हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन
जन्म : सन् 1907, इलाहाबाद
प्रमुख रचनाएँ : मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938), निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल- अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ (काव्य संग्रह); क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक (आत्मकथा चार खंड); हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ (अनुवाद); प्रवासी की डायरी (डायरी) उनका पूरा वाङ्मय ’बच्चन ग्रंथावली’ के नाम से दस खंडों में प्रकाशित।
निधन : सन् 2003, मुंबई में
“पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले”
1942-1952 तक इलाहाबाद विश्वविघालय में प्राध्यापक, आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबद्ध, फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, विकल मन को बच्चन ने वाणी का वरदान दिया। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक वक्रता के बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदनसिक्त गेय शैली में अपनी बात कही। व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहज अनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति बच्चन के यहाँ कविता बनकर प्रकट हुई। यह विशेषता हिंदी काव्य संसार में उनकी विलक्षण लोकप्रियता का मूल आधार है।
मध्ययुगीन फ़ारसी के कवि उमर खय्याम का मस्तानापन हरिवंश राय बच्चन की प्रारंभिक कविताओं विशेषकर मधुशाला में एक अद्भुत अर्थ-विस्तार पाता है – जीवन एक तरह का मधुकलश है, दुनिया मधुशाला है, कल्पना साकी और कविता वह प्याला जिसमें ढालकर जीवन पाठक को पिलाया जाता है। कविता का एक घूँट जीवन का एक घूँट है। पूरी तन्मयता से जीवन का घूँट भरें, कड़वा-खट्टा भी सहज भाव से स्वीकार करें तो अंततः एक सूफ़ियाना-सी बेखयाली मन पर छाएगी, एक के बहाने सारी दुनिया से इश्क हो जाएगा, और तेरा-मेरा के समस्त झगड़े काफ़ूर हो जाएँगे। इसे बच्चन का हालावादी दर्शन कहते हैं।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि उनकी युगबोध-संबंधी कविताएँ जो बाद में लिखी गईं, उनका मूल्यांकन अभी तक कम ही हो पाया है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है, पर उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है – जो ईमानदार आत्मस्वीकृति और प्रांजल शैली के कारण निरंतर पठनीय बनी हुई है।
यहाँ उनकी कविता आत्मपरिचय तथा गीत संग्रह निशा निमंत्रण का एक गीत दिया जा रहा है। अपने को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं! दुनिया अपने व्यंग्य-बाण और शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है – अपना परिचय देते हुए वह लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म ही उद्घाटित करता चलता है और पूरी कविता का सारांश एक पंक्ति में यह बनता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है – उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उतर आई है कि दुनिया में हूँ, दुनिया का तलबगार नहीं हूँ / बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ – जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है। किसी असंभव आदर्श (यूटोपिया) की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से दुनिया से इन्हें कोई वास्ता नहीं है। प्रीति-कलह का यही वितान और विरोधाभास का यह विग्रह इन्हें दूर टिमटिमाते तारे की अबूझ रहस्यात्मकता से लहालोट रखता है। निशा निमंत्रण से उद्धृत गीत में प्रकृति के दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणि-वर्ग (विशेषकर मनुष्य) के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश है। बहुत ही सरल सर्वानुभूत बिंबों के ज़रिये किसी अगोचर सत्य की रूहानी छुअन महसूस करा देना बच्चन की जो अलग विशेषता है, यह गीत उसका एक बेहतर नमूना है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेज़ी भर सकता है – अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुज़रते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा भी लिए हुए है।
‘आत्मपरिचय’ कविता का सार
इस कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने स्वभाव और व्यक्तित्त्व के बारे में बताया है। कवि का इस संसार से प्रीति – कलह का संबंध है क्योंकि वह जग जीवन से जुड़ा भी है और इससे अलग भी है। वह इस संसार का भार (जिम्मेदारियाँ) लिए फिरता है लेकिन उसके जीवन में प्यार की भावना भी है। कवि कहता है कि यह संसार लोगों को कष्ट ही देता है फिर भी वह संसार से अलग नहीं रह सकता है। इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से ‘प्रेम एवं संघर्ष’ का संबंध निभाते हुए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने पर ज्यादा बल दिया है। कवि अपनी मस्ती में मस्त रहता है और कभी भी इस जग की परवाह नहीं करता है क्योंकि संसार अपने ढंग से लोगों को जीवन जीने का तरीका बताता है। कवि का अपना व्यक्तित्त्व है और जग का अपना दोनों में कोई नाता नहीं है। इस कविता में ‘प्रीति-कलह’ और ‘शीतल वाणी’ में आग का विरोधाभास दिखाया गया है क्योंकि व्यक्ति और समाज का सम्बंध ‘प्रेम और संघर्ष’ की तरह ही है। ‘नादान वही है हाय, जहाँ पर दाना’ पंक्ति के माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए ‘अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है।
कविता के मुख्य बिंदु :
> कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है।
> यह दुनिया अपनी मौज में रहने वाले और सदैव प्रेम लुटाने वाले दीवानों का महत्त्व नहीं समझ पाती।
> कवि किसी प्रिय की मधुर यादों से झंकृत हृदय में प्रेम लेकर घूमते हैं।
> संसार प्रेम के अभाव के कारण अपूर्ण है और स्वार्थ से भरा है। संसार का स्वार्थपूर्ण रवैया कवि को अच्छा नहीं लगता
>सांसारिक जीवन की कड़वाहट, विषमता आदि समस्याओं के बावजूद भी कवि के हृदय में सबके लिए प्रेम है।
> कवि संसार के आकर्षण से दूर है। वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं।
> कवि आज भी यौवन के उत्साह से भरपूर है।
> कवि संसारिक ज्ञान को भूलना चाहता है। भौतिक वैभव तुच्छ है। कवि जीवन में आने वाले सुख-दुख दोनों को ही समान भाव से सहते हैं और मग्न रहते हैं।
‘आत्मपरिचय’ का शिल्प सौंदर्य
> भाषा सरल, सरस प्रवाह से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
>मुक्त छंद गीत, शृंगार रस का प्रयोग हुआ है।
कविता आत्मकथात्मक एवं गेयात्मक शैली में लिखित है।
> ‘जग-जीवन’ और ‘स्नेह-सुरा’ क्यों, कवि कहकर और जग झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार है।
>‘भव-सागर’ एवं ‘भव मौजों में रूपक अलंकार है।
> मैं और, और जग और में यमक अलंकार तथा बना-बना में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
>‘उन्मादों में अवसाद और बाहर हँसा, रुलाती भीतर रोदन में राग और शीतल वाणी में आग पंक्तियों में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
> कवि के अन्तर्मन की अभिव्यक्ति हुई है।
> सूफियाना भाव-भूमि है और इस कविता में संसार की अपूर्णता का वर्णन किया गया है।
आत्मपरिचय
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!
कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वहाँ हैं, हाय, जहाँ पर दाना।
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
शब्दार्थ
1. झंकृत–तारों को बजाकर स्वर निकालना
2. जग– दुनिया
3. सुरा– मदिरा, शराब
4. पान करना– पीना
5. ध्यान करना– परवाह करना
6. उर– ह्रदय
7. उद्गार– भाव
8. भाता– अच्छा लगना
9. दहा– जला
10. भव –सागर– संसार रूपी सागर
11. मौज–किनारा, लहरें
12. यौवन– जवानी
13. उन्माद– पागलपन
14. अवसाद– दुख, निराशा
15. नादान– भोला
16. मूढ़ = मूर्ख
17. नाता– संबंध
18. वैभव– सुख –समृद्धि
19. पग– कदम
20. रोदन– रोना
21. राग– प्रेम
22. आग– जोश, आवेश
23. प्रासाद– महल, Palace
24. निछावर– कुर्बान, बलिदान
25. खंडहर – टूटा हुआ भवन
26. भूप– राजा
27. फूट पड़ा– रोपड़ना
28. दीवाना– पागल, मस्त
29. मादकता– नशा
30. निःशेष– पूर्ण
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ कविता का सार
‘एक गीत’ शीर्षक कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि समय हमेशा चलता रहता है और उसके बीतने का अहसास हमें लक्ष्य प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयास करने
की प्रेरणा देता है। रास्ते में चलने वाला राहगीर यही सोचकर अपनी मंजिल की ओर तेज गति से कदम बढ़ाता है कि कही रास्ते में ही रात ना हो जाए। पक्षियों को भी दिन बीतने के साथ यह अहसास होता है कि उनके बच्चें भोजन पाने की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे। यह सोचकर चिड़ियाँ के पंखों में तेजी आ जाती है। इन पंक्तियों में आशावादी स्वर है। आशा की किरण जीवन की जड़ता को समाप्त कर देती है और पाठकों को सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास करती हैं। लेकिन कवि का जीवन तो एकाकी है और घर पर उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। घर पर ऐसा कोई भी नहीं है जो कि उसके लिए व्याकुल होगा और इसी निराशा के कारण कवि का मन कुंठा से भर जाता है, उसकी गति मंद पड़ जाती है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने जीवन के अकेलेपन की पीड़ा को वाणी दी है।
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के मुख्य बिंदु :
> दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता जीवन की निरंतरता को परिभाषित करती है।
>समय सतत प्रवाहमान है, वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
> पथिक को थकान होने के बावजूद भी निरंतर अपनी मंजिल की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
> समय की गतिशीलता को दर्शाने के लिए कवि ने चिड़िया और पथिक का उदाहरण लिया है।
> मंजिल दूर न होने पर भी पथिक यह सोचकर जल्दी-जल्दी चलता है कि कहीं रात न हो जाए।
> चिड़िया दिन ढलते देख और अपने बच्चों की भूख-प्यास तथा आशा को ध्यान कर जल्दी-जल्दी अपने घोंसले में पहुंचने के लिए व्याकुल हो उठती है।
> मंजिल / घर की ओर बढ़ते आदि के पाँव यह सोचकर शिथिल पड़ जाते हैं कि उसकी प्रतीक्षा के लिए कोई नहीं है, लेकिन मंजिल पर पहुँचने की आतुरता उसे व्याकुल करती है।
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ का शिल्प सौंदर्य–
> भाषा सरल भावानुकूल साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
> गेयात्मक शैली है। संगीतात्मकता है।
> जल्दी-जल्दी में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार, मुझसे मिलने में अनुप्रास अलंकार तथा मैं होऊँ किसके हित चंचल? में प्रश्नालंकार का प्रयोग हुआ है।
> नीड़ों से झाँक रहे होंगे पंक्ति में दृश्य बिंब दर्शनीय है।
> कविता में वियोग शृंगार रस की अनुभूति होती है।
> जीवन की क्षणभंगुरता व प्रेम की व्यग्रता को व्यक्त किया है।
> एकाकी जीवन की मनोदशा का यथार्थ चित्रण हुआ है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं –
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे –
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
‘दिन जल्दी –जल्दी ढलता है’ शब्दार्थ
1. पथ– राह
2. ढलता– समाप्त
3. प्रत्याशा – आशा
4. नीड़– घोंसला
5. पर–पंख
6. चंचलता– तीव्रता, Speed
7. विकल– परेशान
8. हित– भलाई
9. शिथिल– ढीला, धीमा
10.विह्वलता–आतुरता, उमड़न
कविता के साथ
1. कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर – जग जीवन का भार लेने से कवि का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा है। आम व्यक्ति से वह अलग नहीं है तथा सुख- दुख, हानि लाभ आदि को झेलते हुए अपनी यात्रा पूरी कर रहा है। दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं देता। यहाँ कवि सांसारिक दायित्व की अनदेखी की बात नहीं करता। वह संसार की निरर्थक बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर केंद्रित रहता है। आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डर कर कुछ नहीं कर पाता। कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह नहीं करता। अतः इन दोनों पंक्तियों के अपने अपने अर्थ हैं। यह एक दूसरे के विरोधी न होकर परस्पर निर्भरशील हैं।
2. जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर – नादान यानी मूर्ख या भोले-भले व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कर में फँसा रहता है। वास्तव में यह संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है, और मोक्ष के लक्ष्य को भूल कर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है। इसके विपरीत, कुछ ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्षप्राप्ति के लक्ष्य को नहीं भूलते अर्थात संसार में हर तरह के लोग रहते हैं।
3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता – पंक्ति में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर – ‘और’ शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है। अतः यहाँ यमक अलंकार है। पहले ‘और’ में कवि स्वयं को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के चक्कर में नहीं पड़ता। दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है। संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार और कवि में किसी तरह का संबंध नहीं दर्शाने के लिए किया गया है।
4. शीतल वाणी में आग – के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। कवि की वाणी यद्यपि शीतल है परंतु उसके मन में विद्रोह, असंतोष का भाव प्रबल है। वह समाज की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है। वह प्रेम रहित संसार को अस्वीकार करता है। अतः अपनी वाणी के माध्यम से अपनी असंतुष्टि को व्यक्त करता है। वह अपने कवित्व धर्म को ईमानदारी से निभाते हुए लोगों को जागृत कर रहा है।
5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर – पक्षी दिनभर भोजन की तलाश में भटकते हैं। उनके बच्चे अपने माता-पिता से बिछड़ कर अपने घोंसलों में यही आशा लिए रहते होंगे कि कब वे लौटकर आएँगे? कब उनके माता-पिता उनके लिए दाना लाएँगे? और कब उनको भोजन कराकर उनकी भूख शांत करेंगे? वे अपने माता-पिता का स्नेहिल स्पर्श पाने के लिए प्रतीक्षा करते हैं। इन बाल-सुलभ क्रियाओं की सबकी पूर्ति के लिए बच्चे अपने नीड़ों से झाँकते रहे होंगे।
6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है – की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर – ‘दिन-दिन जल्दी ढलता है’- की आवृत्ति से यह प्रकट होता है कि समय सतत् परिवर्तनशील है, चलायमान है। यह न कभी रुकता है और न किसी की प्रतीक्षा करता है। जीवन क्षणभंगुर है, कब जीवन समाप्त हो जाए, यह किसी को नहीं पता। अतः मनुष्य को अपने लक्ष्य को अतिशीघ्रता से प्राप्त कर लेना चाहिए अर्थात् समय के साथ स्वयं को समायोजित करना प्रत्येक प्राणी के लिए आवश्यक है। इसके साथ यह भी बोध होता है कि जिनके घरों में प्रतीक्षा करने वाले सदस्य हैं उनके लिए समय जल्दी से बीतता है और जो जीवन में अकेले हैं उनके लिए समय- जल्दी-जल्दी नहीं बीतता।
कविता के आस-पास
संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
1. संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल पैदा करने के लिए दृढ़ आत्मविश्वास और उदार हृदय का होना बहुत जरूरी है। जब एक व्यक्ति को इस बात का एहसास हो जाता है कि यह दुनिया नश्वर है और उसे एक दिन इस दुनिया से रुखसत होना ही है तो भौतिक चीजों के प्रति उसकी आसक्ति नहीं रह जाती और वह अपने आसपास खुशी और मस्ती का माहौल पैदा करने के लिए अनेक कदम उठता है। ऐसे लोगों का सान्निध्य भी सभी पाना चाहते हैं।
आपसदारी
जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें।
आत्मकथ्य
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
– जयशंकर प्रसाद
उत्तर – इन दोनों कविताओं में कवि का हृदय सांसरिक कारणों से व्यथित हैं। दोनों अपनी करुण कथा को शब्दों के माध्यम से कविता का रूप देकर पाठकों को बतलाना चाहते हैं की जीवन दुखों और कष्टों से भरा पड़ा है। यहाँ सभी को अपनी-अपनी भूमिकाएँ निभानी ही पड़ती हैं।
‘आत्मपरिचय’ कविता के अतिरिक्त प्रश्न
पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्न
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता है;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको
छूकर मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता है,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
प्रश्न 1- ‘निज उर के उद्गार’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(क) कवि के अपने हृदय के भाव
(ख) अपने रिश्तेदारों के हृदय के भाव
(ग) अपने पड़ोसियों के हृदय के भाव
(घ) अपने बच्चों के हृदय के भाव
उत्तर- (क) कवि के अपने हृदय के भाव
प्रश्न 2- कवि के अनुसार मनुष्य को संसार में किस प्रकार रहना चाहिए?
(क) लड़ाई-झगड़े करके
(ख) शांतिपूर्वक
(ग) कष्टों को हँसते हुए सहकर
(घ) दूसरों पर दोषारोपण करके
उत्तर- (ग) कष्टों को हँसते हुए सहकर
प्रश्न 3- कवि संसार को अपूर्ण क्यों मानता है?
(क) उसमें प्रेम नहीं है
(ख) वह बनावटी व झूठा है
(ग) यह स्वार्थ से परिपूर्ण है
(घ) उपर्युक्त सभी कारणों से
उत्तर- (घ) उपर्युक्त सभी कारणों से
प्रश्न 4. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, प्रस्तुत पंक्ति में कौनसा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) उपमा
(ग) श्लेष
(घ) रूपक
उत्तर- (घ) रूपक
प्रश्न 5- कवि दुखों के संसार रूपी समुंद्र में किस प्रकार मस्त बहा करता है?
(क) दुःख में ज्यादा दुखी होकर
(ख) दूसरों के सुख से दुखी होकर
(ग) दुखो की पीड़ा को हृदय में दबाकर व सांसारिक सुख दुःख की परवाह न करके (घ) स्वार्थी बनकर, अपने सुखों को प्राप्त करके
उत्तर- (ग) दुखो की पीड़ा को हृदय में दबाकर व सांसारिक सुख दुःख की परवाह न करके
पठित काव्यांश -02
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ।
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ.
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!
कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वहाँ हैं, हाय, जहाँ पर दाना।
फिर मूढ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना।
1. कवि यौवन के उन्माद में क्या लिए फिरता है?
(क) अवसाद
(ख) अहसास
(ग) अहसान
(घ) अवसर
उत्तर – (क) अवसाद
2. कवि किस अवस्था का उन्माद लिए फिरता है?
(क) वृद्धावस्था का
(ख) प्रौढावस्था का
(ग) युवावस्था का
(घ) किशोरावस्था का
उत्तर – (ग) युवावस्था का
3. संसार के बारे में कवि क्या कह रहा है?
(क) यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं.
(ख) यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने में कभी सफल नहीं हुए,
(ग) यहाँ लोग सांसारिक मायाजाल में उलझे हुए हैं
(घ) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी सही हैं
4. कवि सीखे ज्ञान को क्यों भुलाना चाहता है?
(क) क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती
(ख) ताकि वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके,
(ग) वह सांसारिकता से मुक्त होना चाहता है,
(घ) उपर्युक्त सभी कारणों से
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी कारणों से
5. उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ, प्रस्तुत पंक्ति में कौनसा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) उपमा
(ग) विरोधाभास
(घ) रूपक
उत्तर – (ग) विरोधाभास
पठित काव्यांश-03
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना |
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
1. कवि के फूट पड़ने को समाज ने क्या कहा?
(क) छंद बनाना
(ख) बहाने बनाना
(ग) अभिनय करना
(घ) आँसू बहाना
उत्तर – (क) छंद बनाना
2. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) उपमा
(ग) विरोधाभास
(घ) रूपक
उत्तर – (क) यमक
3. कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल न्योछावर हो जाते हैं?
(क) प्रेमरूपी महल के खंडहर या अवशेष
(ख) दीवानापन
(ग) अतीत की स्मृतियाँ
(घ) साहित्यिक कौशल
उत्तर – (क) प्रेमरूपी महल के खंडहर या अवशेष
4. कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(क) दीवानों जैसी
(ख) मस्ती में चूर
(ग) प्रेम के नशे में डूबे हुए
(घ) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी सही हैं
5. कवि स्वयं को दुनिया का एक नया क्या मानता है?
(क) प्रेमी
(ख) दीवाना
(ग) परवाना
(घ) रक्षक
उत्तर – (ख) दीवाना
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्न
प्रश्न-1 कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर- कवि भावनाओं को प्रमुखता देता है। वह सांसारिक बंधनों को नहीं मानता। वह वर्तमान संसार को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। सांसारिक लोग माया-मोह और अपने स्वार्थ की पूर्ति के पीछे दौड़ते हैं जिसे कवि व्यर्थ मानता है। सांसारिक लोग प्रेम को महत्व नहीं देते हैं। इसलिए कवि को संसार अपूर्ण लगता है।
प्रश्न 2. आत्म-परिचय कविता में कवि संसार को क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर- आत्म-परिचय कविता श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित है। इसमें कवि संसार को मस्ती का संदेश देना चाहता है। ऐसी मस्ती जिसमें संपूर्ण संसार मदमस्त होकर आनंद विभोर हो उठे। वह आनंदित होकर नृत्य करने लगे और इसी मस्ती में सदैव लहराता रहे।
प्रश्न 3. कवि के जीवन और संसार में क्या भिन्नता है?
उत्तर – कवि प्रेम एवं मस्ती में मदमस्त रहता है। वह प्रेम रूपी मदिरा पीकर उसी के आनंद में डूबा हुआ है। वह चारों तरफ प्रेम, मस्ती, आनंद एवं सौंदर्य का वातावरण फैलाना चाहता है जबकि यह संसार परस्पर ईर्ष्या, द्वेष, अहं की भावनाओं में डूबा है। इसे किसी के प्रेम व आनंद से कोई मतलब नहीं है। यह तो प्रेम की मस्ती को भी व्यर्थ समझता है। यह सदैव दूसरों की कोमल भावनाओं से खिलवाड़ करता है और उनका मज़ाक उड़ाता है।
प्रश्न 4. कवि ने संसार को क्या माना है और उसे किस चीज़ की आवश्यकता नहीं है?
उत्तर- कवि सुख-दुख दोनों अवस्थाओं में समान रहता है। उसने संसार को एक सागर के समान माना है। उसके अनुसार संसार के लोग इस संसार रूपी सागर को पार करने हेतु नाव बना सकते हैं, किंतु उसे इस नाव की कोई आवश्यकता नहीं है। वह सांसारिक खुशियों में डूबकर यूं ही बहना चाहता है।
प्रश्न 5. कवि संसार में किस चीज़ से प्रभावित नहीं होता?
उत्तर- कवि पृथ्वी पर व्याप्त धन ऐश्वर्य तथा शान-ओ-शौकत से तनिक भी प्रभावित नहीं होता। ऐसी शान-ओ-शौकत को वह पग-पग रा पर ठुकराता चलता है। वह कहता है कि जिस पृथ्वी पर यह संसार झूठे धन-ऐश्वर्य तथा शान और शौकत खड़ा करता है, वह ऐसी ऐश्वर्य परिपूर्ण पृथ्वी को पग-पग पर ठुकरा देता है। यह धन-वैभव कवि को तनिक भी विचलित नहीं कर सकता।
प्रश्न 6. ‘मानव जीवन क्षणभंगुर है पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि मानव जीवन क्षणभंगुर है। अर्थात् समय बहुत कम है जो अत्यंत तेज़ी से गुज़रता है। मनुष्य रूपी यात्री को यह चिंता रहती है कि उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले ही उसके रास्ते में रात न हो जाए। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत होता है।
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ कविता से अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्न
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
हो जाए न पथ में रात कहीं.
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
प्र. 1. उपरोक्त काव्यांश किस संग्रह से लिया गया है?
क) निशा निमंत्रण
ख) मधुबाला
ग) बसेरे से दूर
घ) आरती और अंगारे
उत्तर – क) निशा निमंत्रण
प्र. 2. पंथी को किस बात का डर है?
क) कहीं सूर्योदय ना हो जाए
ख) कहीं मंजिल दूर ना चली जाए
ग) कहीं रास्ते में रात्रि ना हो जाए
घ) कहीं उसकी प्रतीक्षा करने वाला चला ना जाए
उत्तर – ग) कहीं रास्ते में रात्रि ना हो जाए
प्र. 3. ‘पंथी’ का समानार्थी शब्द क्या नहीं है?
क) बटोही
ख) पथिक
ग) यात्री
घ) मंजिल
उत्तर – घ) मंजिल
प्र.4. दिन ‘जल्दी-जल्दी ढलता है, पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
क) पुनरुक्ति प्रकाश
ख) यमक
ग) रूपक
घ) उपमा
उत्तर – क) पुनरुक्ति प्रकाश
प्र.5. पथिक की चाल शाम ढलते ढलते तेज हो जाती है क्योंकि
क) उस भविष्य की योजना बनानी है।
ख) दिन भर के कार्य से वह थक चुका है।
ग) घर पर कोई प्रतीक्षारत है।
घ) बाहर चारों ओर शत्रु हैं।
उत्तर – ग) घर पर कोई प्रतीक्षारत है।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्न
प्रश्न 1 कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में पक्षी तो घर लौटने को विकल है, पर कवि में उत्साह नहीं है। ऐसा क्यों?
उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में शाम को घर लौटते हुए पक्षियों को व्याकुल और आतुर बच्चों की याद आने लगती है और उनसे मिलने के लिए वे भी बेचैन हो जाते हैं, जिसकी वजह से उनके पंखों में तेजी व चंचलता आ जाती है और वे शीघ्र ही घर पहुंचने का प्रयास करने लगते हैं। इस कविता में आगे बताया गया है कि कवि के घर में उसकी प्रतीक्षा करने वाल कोई भी नहीं है। घर में उसके आने के इंतजार में कोई व्याकुल नहीं होगा और वह सोचने लगता है कि वह घर जाने की शीघ्रता क्यों करे। अतः पक्षी तो घर लौटने को व्याकुल है परंतु कवि में कोई उत्साह नहीं है।
प्रश्न 2- ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में चिड़िया अपने घरोंदों की ओर लौटने को विकल क्यों हैं?
अथवा
चिड़िया के परों में चंचलता आने का क्या कारण है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- चिड़िया दिन को जल्दी-जल्दी डलते देखती है तो उसे अपने बच्चों का स्मरण हो आता है। उसे ध्यान आता है कि उसके बच्चे दाने और माँ के लौटने की प्रतीक्षा में होंगे और विकल होकर बार-बार घोसले से झाँक रहे होंगे। इसी कारण चिडिया के परों में चंचलता आ जाती है और वह अपने घोंसले की ओर लौटने को विकल हो उठती है।
प्रश्न 3- दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता में कवि अपने घर की और लौटने में शिथिल तथा अनुत्साहित क्यों है?
अथवा
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि की गति में शिथिलता और हृदय में विह्वलता का क्या कारण है?
उत्तर- कवि जानता है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। वह गतिशील है और उसकी अपनी गति है। कवि को यह जानकारी है कि घर पर उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं होगा। उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं होगा। इसलिए वह किसके लिए शीघ्रता करे। यह बात कवि के पैरों को शिथिल कर देती है लेकिन मंजिल पर पहुँचने की जलक उसके हृदय में बेचनी भर देती है। उसे लगता है कि कहीं रास्ते में रात न हो जाए। किसी अनजानी जगह पर प्रिय की यादों के साथ रात बिताना अत्यंत कष्टकर होगा। उसे फिर नए सिरे से सफर करना होगा। जल्दी-जल्दी ढलते दिन का ध्यान आते ही उसके पैरों में चंचलता आ जाती है। इस तरह कवि अपने घर की ओर लौटने में शिथिल तथा अनुत्साहित भी है।
प्रश्न 4- कवि अपने घर जाने के लिए व्याकुल और उत्साहित क्यों नहीं है?
उत्तर – कवि एकाकी है। दिन अपनी गति से ढल रहा है किन्तु कवि का इंतजार करने वाला और कवि से मिलने के लिए व्याकुल कोई नहीं है। कवि को लगता है कि वह किसके लिए शीघ्रता करे? यह भाव उसके पैरों को शिथिल / धीमा कर देता है। इसी कारण उसके मन में घर जाने का न उत्साह है और न ही उत्कंठा। लेकिन दिन जल्दी-जल्दी ढलता देख कवि में हृदय लक्ष्य तक पहुँचने की व्याकुलता भर जाती है।
प्रश्न 5- चिड़िया के बच्चे किस आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर – चिड़िया के बच्चे समय पर दाना पाने और अपनी माँ के शीघ्र लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसी आशा में वे नीड़ों / घोंसलों से बार-बार झाँक रहे होंगे।
प्रश्न 6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है -कविता का प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर : प्रस्तुत कविता प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डालती है। प्रेम की तरंग ही मनुष्य के जीवन में उमंग की हिलोरें पैदा करती है। प्रेम के कारण ही मनुष्य को लगता है कि दिन जल्दी जल्दी बीत जा रहा है। इससे अपने प्रियजनों से मिलने हेतु कदम में तेजी आ जाती है।
प्रश्न 7. यदि मंजिल दूर हो तो लोगों की वहाँ पहुँचाने की मानसिकता कैसी होती है?
उत्तर: मंजिल दूर होने पर लोगों में उदासीनता का भाव आ जाता है। कभी-कभी उनके मन में निराशा भी आ जाती है। मंजिल की दूरी के कारण कुछ लोग घबराकर प्रयास करना भी
छोड़ देते हैं। मनुष्य आशा व निराशा के बीच झूलता रहता है।
प्रश्न 8. घर लौटते हुए कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
उत्तर: घर लौटते समय कवि को स्मरण हो जाता है कि जिस प्रिय से मिलने की आकांक्षा है उसका अस्तित्व अब संसार में नहीं है। अतः कवि में निराशा के भाव आने से वह सोच
में पड़ जाता है और उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।
प्रश्न 9. चिड़िया किसके बारे में सोचकर चंचल हो रही है?
उत्तर : चिड़िया अपने बच्चों के बारे में सोचकर चंचल हो रही है। शाम ढलते ही अन्धेरा हो जाने पर चिड़िया के बच्चे डर जायेंगे। वे अपनी माँ की प्रतीक्षा में घोंसले से झाँक रहे होंगे। माँ अपने बच्चों की चिंता में बेचैन हो रही।
प्रश्न 10. जीवन रूपी पथ में अँधेरा छाने के भय से कौन और क्यों भयभीत है?
उत्तर : राहगीर रात होने से पहले अर्थात् परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने से पहले अपनी मंजिल को पा लेना चाहता है। उसे लगता है कि समय बहुत तीव्र गति से बीत रहा है। अतः वह समय रहते हुए अपना कार्य पूरा कर लेना चाहता है।