संकेत बिंदु – (1) मेरे प्रिय नेता अटल जी (2) हिंदी के उपासक और समर्पित समाजसेवी (3) जन्म, शिक्षा और सामाजिक व राजनैतिक जीवन (4) पुरस्कार और सम्मान (5) सांसद और प्रधानमंत्री के रूप में।
निर्विवाद श्रेष्ठ, अत्यंत प्रामाणिक, चुंबकीय व्यक्तित्व के स्वामी; वरदायिनी हंसवाहिनी माँ शारदा के वरद पुत्र संवेदनशील कवि, विचारवान् लेखक, जागरूक पत्रकार, कुशल, ओजस्वी और प्रभावी वक्ता; वाणी में सम्मोहन की क्षमता; सर्वधर्म समभाव के उपासक; कूटनीति के पंडित; राजनैतिक नेतृत्व के शिखर पुरुष हैं मेरे प्रिय नेता श्री अटलबिहारी वाजपेयी।
अटलजी जन-जन के प्रिय हैं। विचारधारा के कट्टर विरोधियों में भी चहेते हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री सर्वश्री चंद्रशेखर तथा नरसिंहराव उन्हें अपना ‘गुरु’ मानते हैं। भूतपूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल तथा वर्तमान संचार मंत्री तथा दलित नेता श्रीरामविलास पासवान उनके भाषणों के दीवाने हैं। विज्ञापन जगत् की प्रमुख व्यक्तित्व तारा सिन्हा उनकी प्रशंसक है।
वाजपेयी वक्तृत्व कला के धनी हैं। उन्हें वीणापाणी भगवती सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त है। शब्दों का चयन और उनका सधा हुआ तथा प्रभावी प्रयोग, उपमाओं, मुहावरों, सूक्तियों के नग, किसी भी दृश्य का शब्द-चित्र प्रस्तुत करने का कौशल, वाक्यों के मध्य प्रभावपूर्ण तरीके से रुकना, करारे कटाक्ष, श्रोताओं का ‘मूड’ भाँप लेने की क्षमता, हास्य के बीच अपनी विशिष्ट व्यंग्य- शैली में बारीक से बारीक बातों को अप्रतिम प्रतिभा के कारण सहज ढंग से व्यक्त कर देने की चतुराई श्रोताओं का मन मोह लेती हैं।
वाजपेयी हिंदी – भारती के उपासक हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में तीन बार (4-10-77, 24-9-98 तथा सितंबर 2000) हिंदी में उनके भाषण, उनकी इस उपासना के ज्वलंत उदाहरण हैं। भावपूर्ण कविताओं, विचारप्रधान गद्य-ग्रंथों तथा दैनिक साप्ताहिक पत्रों के संपादन द्वारा वीणावादिनी के चरणों में उन्होंने अनेक सुगंधित पुष्प भेंट किए हैं। वे एक- साथ छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार, सशक्त गद्यकार तथा व्यंग्यकार हैं।
वाजपेयी समर्पित समाज सेवक हैं। भारत माता के सच्चे पुजारी हैं। 1942 की अगस्त क्रांति में जेल गए। ‘आर्य कुमार सभा’ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। समाज सेवा के लिए संघ में वे ऐसे जमे कि जीवन ही संघ को समर्पित कर दिया। विवाह नहीं किया, प्रचारक बन गए। राजनीति में कूदे तो विशुद्ध भारतीय राजनीतिक संस्था जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के प्रारंभकर्ता तथा अध्यक्ष रहे। कांग्रेस- युग में अनेक बार जेल काटी, कारावासीय यातानाएँ भोगीं, पर झुके नहीं। ‘न दैन्यं न पलायनम्’, यह उसका आदर्श वाक्य है।
श्री अटलबिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 (सार्टीफिकेट के अनुसार 1926) को शिन्दे की छावनी (म. प्र.) में हुआ। पिता थे श्रीकृष्णबिहारी वाजपेयी, माता थीं श्रीमती कृष्णा देवी। पिता श्री कृष्णबिहारी अध्यापक थे और थे ग्वालियर के प्रख्यात कवि।
अटल जी ने बी. ए. विक्टोरिया कॉलिज (अब लक्ष्मीबाई कॉलिज), ग्वालियर से किया। राजनीति शास्त्र में एम. ए. कानपुर के डी. ए. वी. कॉलिज से किया। एल एल. बी. की पढ़ाई बीच में छोड़कर संघ कार्य में जुट गए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से ‘युगधर्म’, ‘पांचजन्य’ का प्रकाशन लखनऊ से आरंभ हुआ तो अटल जी उसके संपादक नियुक्त हुए। यहीं से अटल जी ने ‘स्वदेश दैनिक’ का संपादन प्रारंभ किया। लखनऊ से दिल्ली आने पर ‘वीर अर्जुन’ दैनिक और साप्ताहिक का संपादन भार वहन किया।
‘गाँधी हत्या कांड’ में संघ को राजनीतिक सहयोग की आवश्यकता पड़ी, जो नहीं मिला। परिणामत: डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ‘जनसंघ’ का गठन हुआ। अटल जी जनसंघ के प्रारंभिक संगठनकर्ताओं में थे। बाद में वे जनसंघ के अध्यक्ष बने। आपत्काल के पश्चात् संगठित विपक्ष ने जिस राजनीतिक दल को जन्म दिया, उस ‘जनता पार्टी’ के अटल जी कर्णधार रहे। जनता पार्टी के शासनकाल में वे विदेश मंत्री बने। श्री ‘राजनारायण’ की कृपा से जब ‘जनता पार्टी’ टूटी तो पूर्व जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने ‘भारतीय जनता पार्टी’ बनाई। 06.04.1980 को श्री अटलबिहारी वाजपेयी इसके प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। अपने रक्त से सींचकर इस पार्टी को वटवृक्ष बनाया। यह उन्हीं के नेतृत्व का चमत्कार हैं कि आज भारत में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का राज्य है।
उनके राजनीतिक लेखों के संग्रह हैं – संसद में चार दशक, राजनीति की रपटीली राहें, सुवासित पुष्प, शक्ति से शांति तथा समर्पण।
28 सितंबर 1992 को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने इन्हें ‘हिंदी गौरव’ के सम्मान से सम्मानित किया। 25 जनवरी 1992 को भारत सरकार ने ‘पद्म विभूषण’ अलंकरण से सम्मानित किया। 20 अप्रैल 1993 को कानपुर विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की मानद उपाधि प्रदान की। 17 अगस्त 1994 को सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान ‘गोविंदवल्लभ पंत पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। नवंबर 1998 में उन्हें वर्ष का ‘सर्वश्रेष्ठ ईमानदार’ व्यक्ति के नाते सम्मानित किया गया।
उनके अंतर्मन की व्यथा को प्रकट करती उनकी एक काव्य पंक्ति देखिए-
हर 25 दिसंबर को / जीने की नई सीढ़ी चढ़ता हूँ।
नए मोड़ पर औरों से कम / स्वयं से ज्यादा लड़ता हूँ।
जनता के भवितव्य का कितना सटीक चित्र प्रस्तुत किया है-
हर पंचायत में
पंचाली / अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज / महाभारत होना है।
कोई राजा बने / रंक को तो रोना है।
सन् 1956 में वे पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद 1967 से 1984 तक तथा 1991 के पश्चात् अब तक लोकसभा के सदस्य चुने जाते रहे। सन् 1962 से 67 तक और 1986 से 91 तक राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। वे संसद में विपक्ष के नेता रहे।
11वीं लोकसभा में वे लखनऊ से सांसद के रूप में विजयी हुए और 16-5-1996 को वे भारतीय लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने। संसद का विश्वास मत प्राप्त न कर पाने के कारण 28 मई 1996 को उन्होंने स्वयं त्यागपत्र दे दिया।
बारहवीं लोकसभा में वे पुनः लखनऊ से सांसद चुने गए और सहयोगी पार्टियों के सहयोग में 19 मार्च 1998 को भारत महान के प्रधानमंत्री बने। उनके ही शब्दों में, ‘भारतीय लोकतंत्र के कुछ सबसे बुरे दौर में से एक में राष्ट्र का नेतृत्व कर रहा हूँ।’ प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनकी नम्रता उनके ही शब्दों में आर्द्र कर देती है-
मेरे प्रभु / मुझे इतना ऊँचाई कभी मत देना।
गैरों को गले न लगा सकूँ
इतना रुखाई / कभी मत देना।
राजनीति के चतुर चाणक्य अटल ने राजनीति पर ऐसा जादुई करिश्मा किया कि देश 22 विपक्षी दल अटल जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार हो गए। परिणामत: भाजपा समर्थित राष्ट्रीय जनतांत्रिक संगठन 13वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में पूर्ण बहुमत से विजयी हुआ। लगभग 300 सीटें उसे मिलीं। 13 अक्तूबर 1999 को तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र नौका के कर्णधार बने थे। कई वर्षों तक राजनीति में सक्रिय भूमिका अदा करने के बाद इनकी सेहत में समस्याएँ आने लगीं और 16 अगस्त 2018 को इस दुनिया को छोडकर बैकुंठ चले गए।