विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
दूसरे दिन नए आनेवाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी—तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।
तीसरा दिन हिमपात से कैंप—एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ—साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक वॉकी—टॉकी था, जिससे हम अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप एक पर पहुँचनेवाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।
अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप—चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।
जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
15—16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप—तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे। मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।
यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस—नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।
लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेज़ी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी—सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े- बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ़ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ़ की कब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।
सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक हम प्रायः सभी कैंप—दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, “यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा—कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।’’
सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, “क्या तुम भयभीत थीं?”
“जी हाँ।”
“क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?”
“नहीं”, मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।
जैसे ही मैं साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे—धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।
दोपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। मैंने बर्फ़ीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर आ रही थी मेरी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञतापूर्वक चाय वगैरह पी लेकिन मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था। थोड़ा—सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का—बक्का रह गया।
“तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?”
मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, “मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद क्यों नहीं करनी चाहिए।” की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।
थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए। और हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई। बर्फ़ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।
वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोखिम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ—साथ मैं आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।
सुबह 6.20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी—हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच—समझकर उठाया।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, “नहीं।” जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।
ल्हाटू हमारे पीछे—पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुँच गया। थोड़ी—थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ़ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।
मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ—साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बर्फ़ के फावड़े से बर्फ़ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठी, बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी—सी पूजा—अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता—पिता का ध्यान आया।
जैसे मैं उठी, मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु—नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!”
कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी—टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता—पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा!
पाठ का सार
बचेंद्री ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण यात्रा का संपूर्ण विवरण खुद ही लिखा है। प्रस्तुत पाठ उसी विवरण का एक छोटा अंश है। यह रोमांचपूर्ण अंश उनके उस अंतिम चढ़ाव से शिखर तक पहुँचकर तिरंगा लहराने के पल-पल की घटना का बयान करता है।
एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए रवाना हुआ जिसमें बचेंद्री शामिल थीं। काठमांडू के नमचे बाजार से उन्हें पहली बार एवरेस्ट देखने का मौका मिला। 26 मार्च को अभियान दल पेरिच पहुँचा। हिम स्खलन से एक शेरपा कुली की मृत्यु की खबर से अभियान दल के सदस्यों में उदासी छा गई। छह हजार मीटर की ऊँचाई पर लगे बेस कैंप में पहुँचने से पहले रसोई सहायक की मृत्यु हो गई। बेस कैंप से एवरेस्ट को देखकर बचेंद्री भौंचक्की रह गई। हिमपात होने तथा ग्लेशियर के बहने से चढ़ाई जोखिम भरी थी। बेसकैंप के दौरान तेनजिंग अपनी छोटी बेटी डेकी के साथ अभियान दल से मिलने आए थे। बचेंद्री से मिलकर उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा था- “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो; तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
कैंप तीन में रहते वक्त एक रात को बचेंद्री और उनके साथियों के साथ एक दुर्घटना हुई। रात के 12:30 बजे के लगभग बचेंद्री के सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज के टकराने से उनकी नींद टूटी। उन्हें महसूस हुआ कि एक ठंडी और बहुत भारी चीज जो कि ग्लेशियर का टुकड़ा था; उनके शरीर पर से उन्हें कुचलती हुई चल रही है। उन्हें साँस लेने में कठिनाई होने लगी। लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी की मदद से हिम खंड को साफ करते हुए बचेंद्री को बचाया। इस लंबे बर्फ के पिंड ने उनके कैंप का नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इससे हर यात्री को चोट पहुँची। परंतु बचेंद्री ने परवाह किए बिना अपना अभियान जारी रखा। फिर ‘साउथ कोल’ से साथी आरोही अंगदोरजी सहित चढ़ाई शुरू की। और फिर 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर बचेंद्री प्रथम भारतीय महिला बनकर एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गई। अपार खुशी से सागरमाथे के ताज को चूमा। वहाँ पर साथ में लाए दुर्गा माँ के चित्र और हनुमान चालीसा को लाल कपड़े में लपेट कर पूजा-अर्चना करते हुए बर्फ में दबा दिया।
शब्दार्थ
1. गौरव – Glory
2. बी. एड. – Bachelor of Education
3. एम.ए. – Master of Arts
4. प्रिंसिपल – प्राचार्य
5. संतान – औलाद
6. असमर्थ – incapable
7. विषम – विपरीत
8. उकसाता – provoke
9. नाज़ुक – fragile
10. बहरहाल – हालाँकि
11. ट्रेनिंग – प्रशिक्षण
12. प्रयाण – चढ़ाई
13. रोमांचक – Adventures
14. विवरण – detail
15. कलमबद्ध – लिखना
16. लोमहर्षक – अत्यंत सुख देने वाला
17. ब्योरा – report
18. शिखर – summit
19. अभियान — चढ़ाई (आगे बढ़ना), किसी काम के लिए प्रतिबद्धता
20. दुर्गम — जहाँ पहुँचना कठिन हो, कठिन मार्ग
21. हिमपात — बर्फ़ का गिरना
22. आकर्षित — मुग्ध होना, आकृष्ट होना
23. अवसाद — उदासी
24. ग्लेशियर — बर्फ़ की नदी
25. अनियमित — नियम विरुद्ध, जिसका कोई नियम न हो
26. आशाजनक — आशा उत्पन्न करनेवाला
27. भौंचक्की — हैरान
28. अव्यवस्थित — व्यवस्थाहीन, जिसमें कोई व्यवस्था न हो
29. प्रवास — यात्रा में रहना
30. हिम—विदर — दरार, तरेड़
31. आरोही — ऊपर चढ़नेवाला
32. विख्यात — मशहूर, प्रसिद्ध
33. अभियांत्रिकी — तकनीकी
34. नौसिखिया — नया सीखनेवाला
35. विशालकाय पुंज — बड़े आकार के बर्फ़ के टुकड़े (ढेर)
36. पर्वतारोही — पर्वत पर चढ़नेवाला
37. आरोहण — चढ़ना, ऊपर की ओर जाना
38. कर्मठता — काम में कुशलता, कर्म के प्रति निष्ठा
39. उपस्कर — आरोही की आवश्यक सामग्री
40. शंकु — नोक
41. उपलब्धि — प्राप्ति
42. जोखिम — खतरा
1. नीचे दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कीजिए-
1. एवरेस्ट दल कितनी तारीख को दिल्ली से काठमांडू के लिए निकला था?
क. 6 अप्रेल
ख. 17 मार्च
ग. 2 फरवरी
घ. 7 मार्च
उत्तर – घ. 7 मार्च
2. शेरपा कुलियों के दल में कितने शेरपा थे?
क. 15
ख. 16
ग. 14
घ. 12
उत्तर – ख. 16
3. कौन अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे?
क. प्रेमचंद
ख. कर्नल खुल्लर
ग. बचेंद्री
घ. लोपसांग
उत्तर – क. प्रेमचंद
4. कौन बिना ऑक्सीजेन के चढ़ाई करने वाला था?
क. प्रेमचंद
ख. मीनू
ग. की
घ. अंगदोरजी
उत्तर – घ. अंगदोरजी
5. बचेंद्री कब एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी?
क. 23 मई 1994
ख. 23 मई 1984
ग. 13 मई 1984
घ. 12 मई 1983
उत्तर – ख. 23 मई 1984
6. कौन एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली पहली भारतीय महिला थी?
क. मीनू
ख. की
ग. बचेंद्री
घ. तेनजिंग
उत्तर – ग. बचेंद्री
2. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-
(क) बचेंद्री ने सबसे पहले कहाँ से एवरेस्ट को निहारा?
उत्तर – बचेंद्री ने सबसे पहले काठमांडू के नमचे बाज़ार से एवरेस्ट को निहारा।
(ख) कौन एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से पुकारते हैं?
उत्तर – नेपाली लोग अपनी भाषा में एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से पुकारते हैं।
(ग) बचेंद्री को कौन सा नाम अच्छा लगा?
उत्तर – बचेंद्री को एवरेस्ट का नाम ‘सागरमाथा’ अच्छा लगा।
(घ) एवरेस्ट अभियान दल कब पैरिच पहुँचा?
उत्तर – एवरेस्ट अभियान दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा।
(ङ) किस वजह से शेरपा कुली की मृत्यु हुई?
उत्तर – हिम—स्खलन के कारण शेरपा कुली की मृत्यु हुई।
(च) एवरेस्ट अभियान दल के नेता कौन थे?
उत्तर – कर्नल खुल्लर एवरेस्ट अभियान दल के नेता थे।
(छ) अभियान दल के उपनेता कौन थे?
उत्तर – अभियान दल के उपनेता प्रेमचंद थे।
(ज) बर्फ की नदी किसे कहा गया है?
उत्तर – ग्लेशियर को बर्फ नदी कहा गया है।
(झ) बेस कैंप कितनी ऊँचाई पर था?
उत्तर – बेस कैंप 6000 मीटर की ऊँचाई पर था।
(ञ) कब और कितनी ऊँचाई पर कैंप चार लगाया गया?
उत्तर – 29 अप्रैल को 7900 मीटर की ऊँचाई पर कैंप चार लगाया गया था।
(ट) साउथ कोल किस जगह के नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर – साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
(ठ) बचेंद्री के रज्जुनेता कौन थे?
उत्तर – अंगदोरजी बचेंद्री के रज्जुनेता थे।
(ड) किसने बचेंद्री को प्रोत्साहित किया और लक्ष्य तक पहुँचाया?
उत्तर – अंगदोरजी ने बचेंद्री को प्रोत्साहित किया और उसे लक्ष्य तक पहुँचाया।
(ढ) बधाई देते हुए अंगदोरजी ने बचेंद्री से क्या कहा?
उत्तर – बधाई देते हुए अंगदोरजी ने बचेंद्री को गले से लगाया और कानों में फुसफुसाया, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!”
3. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दो-दो वाक्यों में दीजिए-
(क) एवरेस्ट अभियान दल के नेता कौन थे और उन्होंने अभियान के खतरों के बारे में क्या कहा?
उत्तर – कर्नल खुल्लर एवरेस्ट अभियान दल के नेता थे। उन्होंने पर्वतारोहियों से कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी—कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
(ख) रसोई सहायक की मृत्यु किस स्थिति में हुई?
उत्तर – एवरेस्ट शिखर पर चढ़ाई के दौरान जलवायु अनुकूल नहीं थी। हिमपात में अनिश्चित और अनियमित बदलावों के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हो गई।
(ग) डॉ. मीनू मेहता ने क्या-क्या जानकारियाँ दीं?
उत्तर – डॉक्टर मीनू ने पर्वतारोहियों को निम्न जानकारियाँ दीं –
क. अल्युमिनियम को सीढ़ियों से अस्थायी पूल बनाना।
ख. लट्ठों और रस्सियों का प्रयोग करना।
ग. बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना।
घ. अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
(घ) तेनजिंग ने बचेंद्री से क्या कहा?
उत्तर – तेनजिंग ने बचेंद्री से कहा कि तुम एक पर्वतीय लड़की हो। तुम्हें तो पहले ही प्रयास में शिखर पर पहुँच जाना चाहिए। तुम्हारे जोश को देखकर ऐसा लगता है मानो पर्वत और पर्वतीय स्थानों की तुम्हें बहुत अच्छी जानकारी है।
(ङ) बचेंद्री ने अंगदोरजी को क्यों बधाई दी?
उत्तर – बचेंद्री ने अंगदोरजी को बधाई दी क्योंकि उन्होंने बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई पूरी की थी।
4. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर तीन-तीन वाक्यों में दीजिए-
(क) बुद्ध पूर्णिमा की रात को बचेंद्री की नींद अचानक क्यों टूट गई?
उत्तर – 15—16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन बचेंद्री ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप—तीन में थी। उसी रात में 12.30 बजे के लगभग बचेंद्री के सिर के पिछले हिस्से में बर्फ के एक हिम पिंड के टकराने से उनकी नींद अचानक टूट गई।
(ख) अंगदोरजी के साथ बचेंद्री की चढ़ाई का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर – अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था। बचेंद्री को फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ—साथ वह आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी।
(ग) एवरेस्ट शंकु की चोटी पहुँच कर बचेंद्री ने क्या किया?
उत्तर – एवरेस्ट शंकु की चोटी पर जगह की कमी होने के कारण बचेंद्री ने पहले फावड़े से बर्फ़ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद, उन्होंने अपने घुटनों के बल बैठ, बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही उन्होंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी—सी पूजा—अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया।
(घ) कर्नल खुल्लर ने बचेंद्री को बधाई देते हुए क्या कहा?
उत्तर – कर्नल खुल्लर बचेंद्री की सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता—पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा!
5.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दस-पंद्रह वाक्यों में दीजिए-
(क) एवरेस्ट की चढ़ाई में बचेंद्री ने क्या-क्या कठिनाइयाँ झेली?
उत्तर – एवरेस्ट की चढ़ाई में बचेंद्री ने अनेक कठिनाइयाँ झेली-
– पारिवारिक समर्थन न प्राप्त होना इनकी पहली कठिनाई थी।
– चढ़ाई से पहले ही रसोई सहायक और एक शेरपा की मौत से दुखी हो गई।
– कर्नल खुल्लर ने कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियानों में खतरों को और कभी-कभी मृत्यु को सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए।
– 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा की रात लेखिका गहरी नींद में सोई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग लोहत्से से एक बड़ा हिम पिंड गिरने से लेखिका मरते-मरते बची।
(ख) अभियान दल में कौन कौन थे और उनका अनुभव कैसा रहा?
उत्तर – अभियान दल में नेता कर्नल खुल्लर, उपनेता प्रेमचंद, डॉ. मीनू मेहता, बचेंद्री पाल, अंगदोरजी, लोपसांग, गगन बिस्सा, तेनजिंग, तशारिंग, एन.डी. शेरपा, जय, मीनू, की, ल्हाटू, सोनम पुलजर, रीता गोंबू कुछ शेरपा और रसोई सहायक थे। इस अभियान के दौरान एक शेरपा कुली और एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। 15—16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा की रात लेखिका गहरी नींद में सोई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग लेखिका के सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से लेखिका की नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी लेखिका को महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। उन्हें साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।एक लंबा बर्फ़ का पिंड कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस—नहस कर दिया। इस घटना में बहुत से पर्वतारोही घायल हो गए और नीचे उतर गए। अंतत: अंगदोरजी, बचेंद्री, सोनम पुलजर और ल्हाटू शिखर पर पहुँचे।
(ग) प्रस्तुत पाठ के आधार पर बचेंद्री के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – इस पाठ के आधार पर बचेंद्री के चरित्र की सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय मिलता है जब लेखिका ने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने का निश्चय किया। इसके लिए वह एक थरमस को जूस और दूसरे को गरम चाय से भरकर बर्फीली हवा में तंबू से बाहर निकली और नीचे उतरने लगी। जय ने उसके इस प्रयास को खतरनाक बताया तो लेखिका ने जवाब दिया, “मैं भी औरों की तरह पर्वतारोही हूँ इसलिए इस दल में आई हूँ। मैं शारीरिक रूप से ठीक हूँ इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद करनी चाहिए।” वह साहसी भी उच्च कोटी की है तभी तो अपने अभिभावकों के मना करने पर भी एवरेस्ट अभियान दल में शामिल हो गई और इतिहास रच दिया। तेनजिंग के सामने भी उसने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।