Lets see Essays

 बाल-दिवस : 14 नवंबर पर एक शानदार निबंध और भाषण

baal divas children day par ek hindi bhashan aur nibandh

संकेत बिंदु – (1) राष्ट्र की आत्मा (2) नेहरू जी का जन्म दिन और बाल दिवस के रूप (3) बाल-दिवस का विकृत रूप (4) पुरस्कार घोषणा का दिन (5) उपसंहार।

बाल-दिवस की मूल भावना है बाल कल्याण। बालकों के मानसिक और शारीरिक विकास की योजनाएँ बनाकर उनको कार्यान्वित करना इसका उद्देश्य है। कल्याण- संस्थाओं, सामाजिक संगठनों, केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों का बाल कल्याण की ओर ध्यान दिलाने, स्मरण कराने का पुनीत दिन है। बालकों को अपने कर्तव्य और अधिकारों के प्रति सचेष्ट करना इसका ध्येय है।

बाल-दिवस आता है 14 नवंबर को। 14 नवंबर वर्तमान भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन है। पंडित नेहरू अपने जन्म दिन पर कुछ मिनट के लिए राजनीति की उलझनों, षड्यंत्रों तथा विवादों से दूर रहकर बच्चों की मुस्कराहट में खो जाना चाहते थे। वे भाव-विभोर हो, आत्मविस्मरण करके स्वयं बच्चे बन जाते थे। बच्चे उन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहने लगे। चाचा-भतीजे का यह प्यारा रिश्ता बाल दिवस का जनक बना। चाचा नेहरू का जन्म-दिन बालकों को समर्पित हो गया और ‘बाल दिवस’ कहलाने लगा।

भारत में बाल-दिवस चार रूपों में प्रचलित हुआ –

(1) शिक्षक के रूप में।

(2) मनोरंजन के रूप में

(3) वीर बालकों के सम्मान रूप में तथा

(4) उपदेशात्मक रूप में।

बाल-दिवस के दिन स्कूलों में शिक्षक नहीं पढ़ाते। पढ़ाने का कार्य भी विद्यार्थी ही करते हैं। वे इस दिन के ‘टीचर’ भी होते हैं। विद्यार्थियों को ‘टीचर’ बनाने का उद्देश्य बच्चों में गुरुत्व भावना को भरना है, अपने दायित्वों का ज्ञान करवाना है।

मनोरंजन के लिए स्कूलों में, स्टेडियमों में, विभिन्न स्थलों पर बालकों की सामूहिक ड्रिल, लोक-नृत्य, संगीत, पथ संचलन, एकांकी अभिनय, वेश-भूषा की विविधता प्रदर्शित करते हुए फैशन शो आदि कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने लगे। दिल्ली का नेशनल स्टेडियम इसका प्रमाण है। यहाँ दिल्ली के स्कूलों के चुने हुए बच्चे आते हैं और अपना रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। रंगारंग कार्यक्रम की सुंदरता देखकर प्रधानमंत्री मुस्कराकर, बच्चों को उपदेश देकर चले जाते हैं। व्यवस्थापक अपनी सफलता की दाद देते हैं।

बाल-दिवस का तीसरा रूप है पुरस्कारों की घोषणा का। इस दिन वीरतापूर्ण साहसिक कार्य करने वाले बच्चों के नामों की घोषणा की जाती है। यह चयन भारत के संपूर्ण प्रांतों और केंद्रशासित प्रदेशों से किया जाता है। प्रायः 10-12-14 वर्ष के बच्चे इस श्रेणी में आते हैं। उनके चित्रों के साथ उनके साहस की गाथाएँ अखबारों में छापी जाती हैं, ताकि शेष भारतीय बच्चे उनसे प्रेरणा लें, साहस का वरण करें और वीर – जीवन को अंगीकार करें।

बाल-दिवस का चौथा रूप है उपदेशात्मकता का भाषण और बिन माँगे उपदेश दिए बिना भारत के राजनीतिक चेहरे पर मुस्कराहट आ ही नहीं सकती। राजनेता बच्चों को उपदेश देते हैं। इसी का रूपांतर स्कूलों में होता है। वहाँ प्रधानाध्यापक तथा वरिष्ठ शिक्षक बाल-दिवस की घुट्टी पिलाते हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाएँ नेताओं के लेख छापते हैं। एक ओर बच्चों को शुद्ध और पवित्र आत्मा का रूप समझा जाता है और दूसरी और उनके सामने राजनीति प्रेरित ज्ञान का आख्यान किया जाता है।

पुरस्कार घोषणा बाल दिवस का श्रेष्ठ और उत्साहवर्धक कार्यक्रम हैं। इसमें सुधार और विकास की आवश्यकता है। प्रत्येक प्रांत से कम-से-कम दो बच्चों को और केंद्र प्रशासित प्रदेशों से एक-एक बच्चे को लेना चाहिए। दूसरे, 14 नवंबर को ही उनका सामूहिक अभिनंदन करना चाहिए। इस अभिनंदन कार्यक्रम में शिक्षकों के अतिरिक्त स्कूली बच्चों को भी प्रवेश मिलना चाहिए। पंडाल में वीर बच्चों के बड़े-बड़े चित्र होने चाहिए, जिनके नीचे उनके शौर्यपूर्ण कार्य का विवरण अंकित हो।

बाल-दिवस बालकों में स्वस्थ प्रतियोगिता दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। सप्ताह पूर्व खेल – कूद प्रतिस्पर्धा, वाद-विवाद गोष्ठियाँ, अंत्याक्षरी, नृत्य-संगीत, निबंध, चित्रकला प्रतियोगिताएँ करके विजयी बालक-बालिकाओं को बाल-दिवस पर सम्मानित और पुरस्कृत करना चाहिए।

बाल-दिवस पर गरीब बालकों को स्कूली गणवेश, पुस्तकें तथा लेखन सामग्री भेंट करनी चाहिए। शुद्ध तथा स्वास्थ्यप्रद सामूहिक भोजन का आयोजन होना चाहिए। प्रत्येक सिनेमाघर में बिना शुल्क एक-एक बाल-फिल्म दिखाई जानी चाहिए, जिसमें केवल बच्चों के लिए प्रवेश हो। दूरदर्शन तथा आकाशवाणी पर बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने चाहिए।

बाल-दिवस के कार्यक्रमों से राजनीतिज्ञों को दूर रखना चाहिए। उनकी छाया से भी बच्चों को बचाना चाहिए। शिक्षाविदों, साहित्यकारों तथा पत्रकारों की उपस्थिति, अध्यक्षता, पुरस्कार वितरण तथा प्रवचन बाल-दिवस को उद्देश्यपूर्ण बनाने में अधिक सहायक होंगे।

इन कार्यक्रमों तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन नगर स्तर पर हो तथा सभी नगरों में विजेता बालकों तथा टीमों को पुरस्कृत किया जाए।

बाल-दिवस राष्ट्र के भविष्य के कर्णधारों में सद्गुणों के बीज बोने का दिन है। सुशिक्षा, प्रेम, निश्छल व्यवहार के जल सिंचन से यह बीज अंकुरित होंगे, पुष्पित होंगे, और उनकी सुगंधित सुवास से राष्ट्र उल्लसित हो सकेगा।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page