Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Karmveer, Ayodhyasingh Upadhyaya, Harioudh, कर्मवीर अयोध्यासिंह उपाध्याय, ‘हरिऔध’

अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध

(सन् 1865-1947)

अयोध्यासिंह उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल, 1865 ई० में निजामाबाद (जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उन्होंने अपने नाम क्रम, ‘सिंह’ (हरि) तथा अयोध्या (औध) को बदलकर ‘हरिऔध’ उपनाम से साहित्य सृजन का कार्य किया।

रचनाएँ: इनके रचनाकाल के समय खड़ी बोली अपने शैशवकाल में थी, किंतु इन्होंने इस भाषा में रचनाएँ करके कमाल कर दिखाया। इनके काव्य-ग्रंथों में ऋतुमुकुर, पद्य – प्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, वैदेही वनवास तथा प्रियप्रवास प्रसिद्ध हैं।

‘प्रियप्रवास’ इनका सबसे लोकप्रिय महाकाव्य है। यह खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य है। इसकी कथा श्रीकृष्ण के मथुरा- प्रवास से संबंधित है। दीर्घकाल तक साहित्य सेवा के पश्चात् 16 मार्च, 1947 को इनका निधन हो गया।

प्रस्तुत कविता में कवि ने कर्मशील लोगों के गुणों पर प्रकाश डाला है। कर्मशील व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली रुकावटों का निडरता से सामना करते हैं। वे अपने किसी भी काम में टालमटोल नहीं करते अपितु हर काम को समय पर करते हैं। कवि कहते हैं कि कर्मठ व्यक्ति कोरी बातें बनाने की अपेक्षा सचमुच कार्य करके दिखलाते हैं और दूसरों के लिए एक मिसाल पैदा करते हैं। इस तरह पूरी कविता में कवि ने कर्मठ व्यक्तियों की उत्तम विशेषताएँ बताई हैं।

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।

रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।

काम कितना ही कठिन हो किंतु उबताते नहीं

भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं॥

हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले

सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले॥

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही

सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही

मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही

जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही

भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं

कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं॥

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं

काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं

आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं

यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं

बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए

वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए॥

व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर

वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर

गर्जते जल राशि की उठती हुई ऊँची लहर

आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट

ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं

भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।

बाधा –  रुकावट, संकट

विविध – विभिन्न प्रकार की

उबताते – उकताते, तंग आना

बहु – बहुत

भाग –  भाग्य

नमूना –  उदाहरण, आदर्श

व्योम – आकाश

दुर्गम शिखर – कठिन, जहाँ जाना मुश्किल हो चोटी

तम  अन्धकार

आठों पहर – हर वक्त

भयदायिनी – डर पैदा करने वाली

नाकाम – असफल

(i) जीवन में बाधाओं को देखकर वीर पुरुष क्या करते हैं?

(ii) कठिन से कठिन काम के प्रति कर्मवीर व्यक्ति का दृष्टिकोण कैसा होता है?

(iii) सच्चे कर्मवीर व्यक्ति समय का सदुपयोग किस प्रकार करते हैं?

(iv) मुश्किल काम करके वे दूसरों के लिए क्या बन जाते हैं?

(v) कवि ने कर्मवीर व्यक्ति के कौन-कौन से गुण इस कविता में बताए हैं?

(i) आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही

सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही

मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही

जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही

भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं

कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं॥

(ii) जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं

काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं

आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं

यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं

बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए

वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए॥

 ‘क'(संस्कृत भाषा के शब्द)    ‘ख'(हिंदी भाषा के शब्द)

कर्म                     काम

मुख                     मुँह

उपर्युक्त ‘क’ भाग में ‘कर्म’ और ‘मुख’ शब्द संस्कृत भाषा के शब्द हैं। इनका हिंदी भाषा में भी ज्यों का त्यों प्रयोग होता है। इन शब्दों को ‘तत्सम’ शब्द कहते हैं। तत् + सम अर्थात् इसके समान। ‘इसके समान’ से अभिप्राय है-‘ स्रोत भाषा के समान’। हिंदी की ‘स्रोत भाषा’ संस्कृत हैं, अतः जो शब्द संस्कृत भाषा से हिंदी में ज्यों के त्यों अर्थात् बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं उन्हें ‘तत्सम’ शब्द कहते हैं जैसे: कर्म, मुख।

उपर्युक्त ‘ख’ भाग में ‘कर्म’ के लिए ‘काम’ व ‘ मुख’ के लिए ‘मुँह’ शब्दों का प्रयोग किया गया है। ये शब्द(काम, मुँह) संस्कृत से हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ आए हैं। इन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। तद् + भव अर्थात् ‘उससे होने वाले’। ‘उससे होने वाले’ से अभिप्राय है- संस्कृत भाषा से विकसित होने वाले। अतः ‘वे’ संस्कृत शब्द जो हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ आते हैं उन्हें ‘तद्भव’ शब्द कहते हैं। जैसे- काम, मुँह।

1. पाठ में आए निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-

तद्भव        तत्सम

भाग

आठ

पहर

आग

2. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-

मुहावरा       अर्थ               वाक्य

1. एक ही आन में – तुरंत, शीघ्र ही

2. फूलना फलना – संपन्न होना

3. मुँह ताकना – दूसरों पर निर्भर रहना

4. बातें बनाना – गप्पें मारना

5. जी चुराना काम से बचना

6. नमूना बनना – आदर्श उदाहरण बनना

7. कलेजा काँपना – भय से विचलित होना, दिल दहल जाना

1. आपके अंदर कौन- सी ऐसी खूबियाँ हैं जो आपको दूसरों से अलग करती हैं? उनकी सूची बनाइए। इन खूबियों को पुष्ट करते रहें तथा जीवन में इनसे कभी न डगमगाएँ।

2. आपके अंदर क्या कमियाँ हैं? उनकी सूची बनाइए और अपने अध्यापकों/अभिभावकों/ बड़ों की मदद से उन्हें दूर करने का प्रयास कीजिए।

3. अपनी दिनचर्या स्वयं बनाएँ जिसमें पढ़ने, खेलने / व्यायाम करने, खाने-पीने व सोने का समय निश्चित हो।(नोट: दिनचर्या बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि दिनचर्या कठोर न होकर लचीली हो) छुट्टी वाले दिन / दिनों की विशेष दिनचर्या बनाएँ जिसमें पढ़ने के अधिक घंटे हों।

4. लाल बहादुर शास्त्री तथा अब्दुल कलाम जैसे सच्चे कर्मवीर एवं दृढ़ संकल्पशील नेताओं की जीवनियाँ पढ़ें एवं उनसे प्रेरणा लें।

गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कर्मठ व्यक्ति के लिए यह योग अधिक उपयुक्त है। गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 2-47॥

अर्थात् तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में कभी नहीं। इसलिए कर्मों के फल में तेरी वासना (इच्छा) न हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

अत: कर्मयोग हमें सिखाता है कि कर्म के लिए कर्म करो, आसक्तिरहित होकर कर्म करो। कर्मयोगी इसलिए कर्म करता है कि कर्म करना उसे अच्छा लगता है और इसके परे उसका कोई हेतु नहीं है। कर्मयोगी कर्म का त्याग नहीं करता, वह केवल कर्मफल का त्याग करता है और कर्मजनित दुखों से मुक्त हो जाता है।

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