श्रीपाद विष्णु कानाडे
अपनी अद्भुत प्रतिभा से साहित्य का उत्तरोत्तर विकास करने में श्रीपाद विष्णु कानाडे का महत्वपूर्ण स्थान है। ये आधुनिक साहित्यकार हैं। एकांकी के क्षेत्र में इनकी विशिष्ट पहचान है। एकांकी के प्रमुख तत्वों कथानक, पात्र तथा चरित्र चित्रण, संकलनत्रय, संवाद, वातावरण, उद्देश्य व अभिनेयशीलता का इनके एकांकी में सफलतापूर्वक निर्वहण होता है। इनके द्वारा रचित ‘प्रकृति का अभिशाप’ अत्यंत प्रभावशाली व लोकप्रिय एकांकी है।
पाठ-परिचय
पर्यावरण शब्द ‘परि’ + ‘आवरण’ के योग से बना है। ‘परि का अर्थ है ‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘ढकने वाला’ अर्थात जो हमें चारों ओर फैल कर ढके हुए है। हमारी चारों ओर से रक्षा कर रहा है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश- इन पाँचों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारी संस्कृति में इन्हें देवता की संज्ञा दी गयी है क्योंकि ये हमें जीवन देने वाले हैं। इस प्रकार संपूर्ण प्रकृति ने हमारे लिए एक स्वस्थ तथा सुखकारी आवरण अर्थात कवच का निर्माण किया था किंतु आज मनुष्य अपने सुखों व स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन्हें दूषित करता जा रहा है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सूर्यदेव, रश्मिदेवी, वनदेवी, जलदेवी, पवनदेवी, बुद्धिदेवी व प्रदूषण (दैत्य) पात्रों के माध्यम से मानव को सावधान किया है कि यदि प्राकृतिक साधनों के प्रयोग में सावधानी नहीं बरतेगा तो इसके घातक परिणामों से मनुष्य का विनाश भी निश्चित है।
प्रकृति का अभिशाप
पात्र-परिचय वेश-भूषा
सूर्यदेव – सूर्यदेव चमकदार पीले वस्त्र और चमचमाता सुनहरा मुकुट पहने हुए हैं।
रश्मिदेवी – रश्मिदेवी भी चमकदार पीला लहँगा और वैसी ही चुन्नी ओढ़े हैं।
वनदेवी – वनदेवी फूल और पत्तों से चित्रित हरी साड़ी में हैं, सिर पर पत्तों का मुकुट है।
जलदेवी – जलदेवी मछलियों आदि जलीय जंतुओं से चित्रित नीली साड़ी और नीले रंग के मुकुट में हैं।
पवनदेव – पवनदेव सफ़ेद वस्त्र पहने हैं।
बुद्धिदेवी – बुद्धिदेवी रुपहली किनारी लगी हुई सफ़ेद साड़ी और रुपहले झिलमिलाते मुकुट में हैं।
प्रदूषण दैत्य- प्रदूषण दैत्य नेपथ्य में है अतः वेशभूषा की आवश्यकता नहीं है।
पहला दृश्य
(पार्श्वभूमि को पूरी तरह से घेरता हुआ सौरमंडल का रंगीन चित्र मंच के बीचोंबीच एक विशाल सुनहरा सिंहासन, जिस पर सूर्यदेव विराजमान हैं। रश्मिदेवी सिंहासन के पीछे खड़ी हैं।)
सूर्यदेव : (चिंतित मुद्रा में) इस सौर जगत में मेरे विशाल कुटुंब में, जितने भी ग्रह हैं, उनमें से एक के विषय में मुझे कुछ चिंता हो चली है। वह है मेरी प्रिय पुत्री- पृथ्वी। अपने इस कुटुंब में मैंने पृथ्वी को ही अधिक योग्य बनाया है। पृथ्वी की गोद में अनेक प्रकार के जीव-जंतु और पेड़-पौधे पनप सकते हैं, यहाँ तक कि सबसे अधिक आश्चर्यजनक अनोखा जीव भी…।
रश्मिदेवी : अर्थात मानव, यही न स्वामी!
सूर्यदेव : (चौंककर) कौन? रश्मि तुम मेरी बातें सुन रही थीं! हाँ, तुमने ठीक पहचाना। सबसे अनोखा जीव मानव है और उसके अनोखे होने का कारण है, उसका मस्तिष्क।
रश्मिदेवी : स्वामी! जब आपने अपनी लाड़ली पृथ्वी को सौर जगत में इतना अच्छा स्थान दिया है और मानव जैसा अनोखा उपहार दिया है, तब आपको चिंता कैसी? और मैं तो अभी पृथ्वी का भ्रमण करके ही आ रही हूँ। मुझे तो पूरे सौर जगत में पृथ्वी एक नंदनवन जैसी लगती है।
सूर्यदेव : (आतुरता से) क्या तुम पृथ्वी का भ्रमण करके आ रही हो? तो फिर बताओ, मेरी प्रिय पुत्री का क्या हाल है?
रश्मिदेवी : उसका हाल बहुत अच्छा है। मानव ने अपने मस्तिष्क के सहारे प्रगति की है। जंगल और गुफाओं में रहने वाला मानव आज नगरों में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहता है। उसने प्रकृति पर काफ़ी सीमा तक विजय प्राप्त कर ली है। वह उन्नति के शिखर…।
(पवनदेव का प्रवेश)
पवनदेव : (बात काटकर) नहीं भगवन्! उन्नति नहीं, पतन के गर्त में गिरने वाला है।
(जलदेवी का प्रवेश)
जलदेवी : (क्रोधित स्वर में) लेकिन ऐसी उन्नति भी भला किस काम की, जिससे उसे अशुद्ध जल पीकर अनेक बीमारियों का शिकार होना पड़ता है। (सूर्यदेव तथा रश्मिदेवी और अधिक आश्चर्यचकित होते हैं।)
(वनदेवी का प्रवेश)
वनदेव : यही नहीं, असाधारण प्रगति के कारण मानव के समक्ष विषाक्त भोजन खाकर आत्मघात करने के सिवाय कोई चारा नहीं रहेगा, भगवन्!
सूर्यदेव : (एक-एक चेहरे को देखते हुए) आखिर आप लोग हैं कौन और क्या कह रहे हैं?
पवनदेव : (हाथ जोड़कर) सौर जगत के अधिपति भगवान सूर्य हमें क्षमा करें। देवी रश्मि के असत्य कथन से कि मानव उन्नति के शिखर पर पहुँच रहा है, हम लोग क्षुब्ध हो उठे और बीच में ही बोल उठे। क्षमा करें भगवन्!
(सूर्यदेव अभी भी चकित मुद्रा में)
पवनदेव : (सिर झुकाकर) देव! आपकी लाड़ली पुत्री पृथ्वी का तुच्छ सेवक पवनदेव आपको नमन करता है।
जलदेवी : (सिर झुकाकर) उसी पृथ्वी की सेविका इस जलदेवी का प्रणाम स्वीकार करें।
वनदेवी : (सिर झुकाकर) भगवन्! आपकी पुत्री पृथ्वी की एक और सेविका वनदेवी का कोटि-कोटि प्रणाम!
सूर्यदेव : (हाथ उठाकर अपनी पुत्री की सेविकाओं से मिलकर मुझे प्रसन्नता हो रही है परंतु आप लोगों के इस अनायास आगमन का कारण क्या है?
पवनदेव : (खिन्न स्वर में) भगवन्! क्षमा करें परंतु हमारी स्वामिनी पृथ्वी इस समय बड़े संकट में है और अपने दुख की गाथा सुनाने ही उन्होंने हमें यहाँ भेजा है।
सूर्यदेव : (तेज़ स्वर में) क्या कहा? हमारे रहते हमारी पुत्री संकट में है? असंभव! (रश्मि की ओर मुड़कर) रश्मि! तुम तो अभी पृथ्वी का भ्रमण करके आई हो। तुमने अभी बताया कि पृथ्वी नंदनवन-सी लगती हैं!
रश्मिदेवी : (मुस्कराकर) मैंने तो अपने भ्रमण में ऐसा ही पाया। हर जगह मानव की प्रगति हो रही है।
जलदेवी : (दो कदम आगे बढ़कर) भगवन्! क्षमा करें। रश्मिदेवी ने प्रकाश की तीव्र गति से पृथ्वी का भ्रमण किया इसलिए उन्हें केवल ऊपरी ऊपरी बातें ही नज़र आई होंगी।
सूर्यदेव : (सिंहासन से उठकर) आखिर बात क्या है? कौन-सा ऐसा बड़ा संकट पृथ्वी पर मंडरा रहा है?
वनदेवी : (घबराए स्वर में) देव! एक महादैत्य हम लोगों के पीछे लगा हुआ है।
रश्मिदेवी : (डरी हुई मुद्रा में) क… कक… क्या कहा? महादैत्य! (सूर्य से चिपककर) मुझे बचाइए!
सूर्यदेव : डरती क्यों हो? क्या तुमने अपने भ्रमण के दौरान उस महादैत्य को देखा?
रश्मिदेवी : (वीरता के भाव से) मैंने कोई दैत्य नहीं देखा। मैं किसी से डरने वाली नहीं।
सूर्यदेव : (क्रोधित होकर) तुमने नहीं देखा, तो फिर ये लोग क्या कह रहे हैं? बोलो!
पवनदेव : (मंच पर एक चक्कर काटते हुए) रश्मिदेवी ठीक कह रही हैं। यह दैत्य ऐसा ही है जो दिखाई नहीं देता परंतु धीरे-धीरे पृथ्वी के वातावरण को विषाक्त बना रहा है।
सूर्यदेव : क्या नाम है उस दैत्य का?
जलदेवी : उसका नाम है- प्रदूषण!
रश्मिदेवी : खर-दूषण का नाम तो मैंने सुना है किंतु उसे तो प्रभु रामचंद्र जी ने त्रेतायुग में समाप्त कर दिया था।
पवनदेव : (हँसी रोकने की मुद्रा में) देवी जी, खर-दूषण नहीं! प्रदूषण! प्रदूषण!
रश्मिदेवी : (सिर हिलाकर) हाँ, तो यह राक्षस अवश्य ही खर-दूषण के कुल में जन्मा होगा।
वनदेवी : (अपने स्थान से एक कदम आगे बढ़कर) जी नहीं। इस राक्षस का प्रादुर्भाव गत शताब्दी में हुआ, जब से संसार में औद्योगिक क्रांति प्रारंभ हुई। इस शताब्दी के अंत तक तो यह न मालूम क्या गजब ढाएगा!
सूर्यदेव : (सिंहासन पर बैठ जाते हैं) देखो, तुम लोग जरा स्पष्ट रूप से सब समझाओ। पवन! पहले तुम बताओ।
पवनदेव : (सूर्य के आगे नत होकर) भगवन्, आप जानते ही हैं कि यह तुच्छ सेवक पवन, आपकी पुत्री पृथ्वी के वातावरण का एक मुख्य घटक है। वायुमंडल के रूप में मैंने पृथ्वी को आच्छादित कर रखा है।
सूर्यदेव : हाँ, मैंने अपने अन्य किसी पुत्र को इतना अच्छा वातावरण नहीं दिया। वायुमंडल के कारण एक तो पृथ्वी के प्राणी जीवित रह पाते हैं, दूसरा यह कई प्रकार के संकटों से पृथ्वी की रक्षा भी करता है।
रश्मिदेवी : (डरकर) वह कैसे?
सूर्यदेव : अंतरिक्ष में अनेक उल्काएँ हर पल पृथ्वी की ओर आकृष्ट होती हैं। वायुमंडल से घर्षण के कारण वे मार्ग में ही भस्म हो जाती हैं। यदि वायुमंडल न होता, तो उल्काएँ पृथ्वी पर विनाश करतीं। पृथ्वी का धरातल भी चंद्रमा के समान बड़े- बड़े गड्ढों से युक्त होता।
पवनदेव : जी हाँ! मेरे अस्तित्व के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है।
सूर्यदेव : मनुष्य के लिए शुद्ध हवा की कमी न रहे इसीलिए मैंने पृथ्वी को हवा के अथाह समुद्र में डुबो दिया है।
पवनदेव : (उदास होकर) इस हवा के अथाह समुद्र का केवल 1/5 भाग, जिसे ऑक्सीजन कहते हैं, मानव के लिए प्रत्यक्षतः उपयोग का है और मुझमें इसका तीव्रता से ह्रास होता जा रहा है।
सूर्यदेव : क्या इस ह्रास को रोका नहीं जा सकता?
पवनदेव : प्रत्येक जीव ऑक्सीजन का उपयोग करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। यही नहीं, असंख्य कारखानों, इंजनों में आग का उपयोग हो रहा है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड अत्यधिक उत्पन्न हो रही है। मुझमें ऑक्सीजन कम होने का यह प्रमुख कारण है
सूर्यदेव : इस दूषित कार्बन डाइऑक्साइड से पुन: ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए ही तो मैंने वनस्पति जैसी सेविका पृथ्वी को प्रदान की है।
वनदेवी : प्रभु, आपका कहना ठीक है! आपके तीव्र प्रकाश की सहायता से मेरी हरी पत्तियाँ कार्बन डाइऑक्साइड को, प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से कार्बन और ऑक्सीजन में विश्लेषित करती हैं। मैं स्वयं के पोषण के लिए कार्बन रख लेती हूँ और प्राणदायिनी ऑक्सीजन को पुनः वायु में भेज देती हूँ। मेरी प्रत्येक हरी पत्ती एक अनोखा कारखाना है जो भोजन और ऑक्सीजन बनाती है। इस कारखाने में कभी कोई हड़ताल नहीं होती है।
रश्मिदेवी : (मुँह बनाकर) इतना अच्छा काम तुम्हारा, फिर भी यह रोनी सूरत!
वनदेवी : प्रभु, आपने अपनी प्रकृति को संतुलित बनाया था परंतु अब कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ती जा रही है और मैं घटती जा रही हूँ।
रश्मिदेवी : नहीं.. नहीं…. वनस्पतियाँ पैदा भी होती हैं।
वनदेवी : (गुस्से से) ज़रा सोच-समझकर बात किया करो! मानव की आधुनिक प्रगति और औद्योगिक वृद्धि के कारण हरे-भरे जंगल नष्ट हो रहे हैं। विवेकहीन मनुष्य जंगल की लकड़ी अंधाधुंध काट रहा है। नई बस्तियाँ, नए शहर बसाने के लिए और कागज बनाने के लिए उपयोगी जंगल काट लिए जाते हैं। फलस्वरूप न केवल वायु को शुद्ध करने की मेरी क्षमता नष्ट हो रही है, अपितु …।
रश्मिदेवी : अब बंद भी करो अपना रोना!
वनदेवी : इसे मजाक न समझो। जंगलों के नष्ट होने से दो नुकसान और भी होते हैं। इनका प्रभाव मानव के जीवन पर भी पड़ता है।
सूर्यदेव : ये कौन-से नुकसान हैं?
वनदेवी : वन वर्षा लाते हैं। वनों की कमी से वर्षा नहीं होती। वर्षा न होने से वनस्पतियाँ नहीं उगतीं और वनस्पतियों के अभाव में वायु अशुद्ध रह जाती है, फिर वन अन्य वन्यप्राणियों के निवास स्थान भी हैं। प्रकृति में इन प्राणियों का अपना अलग-अलग उपयोग और महत्व है।
पवनदेव : मेरे दूषित होने के और भी अनेक कारण हैं जिनके मूल में हैं, आधुनिक औद्योगिक प्रगति!
रश्मिदेवी : (आश्चर्य से) प्रगति प्रदूषण का कारण कैसे हो सकती है?
पवनदेव : अनेक आधुनिक उद्योगों के कारण वायुमंडल में विविध प्रकार की गैसें आ जाती हैं। इन गैसों का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता रहता है
रश्मिदेवी : मानती हूँ! वायुमंडल में गैसें बहुत बढ़ गई हैं किंतु मानव पर भला इनका क्या असर होता है?
पवनदेव : गंधकयुक्त औषधियाँ मानव में आँतों की बीमारियाँ उत्पन्न करती हैं और तपेदिक जैसे रोगों को बढ़ावा देती हैं।
वनदेवी : गंधकयुक्त औषधियों के कारण मेरे पनपने में भी रुकावट आती है। मेरी हरी पत्ती के कारखाने ठीक से काम नहीं कर पाते।
पवनदेव : मेरे दूषित होने के दूसरे गंभीर कारण हैं इन कारखानों के इंजन आदि से आने वाले असंख्य सूक्ष्म कण।
रश्मिदेवी : कार्बन डाइऑक्साइड और गंधकयुक्त औषधियाँ तुम्हें दूषित करती हैं, माना, पर ये सूक्ष्म कण तुम्हारा क्या बिगाड़ सकते हैं?
पवनदेव : (सूर्यदेव की ओर मुड़कर) देव! इन कणों के मुझमें मिल जाने से पृथ्वी को आपकी किरणों का पूरा-पूरा लाभ नहीं मिल पाता। ये कण कीटाणुओं से मिलकर जल और वनस्पतियों को भी दूषित करते हैं। इन असंख्य कारखानों, इंजनों आदि में जलने वाला पेट्रोल तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ता!
सूर्यदेव : ऐसा क्यों?
पवनदेव : पेट्रोल को सक्षम बनाने के लिए उसमें सीसा मिलाया जाता है और यह सीसा तो मेरे अस्तित्व को अत्यधिक विषाक्त बना डालता है। बड़े शहरों का वातावरण तो इस पेट्रोल के कारण बहुत अधिक विषाक्त बन गया है, भगवन्!
रश्मिदेवी : इससे अच्छा तो यह होता कि लोग बड़े-बड़े शहरों में न रहकर छोटे-छोटे गाँवों में ही रहते!
पवनदेव : तुम्हारा कहना ठीक है, दैत्य प्रदूषण के लंबे हाथ अभी गाँवों तक नहीं पहुँचे हैं, और लोगों का गाँवों में रहना ही अच्छा है। इस सीसा मिश्रित पेट्रोल के कारण पृथ्वी पर एक और संकट मंडरा रहा है, प्रभु! आप तो जानते हैं कि वायुमंडल में ओजोन की परत है जो आपके द्वारा विसर्जित पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से पृथ्वी के जीवों की रक्षा करती है।
सूर्यदेव : पराबैंगनी किरणों का थोड़ा-सा सेवन प्राणियों के लिए अत्यंत आवश्यक है पर इनकी मात्रा बढ़ जाने से तो सभी मर जाएँगे। ओज़ोन की परत इन पराबैंगनी किरणों के कुछ भाग को ही आर-पार होने देती है।
पवनदेव : ऊपरी वायुमंडल में पेट्रोल से चलनेवाले जैट जैसे विशालकाय हवाई जहाज़ इस ओज़ोन की परत को नष्ट कर रहे हैं।
वनदेवी : (आँसू पोंछकर) प्रभो, अब कुछ मेरी भी सुनिए! दैत्य प्रदूषण तो मुझे परेशान कर ही रहा है परंतु इन कीटनाशक रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग भी मुझे बहुत अधिक क्षति पहुँचा रहा है। अनाजों को बचाने के लिए कीटनाशक रसायनों का यथोचित प्रयोग ठीक हो सकता है परंतु अत्यधिक प्रयोग अनेक उपयोगी वनस्पतियों को भी नष्ट कर देता है। अनाजों को विषाक्त बनाता है, सो अलग!
जलदेवी : यही नहीं, ये कीटनाशक रसायन, वर्षा के जल में घुलकर नदियों और तालाबों को दूषित कर देते हैं जिससे जलीय वनस्पतियों और जीवों को काफी नुकसान पहुँचता है।
रश्मिदेवी : इतना अधिक कीटनाशक बहकर आता है?
जलदेवी : एक बात और है, अनेक कारखाने अपना दूषित तेल और विषैले पदार्थ नदियों में बहा देते हैं जिससे जीव-जंतुओं को काफ़ी नुकसान पहुँचता है।
सूर्यदेव : यह सब तो बहुत खराब है।
जलदेवी : ऐसा तब और अधिक होता है, जब पेट्रोल से भरे विशाल टैंकर समुद्रों में टूट जाते हैं। समुद्र के किनारे ऐसे स्थान भी हैं जहाँ कास्टिक सोडे की अशुद्धियाँ बहाई जाती हैं। इनमें जहरीला पारा होता है। इस ज़हरीले पारे से मछलियाँ प्रभावित होती हैं और उन्हें खाकर मनुष्य!
सूर्यदेव : (माथे पर हाथ रखकर) यह सब तो अत्यंत घातक है!
रश्मिदेवी : स्वामी! अब मैं तो इस जहरीली पृथ्वी का भ्रमण करने ही नहीं जाऊँगी।
सूर्यदेव : रश्मि! यह असंभव है, पृथ्वी पर तो तुम्हें जाना ही होगा। तुम तो मानव-जीवन का सहारा हो।
(नेपथ्य से प्रदूषण दैत्य की आवाज़ आती है)
दैत्य प्रदूषण : (डरावनी हँसी में) हा…हा…हा…, आज मैं बड़ा प्रसन्न हूँ। मैंने वायु, जल और वनस्पति की नाक में दम कर दिया। है देखी मेरी करामात! हा हा हा…!
सूर्यदेव : (चौंककर सिंहासन से उठ जाते हैं।) कौन है, जो इस तरह बोल रहा है?
पवनदेव : आसपास तो कोई दिखाई नहीं देता!
दैत्य प्रदूषण : दिखाई दूँगा भी कैसे! मैं तो अदृश्य रहकर ही सबको सताता हूँ।
रश्मिदेवी : आवाज़ तो बड़ी डरावनी मालूम पड़ रही है।
दैत्य प्रदूषण : (चीखकर) मुझसे डरना ही पड़ेगा। मैं मनुष्य के विनाश का कारण बनने वाला हूँ।
वनदेवी : आखिर तुम हो कौन?
दैत्य प्रदूषण : (फिर चीखकर) मैं हूँ मानव का महाकाल, प्रगति का अभिशाप, औद्योगिक प्रगति का विष वृक्ष, मैं हूँ मानव का अदृश्य शत्रु- प्रदूषण दैत्य! समझे… प्रदूषण दैत्य!
रश्मिदेवी : (डरते हुए) क…क… क्या कहा? प्रदूषण दैत्य! स्वामी, मेरी रक्षा कीजिए!
दैत्य प्रदूषण : मैं तुझे क्षति नहीं पहुँचाऊँगा रश्मि, मैं तो पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों एवं अन्य जीवों का विनाश करना चाहता हूँ। मैं उन्हें घुला घुलाकर मारूँगा।
पवनदेव : देव! सुन लिया आपने, अब आप ही अपनी लाड़ली पुत्री पृथ्वी को बचाइए!
जलदेवी : (वायु के पास सिमटकर) भगवन्, मुझे भी इस दैत्य से बचाने की कृपा करें ताकि पृथ्वी का जल शुद्ध रह सके।
वनदेवी : (जलदेवी के पास आकर) यह दैत्य मनमानी करता रहा, तो मैं प्राणियों को भोजन कैसे दे सकूँगी?
(सूर्यदेव चिंतामग्न हो जाते हैं।)
(नेपथ्य में मधुर संगीत के साथ बुद्धिदेवी का प्रवेश होता है।)
बुद्धिदेवी : भगवन्! इस दैत्य से पृथ्वी को बचाने के लिए आपको कष्ट करने की ज़रूरत नहीं है। पृथ्वीवासियों के जीवन को सुखी बनाने वाली जल, वायु और वनस्पति देवियों की रक्षा मैं करूँगी।
जलदेवी : हे देवी, आप कौन हैं? आपकी बातों से अपार बुद्धिमत्ता झलक रही है।
बुद्धिदेवी : मैं हूँ बुद्धि और मेरे बल पर ही मानव अनादिकाल से प्रगति करता रहा है।
दैत्य प्रदूषण : क्या तुम मुझ प्रदूषण दैत्य से लोहा लोगी? मानव को मेरे चंगुल से छुड़ाओगी? असंभव! हा हा हा…।
बुद्धिदेवी : निःसंदेह, जरा मानव इतिहास पर दृष्टि डालो। आज मानव मेरे ही बलबूते पर महान बना है।
दैत्य प्रदूषण : तुम्हारे कहने का मतलब?
बुद्धिदेवी : सब यही समझते थे कि जंगली जीव-जंतु मानव को पनपने नहीं देंगे। मनुष्य ठंड से मर जाएगा, गुफ़ाओं में रहने वाला मानव भला कितने दिन जीवित रह सकेगा? तुम दैत्य भले ही हो परंतु मेरे लिए तुम तिनके के समान हो।
दैत्य प्रदूषण : क्या कहा? तिनके के समान! मैं दिखाई नहीं देता हूँ परंतु मै अदृश्य रहकर ही मनुष्य के गले में फंदा कसता जा रहा हूँ।
बुद्धिदेवी : अपने अदृश्य होने का घमंड न करो। मानव ने हमेशा अपने शत्रुओं पर विजय पाई है।
दैत्य प्रदूषण : ठीक है। पर मेरे अनेक सहायक हैं। एक नवीनतम सहायक हैं, रेडियोधर्मिता।
रश्मिदेवी : यह क्या बला है?
वनदेवी : प्रभो, मैं तो आपको बताना ही भूल गई थी। जब से मानव ने यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्वों का परमाणु परीक्षण किया है, तब से मैं, जल और वायु इस विनाशकारी विकिरण से दूषित हो गए हैं
रश्मिदेवी : यह किस तरह हानिकारक है?
दैत्य प्रदूषण : मैं बताता हूँ! रेडियोधर्मिता से पीड़ित मानव स्वयं तो घुल-घुलकर मरेगा ही, वह एक ऐसी पीढ़ी को भी जन्म देगा जिसे विकृतियों के कारण मानव के रूप में पहचानना भी संभव नहीं होगा। शर्त यह है कि वह बस परमाणु परीक्षण करता रहे। उसके अलावा मेरा एक और साथी ध्वनि प्रदूषण तो है ही न!
रश्मिदेवी : ध्वनि प्रदूषण?
दैत्य प्रदूषण : हाँ, बड़े-बड़े शहरों में विशालकाय हवाई जहाजों, वाहनों, लाउडस्पीकरों आदि अन्य स्रोतों से इतनी अधिक ध्वनि उत्पन्न होती है कि मुझे विश्वास है कि वह लाखों लोगों को बहरा बना देगी। सुना, मेरा प्रताप! क्यों बुद्धि, क्या तुम अब भी मनुष्य को मेरे चंगुल से छुड़ाने का साहस करोगी?
बुद्धिदेवी : अवश्य! मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है।
दैत्य प्रदूषण : ठीक है, अभी तो मैं जाता हूँ अपना विनाश कार्य करने।
बुद्धिदेवी : आप लोग चिंता न करें, मुझ पर भरोसा रखें। आदि मानव विनाशकारी अग्नि से भयभीत हो गया था। फिर उसने इसी अग्नि को अपने अधीन कर लिया और आज अग्नि मानव के लिए बड़ी देन है। मैं इस प्रदूषण दैत्य को ही जड़ से समाप्त कर दूँगी। संसार से इसका उन्मूलन करना परमावश्यक है।
सूर्यदेव : धन्य हो बुद्धिदेवी! तुम धन्य हो!
बुद्धिदेवी : मुझे आशीर्वाद दीजिए, शक्ति दीजिए कि मैं लोग-कल्याण के इस कार्य को करने में सफल होऊँ।
सूर्यदेव : तथास्तु |
(सभी के चेहरे पर प्रसन्नता दिखलाई देती है। परदा गिरता है।)
शब्दार्थ
रश्मि – किरण
पार्श्वभूमि – आस-पास की जमीन
कुटुंब – परिवार
अट्टालिका – महल, पक्की इमारत
गर्त – गड्ढा
आत्मघात – अपनी हत्या
नेपथ्य – परदे के पीछे
सौरमंडल – सूर्य और उसके ग्रहों का समूह
मस्तिष्क – दिमाग
समक्ष – सामने
विषाक्त – ज़हरीला
अधिपति – स्वामी, मालिक
क्षुब्ध – क्रोध मिश्रित दुख
कोटि-कोटि – करोड़ों
अनायास – अचानक
खिन्न – दुखी, उदास
महादैत्य – महाराक्षस
औद्योगिक – उद्योग संबंधी
अंतरिक्ष – आकाश
प्रादुर्भाव – प्रकट होना, उत्पत्ति
आच्छादित – ढका हुआ
उल्काएँ – लौह मिश्रित पत्थर के टुकड़े जो अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं।
धरातल – पृथ्वी की सतह
विसर्जित – छोड़ना
यथोचित – जैसा चाहिए वैसा, समुचित
अथाह – गहरा
विश्लेषित – अलग-अलग किया हुआ
अस्तित्व – हस्ती, सत्ता, विद्यमान होना
ह्रास – कमी, गिरावट
जलीय – जल संबंधी
अपार – अत्यधिक, जिसका पार न पाया जा सके।
चंगुल – पकड़, अधिकार
वायुमंडल – वातावरण
निःसंदेह – बेशक, बिना शक के
बला – मुसीबत
विकृति – विकार, खराबी (विकार के बाद प्राप्त रूप)
प्रत्यक्षतः – प्रत्यक्ष रूप से
अनादिकाल – आरम्भ से ही
बलबूते – ताक़त, जोर
उन्मूलन – उखाड़ फेंकना, जड़ से ख़त्म कर देना।
अभ्यास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए-
(i) सूर्यदेव को किस ग्रह की चिंता थी?
(ii) जलदेवी के अनुसार पृथ्वी के वातावरण को कौन विषाक्त बना रहा है?
(iii) पवनदेव ने ऑक्सीजन कम होने का क्या कारण बताया?
(iv) वनदेवी ने अपने घटने का क्या कारण बताया?
(v) गंधकयुक्त औषधियाँ मनुष्य के स्वास्थ्य पर क्या प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं?
(vi) ओजोन परत क्या है?
(vii) ओज़ोन की परत को कौन नष्ट कर रहा है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(viii) प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की बात किसने सूर्यदेव से की?
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-
(i) यदि वायुमंडल न होता तो पृथ्वी का क्या हाल होता? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(ii) वनदेवी ने हरी पत्तियों को ‘ऑक्सीजन का कारखाना’ क्यों कहा?
(iii) वनदेवी ने गुस्से में आकर रश्मिदेवी को क्या कहा?
(iv) वन किस प्रकार हमारे लिए लाभकारी हैं?
(v) रेडियोधर्मिता क्या है? मनुष्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है?
(vi) बुद्धिदेवी ने मानव रक्षा के लिए सूर्यदेव को क्या भरोसा दिलाया?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(i) लेखक ने प्रदूषण को महादैत्य कहा है। आप लेखक की बात से कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
(ii) जल, वायु और ध्वनि-प्रदूषण हमारे लिए बहुत ही घातक है स्पष्ट कीजिए।
(iii) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
• यह दैत्य ऐसा ही है जो दिखाई नहीं देता परंतु धीरे-धीरे पृथ्वी के वातावरण को विषाक्त बना रहा है।
• मैं हूँ मानव का महाकाल, प्रगाति का अभिशाप, औद्योगिक प्रगति का विष- वृक्ष, मैं हूँ मानव का अदृश्य शत्रु- प्रदूषण दैत्य समझे प्रदूषण दैत्य!
• आप लोग चिंता न करें मुझ पर भरोसा रखें। आदि मानव विनाशकारी अग्नि से भयभीत हो गया था। फिर उसने इसी अग्नि को अपने अधीन कर लिया और आज अग्नि मानव के लिए बड़ी देन है। मैं इस प्रदूषण दैत्य को ही जड़ से समाप्त कर दूँगी। संसार में इसका उन्मूलन करना परमावश्यक है।
(ख) भाषा – बोध
1. निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए:
एकवचन बहुवचन
पत्ता
पुत्री
आँत
बहरा
साड़ी
परत
नीला
पत्ती
नज़र
गड्ढा
पृथ्वी किरण
पीला
लकड़ी
गैस
देवी
2. निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
उन्नति
असत्य
प्रगति
प्रत्येक
लिखिए-
आगमन
प्रदूषण
अत्यधिक_
दुष्प्रभाव
3. निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके
शब्द मूल शब्द प्रत्यय
प्रसन्नता
उपयोग
शब्द
तीव्रता
विषैला
ज़हरीला
उपहार
4. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
• चारा न रहना उपाय न होना
• गज़ब ढाना – जुल्म करना
नाक में दम करना तंग करना
घुला घुला कर मारना धीरे-धीरे कष्ट पहुँचाकर मारना.
लोहा लेना युद्ध करना
तिनके के समान बहुत कमजोर
5. निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
तद्भव तत्सम
सफेद
पीला
चाँद
सूरज
करोड़
समुन्दर
6. निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम चिह्न लगाइए-
(i) वह है मेरी प्रिय पुत्री पृथ्वी
(ii) कौन रश्मि तुम मेरी बातें सुन रही थीं
(iii) हाँ तुमने ठीक पहचाना
(iv) सिंहासन से उठकर आखिर बात क्या है
(v) मुझे आशीर्वाद दीजिए शक्ति दीजिए कि मैं लोग कल्याण के इस कार्य को करने में सफल होऊँ
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
1. प्रदूषण की रोकथाम के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
2. क्या सचमुच बुद्धिदेवी प्रदूषण जैसे महादैत्य से छुटकारा दिला सकती है? स्पष्ट कीजिए।
3. आपकी दृष्टि में प्रदूषण को कम करने में सरकारों की क्या भूमिका होनी चाहिए।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
1. प्रदूषण उन्मूलन संबंधी प्रभावशाली नारे एक चार्ट पर लिखकर कक्षा की दीवार पर लगाइए।
2. तख्तियाँ बनाकर उन पर सुंदर लिखावट के साथ प्रदूषण- उन्मूलन संबंधी प्रभावशाली नारे लिखें और जब भी स्कूल की ओर से प्रदूषण- उन्मूलन रैली का आयोजन हो तो इन नारों से समाज को प्रदूषण से मुक्ति के लिए जाग्रत करें।
3. इस एकांकी को स्कूल में उचित अवसर पर मंचित करें।
4. अपने जन्मदिन के अवसर पर एक गमले में बढ़िया-सा पौधा लगाकर उसे स्कूल को भेंट करें। 5. अखबारों, मैगज़ीनों, इंटरनेट आदि से प्रदूषण के भयंकर परिणामों से संबंधित चित्र इकट्ठे करके उनका कोलाज बनाइए।
6. ‘वैज्ञानिक प्रगति ही प्रदूषण का मुख्य कारण हैं’-
इस विषय पर स्कूल में वाद-विवाद आयोजित कीजिए।
(नोट: कक्षा में सभी विद्यार्थियों को इस विषय के पक्ष या विपक्ष में बोलने के लिए 2 मिनट का समय दिया जाए)
7. अपने विज्ञान अध्यापक की मदद से विज्ञान प्रयोगशाला में जाकर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को समझें।
8. पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने हेतु पॉलिथीन का प्रयोग बंद करें, कागज़ का प्रयोग कम करें और रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा दें क्योंकि जितनी अधिक खराब सामग्री रिसाइकिल होगी, उतना ही पृथ्वी का कूड़ा कचरा भी कम होगा।
9. स्कूल में आयोजित होने वाले विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) तथा विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) में सक्रिय रूप से भाग लें और पर्यावरण स्वच्छता व सुरक्षा संबंधी ज्ञान प्राप्त करें।
10. यदि आप देखें कि किसी फैक्टरी / कारखाने द्वारा किसी भी तरह का प्रदूषण फैलाया जा रहा है तो अपने बड़ों / अध्यापकों आदि की मदद से प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ संबंधित विभाग में शिकायत करें।
11. विश्व जल दिवस, विश्व पृथ्वी दिवस, विश्व पर्यावरण दिवस, विश्व ओजोन दिवस आदि अवसरों पर लेख, नाटक, कविता, निबंध, नारे लेखन, भाषण आदि प्रतियोगिताओं में भाग लें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
1. खर – रावण का सौतेला भाई जिसे भगवान राम ने मार गिराया था।
2. दूषण – रावण की सेना का नायक जिसे भगवान राम ने मार गिराया था।
3. त्रेता – हिन्दू मान्यतानुसार चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग तथा कलियुग) में से दूसरा युग।
4. प्रकाश संश्लेषण – सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगों जैसे पत्तियों द्वारा सूर्य के प्रकाश की मौजूदगी में हवा से कार्बन डाइऑक्साइड तथा पृथ्वी से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा ऑक्सीजन गैस बाहर निकालते हैं।
5. कार्बन डाइऑक्साइड – यह एक रासायनिक यौगिक है जिसका निर्माण ऑक्सीजन के दो परमाणु तथा कार्बन के एक परमाणु से मिलकर हुआ है। पृथ्वी के सभी जीव अपनी श्वसन क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ते हैं।
6. ऑक्सीजन – यह रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। जीवित प्राणियों के लिए यह गैस अति आवश्यक है। इसे वे श्वसन द्वारा ग्रहण करते हैं।
7. सीसा – सीसा एक धातु एवं तत्त्व है। आयुर्वेद में इसका भस्म कई रोगों में दिया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग इमारतें बनाने, बंदूक की गोलियाँ तथा वज़न आदि बनाने में भी होता है।
यह भी जानें कि पेट्रोल और पेंट (रंग) को सक्षम बनाने के लिए जब सीसा का ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग होता है तो इसका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
8. रेडियोधर्मिता – किसी पदार्थ के परमाणु में से अपने आप विकिरणों के कणों का निकलना रेडियोधर्मिता कहलाता है। रेडियम, यूरेनियम तथा थोरियम रेडियोधर्मी पदार्थ हैं। विकिरणों से त्वचा का कैंसर व अन्य रोगाणुजनक रोग हो सकते हैं।
9. ओजोन परत – पृथ्वी की सतह से 30 किलोमीटर की ऊँचाई पर ओज़ोन की परत है। यह ऊँचाई के साथ-साथ मोटी होती जाती है। यह समतल मंडल में 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर सबसे अधिक मोटी है। यह परत पराबैंगनी किरणों को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकने के लिए फिल्टर के रूप में कार्य करती है। इसके न होने अथवा नष्ट होने से हानिकारक पराबैंगनी किरणों द्वारा लोगों में त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ जायेगा।
10. महत्त्वपूर्ण दिवस
विश्व जल दिवस 22 मार्च
विश्व स्वास्थ्य दिवस 07 अप्रैल
विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल
विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून
विश्व ओजोन दिवस 16 सितम्बर
विश्व प्रकृति दिवस 03 अक्टूबर