Lets see Essays

शिक्षा का माध्यम मातृभाषा – एक शानदार निबंध

mother-tongue-importance matri bhasha me shixan ka mahattv par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु – (1) भाषा की समस्या (2) नई शिक्षा नीति में शिक्षा का माध्यम (3) क्षेत्रीय जनता के लिए रुचिकर (4) हिंदी और भारतीय भाषाओं को सम्मान (5) उपसंहार।

भारत जैसे बहुभाषीय विशाल देश में जहाँ अनेक समस्याएँ हैं, वहाँ भाषा भी एक समस्या है। देश के हर कोने के सदा यह शोर उठता रहता है कि हमारी अमुक भाषा है, हम अमुक भाषा को चाहते हैं और अधिकांश लोग अंग्रेजी को महत्त्व देते हैं। देश में प्रशासन की भाषा, राजभाषा, न्याय की भाषा आदि बिंदुओं पर मतभेद रहता है और विभिन्न समस्याएँ भी भाषा को लेकर उत्पन्न होती हैं वहीं शिक्षा के माध्यम से प्रश्न पर भी मतभेद और समस्याएँ उभरकर सामने आती हैं। शिक्षा शास्त्रियों का मत है कि शिक्षा का माध्यम प्राथमिक स्तर से लेकर शोध स्तर तक मातृभाषा में होना चाहिए, इस प्रक्रिया से मातृभाषा का उत्थान तो होगा ही साथ ही राष्ट्रभाषा हिंदी को भी बल मिलेगा।

यह सत्य है कि कुछ देशों में (जिनमें भारत भी शामिल हैं) अभी भी यहाँ बहुत समय से विदेशी भाषाएँ शिक्षा का माध्यम रही हैं, किंतु यह आदर्श स्थिति नहीं कही जा सकती। विदेशी भाषा में मौलिक शोध संभव नहीं हो सकता, विदेशी चिंतन से स्वयं के मौलिक चिंतन की हत्या प्रायः हो जाती है, चिंतन दब जाता है। यह स्थिति तकनीकी शिक्षा और विज्ञान में लागू होती है।

नयी शिक्षा नीति में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अंततः सभी स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा (भारतीय भाषाएँ) होगा। शिक्षा नीति में यह भी स्पष्ट है कि अब तक शिक्षा का माध्यम जो अंग्रेजी का है उसे तुरंत हटाना तो उचित नहीं होगा लेकिन आने वाले समय में अंग्रेज़ी के प्रभाव को कम करने के लिए मातृभाषा का उपयोग किया जाएगा। विभिन्न ज्ञान शाखाओं की सामग्री का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराकर उच्च शिक्षा और शोध के माध्यम को सशक्त बनाया जाएगा।

मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने का सर्वव्यापक लाभ होगा और इस प्रक्रिया से देशभर में साक्षरता का अनुपात बढ़ेगा। पिछले 40-50 वर्षों में इस दिशा में रचनात्मक कार्य हुआ भी है। राजकीय और सामाजिक प्रयत्नों के फलस्वरूप अब तक विज्ञान तथा अन्य विषयों पर हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में हज़ारों ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है। यह कार्य इस बात का संकेत है कि हमारे शिक्षा शास्त्री भी मातृभाषा में शिक्षा की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं। प्रत्येक राज्य में स्थापित अकादमियाँ प्राथमिक स्तर से लेकर उच्चशिक्षा तक के प्रत्येक विषय की पाठ्य सामग्री अपनी-अपनी मातृभाषा अर्थात् भारतीय भाषा में तैयार कराने में सलंग्न हैं। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में किए जाने के संदर्भ में देश के हर कोने से एक मौन क्रांति शिक्षा के माध्यम क्षेत्र में आ रही है, भले ही हमें इसका अहसास अभी नहीं हो पा रहा, किंतु भविष्य आशापूर्ण लगता है।

मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाना क्षेत्रीय जनता के लिए रुचिकर और आसान हो जाएगा। जिस भाषा का हम घर पर उपयोग करते है उसी भाषा में शिक्षा का पाना शिक्षार्थी के लिए हितकर होगा ही साथ ही उसके पढ़ने की रुचि को भी बल मिलेगा। मातृभाषा में जहाँ शिक्षा का महत्त्व होगा वहीं बोलियों के उत्थान का भी अवसर होगा। जैसे पंजाबी भाषा के अंदर अनेक बोलियाँ हैं, उन्हें भी फलने-फूलने का अधिकार मिल जाएगा।

शिक्षा के इस क्षेत्र में शिक्षाविदों, शिक्षा शास्त्रियों के प्रयास से रचनात्मक कार्य हो रहे हैं और भविष्य में शिक्षा का स्वरूप उभरकर सामने आएगा। वह समाज और देश के लिए सृजनात्मक होगा।

मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने से एक समस्या भी सामने आ सकती है। वह यह है कि माध्यमिक शिक्षा से लेकर उच्चशिक्षा तक (जब तक अंग्रेज़ी भाषा को मान्यता रहेगी) विद्यार्थी को त्रिभाषा को स्वीकार कर अध्ययन पूर्ण करना पड़ेगा। मातृभाषा, हिंदी के साथ अंग्रेज़ी को भी माध्यम बनाना होगा। जब मातृभाषा में सभी पुस्तकों का लेखन हो जाएगा और छात्रों को उपलब्ध हो जाएँगी तब हमें अंग्रेज़ी की आवश्यकता न रहेगी।

विदेशों से आयात की गई भाषा अंग्रेज़ी के अधिकार को समाप्त करने के लिए यह आवश्यक भी है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में हो। इस प्रक्रिया से देशभर की पंद्रह भाषाओं को सम्मान तो मिलेगा ही साथ ही राष्ट्रभाषा हिंदी को भी आगे बढ़ने का पर्याप्त अवसर मिलेगा। हमारा देश जिन क्षेत्रों में नए युग की उत्क्रान्ति ही रहा है उनमें शिक्षा ही नहीं भाषा भी प्रमुख है। विदेशी भाषा के स्थान पर भारतीय भाषाओं (मातृभाषा) को शिक्षा का माध्यम बनाने का जो युगांतकारी प्रयास हो रहा है, उसमें आज के शिक्षक वर्ग की ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह भी है। शिक्षा और भाषा की इस कठिनाई को दूर करने के लिए जो आधारशिला शिक्षा शास्त्रियों द्वारा रख दी जाएगी इतिहास में इसका विशेष उल्लेख रहेगा।

मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाना ही राष्ट्रीय जागरण को नव प्राण देने के समान होगा, यही नहीं जब इसे सार्वजनिक रूप से सरकार द्वारा मान्यता दी जाएगी तो देश में इस प्रणाली का स्वागत किया जाएगा। अल्प समय में कोमल-मति बालकों को विविध प्रकार से मातृभाषा के द्वारा ही विविध प्रकार की उपयोगी जानकारी से अवगत कराया जा सकेगा। मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने से भले ही स्पर्धा में बैठे विद्यार्थियों में असमानता रहेगी मगर ज्ञान और भाषा के माध्यम से हर छात्र प्रतियोगिता के लिए स्वयं को पूर्ण रूप से उपयोगी पाएगा, क्योंकि मातृभाषा क्षेत्रीय भाषा तो होगी ही साथ ही राष्ट्रीय भाषा के ज्ञान में तो समरूपता होने के कारण छात्रों के मन की भावना समाप्त होगी। शिक्षा और ज्ञान के विस्तार के लिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में उपयोगी रहेगा और सभी को उन्नति के अवसर में भी समानता रहेगी, देश के भविष्य के लिए यह हितकर और उन्नति- परक भी होगा।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page