Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Shivaji Ka Saccha Swarup, Seth Gobinda Das, शिवाजी का सच्चा स्वरूप, सेठ गोबिन्द दास

(जन्म सन् 1896)

सेठ जी साहित्य और राजनीति का संगम थे। देश प्रेम इन्हें संस्कारों में मिला था। यही उनके जीवन और साहित्य का प्रखर स्वर रहा है। हिंदी के प्रचार और प्रसार में इन्होंने विशेष रचनात्मक योग दिया है। एक लम्बे समय तक ये लोकसभा के सम्माननीय सदस्य रहे हैं। भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित भी किया है।

वैसे तो सेठ जी ने साहित्य के सभी क्षेत्रों में लेखन कार्य किया है, परंतु नाटक-एकांकी के क्षेत्र में इन्होंने महान् ख्याति प्राप्त की है।

रचनाएँ (नाटक-एकांकी)

‘कर्तव्य’, ‘हर्ष’, ‘प्रकाश’, ‘कर्ण’, ‘शशिगुप्त’, ‘सेवापथ अशोक’, ‘विकास’, ‘शाप और वर’, ‘सच्चा जीवन’, ‘अलबेला’।

इनके नाटकों-एकांकियों में ऐतिहासिक, सामाजिक पृष्ठभूमि पर हमारे जीवन की अनेक समस्याओं को उठाया गया है। इनमें भारतीय संस्कृति, राष्ट्र-प्रेम और गांधी- दर्शन का आलोक फैला है।

हिंदी–नाटक और एकांकी के विकास में डॉ. सेठ की सेवाओं का ऐतिहासिक महत्व है।

शिवाजी हमारे राष्ट्रीय गौरव का महान ध्वज हैं। वे अपराजेय शक्ति, शौर्य और पराक्रम का साक्षात रूप थे। धर्मान्ध विदेशी शासन के अमानुषिक अत्याचारों से उन्होंने निरन्तर लोहा लिया। देश की शक्तियों को संगठित कर “हिंदवी स्वराज्य” की स्थापना की। ऐसा स्वराज्य जो सर्वथा धर्मनिरपेक्ष था। मानव मूल्यों की आधार शिलाओं पर उसकी रचना हुई थी। उसमें प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्ण जीवन-यापन के पूर्ण अधिकार प्राप्त थे।

शिवाजी का यही शुचि चरित्र प्रस्तुत एकांकी में सामने आया है। शत्रु पत्नी उन्हें माँ से भी अधिक वंदनीय है। अन्य धर्मों को मानने वाले उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। उनके स्वराज्य में न कहीं मस्जिद कुरान का अपमान हुआ और न कहीं किसी मुसलमान से द्वितीय श्रेणी के नागरिक का व्यवहार ही उनकी सेना में वे भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे।

वस्तुतः शिवाजी के नेतृत्व में यहाँ की सम्पूर्ण प्रजा ने एक प्राण होकर अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष किया था।

एकांकी के पात्र

शिवाजी –  प्रसिद्ध मराठा वीर

मोरोपंत –  पेशवा

आवाजी सोनदेव – शिवाजी का एक सेनापति

स्थान

राजगढ़ दुर्ग का एक दालान

काल – सन् 1648 ई०, संध्या

(दाहिनी ओर दालान का कुछ हिस्सा दिखाई देता है। दालान के सामने किले का खुला मैदान है। मैदान के इस ऊंचे स्तम्भ पर भगवा रंग का मराठा झंडा फहरा रहा है। दालान में जाजम बिछी है, उस पर कमख्वाब की गद्दी पर मसनद के सहारे शिवाजी वीरासन में बैठें हैं। दालान के द्वार पर शस्त्रों से सुसज्जित दो मावली शरीर रक्षक खड़े हुए हैं। बायीं ओर से मोरोपंत पिंगले का प्रवेश)।

मोरोपंत : (अभिवादन कर) श्रीमंत सरकार, सेनापति आवाजी सोनदेव कल्याण प्रांत की जीत, वहाँ का सारा खजाना लूटकर आ गये हैं।

शिवाजी : (चौंककर) अच्छा। (मोरोपंत की ओर देखकर) बैठो पेशवा, बड़ा शुभ संवाद लाए। आवाजी सोनदेव है कहाँ?

मोरोपंत : (वीरासन से बैठकर) श्रीमंत की सेवा में अभी उपस्थित हो रहे हैं।

(कुछ देर निस्तब्धता। शिवाजी और मोरोपंत दोनों उत्सुकता से बाईं ओर देखते हैं। कुछ ही देर में आवाजी सोनदेव बाईं ओर आता हुआ दिखाई देता है। उसके पीछे हम्मालों का एक बड़ा भारी झुंड है। हर हम्माल के सिर पर एक हारा (बड़ा भारी टोकना) है। हम्मालों के झुंड के पीछे पालकी पालकी बन्द है। आवाजी सोनदेव भी अधेड़ अवस्था का ऊँचा-पूरा मनुष्य है। वेश-भूषा मोरोपंत के सदृश है। आवाजी सोनदेव दालान में आकर शिवाजी का अभिवादन करता है। हम्मालों का झुंड और पालकी दालान के बाहर रहते हैं।)

शिवाजी : बैठो आवाजी, कल्याण-विजय पर तुम्हें बधाई है।

आवाजी सोनदेव : (बैठते हुए) बधाई है श्रीमंत सरकार को।

शिवाजी : कहो, पैदल मावलियों ने अधिक वीरता दिखाई या हेटकरियों ने?

आवाजी सोनदेव : इनमें भी दोनों ने ही, श्रीमंत।

शिवाजी : सेना के अधिपति कैसे रहे?

आवाजी सोनदेव : पैदल के अधिपति नायक, हवालदार, जुमलादार और एकहजारी, तथा घुड़सवारों के अधिपति- हवालदार, जुमलदार और सूबेदार, सभी का काम प्रशंसनीय रहा, श्रीमंत सरकार।

शिवाजी : (हम्माल की ओर देखकर मुस्कराते हुए) कल्याण का खजाना भी लूट लाए; बहुत माल मिला?

आवाजी सोनदेव : हां श्रीमंत, सारा खजाना लूट लिया गया है और इतना माल मिला जितना अब तक की किसी लूट में न मिला था। चाँदी, सोना, जवाहरात न जाने क्या-क्या मिला। मैं तो समझता हूँ, श्रीमंत, केवल दक्षिण ही नहीं उत्तर की भी विजय इस संपदा से हो सकेगी।

शिवाजी : (हम्मालों के पीछे पालकी को देखकर) और उस मेणा में क्या है?

आवाजी सोनदेव : (मुस्कराते हुए) उस मेणा ….. उस मेणा में, श्रीमंत, इस विजय का सबसे बड़ा तोहफा है।

शिवाजी : उत्सुकता से आवाजी सोनदेव की ओर देखते हुए) अर्थात्?

आवाजी सोनदेव : श्रीमंत, कल्याण सूबेदार अहमद की पुत्र वधू के सौंदर्य का वृत्त कौन नहीं जानता? उसे भी श्रीमंत की सेवा के लिए बंद करके लाया हूँ।

 (शिवाजी की सारी प्रसन्नता एकाएक लुप्त हो जाती है। उनकी भृकुटी चढ़ जाती है और नीचे का होंठ ऊपर के दांतों के नीचे आ जाता है। आवाजी सोनदेव शिवाजी की परिवर्तित मुद्रा देखकर घबरा सा जाता है। मोरोपंत एकाएक शिवाजी की ओर देखता है। कुछ देर निस्तब्धता रहती है।)

शिवाजी : (भर्राए हुए स्वर में) मेणा को तत्काल इस पड़वी में लाओ। (आवाजी सोनदेव जल्दी दालान के बाहर जाता है। शिवाजी एकटक पालकी की ओर देखते हैं; मोरोपंत शिवाजी की तरफ कुछ ही क्षणों में पालकी दालान में आती है। ज्योंही पालकी दालान में रखी जाती है त्योंही शिवाजी जल्दी से पालकी के निकट पहुँचते हैं। मोरोपंत शिवाजी के पीछे जाता है।)

शिवाजी : (आवाजी सोनदेव से) खोल दो मेणा, आवाजी।

(आवाजी सोनदेव मेणा के दरवाजे खोलता है। दरवाजे खुलते ही अहमद की पुत्र वधू उस में से निकल चुपचाप एक ओर सिकुड़कर खड़ी हो जाती है। वह परम सुन्दरी युवती है। वेश-भूषा मुग़ल स्त्रियों के सदृश।)

शिवाजी : (अहमद की पुत्र वधू से) माँ, शिवा अपने सिपहसालार की नामाकूल हरकत पर आपसे मुआफी चाहता है। आह! कैसी अजीबो-गरीब खूबसूरती है आपकी। आपको देखकर मेरे दिल में एक सिर्फ एक बात उठ रही है कहीं मेरी माँ में आपकी सी खूबसूरती होती तो मैं भी बदसूरत न होकर एक खूबसूरत शख्स होता। माँ, आपकी खूबसूरती को मैं एक सिर्फ एक काम में ला सकता हूँ उसका हिंदू विधि से पूजन करूं; उसकी इस्लामी तरीके से इबादत करूं। आप जरा भी परेशान न हों। माँ, आपको आराम, इज्जत, हिफाज़त और खबरदारी के साथ आपके शौहर के पास पहुँचा दिया जायेगा; बिना देरी के, फौरन (आवाजी सोनदेव की ओर घूमकर) आवाजी, तुमने ऐसा काम किया है जो कदाचित् क्षमा नहीं किया जा सकता। शिवा को जानते हुए, निकट से जानते हुए भी तुम्हारा साहस ऐसा घृणित कार्य करने के लिए कैसे हुआ? शिवा ने आज तक किसी मस्जिद की दीवार में बाल बराबर दरार भी न आने दी। शिवा को यदि कुरान की पुस्तक मिली तो उसने उसे सिर पर चढ़ा, उसके एक पन्ने को भी किसी प्रकार की क्षति पहुँचाए बिना, मौलवी साहब की सेवा में भेज दिया। हिन्दू होते हुए भी शिवा के लिए इस्लाम धर्म पूज्य है। इस्लाम के पवित्र स्थान, उसके पवित्र ग्रन्थ सम्मान की वस्तुएँ हैं। शिवा, हिन्दू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं समझता। अरे! उसकी सेना में मुस्लिम सैनिक तक हैं। वह देश में हिंदू-राज्य नहीं, सच्चे स्वराज्य की स्थापना चाहता है। आततायियों से सत्ता का अपहरण कर उदारचेताओं के हाथों में अधिकार देना चाहता है। फिर पर-स्त्री- अरे! पर स्त्री तो हरेक के लिए माता के समान है। जो अधिकार प्राप्त जन हैं, जो सरदार हैं, या राजा उन्हें तो इस संबंध में विवेक, सबसे अधिक विवेक रखना आवश्यक है। (कुछ रुककर) आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तुमने यह कार्य नहीं किया? शिवा ये लड़ाई- झगड़े, ये लूट-पाट व्यक्तिगत सुखों के लिए कर रहा है? क्या स्वयं चैन उड़ाना उसका उद्देश्य है? तब… तब तो ये रक्तपात, ये लूटमार घृणित कृतियाँ हैं। शिवा में यदि शील नहीं तो उसके सेनापतियों, सरदारों को शील का स्पर्श तक नहीं हो सकता। फिर तो हममें और इन्द्रिय- लोलुप लुटेरों तथा डाकुओं में कोई अंतर ही नहीं रह जाता। अरे! तब तो हमारे जीवन से हमारी मृत्यु, हमारी विजय से हमारी पराजय, कहीं श्रेयस्कर है। (मोरोपंत से) आह। पेशवा, यह… यह मेरे

…. मेरे एक सेनापति ने… मेरे एक सेनापति ने क्या … क्या कर डाला। लज्जा से मेरा सिर आज पृथ्वी में नहीं, पाताल में घुसा जाता है। इस पाप का न जाने मुझे कैसा…कैसा प्रायश्चित करना पड़ेगा? (कुछ रुक कर) पेशवा, इस समय तो मैं केवल एक घोषणा करता हूँ-भविष्य में अगर कोई ऐसा कार्य करेगा जो उसका सिर उसी समय धड़ से अलग कर दिया जाएगा।

 (शिवाजी का सिर नीचे झुक जाता है। अहमद की पुत्रवधू कनखियों से शिवाजी की और देखती हैं। उसकी 5 में आँसू छलछला आते हैं। मोरोपंत शिवाजी की ओर देखता है और आवाजी सोनदेव घबराहट- भरी दृष्टि से मोरोपंत की ओर।)

दालान –  बरामदा

स्तंभ – खंभा

जाजम – फर्श आदि पर बिछाई जाने वाली छपी हुई चादर, कालीन

कमख्वाब – रंगीन – बूटी धार रेशमी कपड़ा

दुर्ग – क़िला

पेशवा –  सरदार, नेता

मसनद – गोल लंबोतरा तथा बड़ा तकिया

नामाकूल हरकत = अनुचित व्यवहार, मूर्खतापूर्ण व्यवहार, बेहूदा शरारत

पूजा – इबादत

सत्कार – अभिवादन

सदृश –  समान

हिफाज़त – सुरक्षा

खबरदारी – सावधानीपूर्ण, होशियारी से

पति – शौहर

कदाचित् – शायद, कभी

वीरासन – बैठने का एक ढंग जो प्रायः प्राचीन योद्धाओं, योगियों तांत्रिकों आदि द्वारा अपनाया जाता है।

घृणित –  घृणा के योग्य

आततायी – सताने वाले

उदारचेता – खुले विचारों वाला

क्षति – नुकसान

मावली – शिवाजी के खास सैनिक

निस्तब्धता – चुप्पी

हम्माल – मज़दूर, कुली

मेणा – बंद पालकी

वृत्त – इतिहास, वृत्तांत

भृकुटि –  भौंह

तोहफा – भेंट उपहार

प्रायश्चित्त – पछतावा

कनखी – तिरछी नज़र

सिपहसालार – सेनापति

अजीबो गरीब – विचित्र

सत्ता का अपहरण – राज्य छीनना

रक्तपात – खून बहाना

शील – चरित्र

श्रेयस्कर – कल्याणकारी

इन्द्रियलोलुप – भोग-विलास की इच्छा रखने वाला

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

 (i) शिवाजी कौन थे?

 (ii) मोरोपंत कौन था?

 (iii) आवाजी सोनदेव कौन था?

(iv) शिवाजी के सच्चा स्वरूप को दर्शाती इस पाठ की घटना किस समय की है?

 (v) मोरोपंत शिवाजी को आकर क्या शुभ समाचार देता है?

 (vi) आवाजी सोनदेव ने शिवाजी को सबसे बड़े तोहफे के बारे में क्या बताया?

 (vii) शिवाजी की प्रसन्नता एकाएक लुप्त क्यों हो गयी थी?

 (viii) शिवाजी ने सूबेदार की पुत्र वधू की सुरक्षा करते हुए उसे क्या आश्वासन दिया?

 (ix) शिवाजी पर स्त्री को किसके समान मानते थे?

 (x) शिवाजी ने अंत में क्या घोषणा की?

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-

 (i) शिवाजी ने अपने सेनापति की ग़लती पर सूबेदार की पुत्र वधू से किस प्रकार मुआफी माँगी?

 (ii) शिवाजी ने अपने सेनापति को किस प्रकार डाँट फटकार लगायी?

 (iii) शिवाजी किस तरह के सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे?

 (iv) शिवाजी शील अर्थात् सच्चरित्र को जीवन का आवश्यक अंग क्यों मानते थे?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-

 (i) ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ के आधार पर शिवाजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।

 (ii) इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

 (iii) ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी के नाम की सार्थकता अपने शब्दों में लिखिए।

 (iv) निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-

– आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तुमने यह कार्य नहीं किया?

– पेशवा, यह… यह मेरे…. मेरे एक सेनापति ने … मेरे एक सेनापति ने क्या … क्या कर डाला। लज्जा से मेरा सिर आज पृथ्वी में नहीं, पाताल में घुसा जाता है। इस पाप का न जाने मुझे कैसा… कैसा प्रायश्चित्त करना पड़ेगा?

1. निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखिए-

अशुद्ध        शुद्ध

दलान

सुसजित

वेषभूशा

गबराहट

हिंदु

मसजिद

सेनापती

उपसथित

मुसकुराना

खुबसूरती

सुराजय

घृणीत

श्रेसकर

प्राशचित

2. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-

मुहावरा             अर्थ               वाक्य

भृकुटि चढ़ना – क्रोध आना

(नीचे का) होंठ

 (ऊपर के) दाँतों के

नीचे आना – क्रोध आना

सिर पर चढ़ाना – सम्मान करना, आदर भाव से ग्रहण करना

बाल बराबर दरार न आने देना –  ज़रा भी नुकसान न होने देना,  एक समान भाव रखना, समानता रखना.

1. ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ में लेखक क्या कहना चाहता है? क्या लेखक अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल हुआ है? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।

2. यदि द आप शिवाजी की जगह होते तो सेनापति आवाजी सोनदेव को उसकी नामाकूल हरकत के लिए क्या सजा देते?

3. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात् जहाँ नारी की पूजा (सम्मान) होती है वहाँ देवता निवास करते हैं-क्या आप इस बात से सहमत हैं। स्पष्ट कीजिए।

4. स्त्री को छेड़ने/ अपहरण आदि करतूत करने में बहादुरी नहीं होती। असली बहादुरी तो स्त्री रक्षा/सुरक्षा में है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? स्पष्ट करें।

5. नारी के उत्थान के लिए अनेक समाज सुधारकों/कवियों/लेखकों / महापुरुषों ने कार्य किये हैं। आप किससे प्रभावित हुए हैं? नारी उत्थान में उनके योगदान को उजागर करते हुए स्पष्ट करें।

1. ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी को अपने स्कूल के मंच पर खेलिए।

2. अपने स्कूल/शहर/ गाँव के पुस्तकालय से शिवाजी से संबंधित पुस्तक लेकर उनके अन्य जीवन प्रसंग पढ़िए। प्रेरक प्रसंगों की जानकारी इंटरनेट से भी प्राप्त हो सकती है।

3. ‘नारी अबला नहीं, सबला है’ इस विषय पर कक्षा में वाद-विवाद आयोजित करें।

 (नोट : कक्षा में सभी विद्यार्थियों को इस विषय के पक्ष या विपक्ष में बोलने के लिए 2 मिनट का समय दिया जाए।)

शिवाजी के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें जानिए-

पूरा नाम : शिवाजी राजे भोंसले

जन्म तिथि : 19 फरवरी, 1630

जन्म भूमि : शिवनेरी (महाराष्ट्र)

पिता: शाह जी भोंसले

माता : जीजाबाई

पत्नी : साइबाई निम्बालकर

सन्तान : शम्भा जी

उपाधि : छत्रपति

युद्ध : मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध

निर्माण : अनेक क़िलों का निर्माण व पुनरुद्धार

सुधार परिवर्तन हिन्दू राज्य की स्थापना

राजघराना : मराठा साम्राज्य

वंश : भोंसले

मृत्यु : 3 अप्रैल, 1680

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