संकेत बिंदु – (1) विद्यालय का सामान्य परिचय (2) विद्यालय की विशेषताएँ (3) विद्यार्थियों की प्रतिभा निखारना (4) भारत यात्रा और वार्षिकोत्सव (5) विद्यालय में कमियाँ।
मेरे विद्यालय का नाम है राष्ट्रीय विद्या मंदिर। इसमें छठी से बारहवीं श्रेणी तक पढ़ाई होती है। यह सेण्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन, दिल्ली से संबंध है। इसमें लगभग 550 विद्यार्थी हैं, 20 अध्यापक हैं, दो क्लर्क हैं, 3 चपरासी, 2 माली, 2 सफाई कर्मचारी तथा वाटर मैन हैं।
मेरे विद्यालय का भवन विशाल और सुंदर है। श्रेणी कक्षों के अतिरिक्त प्राचार्य तथा क्लर्क रूम हैं। इनके अतिरिक्त एक बड़ा ‘टीचर्स रूम’ है तथा एक विशाल पुस्तकालय कक्ष भी है। स्वागत कक्ष, संगीत, आलेखन, इंडोरगेम, रैडक्रास, एन.सी.सी. के भी अलग- अलग कक्ष हैं। विद्यालय भवन के साथ ही एक विस्तृत खेल का मैदान है।
विद्यालय की प्रथम विशेषता है विद्यालय का अनुशासन। विद्यालय का वातावरण अति शांत है। कोई विद्यार्थी व्यर्थ में घूमता नहीं मिलेगा। कोई बाहरी आदमी अध्ययन के समय कक्षाओं के सामने से नहीं गुजर पाएगा। कोई कक्षा बिना अध्यापक के नहीं होगी। कोई अध्यापक ऐसा नहीं होगा जिसका ‘पीरियड’ हो और वह श्रेणी में न हो। वातावरण की यह विशिष्टता ही छात्रों को दत्तचित्त होकर अध्ययन की प्रेरणा देती है।
विद्यालय की दूसरी विशेषता है स्वच्छता। स्कूल आरंभ होने से पूर्व प्रत्येक कमरा साफ होगा। शीशे दरवाजे साफ होंगे। कागज या रोटी का टुकड़ा, फलों या सब्जी के छिलके गैलरी में नहीं मिलेंगे। कूड़ा-करकट डालने के लिए स्थान-स्थान पर लगे ‘डस्टबिन’ रखे हैं। पेशाब – घर तथा शौचालय दुर्गन्ध रहित हैं।
विद्यालय की तीसरी विशेषता है शिक्षण| शिक्षण एक कला है। कलात्मक शिक्षण विद्याध्ययन का सरल उपाय है। औसत विद्यार्थी को भी योग्य बनाने की विशिष्ट शैली है। शिक्षक प्रतिदिन छात्रों का गृह कार्य देखते हैं। मंद बुद्धि छात्र-छात्राओं को विद्यालय अवकाश के बाद आधा घंटा अतिरिक्त समय दिया जाता है। बोर्ड की परीक्षाओं से एक मास पूर्व डेढ़-डेढ़ घंटे के दो अतिरिक्त पीरियड लगते हैं, जिनमें विद्यार्थी अपनी कमी को दूर करते हैं। यही कारण है कि हमारे विद्यालय का परीक्षा परिणाम न केवल शत- प्रतिशत रहता है, अपितु 10-12 डिस्टिकशन भी आती हैं।
विद्यालय की चौथी विशेषता शिक्षणेतर कार्य-कलाप हैं। इनमें वाद्यवृंद तथा खेल- कूद का विशिष्ट स्थान है। हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल, बालीबाल, कबड्डी, खो-खो, जिमनास्टिक शिक्षा की विशिष्ट व्यवस्था है। अत्याधुनिक खेल सामान तथा अंशकालीन शिक्षक खेल- दक्षता और प्रवीणता के संबल हैं। यही कारण है, हमारा विद्यालय नगर के विद्यालयों की प्रतियोगिता और प्रान्तीय प्रतियोगिताओं की अनेक वैजयंती (शील्ड) जीतकर लाता है।
हमारे विद्यालय के वाद्यवृंद का तो जवाब नहीं। 51 छात्र-छात्राओं की ‘बैंडटीम’ का बहुरंगी गणवेश, वाद्यों की स्वर लहरी तथा धुनों की कलात्मकता श्रोताओं और दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर देती है। गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने पर हमारे वाद्यवृंद को सदा प्रथम पुरस्कार प्राप्ति का गौरव मिलता है।
विद्यालय की शनिवार सभा विद्यार्थी प्रतिभा के कपाट खोलती है। जीवन और जगत की विविधता की जानकारी देती है। विद्यार्थियों में छिपी वाक् शक्ति को उद्घाटित करती है। एक ओर प्रति शनिवार वीडियो फिल्म द्वारा एक विषय विशेष की जानकारी दी जाती है तो दूसरी ओर विद्यार्थी को कविता, कहानी, चुटकुला सुनाने के लिए प्रेरित किया जाता हैं। मास के अंतिम शनिवार को अंत्याक्षरी प्रतियोगिता, वादविवाद प्रतियोगिता अथवा सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताएँ होती हैं। प्रथम, द्वितीय और तृतीय, इन तीन विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कार से प्रोत्साहित किया जाता है।
वर्ष में एक बार प्राय: दिसंबर- अवकाश में 100 विद्यार्थियों को भारत यात्रा पर ले जाया जाता है। इसमें विद्यार्थी भारतमाता की विविधता के दर्शन भी करते हैं और अपने सहपाठी की चित्तवृत्ति को और अधिक समझने का अवसर प्राप्त करते हैं।
विद्यार्थियों के प्रोत्साहन का दिन होता है – विद्यालय का वार्षिकोत्सव। इसमें विविध खेलों के श्रेष्ठ खिलाड़ियों, संगीत के वाद्य-यन्त्रों में दक्ष विद्यार्थियों तथा वार्षिक परीक्षा में आए प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय परीक्षार्थियों को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस अवसर पर छात्र रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत करते हैं, जिसमें गीत-संगीत, काव्य-पाठ, एकांकी- अभिनय प्रमुख होते हैं, जिसे देखकर दर्शक भाव-विभोर हो जाते हैं।
विद्यालय में वर्ष में एक बार शिक्षक-अभिभावक दिवस भी मनाया जाता है। इसमें विद्यार्थियों के माता-पिता या संरक्षक एकत्र होते हैं। अभिभावकों के साथ छात्र भी विद्यालय की कमियों और सुधारों पर खुले मन से विचार करते हैं। उनके विचारों को ध्यान से सुना जाता है और यथासंभव कार्यान्वित करने की चेष्टा की जाती है।
प्रभु की सृष्टि गुण-दोषमयी है। मेरे विद्यालय में भी लोगों को कुछ कमियाँ दिखती हैं। यहाँ प्रवेश पाना आकाश के तारे तोड़ लाने से कम नहीं। अपवाद छोड़ दें तो सिफारिश न किसी अधिकारी की चलती है, न धन की। योग्यता की दौड़ में जो जीत जाए, वह प्रवेश ले ले। दूसरे, विद्यालय के अनुशासन की कठोरता ने विद्यार्थियों का सैनिकीकरण-सा कर दिया हैं। परिणामतः विद्यार्थियों की सच्ची शिकायत की भी उपेक्षा होती रहती है। तीसरी ओर, विद्यालय के व्यय इतने अधिक हैं कि मध्यम वर्ग का विद्यार्थी इस पावन मंदिर में प्रवेश की बात सोच ही नहीं सकता।