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मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस

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संकेत बिंदु – (1) मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस (2) जीवन प्रेरक और धर्म ज्ञान की प्रदाता (3) मर्यादा पुरुषोत्तम की परिकल्पना (4) सामाजिक और पारिवारिक ग्रंथ (5) विश्व वंदनीय ग्रंथ।

हमारी पाठ्य पुस्तक में रामचरितमानस की कुछ चौपाइयाँ हैं। उनमें अच्छे मित्र के गुणों का वर्णन किया गया है। वे चौपाइयाँ मुझे बहुत अच्छी लगीं। हमारे अध्यापक महोदय ने बताया कि रामचरितमानस बहुत श्रेष्ठ ग्रंथ है। उसमें इसी तरह की अच्छी-अच्छी सैकड़ों चौपाइयाँ और दोहे हैं। मैंने मन में निश्चय किया कि संपूर्ण रामचरितमानस को अवश्य पढूँगा।

अवसर मिलने पर मैंने रामचरितमानस का अध्ययन किया और आज वह मेरी प्रिय पुस्तक है। ‘स्वान्तः सुखाय’ लिखी गई तुलसी की यह रचना न केवल बहुजन हितकारी है, अपितु सर्वजनहित के आदर्श को प्रतिपादित करती है। हिंदुओं का यह धर्म-ग्रंथ है। साहित्यिक दृष्टि से हिंदी का श्रेष्ठ महाकाव्य है।

चार सौ वर्ष से भी पूर्व लिखी गई यह पुस्तक जन-जन का कंठहार, जीवन की प्रेरक, धर्म- ज्ञान की प्रदाता और कर्तव्य-बोध करने वाली है। रंक से लेकर राजा तक के घर में इस ग्रंथ रत्न का समान आदर है। इतना ही नहीं, यह ग्रंथ विदेशों में हिंदी के प्रचार और प्रचार का माध्यम है। जहाँ जहाँ हिंदू गया, वहाँ वहाँ मानस उसके साथ गया। मॉरिशस में रामचरितमानस के कारण हिंदी जन्मी, विकसित हुई।

मानस अवधी भाषा में लिखा गया ग्रंथ है। इसमें अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र का जीवन चरित्र दोहा चौपाइयों में वर्णित है। राम के जन्म से लेकर सिंहासनारूढ़ होने तक की संपूर्ण कथा मानस में सात काण्डों (अध्यायों) में विभक्त हैं। इनके नाम हैं: बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड।

तुलसीदास ने एक ऐसे सामंत या शक्तिशाली पुरुषोत्तम की परिकल्पना की जो सम्राटों का सम्राट हो, जिसे सोने की लंका तक न ललचा पाए, बहुपत्नी की जगह एक पत्नीव्रत में विश्वास करता हो, प्रजा पालक हो-यहाँ तक कि एक सामान्य धोबी द्वारा लांछन लगाने पर अपनी एकमात्र पत्नी को त्याग दे। न राग, न रोष, न मान, न मद जिसके गुण हों। जिसमें उपेक्षित वनजातियों तक को साथ लेकर चलने का अदम्य सामर्थ्य हो। पिता (बालि) का वध कर देने पर भी उसके पुत्र को अपना दूत और सेनापति बनाने का साहस हो। स्त्री की गरिमा को महत्त्व देता हो, चाहे शबरी हो या तारा; कैकेयी हो या कौशल्या। जो मानव की तरह दुखी और सुखी होता हो, परंतु अपनी प्रज्ञा से काम लेता हो। अकबर जैसे सम्राट् के मुकाबले किसी ऐसे ही सर्वशक्तिमान् सामंत को स्थापित करके आस्था को आधार देने के उद्देश्य से राम की स्थापना की गई थी।

– गिरिराज किशोर (नवभारत टाइम्स: 6.1.93)

स्वयं तुलसीदास ने रामचरित मानस के संबंध में मानस के अंत में लिखा है-

पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञान भक्ति प्रदं

मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्

श्री मद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्या वगाहन्ति ये।

ते संसार पतंग घोर किरणैर्दह्यन्ति नो मानवा:॥

यह रामचरितमानस पुण्य रूप; पापों का हरण करने वाला; सदा कल्याणकारी; विज्ञान और भक्ति को देने वाला; माया, मोह और मल का नाश करने वाला परम निर्मल प्रेम रूपी जल से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसार रूपी सूर्य की प्रचंड किरणों से नहीं जलते।

श्री युगेश्वर का कहना है, ‘मानस एक ऐसा वाग्द्वार है, जहाँ से समस्त भारतीय साधना और ज्ञान- परंपरा प्रत्यक्ष दीख पड़ती है। दूसरी ओर, इसमें देशकाल से परेशान, दुखी और टूटे मनों को सहारा तथा संदेश देने की अद्भुत क्षमता है। आज भी यह करोड़ों मनों का सहारा है।’ (तुलसीदास : आज के संदर्भ में)

चंद्रबली पांडेय मानस को विश्व का विशिष्ट ग्रंथ मानते हुए लिखते हैं, ‘यह विश्व का एक विशिष्ट महाकाव्य है। वस्तुतः जीवन की उलझन का वह एक अत्यंत सुलझा हुआ ग्रंथ है।’ (तुलसीदास पृष्ठ 87)

मानस आचार और धर्म की शिक्षा एक साथ देने वाला सामाजिक और पारिवारिक प्रवृतियों का ग्रंथ है। जैसे- राजा दशरथ ने तीन विवाह किए, रानियों में सौतियाडाह उत्पन्न हुआ। राम का वन-गमन, भरत का नंदी ग्राम में तपस्या करना आदि सौतियाडाह के ही परिणाम थे। इतना ही नहीं पिता-पुत्र में, भाई-भाई में, सास-बहू में, गुरु-शिष्य में, स्वामी- सेवक में, राजा और प्रजा में कैसा व्यवहार होना चाहिए, यह शिक्षा हमें मानस से ही मिलती है। मानस के विभिन्न प्रवृत्तियों वाले पात्रों – राजा दशरथ, पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न; माताएँ कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी; पत्नी सीता; गुरु वशिष्ठ; सेवक सुमंत; मित्र हनुमान् और विभीषण आदि ने हमें गृहस्थ धर्म की मर्यादा का ही पाठ पढ़ाया है।

भगवान राम शील- शक्ति और सौंदर्य के प्रतीक हैं। उन्हें जो देखता है, उन्हीं का हो जाता है। शीलवान् वे इतने हैं कि वे सब पर अकारण ही कृपा करते हैं। वे दुष्टों और आततायी राक्षसों का विनाश कर सकते हैं। राक्षसराज रावण जैसे महाबली शत्रु से लड़ने के लिए वानरों का संगठन कर, उनके नेताओं का सहयोग प्राप्त कर, समुद्र पर पुल बाँध कर लंका में प्रवेश करना और भाई-भाई की फूट से लाभ उठाकर लंका विजय करना, राम के जीवन की महानता का द्योतक है। शत्रु पर विजय प्राप्त करने का अद्वितीय उदाहरण इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी का मानस आज घर-घर में पूज्य है। वह धर्म- ग्रंथ है। अनेक विदेशी भाषाओं में मानस का अनुवाद को चुका है। भारत की ही भाँति विदेशों में भी राम के पावन चरित्र की गाथा रामलीला के रूप में प्रदर्शित की जाती है।

ऐसा पवित्र ग्रंथ, जो सकल विश्व में पूज्य है, वंदनीय है, मेरी भी प्रिय पुस्तक है। मैं इसका दैनिक पाठ करता हूँ। जीवन की कठिनाइयों को मानस के माध्यम से हल करता हूँ। मानस के पात्रों से सद्गुणों की शिक्षा ग्रहण कर इस मानस जीवन को सफल करने की चेष्टा करता हूँ।

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