Sahityik Nibandh

प्रेमचंद की उपन्यास धारा पर एक कघु निबंध  

munshi premchand ke upnyason ki khasiyat par ek nibnadh

हिंदी में कथा-साहित्य का नवयुग मुंशी प्रेमचंद से प्रारंभ होता है। मुंशी प्रेमचंद पहले उपन्यासकार हैं जिन्होंने तिलस्म और अय्यारी को छोड़कर समाज की समस्याओं को अपनाया। आपने उपन्यास साहित्य के अभाव को पहिचाना और अपने भरसक प्रयत्नों द्वारा उस अभाव को दूर कर दिया। हिंदी के वर्तमान कथा-युग को शैली के विचार से तीन धाराओं में विभाजित कर सकते हैं। इन तीन धाराओं के प्रवर्तक मुंशी प्रेमचंद, बाबू जयशंकर ‘प्रसाद’ और पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं।

प्रथम धारा के प्रवर्तक मुंशी प्रेमचंद हैं। इस धारा के लेखकों ने उर्दू-मिश्रित चलती हुई मुहावरेदार भाषा का प्रयोग किया है। वह भाषा उपन्यासों के लिए बहुत उपयुक्त है। एक रवानी इस भाषा में ऐसी पाई जाती है कि पाठक किसी पुस्तक को प्रारंभ करके छोड़ने का नाम नहीं ले सकता। इस धारा के लेखकों को बिलकुल नवीन नहीं कहा जा सकता। उस पर प्राचीनता का काफी प्रभाव है। दकियानूसीपन उनमें से समाप्त नहीं हो गया था।

समाज की समस्याओं को ही इस धारा के लेखकों ने अपनी लेखनी का विषय बनाया है परंतु इन्होंने समाज का यह स्पष्ट चित्रण नहीं किया जो वर्त्तमान लेखक चाहता है, या वर्तमान प्रगतिवाद जिसके पीछे हाथ धोकर पड़ा हैं।

प्रेमचंद के चित्रण बहुत लंबे हैं। उनमें वर्णनात्मक प्रवृत्ति विशेष हैं। यदि किसी स्थान का ही उन्हें वर्णन करना होता है तो खूब खुलासा करते हैं। अंग्रेजी साहित्य के विक्टोरिया के समय के उपन्यासों से इनकी समानता की जा सकती है। संक्षेप में कहने की प्रवृत्ति नहीं है। इन लेखकों में उपदेशक प्रवृत्ति पायी जाती है। यह लेखक संभवतः जनता को उपदेश देने का भार अपने ऊपर कर्तव्य के रूप में मान बैठे हैं।

‘प्रतिज्ञा’, ‘वरदान’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘गवन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘रंगभूमि’ ‘कायाकल्प’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख पुस्तकें हैं। नवीन उपन्यास-धारा की सभी विशेषताओं के प्रारंभ कर्त्ता के रूप में हम मुंशी जी को पाते हैं। भाषा का बहाव, शब्दों का चयन, समाज के चित्र, मनोवैज्ञानिक भावनाओं का स्पष्टीकरण, समाज के दुखी जीवन का चित्रण, भाषा की रवानी, हृदय की पुकार, करुणा की चीत्कार, मानसिक जीवन की व्यथा, किसानों की यह दशा, सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार, यह सभी चीजें प्रेमचंद से पूर्व उपन्यास-साहित्य में कहाँ वर्तमान थीं। इन सभी प्रकार के चित्रणों का जन्मदाता प्रेमचंद है। प्रेमचंद के साहित्य में वास्तविक जीवन का सहृदयतापूर्ण चित्रण मिलता है। न वहाँ बनावट है न शृंगार, हाँ कुछ कहने का ढंग ऐसा अनूठा अवश्य है कि पाठक उसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता।

किसी भी काव्य को जन प्रिय बनाने के लिए दो भावनाओं में से एक को लेखक अपनाकर चला करते हैं। एक ‘नारी का चित्रण’ तथा दूसरी ‘करुणा की पुकार’। इन दोनों भावनाओं के प्रति साहित्य में एक विशेष प्रकार का आकर्षण होता है। बंगला के जहाँ प्राय सभी लेखकों ने ‘नारी-चित्रण’ को प्रधानता दी है वहाँ प्रेमचंद को ‘करुणा की पुकार’ प्रिय लगा है। यहाँ यह अनुमान किया जा सकता है कि लेखक की प्रवृत्ति कहाँ जाकर स्थिर होती है? वास्तव में यदि देखा जाए  तो पता चलता है हिंदी का लेखक जीवन के उस स्तर से उठा है, जहाँ परिश्रम को प्रधानता दी जाने पर भी मनुष्य का पेट नहीं भरता। बंगला के लेखक ऊपर से आते हैं। ऊपर कहने का तात्पर्य केवल यही है कि वह उस वर्ग से आते हैं जहाँ पैसे को विशेष महत्त्व नहीं दिया जा सकता। इसीलिए वह वर्ग जितना अच्छा चित्रण ‘नारी’ का कर सकता है, हमारे हिंदी वर्ग के प्रतिनिधि प्रेमचंद ने उससे भी कहीं सुंदर, आकर्षक और वास्तविक चित्रण दुःखी मजदूर और निर्धन किसानों का किया है।

प्रेमचंद ने उपन्यास-साहित्य में ही नहीं, हिंदी-पंडित समाज में भी एक सामाजिक क्रांति पैदा कर दी। आपके साहित्य को हम कथा की ही वस्तु न मानकर यदि मानव जीवन की आवश्यकताओं की वस्तु मान लें तो लेखक के साथ अधिक न्याय होने की संभावना हो सकती है।

प्रेमचंद के चित्रणों में समस्याओं के चित्र हैं और प्रेमचंद के उपन्यासों में भारत की वास्तविक दशा की झाँकी है। अपने समाज के संपर्क में आने वाले प्रत्येक प्रकार के व्यक्ति का चरित्र चित्रण मुंशी प्रेमचंद ने किया है। प्रेमचंद ने अपने सब उपन्यासों में एक भी पूर्ण पान न देकर अनेकों पात्र दिए हैं। किसी एक प्रकार के वर्ग में घुस जाना ही आपके साहित्य का उद्देश्य नहीं था बल्कि जीवन के सब पहलुओं को झाँकना आपका मूल उद्देश्य था।

मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की केवल एक ही दिशा में रचनाएँ की हैं और उस दिशा में अपना एकाकी स्थान बनाया है। आपने राष्ट्र की जो सेवा अपनी लेखनी द्वारा की है वह अनेकों प्रचारक भी प्लेटफार्मों से चिल्ला-चिल्ला कर नहीं कर पाए। हिंदी उपन्यास-क्षेत्र में यह प्रथम सफल लेखक है।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page