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 पुस्तकालय की आवश्यकता पर एक शानदार निबंध

pustakalay par ek shandaar nibandh

संकेत बिंदु – (1) जिज्ञासा शांति का स्थल (2) ज्ञानार्जन का प्रमुख केंद्र (3) पुस्तकालय के प्रकार (4) पुस्तकालयों की प्राचीन परंपरा (5) व्यक्ति के ज्ञान का तीसरा नेत्र।

पुस्तकालय ज्ञान का आगार है। स्वस्थ मनोरंजन का चित्रपट है। व्यक्ति की जिज्ञासा की शांति का स्थल तथा बौद्धिक विकास एवं तृप्ति का आश्रय स्थल है। शिक्षा, ज्ञान एवं विद्या का प्रचारक और प्रसारक है। बेकन के शब्दों में, ‘पुस्तकालय ऐसे मंदिरों की तरह हैं जहाँ प्राचीन संतों-महात्माओं के सद्गुणों से परिपूर्ण तथा निर्भ्रान्त पाखंड रहित अवशेष सुरक्षित रखे जाते हैं।’

एडीसन के विचार में पुस्तकालय की ‘पुस्तकें महती प्रतिभाओं के द्वारा मानव जाति के लिए छोड़ी गई पैतृक संपत्ति है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी को सौंपी जाने के लिए हैं, मानों वे अभी अजन्मे व्यक्तियों के लिए दिए गए ज्ञान का उपहार हों।’

ज्ञानार्जन के लिए माता सरस्वती के दो मंदिर हैं – (1) विद्यालय तथा (2) पुस्तकालय। विद्यालयों (शिक्षा केन्द्रों) में गुरु मुख से सुनकर विद्या अर्जित की जाती है और पुस्तकालय में अध्ययन और चिंतन-मनन द्वारा ज्ञानार्जन होता है। विद्या के मंदिर में प्रविष्ट होने पर विद्यार्थी के मन में श्रद्धा और एकाग्रता का संभवतः अभाव हो, किंतु पुस्तकालय रूपी मंदिर में जाने वाले प्रत्येक में श्रद्धा तथा एकाग्रता का भाव होता है।

पुस्तकालय के दो भाग होते हैं – (1) वाचनालय तथा (2) पुस्तकालय। वाचनालय भारत के विभिन्न प्रदेशों से प्रकाशित प्रमुख दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक पत्र- पत्रिकाओं का पठन केंद्र है। यह विश्व में दिन-प्रतिदिन घटनाओं की जानकारी देने वाला विश्व कोश (एनस्कलोपीडिया)  सम है। पुस्तकालय विभाग विविध विषयों और उनकी विविध पुस्तकों का भंडारगृह है। यहाँ प्राचीन अलभ्य, दुर्लभ तथा अप्रकाशित हस्तलिखित तथा टंकित पांडुलिपियों का विशाल संग्रह प्राप्त होता जाता है। इन अलभ्य, दुर्लभ और अप्रकाशित पुस्तकों की त्रिवेणी में गोता लगाकर अध्येता को ज्ञान के मोती प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है।

पुस्तकालय चार प्रकार के होते हैं – (1) निजी पुस्तकालय व्यक्ति के शौक और पसंद की पुस्तकों का पुस्तकालय होता है। इसका उपयोग अत्यंत सीमित होता है। (2) विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय। इनका उपयोग इनके सदस्यों तक ही सीमित रहता है। फिर भी, विश्वविद्यालय पुस्तकालय विभिन्न विषयों के प्रकाशित-अप्रकाशित शोधार्थियों की कृतियों का महा-समुद्र है। नवीन शोधार्थी के लिए ज्ञान का आश्रय स्थल है, इच्छा की प्रसादी है तथा कर्म का कुरुक्षेत्र है। (3) संस्थागत पुस्तकालय बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, औद्योगिक संस्थान, बैंक, क्लब, सरकारी कार्यालय अपनी-अपनी आवश्यकता और रुचि की पुस्तकें रखते हैं। इनसे उनके सदस्यों का मनोरंजन तथा जिज्ञासुओं की जिज्ञासा की शांति, दोनों उद्देश्य पूर्ण होते हैं। (4) सार्वजनिक पुस्तकालय। इन पुस्तकालयों से प्रत्येक नागरिक लाभ उठा सकता है।

भारत में पुस्तकालयों की परंपरा प्राचीन काल से ही मिलती है। यहाँ के नालंदा, तक्षशिला और बल्लभी के पुस्तकालय विश्व-विख्यात हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रत्नागार थे। जिन्हें ज्ञान के बैरी मुगल बादशाहों ने निर्ममता से जलवा दिया। मुद्रण कला के साथ भारत में पुस्तकालयों की लोकप्रियता बढ़ी परतंत्र भारत ने पुनः अत्यंत समृद्ध पुस्तकालय खड़ा किया भी तो अंग्रेजों की कृपा से वह लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की शोभा बढ़ा रहा है। स्वतंत्र भारत में पुस्तकालयों का पुनः विकास शुरू हुआ। राज्य सरकारों के सहयोग से जिला पुस्तकालय स्थापित हुए। जैसे- दिल्ली में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी तथा पटना की सिन्हा लाइब्रेरी। इन पुस्तकालयों की चलती-फिरती लाइब्रेरियाँ भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में जाकर लोगों में पुस्तक-प्रेम उत्पन्न करती हैं। केंद्रीय सरकार ने राजा राममोहन राय संस्थान, कलकत्ता की स्थापना कर पुस्तकालय प्रसार और प्रचार के कपाट खोले। दूसरी ओर कलकत्ता, बम्बई, मद्रास तथा दिल्ली में ‘नेशनल लाइब्रेरी’ स्थापित कर पुस्तकालयों में पुस्तक – कोश का मार्ग प्रशस्त किया। इन चारों लाइब्रेरियों के लिए प्रत्येक प्रकाशक को अपनी प्रकाशित दो पुस्तकें बिना मूल्य भेजने का अनिवार्य प्रावधान है।

जिस प्रकार सिनेमा घर के चित्रपट स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं। उसी प्रकार पुस्तकालय की पुस्तकें जनता को मनोरंजन भी प्रदान करती है। पुस्तकालय से उपन्यास, कहानियाँ, कॉमिक्स, हास्य-व्यंग्य कथाओं की पुस्तकों का सर्वाधिक प्रयोग इसका प्रमाण है।

पुस्तकालय व्यक्ति के ज्ञान का तीसरा नेत्र खोलता है। तुलनात्मक अध्ययन का अवसर प्रदान करता है। शोधार्थियों को अप्राप्य, अलभ्य और अप्रकाशित पुस्तकों के दर्शन करवाता है। विशिष्ट विषय में विशेष योग्यता चाहने वालों को उनकी वाँछित पुस्तकें प्रदान करता है। यह शंकालुओं की शंका का समाधान करता है, जिज्ञासुओं की जिज्ञासा शांत करता है। शिक्षा, ज्ञान एवं विद्या का प्रचार और प्रसार कर घर में बैठे-बैठे विद्वान बनाता है।

पुस्तकालय जनता की संपत्ति है। लेखकों की धरोहर है। पाठक उसका ट्रस्टी (न्यासी) है। ट्रस्टी जैसे स्वामी नहीं होता, उसी प्रकार पुस्तकालय की पुस्तकों का पाठक पुस्तकों का स्वामी नहीं होता। इसलिए वह पुस्तकों से खिलवाड़ करने का अधिकारी नहीं है। पुस्तकों पर रेखाएँ लगाना, उन्हें चिह्नित करना, पृष्ठ फाड़ना या उनसे चित्र काटना अमानत में खयानत है, धरोहर से विश्वासघात है। न्यासी के दायित्व की अवहेलना है।

पुस्तकालय विचारों के भव्य मंदिर हैं। विद्वानों और महालेखक-लेखिकाओं के मानसों को पाठकीय मानस में प्रतिबिम्बित करने के तेजस्वी मणि हैं। ज्ञान की ज्योति का प्रचंड प्रभाकर हैं। सत्य-शिव सुंदर के प्रदर्शक और मंत्र द्रष्टा हैं। आनंद के प्रदाता हैं।

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