संकेत बिंदु – (1) इतिहास में 26 जनवरी का महत्त्व (2) गणतंत्र दिवस के रूप में मनाना (3) राज्यों सरकारों द्वारा अनेक कार्यक्रम (4) सांस्कृतिक झाँकियाँ, बहुरंगी पोशाकें (5) उपसंहार।
भारत के राष्ट्रीय पर्वों में 26 जनवरी का विशेष महत्त्व है। यह तिथि प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी लोकतंत्रात्मक सत्ता का भान कराकर चली जाती है। यह दिवस हमारा अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व बन गया है।
भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम का इतिहास बहुत लंबा है। 26 जनवरी का दिन इस संघर्ष में नया मोड़ देने वाला बिन्दु है। सन् 1929 तक स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानी औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग कर रहे थे, किंतु जब अंग्रेज किसी भी तरह इसके लिए तैयार नहीं हुए, तब अखिल भारतीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए 1929 को लाहौर के समीप रावी नदी के तट पर घोषणा की यदि ब्रिटिश सरकार औपनिवेशिक स्वराज्य देना चाहें, तो 31 दिसंबर, 1929 से लागू होने की स्पष्ट घोषणा करे, अन्यथा 1 जनवरी, 1930 से हमारी माँग पूर्ण स्वाधीनता होगी। इस घोषणा के बाद 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस द्वारा तैयार किया हुआ प्रतिज्ञा पत्र पढ़ा गया। इसमें सविनय अवज्ञा और करबंदी की बात कही गई।
इसी पूर्ण स्वतंत्रता के समर्थन में 26 जनवरी, 1930 को सारे देश में तिरंगे (राष्ट्रीय) ध्वज के नीचे जलूस निकाले गए। सभाएँ की गईं। प्रस्ताव पास करके प्रतिज्ञाएँ की गई कि जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र न हो जाएँगे, तब तक हमारा स्वतंत्रता युद्ध चलता रहेगा। लाठियों, डंडों, तोपों, बंदूकों और पिस्तौलों से सजी हुई फौज और पुलिस से घिरे हुए भी हमने प्रतिवर्ष इस दिवस को अपनी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रतिज्ञा दोहराते हुए मनाया।
अब स्वतंत्रता दिवस का महत्त्व 15 अगस्त को प्राप्त हो गया, किंतु 26 जनवरी फिर भी अपना महत्त्व रखती है। भारतीयों ने इसके गौरव को स्थिर रखने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गण्यमान्य नेताओं द्वारा निर्मित विधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया। इस दिन भारत में प्रजातांत्रिक शासन की घोषणा की गई। भारतीय संविधान में देश के समस्त नागरिकों को समान अधिकार दिए गए। भारत को गणराज्य घोषित किया गया। इसलिए 26 जनवरी को ‘गणतंत्र दिवस’ कहा जाता है।
भारत-राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में यह समारोह विशेष उत्साह से मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या को राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हैं। यह कार्यक्रम दूरदर्शन पर देखा तथा आकाशवाणी से सुना जा सकता है।
गणतंत्र दिवस का प्रातः कालीन कार्यक्रम आरंभ होता है, ‘शहीद ज्योति’ के अभिवादन से। प्रधानमंत्री प्रातः ही ‘इंडिया गेट’ पर प्रज्वलित ‘शहीद ज्योति’ जाकर उसका अभिनंदन करके राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
कुछ ही क्षण पश्चात् राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी चलती हैं। छह घोड़ों की बग्घी पर यह सवारी दर्शनीय होती है। इस शाही बग्घी पर राष्ट्रपति अपने अंगरक्षकों सहित जलूम के रूप में विजय चौक तक आते हैं। सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति बग्घी में नहीं, कार में पधारते हैं। परंपरानुसार किसी एक अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।
इसके बाद आरंभ होती है गणतंत्र दिवस की परेड। परेड का प्रारंभ सेना के तीनों अंगों के सैनिक करते हैं। बैंड की धुन पर अपने-अपने शानदार गणवेश में सैनिकों का पथ संचलन देखते ही बनता है। ऊँटों, घोड़ों तथा हाथियों पर सवार दस्तों के वाहनों की टापों की एकरूपता मनमोहक होती है।
अब भारत की विविधता में एकता प्रदर्शित करती हुई आती हैं विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झाँकियाँ, तत्पश्चात् लोकनर्तक मंडलियाँ। राज्यों की ये झाँकियाँ दर्शनीय होती हैं। ये अपने राज्य की किसी विशिष्टता का प्रतीक होती हैं। लोक-नर्तक मंडलियों में लोक- नृत्य के साथ उस राज्य की वेशभूषा का सौंदर्य दर्शनीय होता है।
युवा एवं बाल छात्र – छात्राओं की बहुरंगी पोशाकों वाली टोलियाँ परेड का विशेष आकर्षण होती हैं। एन.सी.सी. के कैडिटों का मार्च पास्ट, रंगीन पताकाओं को फहराती, बैंड बजाती एवं लेझिम, डंबल आदि की ड्रिल करती स्कूलों की बाल- टोलियाँ हृदय को गुद्गुदा देती हैं। लाखों दर्शक ताली बजाकर उनका स्वागत करते हैं।
सबसे अंत में वायुसेना के जहाज रंगीन गैस छोड़ते हुए विजय चौक के ऊपर से गुजरते हैं। जहाजों की आवाज सुनकर दर्शकों का ध्यान उड़ते हुए जहाजों की ओर बरबस खिच जाता है। विजय चौक से लेकर लालकिले तक अपार जन समूह इस कार्यक्रम को देखने के लिए जनवरी की शीत में भी सूर्योदय से पहले ही इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। विजय चौक पर जहाँ राष्ट्रपति सैनिकों की सलामी लेते हैं, बच्चों, युवकों तथा वृद्ध नर-नारियों की अपार भीड़ होती है। सायंकाल सरकारी भवनों पर बिजली की जगमगाहट होती है। रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। सांसदों, राजनीतिज्ञों, राजदूतों तथा गण्यमान्य व्यक्तियों को राष्ट्रपति भोज देते हैं।
भारत के विविध क्षेत्रों के विशिष्ट जनों को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण तथा भारत- रत्न की उपाधियों से विभूषित किया जाता है। वीरता तथा पराक्रम दिखाने वाले वीर सैनिकों को इस अवसर पर सम्मानित तथा अलंकृत किया जाता है। साहसी तथा विशिष्ट शौर्य प्रदर्शन करने वाले पुलिस जनों को भी विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया जाता है। यह सम्मान तथा अलंकरण लोगों में उत्साह उत्पन्न करता है। देशहित और अधिक निष्ठा व्यक्त करने की प्रेरणा जागृत करता है।