जयनाथ नलिन
पंजाब के जिन यशस्वी रचनाकारों की साहित्य साधना से पंजाब का नाम अखिल भारतीय स्तर पर समादृत हुआ, उनमें डॉ. जयनाथ नलिन का नाम विशिष्ट है। इनकी प्रतिभा बहुमुखी है। कविता, कहानी, निबंध, समीक्षा, एकांकी आदि अनेक विधाओं में इन्होंने लिखा है और क्या खूब लिखा है! एकांकीकार के रूप में तो इनकी प्रतिभा खूब ही खिली है। इनके दर्जनों एकांकी आकाशवाणी से प्रसारित हो चुके हैं। दिल्ली रेडियो स्टेशन से प्रसारित इनके ‘नवाबी सनक’ एकांकी को तो वर्षभर का सर्वोत्कृष्ट ब्रॉडकास्ट माना गया था। अभिनेयता’ इनके एकांकियों का सर्वाधिक प्रशंसनीय तत्त्व। सोने की हथकड़ी, साई बाबा का कमाल, फटा तिमिर उगी किरण आदि इनके चर्चित एकांकी हैं। इनके प्रमुख एकांकी संग्रह हैं-नवाबी सनक, हाथी के दाँत, अवसान, धराशायी, शिखर।
पाठ-परिचय
नलिन जी के प्रसिद्ध एकांकी ‘देश के दुश्मन’ में डी. एस. पी. जयदेव के माध्यम से एकांकीकार ने हमारी रक्षा सेनाओं की कर्त्तव्यपरायणता, वीरता, निःस्वार्थ भावना, त्याग, बलिदान वृत्ति आदि का चित्रण किया है। केवल ये सेनानी ही नहीं, इनके परिवारजन भी इन्हीं उदात्त भावनाओं से लबालब भरे होते हैं। इन्हीं महान लोगों के कारण भारतवर्ष अपने दुश्मनों को धराशायी कर आज भी गर्व से झूम रहा है। इस एकांकी के माध्यम से नलिन जी ने ऐसे ही तेजस्वी लोगों का अभिनंदन किया है।
देश के दुश्मन (पात्र-परिचय)
सुमित्रा :
मीना और जयदेव की माँ! आयु लगभग 50 वर्ष बाल काले सफेद रंग गेहुँआ सांवला। मुख पर दुख और निराशा की झलक सफेद रंग का कोहनी तक की बाहों वाला ब्लाऊज सफेद साड़ी और पैरों में चप्पल हाथ पैर कान सभी आभूषण विहीन। लंबा पतला शरीर।
मीना :
सुमित्रा की लड़की तथा जयदेव की छोटी बहन। आयु लगभग 20-21 वर्ष। अर्थशास्त्र की एम. ए. भाग दो की छात्रा। लंबी पतली, रंग गोरा, आँखों में प्रतिभा की ज्योति, मुस्कराता आनन। काले लंबे बाल। सिर के बीचों-बीच माँग और एक वेणी कमीज़ सलवार कलाई में घड़ी। पैरों में काले सैंडल।
नीलम :
मीना की भाभी। जयदेव की पत्नी आयु 23-24 वर्ष सुंदर, हँसमुख, मधुर भाषी। आनन पर गुलाबी आभा। विशाल नेत्र, घुंघराले बाल, दो वेणियाँ, माँग में सिंदूर और माथे पर कुंकुम का गोल टीका। गले में सोने की पतली सी चेन और हाथों में सोने की दो-दो चूड़ियाँ। हरे गुलाबी बड़े बड़े फूलों वाली छींट की कमीज़ – सलवार पैरों में रंगीन चप्पल हाथ-पैरों के नाखून गुलाबी रंग से रंजित।
चाचा :
जयदेव के स्वर्गीय पिता का बचपन का मित्र। आयु 52-53 वर्ष बाल काफी सफेद चेहरे पर हल्की पतली झुर्रियाँ नंगा सिर। सफेद पाजामा कुर्ता पैरों में मुंडा जूता। आंखों पर चश्मा। कद 5 फीट 5 इंच। शरीर भरा-भरा।
जयदेव :
मीना का बड़ा भाई, नीलम का पति, सुमित्रा का एक मात्र पुत्र अमृतसर के पास बागाह बार्डर पर डी. एस. पी. के पद पर नियुक्त। गठीला, स्वस्थ, गोरा, लंबा शरीर। बड़े-बड़े तेजस्वी नेत्र, ऊँचा मस्तक, विशाल वक्षस्थल, काले सघन बाल न बहुत लंबे, न छोटे। काली लंबी भंवे। तनी हुई काली सघन मूंछें घर आने पर एक सभ्य कुलीन नागरिक के समान पतलून बुश-शर्ट, काला चमचमाता बूट। दाहिने हाथ की कलाई में घड़ी।
* लेखक ने बागाह शब्द का प्रयोग किया किंतु आज वाघा लिखने का प्रचलन है।
उपायुक्त (डी. सी.) :
उमर लगभग 40 वर्ष। स्वस्थ, भरा-भरा मध्यम लंबाई वाला शरीर। सांवला रंग, गोल चेहरा, ऊँचा मस्तक। नंगा सिर, पीछे को कंघा किये हुए तीन-चार इंच लंबे काले लहराते बाल। टैरीकाट की दालचीनी रंग की बुश-शर्ट और टेरीकॉट की मेंहदी रंग की पतलून चमचमाते ब्राऊन रंग के बूट। दाहिने हाथ की कलाई में घड़ी आँखों पर काले गौगल्ज़।
(मंच निर्माण)
एक सम्भ्रांत घर का डाइनिंग और ड्राइंग रूम, लंबाई 18 फीट चौड़ाई 14 फीट चौड़ाई में पिछली, दर्शकों के सामने पड़ने वाली दीवार पर फर्श से 4 फीट ऊँचा जयदेव के स्वर्गीय पिता का चित्र, जिस पर एक माला टंगी है। धरती पर एक दरी बिछी है। दरी के पिछले भाग पर दीवार से तीन फीट आगे एक गलीचा बिछा है। उसके ऊपर सोफा रखा है। सोफे के दोनों किनारों पर, सोफे और कौचों के मध्य एक-एक छोटी मेज़ रखी है। ड्राईंग रूम की बाईं दीवार में एक द्वार है, जो रसोई घर में खुलता है और दाईं दीवार में एक दरवाजा है, जो सटे हुए कमरे में खुलता है। दोनों पर चंपई रंग के फूलदार पर्दे टंगे हैं। दरवाजों से दो ढाई फीट आगे दोनों दीवारों में खिड़कियाँ हैं, जिन पर झीने पर्दे पड़े हैं, जिस से सूर्य का हल्का-हल्का प्रकाश भीतर आ जाता है। दाई दीवार के पास एक मेज़ और एक कुर्सी रखी है। मेज़ पर एक बुकशेल्फ में 7-8 पुस्तकें और एक-दो फाइलें, कलम- दवात आदि सामान रखा है।
(समय सुबह के आठ-साढ़े आठ बजे। बसंत ऋतु का अंतिम भाग। पर्दा उठते ही मीना कंघी करने तथा कॉलेज जाने के लिए आवश्यक सामग्री एकत्र करने में व्यस्त दिखाई देती है।)
नीलम (भीतर रसोई में से) – बस, तैयार है नाश्ता जब तक तुम अपना पर्स, पैन तैयार करो कि नाश्ता मेज़ पर आया।
मीना- भाभी, बहुत जल्दी जाना है। नाश्ता – वाश्ता कुछ नहीं चाहिए।
नीलम – तो भूखी जाओगी? पाँच-छह घंटे किताबों में आँखें गड़ा कर और सिर खपा कर आओगी। फिर आते ही हाय सिर फटा हाय आँखें गई। हाय कमर टूटी-ऐसी क्या आफत आ गई कि नाश्ता तक नहीं।
मीना – (कंघी करते हुए) ठीक नौ बजे यूनिवर्सिटी पहुँचना है। बाहर से अर्थ शास्त्र के कोई प्रोफेसर आये हैं उनका भाषण होगा-”तस्करी चोर बाज़ारी और आर्थिक व्यवस्था।
नीलम – “अभी तक तो रानी जी की कंघी तक हुई नहीं, और जल्दी ऐसी मचा रखी है जैसे अब गाड़ी छुटी (नाश्ता लिए प्रवेश करते हुए) और आज तक कोई प्रोफेसर वक्त पर पीरियड लेने आया भी है? (नाश्ता मेज़ पर रखती है।) पीरियड न लेना तो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों की शान है। नाश्ता करके भागो, जल्दी।
मीना – (पर्स और फाइल उठाते हुए) नाश्ता करके बैठूंगी तो यही नौ बज जायेंगे। साढ़े आठ तो हो चुके। अच्छा! लाओ, जल्दी करो।
(चाय पीकर प्याला मेज पर रखती है। किसी के आने का शब्द)
सुमित्रा – (शिथिलता से प्रवेश करते हुए रुआंसे स्वर में) हे भगवान, यह क्या अनर्थ हो गया।
(मीना और नीलम उसे पकड़ कर संभालती हैं)
नीलम- क्या हुआ माँ जी?
मीना- इतना घबरा क्यों गई अम्मा?
(उसे लाकर सोफे पर बैठाती है। बाईं ओर नीलम और दाईं ओर मीना बैठती है।)
नीलम- (सीने पर हाथ रखते हुए)- क्या कोई कष्ट है? धड़कन इतनी तेज़ क्यों हो गई?
मीना- (नाड़ी पकड़ते हुए) – डॉक्टर को बुलाऊँ? हुआ क्या अम्मा?
(दोनों परेशानी और प्रश्नवाचक मुद्रा में एक दूसरे को आँखों में आँखें डालती हैं।) सुमित्रा – (व्यथित -सी होकर) – कुछ नहीं बेटा, कुछ नहीं। यह खबर सुनने से पहले ही प्राण क्यों नहीं निकल गए? हे भगवान, यह क्या वज्रपात कर डाला।
नीलम – (घबराहट के साथ) – क्या हुआ माँ जी? क्या हुआ? बताती क्यों नहीं? मीना – (आतुरता से) आपके घबराने से तो हम भी धीरज खो देंगी। (कंधे पर हाथ रख कर अपनी ओर उन्मुख करते हुए) बताओ भी क्या हुआ? कैसा वज्रपात?
सुमित्रा – क्या बताऊँ? अभी-अभी माधोराम के घर रेडियो पर खबर सुनते ही छाती क्यों न फट गई!
नीलम – रेडियो पर…..रेडियो पर क्या खबर सुनी? बताओ भी माँ जी!
सुमित्रा – बाघा बॉर्डर पर दो सरकारी अफसर मारे गए हैं। वहीं पर मेरा जयदेव भी …… है। भगवान, मेरे जयदेव की रक्षा करना।
मीना – भैया के बारे में ऐसी अशुभ बात क्यों सोचती हो अम्मा?
नीलम- मरने वालों के नाम तो नहीं आये? फिर वहाँ तो पचासों पुलिस वाले ….. उनका बाल बाँका नहीं हो सकता। भगवान इतना निष्ठुर नहीं।
सुमित्रा – अशुभ नहीं सोचती। भगवान उसे मेरी उमर लगावे पर कलेजा धक-धक कर रहा है। तुम्हारे पिता जी भी लुटेरों-हत्यारों चीनियों से भारत की सीमा की रक्षा करते हुए बलिदान हुए थे। उनके बाद तुम दोनों को मैंने किन मुसीबतों से पाला है- हे राम! मेरी तपस्या का यह फल।
मीना – यह तो हमारे कुल के लिए गौरव की बात है कि हमारे पिता मातृभूमि की रक्षा करते हुए स्वर्गवासी हुए। इस बलिदान का बदला भगवान हमें दंड के रूप में नहीं, वरदान के रूप में देगा।
नीलम- बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता, माँ जी! ऐसे दिव्य बलिदान पर तो देवता भी अर्ध्या चढ़ाते हैं। वे भी स्वर्ग में जयजयकार करते हुए देश पर निछावर होने वालों का स्वागत करते हैं।
सुमित्रा – गर्व और गौरव की बात तो है, बेटी! पर अब हृदय इतना दुर्बल हो चुका है कि जरा सी आशंका से कांप उठती हूँ। तुम्हारे पिता जी के बलिदान पर हृदय पर पत्थर रख लिया था, पर अब हिम्मत टूट चुकी है, देह जर्जर हो चुकी है। अगर मेरे जयदेव का ज़रा भी बाल बाँका हो गया…तो…मैं.. (रुआँसी सी होकर) – पल भर भी नहीं जीऊँगी।
नीलम- माँ जी, कुछ नहीं होगा। यों ही आप तो…
चाचा- (बाहर से पुकार कर) मीना- अरी मीना है क्या…?
मीना- आओ, चाचा जी।
चाचा- (प्रवेश करके साश्चर्य) – अभी तक यहीं नौ बज गए! गई नहीं? पढ़ने नहीं जाना? (निकट आकर) अरे! भाभी को क्या हुआ? अचानक यह क्या? क्या कोई तकलीफ़……
नीलम- यों ही घबरा गई दिल धड़कने लगा।
चाचा- (बैठते हुए)- किसी डॉक्टर को बुलाता हूँ। अभी तो चली आ रही थी, माधोराम के घर से सोचा, पूछ आऊ, जयदेव की कुशल क्षेम की कोई चिट्ठी-विट्ठी तो नहीं आई। छुट्टी लेकर आने वाला था न?
मीना- आज कल में आते ही होंगे।
सुमित्रा- कल आना था – 15 दिन की छुट्टी पर पर आता कहाँ से? कोई खबर नहीं पता नहीं, भगवान की क्या मर्जी है।
चाचा – तो भाभी, इसमें घबराने की क्या बात है? कहीं रास्ते में किसी यार-दोस्त से मिलता रह गया होगा। अफसर जो ठहरा- पल भर में प्रोग्राम बदल सकता है।
मीना – और क्या? सरकारी नौकरी और कितनी ज़िम्मेदारी की।
सुमित्रा – तो खैर खबर तो भेज देता।
चाचा- आज कल के बच्चों में यही तो बड़ी लापरवाही है। यह नहीं जानते माँ-बाप के दिल पर क्या गुज़रती है। मेरा ही बलुआ देखो…दो-दो महीनों में, वह भी यहाँ से 4-5 चिट्ठी जाने पर एक आध-पत्र लिखता है और उल्टे हमें ही शिक्षा, ‘आप तो यों ही दो-चार दिन में घबरा जाते हैं। काम बहुत रहता है। समय ही नहीं मिलता। और आज कल तो ड्यूटी बड़ी कड़ी है। दम मारने को टाइम नहीं। भला, यह भी कोई बात हुई! निरे बहाने ही चलने लगे हैं।
नीलम – बहाना नहीं, चाचा जी इन तस्करों से निपटना आसान नहीं जान पर खेलना पड़ता है।
मीना – कभी-कभी इन लोगों से डाकुओं की तरह भिड़ंत भी हो जाती है-गोलियाँ तक चल जाती हैं।
सुमित्रा – यही तो मैं कहूँ। इसीलिए तो मेरा कलेजा धक् धक् कर रहा है। न जयदेव आया, न उसकी कोई खैर खबर।
नीलम- रेडियो पर आज सबेरे खबर आई कि बाघा बॉर्डर पर स्मगलरों करते हुए दो सरकारी अफसर मारे गए। यह खबर सुनकर …. तभी से माँ जी को दिल का दौरा सा पड़ने लगा।
मीना- हम बहुत समझा रहे हैं कि…।
चाचा- हं हं हं वाह री मेरी वीरांगना भाभी! अरे, वह खबर तो मैं भी अभी-अभी सुनकर आया हूँ-पौने नौ वाली ख़बरों में जयदेव का बाल भी बाँका नहीं हुआ। दो सरकारी अफसर जो मारे गए, उन में एक हैड कांस्टेबल था और दूसरा सब इंस्पैक्टर।
सुमित्रा – कितने हत्यारे – कसाई हैं, ये स्मगलर! इन बेचारों के बाल बच्चों का क्या होगा? मेरा जयदेव तो………. |
मीना- चाचा कह तो रहे हैं, कि उनका बाल भी बाँका नहीं हुआ।
चाचा- अखबार में भी खबर आ गई। जयदेव की वीरता और सूझ बूझ की बड़ी प्रशंसा छपी है। उसने तस्करों से किस बहादुरी और चतुराई से मोर्चा लिया किस तरह उनको मार भगाया और किस तरह उनके चार आदमियों को गोलियों का निशाना बनाया तथा पाँच लाख का सोना उनसे छीन लिया। (अखबार देते हुए) लो, पढ़ लो।
सुमित्रा – (प्रसन्न होकर) सच? क्या यह सब सच है? मेरा बहादुर बेटा, जयदेव! अरी मीना, सुना न क्या लिखा है अखबार में? और बेटी नीलू… अपने चाचा जी के लिए कुछ… (अभी लाई कह कर नीलम का प्रस्थान)
चाचा- ना ना भाभी!… बेटी! बहूरानी! नहीं। इस समय तो कुछ भी नहीं। अभी-अभी तो नाश्ता….।
नीलम- (रसोई घर में से)- चाचा जी ऐसे नहीं जाने देंगे। आपको मेरी सौगंध, जो ….।
चाचा- तुम लोगों में यहीं बड़ा एब है, बात-बात में सौगंध। एक तो पहले ही पेट तना है, ऊपर से सौगंध।
सुमित्रा – क्या हुआ भैया, बालकों का मन रखना बड़ों का काम है। ये बच्चे जितनी सेवा करेंगे, उतना आप लोगों का आशीर्वाद लेंगे। (मीना चाय की ट्रे मेज पर रख देती है)
चाचा- (चाय पीते हुए)- मीना बेटी, भाभी को अखबार की पूरी खबर सुना देना। यही छोड़े जाता हूँ। जयदेव भी एकाध दिन में आता ही होगा। (प्याला मेज पर रखता है)
मीना- और क्या?
चाचा- अच्छा, मैं चला। (प्रस्थान)
मीना- (समाचार सुनाते हुए)- अँधेरी रात थीं। तस्करों के गिरोह ने किसी तरह बिजली भी फेल कर दी थी।
सुमित्रा – अच्छा! हाँ, परसों अमावस ही तो थी।
मीना- 2-4 संतरी धीरे-धीरे गश्त लगा रहे थे और कुछ अफसर और भैया कैंप में चौकन्ने बैठे थे। कुछ देर बाद रात के सन्नाटे में संतरियों ने आकर खबर दी कि सीमा से कुछ मील दूर लाइट सी नज़र आई है। क्षण भर में फिर बंद हो गई।
नीलम- तब इसके बाद क्या हुआ?
मीना- भैया तुरंत टैण्ट से निकले और जवानों को जगह-जगह तैनात कर दिया। कैंप से करीब आधा मील की दूरी पर एक जीप आकर रुकी और 6-7 आदमी उसमें से उतरे।
सुमित्रा – अमावस की घोर अंधियारी में इन लोगों को साँप-बिच्छू का भी डर नहीं लगता। कैसे भयंकर निडर राक्षस है।
नीलम- माँ जी, लाखों रुपये कमाने का लालच इन्हें इतना निडर और अंधा बना देता है कि ये लोग न कानून से और न ही साँप बिच्छू तथा शेर चीते से डरते हैं। अपने ही स्वार्थ में लगे होने के कारण ये अपने देश और समाज के हित को भी नहीं देख पाते।
मीना- तो माँ, फिर भैया ने उन पर टार्च से रोशनी डाली और आदेश दिया- “खबरदार! हैंड्ज अप भागने की कोशिश की तो गोली मार दी जाएगी।” जवाब में उन लोगों ने पुलिस पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। पुलिस ने भी गोलियों से जवाब दिया।
सुमित्रा – हे भगवान, इतनी हिम्मत! जयदेव को तो चोट नहीं आई?
मीना- नहीं। पंद्रह मिनट तक गोलियाँ चलती रही। दो पुलिस के आदमी मारे गए और तीन उन के। बाकी 3-4 रात के अंधेरे में छिपकर अपनी जान बचा कर भाग गए। हमारी पुलिस जब लाशों के पास पहुँची तो दो बैग पड़े मिले, जिन में 5 लाख का सोना था।
जयदेव- (सहसा प्रवेश करके) क्या गप्पें मार रही है? यह रिसर्च हो रही है यूनिवर्सिटी में?
मीना- (दौड़कर जयदेव की ओर जाते हुए) भैय्या! अम्मा! भैय्या! (जाकर उस से लिपट जाती है। माँ भी फुर्ती से उठती है “मेरा बेटा” कहकर आलिंगन के लिए बाँहें फैलाती है और जयदेव तेजी से आकर उसकी बांहों में बंध जाता है। नीलम शर्मीली ढली पलकों से अभिवादन करती है। कुछ क्षण बाद माँ के आलिंगन से मुक्त होकर)
जयदेव – (नीलम से)- नमस्ते, जनाब!
नीलम- चलो, हम नहीं बोलते। न कोई चिट्ठी न पत्री, न खैर-खबर सबको मुसीबत में डाल दिया। माँ जी तो इतना घबरा गई कि दिल का दौरा ही….!
मीना- और क्या? छुट्टी लिए तीन दिन हो गए और अब आये हैं, श्रीमान जी! सबको परेशान कर मारा!
जयदेव- तुम लोगों को बे-बात घबराना आता है! आखिर ऐसी क्या मुसीबत आ गई जो सभी इतना परेशान….।
नीलम- स्मगलरों के साथ मुठभेड़ में दो पुलिस वाले मारे गए थे, न?
जयदेव – हाँ, तब?
मीना- यह खबर सुनकर अम्मा को तो दिल का दौरा ही पड़ गया। वह तो अच्छा हुआ जो अचानक ही चाचा जी आ गए। यह अखबार भी दे गए, जिससे सच्ची खबर का पता चल जाये।
नीलम- जब इन्हें विश्वास हो गया कि आप कुशल से हैं, तब कहीं जी ठिकाने आया।
जयदेव- वाह, मेरी प्यारी अम्मा! (कहकर उससे लिपट जाता है। सुमित्रा की आँखों में प्रेम के आँसू छलक उठते हैं।)
सुमित्रा – (हथेली से आँसू पोंछते हुए)- अरे खड़ा कब तक रहेगा? बैठ जा, बेटा, सफर करके आया है, थक गया होगा।
(उसे कंधे से पकड़ कर सोफे पर बैठाती है) जा बेटी, नीलू जयदेव के लिए चाय तैयार कर मैं तब तक मंदिर में जा कर भगवान के चरणों में माथा टेक आऊँ।
(सुमित्रा प्रस्थान करती है। ‘चाय ले आऊँ’ कहते हुए नीलम उठना चाहती है। जयदेव उसे रोक लेता है।)
जयदेव- अभी रहने दो। सब साथ पियेंगे और रास्ते भर चाय ही चाय पीता आया हूँ।
नीलम- थोड़ी देर अपने भाई साहब की वीरता की गप्पें सुन लो। पेट में बहादुरी की अनेक कहानियाँ भरी है, वे बाहर निकलें, तभी तो चाय के लिए जगह बने।
मीना- तुम सुनो अपने पतिदेव की कहानियाँ। मुझे तो क्लास अटैंड करनी है। (पर्स हिलाती हुई प्रस्थान करती है।)
नीलम- (मान भरी मुद्रा में) – अब बताइये, इतने दिन कहाँ लगाये? यहाँ तो राह देखते- देखते आँखे पथरा गई, वहाँ जनाब को परवाह तक नहीं कि किसी के दिल पर क्या बीत रही है।
जयदेव- चाहे कभी याद भी न किया हो कि हम पर वहाँ क्या बीतती है। रात दिन प्राणों की आशंका….। स्मगलरों तस्कारों से प्राणों की बाजी…।
नीलम- (उलाहने भरे स्वर में) – अरे जाओ भी! मर्दों का दिल तो पत्थर होता है। और विशेष कर रात-दिन चोर डाकुओं तथा मौत से खेलने वालों, और गोलियों की बौछार करने वालों का। नारी का हृदय सदा प्रेम से लबालब रहता है। उस के मन में सदा अपने पति की प्रतिमा स्थापित रहती है। हाँ, बाकायदे, कैफियत दीजिए कि तीन दिन लेट क्यों हो गए?
जयदेव- मैं जो कहूँगा खुदा को हाजिर नाज़िर जान कर कहूँगा। सरकार के दरबार में अपनी जानकारी के मुताबिक कोई बात गलत नहीं कहूँगा।
नीलम- हाँ, दीजिए सही-सही बयान तीन दिन लेट क्यों हुए?
जयदेव- हुआ यह कि घर की ओर आने से दो-तीन घंटे पहले गुप्तचरों ने समाचार दिया कि रात की अँधेरी में पुलिस पिकिट से एक डेढ़ मील दक्षिण की तरफ से, कुछ लोग बार्डर पार करने वाले हैं। ऐसा शक है कि वे सोना स्मगल करके ला रहे हैं।
नीलम- अच्छा! आप की सी. आई. डी. इतनी सतर्क है इतनी तेज़ है! यह जानकर सचमुच बड़ी प्रसंनता होती है।
जयदेव- यह मौका हाथ से न निकल जाये, यह सोच कर मैंने छुट्टी कैंसिल करा ली। इन बदमाशों को पकड़ने का पक्का इरादा किया। भाग्य ने साथ दिया। जो अंदाजा हमने लगाया था, वही हुआ। आधी रात के बाद वे हमारी चौकी से दो मील दूर एक खतरनाक बने ढाक के ऊबड़-खाबड़ रास्ते से बार्डर पार करने लगे तभी हमने उन्हें चैलेंज किया। उन्होंने बदले में गोलियाँ चलायीं, जिससे हम घबरा जायें और उन्हें बचकर भागने का मौका मिल जाये?
नीलम- तब वे भाग क्यों न गए?
जयदेव- भागने की कोशिश तो की हमारी चुनौती सुनकर वे अपनी जीप लेकर भागने लगे। लेकिन हमारी दो तीन जीपों ने उनका पीछा किया। मैंने ऐसा निशाना मारा कि उनकी जीप का पहिया उड़ गया। वह लुढ़क कर एक खड्डे में जा गिरी। कोई चारा न देख जीप से उतर कर उन्होंने गोलियाँ चलानी शुरु कीं। हमारे जवानों ने भी टेलीफोन की घंटी बजती है। मोर्चाबन्दी कर ली। देखना, कौन है? (नीलम उठकर टेलीफोन सुनती हैं)
नीलम- (टेलीफोन पर हथेली रखकर जयदेव से) डी. सी. साहब है। पूछ रहे हैं, आप आ गए कि नहीं? अभी मिलने आना चाहते हैं।
जयदेव- आ जायें।
नीलम- (टेलीफोन पर आ जाइये। वह आप की प्रतीक्षा करेंगे। (टेलीफोन रख कर पास आते हुए) अभी सफर के कपड़े तक तो बदले नहीं, हाथ मुँह को पानी तक छुआया नहीं। यह भी कोई बात है। कह देते, अभी ज़रा थका हूँ, दोपहर बाद आ जायें।
जयदेव – पुलिस और सेना में भी थकना! यह एक डिसक्वालिफिकेशन है। हाँ, यह कह देता तो शायद अधिक उपयुक्त था कि मैं अभी अपनी प्राण प्रिया से बातें कर रहा इसलिए…..
नीलम- चलो हटो। ज्यादा बातें न बनाया करो। जाके दो-दो महीने कभी चिट्ठी तक तो……….
(कार के आने की और रुकने की आवाज़)
लगता है, वह आ भी गए।
सुमित्रा – (प्रवेश करते हुए)- अरे अभी तुम ने चाय-वाय कुछ नहीं पिलाई। मैं ही चलती हूँ रसोई में….!
नीलम- (सकपकाकर उठते हुए)- नहीं, माँ जी! आप नहीं! मैं….. मैं जरा बातों में …. …….अभी बना कर लाई।
(दोनों जाने लगती हैं। डी. सी. का प्रवेश। जयदेव फुर्ती से उठकर स्वागत के लिए बढ़ता है। दोनों मुड़कर उनकी ओर देखकर रसोई में चली जाती हैं।)
डी. सी. – बधाई, मि. देव! (हाथ मिलाने को आगे बढ़ता है)
जयदेव- (हाथ मिलाते हुए)- थैंक्यू, सर।
डी. सी. सर बैठा होगा ऑफिस की कुर्सी में खबरदार जो यहाँ सर वर कहा मैं वही तुम्हारा बचपन का दोस्त और क्लास मेट हूँ, जिससे बिना हाथापाई किये तुम्हें रोटी हजम नहीं होती थी।
जयदेव – बिल्कुल! बिल्कुल! असल में यह सर कहने कहलाने की तो आदत सी पड़ गई हैं। खैर, सुनाओ भाभी और बेटा ठीक हैं? कब ट्रांसफर हुआ?
(दोनों आकर सोफे पर बैठ जाते हैं)
डी. सी. – अभी चार पाँच दिन हुए।
(नीलम और सुमित्रा चाय लाती है। डी. सी. खड़ा होकर)
नमस्ते माँ जी नमस्ते भाभी।
सुमित्रा- (मेज़ पर सामान रखते हुए)- जीते रहो, बेटा।
नीलम- (मेज़ पर सामान रखते हुए) – नमस्ते!
डी. सी.- माँ जी, मैं अपने लँगोटिये यार की वीरता और सूझ बूझ पर आपको और भाभी को बधाई देने आया हूँ। साथ ही एक खुशी की खबर भी…. आज शाम हम शहर की तरफ से देव का सम्मान कर रहे हैं। साथ ही..
जयदेव- (बीच में ही टोककर) – यार, इसकी क्या ज़रूरत है?
डी. सी. – मेरी तरफ से नहीं, यह गवर्नर साहब का फोन आया है। साथ ही दस हज़ार का इनाम भी उसी स्वागत सभा में घोषित किया जाएगा।
(जयदेव विचार मग्न हो जाता है)
सुमित्रा -(खुशी से) अच्छा!
जयदेव – तो मेरी ओर से घोषणा कर देना कि यह रुपया दोनों मृत पुलिस अफसरों की विधवा पत्नियों में आधा-आधा बाँट दिया जाये।
डी. सी. – अरे देव। यह तुम क्या कहते हो? दस हज़ार की रकम पर यों ही ठोकर मार रहे हो। क्यों माँ जी, यह ठीक है क्या?
सुमित्रा – बेटा, यह ठीक है कि दस हजार की रकम कम नहीं होती। लेकिन उन विधवाओं और मृत अफसरों के परिवारों के बारे में भी तो सोचो, उनकी क्या हालत होगी?
नीलम- मैं अपने पति की वीरता पर ही नहीं, उनके त्याग और उन की करुणा पर भी गर्व कर सकती हूँ। यह उनके कुल की मर्यादा है।
डी. सी.- सचमुच, आज मैं अपनी पूज्य माँ पर, अपनी प्यारी भाभी पर अपने लंगोटिये यार पर गर्व से छाती फुला सकता हूँ। देव, तुम्हारा त्याग सचमुच अन्य अफसरों के लिए अनुकरणीय है। अच्छा! मैं चलता हूँ (सुमित्रा से चिपट कर) मेरी प्यारी माँ!
सुमित्रा – (प्यार से कमर पर हाथ फेरती है) जियो मेरे बेटे दोनों भाइयों की लंबी उमर हो! (डी. सी. जाने के लिए उठ खड़ा होता है। सब लोग खड़े हो जाते हैं। एक दूसरे का अभिवादन करते हुए डी. सी. को विदा देते हैं।)
शब्दार्थ
सम्भ्रांत – रईस, धनी
चंपई – चंपा के फूल के रंग का, पीला,
रुआँसी – रोने को होने वाली
बाक़ायदा – ढंग से
कैफियत – हाल समाचार, विवरण,
निछावर – न्योछावर, बलिहारी
गश्त – पुलिस कर्मचारियों का पहरे के लिए घूमना
जर्जर – कमजोर
पुलिस पिकिट – पुलिस का घेरा
डिस्क्वालिफिकेशन – अयोग्यता
कुशल क्षेम – राजी खुशी
आनन – मुख
कुमकुम – सिंदूर
नेत्र – आँख
मस्तक – माथा
पतलून – पैंट,
गौगल्ज़ – धूप में लगाया जाने वाला चश्मा,
गौरव – सम्मान
सभ्य – शालीन, सुशील
हित – भलाई
वीरांगना – वीर स्त्री
आलिंगन – गले लगाना
सतर्क – चौकन्ना
अभ्यास
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) सुमित्रा के पुत्र का नाम बताइए।
(2) वाघा बॉर्डर पर सरकारी अफसरों के मारे जाने की ख़बर सुमित्रा कहाँ सुनती है?
(3) जयदेव वाघा बॉर्डर पर किस पद पर नियुक्त था?
(4) जयदेव की पत्नी कौन थी?
(5) वाघा बॉर्डर पर मारे जाने वाले दो सरकारी अफसर कौन थे?
(6) जयदेव ने तस्करों को मार कर उनसे कितने लाख का सोना छीना?
(7) जयदेव को स्वागत-सभा में कितने रुपए इनाम में देने के लिए सोचा गया?
(8) मीना कौन थी?
(9) नीलम क्यों चाहती थी कि डी.सी. दोपहर के बाद जयदेव को मिलने आएँ।
(10) डी. सी. आकर सुमित्रा को क्या खुशखबरी देते हैं?
(11) जयदेव इनाम में मिलने वाली राशि के विषय में क्या घोषणा करवाना चाहता है?
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए:
(1) सुमित्रा क्यों कहती है कि अब उसका हृदय इतना दुर्बल हो चुका है कि जरा-सी आशंका से काँप उठता है?
(2) नीलम जयदेव से मान-भरी मुद्रा में क्या कहती है?
(3) जयदेव को गुप्तचरों से क्या समाचार मिला?
(4) जयदेव ने अपनी छुट्टी कैंसिल क्यों करा दी थी?
(5) एकांकी में डी. सी. के किस संवाद से पता चलता है कि डी. सी. और जयदेव में घनिष्ठता थी?
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिए
(1) चाचा अपने बेटे बलुआ के विषय में क्या बताते हैं?
(2) चाचा सुमित्रा को अखबार में आई कौन सी खबर सुनाते हैं?
(3) जयदेव ने तस्करों को कैसे पकड़ा?
(4) नीलम अपने पति से उलाहना भरे स्वर में क्या कहती है?
(5) डी. सी. को अपने मित्र जयेदव और उसके परिवार पर गर्व क्यों होता है?
(6) पुलिस और सेना के अफसरों या सैनिकों के घरवालों को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है?
(7) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
– बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता, माँजी ऐसे दिव्य बलिदान पर तो देवता भी अर्घ्यं चढ़ाते हैं। वे भी स्वर्ग में जयजयकार करते हुए देश पर निछावर होने वाले का स्वागत करते हैं।
– बेटा, यह ठीक है कि दस हजार की रकम कम नहीं होती। लेकिन उन विधवाओं और मृत अफसरों के परिवारों के बारे में भी तो सोचो, उनकी क्या हालत होगी?
– पुलिस और सेना में भी थकना! यह एक डिस्क्वालिफिकेशन है।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए-
निराशा
सभ्य
सूर्य
गौरव
हित
II. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
स्वार्थ
रात
दंड
टूटना
अनर्थ
हित
आशीर्वाद
आसान
निश्चय
जल्दी
सभ्य
दुर्बल
III. निम्नलिखित अनेकार्थक शब्दों के दो-दो अर्थ बताइए-
सोना
मुद्रा
माँग
IV. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
वज्रपात होना – अचानक बहुत बड़ा दुख आ पड़ना
छाती फटना – असहनीय दुख होना
बाल बाँका न होना – ज़रा सा भी नुकसान न होना
दिल धक-धक करना – भयभीत होना
हृदय पर पत्थर रखना – चुपचाप सहन करना
हिम्मत टूटना – हताश या निराश होना
आँखें पथरा जाना – बहुत इन्तज़ार कर थक जाना
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
(1) जयदेव की जगह यदि आप होते तो इनाम में मिलने वाली राशि का आप क्या करते?
(2) मातृप्रेम और देशप्रेम में से कौन सा प्रेम आपको अपनी तरफ आकर्षित करता है और क्यों?
(3) एकांकी पढ़ने के बाद क्या आपके मन में भी जयदेव जैसा सरकारी अफसर बनकर देश की सेवा करने का विचार आया? यदि हाँ तो क्यों? यदि नहीं तो क्यों?
(4) यदि आपको वाघा बॉर्डर पर जाने का मौका मिला हो तो अपने रोमाँचक अनुभव से अपने सहपाठियों को परिचित कराइए।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
(1) देश के लिए शहीद होने वाले कुछ शहीदों के विषय में पुस्तकालय या इंटरनेट से जानकारी एकत्र करें।
(2) इन शहीदों के चित्र एकत्र करें और उन्हें एक चार्ट पर चिपका कर अपनी कक्षा में लगाएँ।
(3) अपने स्कूल के वार्षिक उत्सव में इस एकांकी का मंचन करें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
(1) अमृतसर- यह भारत के पंजाब प्रांत का एक शहर है। यह पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण शहर माना जाता है क्योंकि सिक्खों का सबसे बड़ा गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर’ यहीं है।
(2) स्वर्ण मंदिर स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) अमृतसर का सबसे बड़ा आकर्षण है। इसे हरमंदिर साहिब भी कहते हैं। यह गुरुद्वारा एक सरोवर के बीचोंबीच बना हुआ है। इसके गुंबद आदि पर सोना मढ़ा होने के कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हज़ारों पर्यटक आते हैं। यह सभी धर्मों के लोगों के लिए अटूट श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है।
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(3) जलियाँवाला बाग यह भी अमृतसर का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। परतंत्र भारत में 13 अप्रैल, 1919 ई. को इस बाग में भीषण नरसंहार हुआ। बैसाखी का दिन होने के कारण कई तीर्थयात्री उस दिन यहाँ आए हुए थे। इसके अलावा अंग्रेजों द्वारा की गई कुछ गिरफ्तारियों का विरोध करने के लिए बड़े ही शांत और अहिंसक ढंग से एक सभा यहाँ चल रही थी, तभी जनरल डायर ने इस बाग में उपस्थित लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवा दीं। सैंकड़ों की संख्या में लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए। यह क्रूरतापूर्ण घटना ब्रिटिश शासन की निर्दयता और अमानवीयता की साक्षी है।
(4) वाघा बॉर्डर वाघा बॉर्डर एक सैनिक चौकी है जो अमृतसर और लाहौर के बीच जी.टी. रोड पर स्थित है। यह अमृतसर से 32 किलोमीटर और लाहौर से 22 किलोमीटर दूर स्थित है। शाम के वक्त यहाँ होने वाली परेड को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।