श्री रामवृक्ष बेनीपुरी
(सन् 1902-1968)
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी गद्य जगत में अद्भुत योगदान रहा है। इनका जन्म सन् 1902 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बेनीपुर गाँव में हुआ था। बचपन में ही इनके माँ-बाप का निधन हो गया था। ये दृढ़ निश्चयी थे अतः इन्होंने कष्ट सहकर मैट्रिक कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। गाँधी जी के नेतृत्व में सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन का इन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि ये अध्ययन छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इन्हें भी राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ- साथ ये कुशल संपादक, श्रेष्ठ साहित्यकार भी थे। माँ सरस्वती व भारत माता की सेवा करते हुए 7 सितम्बर, सन् 1968 को इनका निधन हो गया।
रचनाएँ : चिता के फूल (कहानी), आम्रपाली (नाटक), माटी की मूरतें (रेखाचित्र), पतितों के देश में (उपन्यास), जंजीरें और दीवारें (संस्मरण) इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनकी रचनाओं की भाषा सरल एवं व्यावहारिक खड़ी बोली है।
पाठ-परिचय
‘नींव की ईंट’ एक बहुत ही रोचक एवं प्रेरक निबंध है। इस पाठ में लेखक कहना चाहता है कि व्यक्ति को देश और समाज के कल्याण व उत्थान के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। लेखक को बहुत अफ़सोस है कि लोग किसी भवन के कँगूरे (भवन का सबसे ऊपरी भाग) की तरह बनना चाहते हैं क्योंकि कँगूरा उन्हें लुभाता है, उसकी सुंदरता व चमक उन्हें आकर्षित करती है। इस कँगूरे को पाने की सभी में होड़ मची है किन्तु नींव की ईंट कोई नहीं बनना चाहता। जबकि सत्य यह है कि नींव की ईंट को हिला देने से कँगूरा ज़मीन पर औंधे मुँह गिर जाएगा। अतः लेखक का मानना है कि आज देश को ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो तारीफ़ के लिए नहीं अपितु कर्त्तव्य के लिए कर्म करें। लेखक ने नींव की ईंट के माध्यम से बच्चों को निःस्वार्थ त्याग और बलिदान की प्रेरणा दी है।
नींव की ईंट
वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़-सी इमारत है, वह किस पर टिकी है? इसके कँगूरों को आप देखा करते हैं, क्या कभी आपने इसकी नींव की ओर ध्यान दिया है?
दुनिया चमक-दमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता है?
ठोस ‘सत्य’ सदा ‘शिवम्’ होता ही है किंतु वह हमेशा ‘सुंदरम्’ भी हो, यह आवश्यक नहीं। सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसलिए सत्य से भी भागते हैं। नहीं तो हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते।
वह ईंट धन्य है जो कट छँटकर कँगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है। किंतु धन्य है वह ईंट, जो ज़मीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी।
क्यों इसी पहली ईंट पर उसकी मजबूती और पुख्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति- नास्ति निर्भर करती है?
उस ईंट को हिला दीजिए, कँगूरा बेतहाशा ज़मीन पर आ गिरेगा।
कँगूरे के गीत गाने वाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ।
वह ईंट, जो ज़मीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कँगूरा मिले। वह ईंट, जो सब ईंटों से ज्यादा पक्की थी जो ऊपर लगी होती तो कँगूरे की शोभा सौगुनी कर देती।
किंतु जिस ईंट ने देखा, इमारत की पायदारी उसकी नींव पर मुनहसिर होती है इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया।
वह ईंट, जिसने अपने को सात हाथ ज़मीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत ज़मीन से सौ हाथ ऊपर तक जा सके।
वह ईंट, जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए क़बूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे।
वह ईंट, जिसने अपना अस्तित्व इसलिए विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे। सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का सुंदर इमारत बने इसलिए कुछ पक्की पक्की लाल ईंटों को चुपचाप नींव में जाना है। सुंदर समाज बने इसलिए कुछ तपे – तपाए लोगों को मौन मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।
शहादत और मौन – मूक! जिस शहादत को शुहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कँगूरा है मंदिर का कलश है।
हाँ, शहादत और मौन मूक! समाज की आधारशिला यही होती है।
ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए। किंतु मेरी समझ में ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया।
उसमें से कितने जिंदा जलाए गए, कितने शूली पर चढ़ाए गए, कितने वन-वन की खाक छानते जंगली जानवरों के शिकार हुए, कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए। उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों। उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है। वे नींव की ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।
आज हमारा देश आजाद हुआ। सिर्फ उनके बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है।
देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया।
हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा ढूँढने से ही सत्य मिलता है। हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईटों की ओर ध्यान देना।
सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाया है। इस नए समाज के निर्माण के लिए हमें नींव की ईंट चाहिए।
अफ़सोस, कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही हैं।
सात लाख गाँवों का नवनिर्माण! हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण। कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। ज़रूरत है ऐसे नौजवानों की जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें।
जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभिभूत, जो शाबाशियों से दूर हों, दलबंदियों से अलग हों, जिनमें कँगूरा बनने की कामना न हो; कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो, सभी कामनाओं एवं सभी वासनाओं से दूर हों।
उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है- हमारी नींव की ईंट किधर है? देश के नौजवानों को यह चुनौती है।
शब्दार्थ
सुघड़ – सुडौल, जिसकी बनावट सुंदर हो
आवरण – पर्दा
भद्दापन – बदसूरती
आकृष्ट – आकर्षित
कँगूरा – चोटी, शिखर, गुंबद, बुर्ज
शिवम् – कल्याणकारी
लोकलोचनों – लोगों की नज़रों
अस्ति नास्ति – होना न होना
पायदारी – मज़बूती
अंधकूप – अँधेरा कुआँ
मुनहसिर – निर्भर
बेतहाशा – अचानक और वेगपूर्वक
विलीन – ओझल, अदृश्य, मिल जाना
अस्तित्व – हस्ती
शुहरत – शोहरत, ख्याति, प्रसिद्धि
उत्सर्ग – बलिदान
शहादत – बलिदान
मूढ़ – मूर्ख
आधारशिला – बुनियाद का पत्थर
शूली – लोहे की नुकीली छड़, प्राण दंड देने का एक साधन
लुप्त – गायब
वासना – इच्छा
अनुप्राणित – प्रेरित
होड़ा-होड़ी – प्रतिस्पर्धा, एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की कोशिश
आतुर – उतावला
अभ्यास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर बतायें कि दुनिया क्या देखती है?
(ii) इमारत का होना न होना किस बात पर निर्भर करता है?
(iii) लेखक ने नींव की ईंट किसे बताया है?
(iv) नींव की ईंट ने अपना अस्तित्व क्यों विलीन कर दिया?
(v) ईसा की शहादत ने किस धर्म को अमर बना दिया?
(vi) किसकी हड्डियों के दान से वृत्रासुर का नाश हुआ?
(vii) लेखक के अनुसार सत्य की प्राप्ति कब होती है?
(viii) पाठ में लेखक ने ‘दधीचि’ तथा ‘वृत्रासुर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किए हैं?
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-
(i) नींव की ईंट और कंगूरे की ईंट दोनों क्यों वन्दनीय हैं?
(ii) नींव की ईंट पाठ के आधार पर सत्य का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
(iii) देश को आजाद करवाने में किन लोगों का योगदान रहा? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(iv) आजकल के नौजवानों में कँगूरा बनने की होड़ क्यों मची हुई है?
(v) नये समाज के निर्माण के लिए हमें किस चीज़ की आवश्यकता है?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(i) ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर बताएँ कि समाज की आधारशिला क्या होती है?
(ii) आज देश को कैसे नौजवानों की जरूरत है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(iii) निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
– सुंदर समाज बने, इसलिए कुछ तपे तपाए लोगों को मौन मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।
– हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा। ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है। ऐसी नींव की ईंटों की ओर ध्यान देना ही हमारा काम है, हमारा धर्म है।
– उदय के लिए आतुर समाज चिल्ला रहा है-
हमारी नींव की ईंट किधर है?
देश के नौजवानों को यह चुनौती है।
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
आवरण आ वरण
प्रताप
प्रचार
बेतहाशा
प्रसिद्धि
अभिभूत
अनुप्राणित
आकृष्ट
2. निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द मूल शब्द प्रत्यय
मज़बूती मज़बूत ई
भद्दापन
पायदारी
विदेशी
चमकीली
पुख्तापन
कारखाना
सुनहली
3. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
नींव की ईंट बनना – काम का आधार बनना
शहादत का लाल – बलिदान देने वाला व्यक्ति
सेहरा पहनना – सर्वस्व बलिदान देना
खाक छानना – बहुत ढूँढ़ना, मारा-मारा फिरना
फलना फूलना – सुखी व संपन्न होना.
खपा देना – किसी काम में लग जाना, उपयोग में आना
4. निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम चिह्न लगाइए-
(i) कँगूरे के गीत गाने वाले हम आइए अब नींव के गीत गाएँ
(ii) हाँ शहादत और मौन मूक समाज की आधारशिला यही होती है
(iii) अफसोस कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा होड़ी मची है नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है
(iv) हमारी नींव की ईंट किधर है
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
1. आप नींव की ईंट या कँगूरे की ईंट में से कौन-सी ईंट बनना चाहेंगे और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
2. लेखक इस पाठ में नींव की ईंट के माध्यम से क्या संदेश देना चाहता है? 3. आपकी नज़र में ऐसा कौन सा व्यक्तित्व है जिसने देश और समाज के उत्थान में नींव की ईंट के समान कार्य किया है। उसके योगदान को बताते बात स्पष्ट करें।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
1. अपने स्कूल / आस-पड़ोस कहीं भी यदि किसी नयी इमारत का निर्माण हो रहा हो तो वहाँ जाकर कारीगर से जानकारी प्राप्त करें कि इमारत की नींव रखने के लिए किस प्रकार ज़मीन की खुदाई की जाती है और कैसे उस खुदी हुई ज़मीन पर सुंदर और विशाल इमारत खड़ी करने से पूर्व नींव की ईंटें रखी जाती हैं।
2. ‘हमारे देश की नींव’ शीर्षक के अंतर्गत कुछ ऐसे देशभक्तों और महापुरुषों के नाम एक चार्ट पर लिखकर स्कूल / कक्षा की दीवार पर लगाइए।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
दधीचि – एक प्रसिद्ध ऋषि जिसने अपने शरीर की हड्डियाँ देवताओं को अर्पित कर दी थीं और स्वयं मरने को तैयार हो गया था। इन हड्डियों से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने एक वज्र का निर्माण किया था।
वृत्रासुर – एक राक्षस। ऋषि दधीचि की हड्डियों से निर्मित वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर व अन्य राक्षसों को मार गिराया था।
सफलता की नींव – हम लोग किसी सफल व्यक्ति की सफलता से प्रभावित होते हैं, उससे प्रेरणा लेते हैं किंतु सफल व्यक्ति की सफलता की नींव को जानने का प्रयास कितने लोग करते हैं? दरअसल सफल व्यक्ति की कामयाबी की कहानी में त्याग, निष्ठा, मेहनत, अनुशासन, समर्पण और यहाँ तक कि अनेक असफलताएँ भी छिपी होती हैं। यही सब कुछ उनकी आज की सफलता की नींव बनती हैं।