Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Kabeer Dohawali, Kabeer, कबीर दोहावली, कबीर

(सन् 1398-1518)

कबीर संत काव्य-धारा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। इनके जन्म और मृत्यु को लेकर अलग-अलग मत मिलते हैं। फिर भी अधिकतर विद्वान कबीर का जन्म सन् 1398 में तथा निधन सन् 1578 में स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार इनके परिवार व वंश को लेकर भी कई अटकलें लगायी जाती रही हैं। चर्चित तथ्यों के आधार पर इनके पोषक के रूप में नीरू और नीमा जुलाहा दम्पति का नाम लिया जाता है। इनका अधिकांश जीवन काशी में बीता।

रचनाएँ: कबीर निरक्षर थे। उन्होंने स्वयं कोई रचना नहीं लिखी। उन्होंने जीवन के अपने अनुभवों को ही मौखिक तौर पर कहा। उनके शिष्यों ने उनके निधन के बाद उनके उपदेशों को रचनाओं के रूप में संकलित किया जो कि ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके तीन भाग हैं-साखी, सबद और रमैनी साखी दोहों में लिखी गयी है। साखी साक्षी( गवाह) शब्द से बना है। कबीर की भाषा में ब्रज, अवधी, राजस्थानी आदि का मिश्रण मिलता है।

प्रस्तुत पाठ में कबीर की उन साखियों का संग्रह किया गया है जो हमें धर्मानुसार सही-गलत का विवेक देती हैं और जीवन के सत्य को पहचानने की दृष्टि देती हैं।

साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदे साच है, ताके हिरदे आप॥

साधू भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं।

धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं॥

जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।

जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय॥

संत ना छाडै संतई, जो कोटक मिले असंत।

चंदन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित हुआ न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सु पंडित होय॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥

जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तरवार का पड़ा रहन दो म्यान॥

कबीर तन पंछी भया, जहाँ मन तहां उड़ी जाइ।

जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ॥

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥

माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि।

मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि॥

काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।

पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्ब॥

साच – सच

म्यान – तलवार रखने का खोल (कवर)

हिरदे – हृदय

कोटक – करोड़

चूप – चुप्पी, मौन

असंत – बुरा व्यक्ति

कर – हाथ

मनुवा – मन

भुवंगा – साँप

सीतलता – शीतलता, अच्छाई

चहुँ दिशि – चारों दिशाओं में, चारों ओर

तजंत – छोड़ना

मुवा – मर गये

आखर – अक्षर

परलै – विनाश, मृत्यु

पंडित – विद्वान, ज्ञानी

बहुरि – फिर कब

सुमिरन – स्मरण

काल्ह – कल(आने वाला)

अब्ब – अब

तरवार – तलवार

कब्ब – कब

(i) कबीर के अनुसार ईश्वर किसके हृदय में वास करता है?(

ii) कबीर ने सच्चा साधु किसे कहा है?

(iii) संतों के स्वभाव के बारे में कबीर ने क्या कहा है?

(iv) कबीर ने वास्तविक रूप से पंडित / विद्वान किसे कहा है?

(v) धीरज का संदेश देते हुए कबीर ने क्या कहा है?

(vi) कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से क्यों की है?

(vii) कबीर ने समय के सदुपयोग पर क्या संदेश दिया है?

(i) जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।

जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय॥

(ii) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

(iii) जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तरवार का पड़ा रहन दो म्यान॥

(iv) अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥

(v) माला तो कर में फिरें, जीभ फिरै मुख मांहि।

मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि॥

शब्द               वर्ण-विच्छेद

बराबर = ब् + अ + र् + आ + ब् + अ + र् + अ

भोजन

पंडित

म्यान

बरसना

1. पुस्तकालय से कबीर के दोहों की पुस्तक लेकर प्रेरणादायक दोहों का संकलन कीजिए।

2. कबीर के दोहों की ऑडियो या वीडियो सी. डी. लेकर अथवा इंटरनेट से प्रात:काल/संध्या के समय दोहों का श्रवण कर रसास्वादन कीजिए।

3. कैलेण्डर से देखें कि इस बार कबीर जयंती कब है। स्कूल की प्रातःकालीन सभा में कबीर जयंती के अवसर पर कबीर साहिब के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

4. एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा कबीर पर निर्मित फ़िल्म देखिए।

5. ‘मेरी नज़र में सच्ची भक्ति’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

कबीर के अतिरिक्त रहीम, बिहारी तथा वृन्द ने भी अनेक दोहों की रचना की है जो कि बहुत ही प्रेरणादायक हैं। इनके द्वारा रचित नीति के दोहे तो विश्व प्रसिद्ध हैं और हमारे लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। इन्हें पढ़ने से एक ओर जहाँ मन को शांति मिलती है वहीं दूसरी ओर हमारी बुद्धि भी प्रखर होती है।

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