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देश सेवा – पर एक शानदार निबंध

desh sewa serve country par ek shandaar nibandh

संकेत बिंदु – (1) देश के लिए कार्य (2) देश सेवा के रूप (3) स्वतंत्रता-संग्राम के देश-प्रेमी (4) देश सेवा के उदाहरण (5) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में देश-सेवा।

देशोपयोगी विषय, वस्तु, कार्य आदि में रुचि होने के कारण उसके हित, वृद्धि, उन्नति आदि के लिए किया जाने वाला काम देश सेवा है। धन-संपत्ति, शारीरिक सुख और मान, बड़ाई और प्रतिष्ठा आदि को न चाहते हुए; ममता, आसक्ति और अहंकार से रहित होकर तन, मन या धन के द्वारा देश हित में कार्य करना देश-सेवा है। देशवासियों के हित के लिए किया जाने वाला प्रत्येक कार्य देश सेवा है।

देश-सेवा का क्षेत्र विस्तृत है, विशाल है। राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक, तकनीकी, लेखकीय, संपादकीय, प्रकाशकीय, प्रचारकीय, चिकित्सकीय, क्रीड़ा आदि दृष्टि से देश की उन्नति करना देश-सेवा है।

देश-सेवा के दो रूप हैं – (1) स्वार्थ जनित सेवा और (2) व्रती सेवा। स्वार्थ-हित देश सेवा लज्जाजनक है। देश के साथ प्रवंचना है। स्वार्थी व्यक्ति कब देश को धोखा दे जाए, उसे परतंत्रता की बेड़ी पहना दे, कह नहीं सकते। विद्वान् लोग इसे कुत्ते की वृत्ति कहते हैं। उसके सेवा रूपी दीपक से केवल लपट और कालिमा ही पैदा होती है। जब वह बोलता है तो लगता है शैतान भी धर्म-ग्रंथ उद्धृत कर सकता है। काका ‘हाथरसी’ के शब्दों में उसका सिद्धांत है-

गीत गाओ त्याग के, चर्चा करो परमार्थ पर।

घूम-फिर कर अंत में आ जाइए निज स्वार्थ पर॥

व्रती – सेवा (अर्थात् मिशनरी भाव से सेवा) गौरव का प्रतीक है। देश के भाग्य पर जगमगाता तिलक है। इतिहास उस पर गर्व करता है और देशवासी उसकी जयंती और पुण्यतिथि मनाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। अपने रक्त के एक-एक बूँद को देश सेवा की भेंट चढ़ाता तो है तो आत्म तेज से देश की रक्षा करता है। वह झुकना नहीं, टूटना जानता है।

भारत को दासता की शृंखलाओं से मुक्त कराने के लिए देश सेवा में तत्पर लाखों ने जेल की सीखचों में अपना जीवन सड़ाया। घर-परिवार को बरबादी के अग्निपथ पर छोड़ दिया। पुलिस की लाठी खाई, अंग-विहीन हुए। लाखों लाठी-गोलियाँ खाकर शहीद हुए। जो क्रांतिपथ पर बढ़े उन्होंने देश-सेवा के मूल्यों से दीक्षित होकर पूर्ण वैरागी की तरह, संन्यास-जीवन के कठोर संयम द्वारा कर्मयोग के साधना-मार्ग द्वारा सारे दर्शन-शास्त्र के तात्त्विक निचोड़ को अपने जीवन में आत्मसात् कर लिया। लक्ष्य की पूर्ति के लिए निज प्राणों की पूर्णाहुति देने में अपने जीवन की सार्थकता समझी। कठोर अत्याचार, हृदय विदारक विक्षिप्त कर देने वाली असह्य पीड़ाजनक मार को हँस-हँसकर झेल गए। आजीवन कारावास भुगता या फाँसी के फंदे को चूमकर सेवा – व्रती कहलाए।

महान् कार्यों में देश-सेवा निहित है, ऐसा नहीं। छोटे-छोटे कार्यों में भी देश सेवा के भाव निहित हैं। फलों के छिलके तथा घर का कूड़ा सार्वजनिक स्थान पर न फेंककर, सार्वजनिक स्थान को गंदा न करके, उत्सवों, मेलों, रेलों बसों में ढेलमठेल न करने वाले परोक्ष रूप से देश के सौंदर्य को बढ़ाते हुए उसकी सेवा कर रहे हैं।

सरदार पटेल के विचार में, ‘देश की सेवा करने में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।’ महात्मा गाँधी का मत है, ‘जिन्होंने अपनी देह को देश सेवा में ही जीर्ण कर दिया, वे देहपात होने पर जन-मन से विस्मृत नहीं हो सकते। कभी नहीं मर सकते।’

यह देश सेवा का ही पुरस्कार है कि मोहनदास कर्मचंद गाँधी विश्ववंद्य ‘बापू’ बने। पंडित जवाहर लाल नेहरू ‘शांति दूत’ कहलाए। रवींद्र नाथ ठाकुर (साहित्य) सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर तथा चंद्रशेखर वेंकटरमण (भौतिक-साहित्य) हरगोविंद खुराना (चिकित्सा), मदर टेरेसा (दीन-दुखियों की सेवा) तथा अमर्त्यसेन (अर्थशास्त्र) ने अपने-अपने क्षेत्रों में जो सेवा की, उस पर न केवल राष्ट्र ने अपितु विश्व ने ‘नोबल पुरस्कार’ से सम्मानित कर श्रद्धा के फूल चढ़ाए।

भारत सरकार महान् देश सेवियों को भारत-रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री से सम्मानित कर कृतज्ञता अर्पित करती है। साहित्य-सेवियों को साहित्य-अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, सरस्वती सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। सिनेमा के क्षेत्र में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित कर कलाकारों की सेवाओं को सराहा जाता है। प्रधानमंत्री श्रम पुरस्कार के अंतर्गत श्रम रत्न, श्रम भूषण, श्रमवीर तथा श्रम श्री के पुरस्कार से श्रमजीवियों का उत्साहवर्धन किया जाता है। कला व संगीत के क्षेत्र में संगीत नाटक अकादमी के अंतर्गत नृत्य और रंगमंचीय कलाकारों को पुरस्कार तथा सम्मान प्रदान किए जाते हैं।

देश ईश्वर की साक्षात् प्रतिमा है। उसकी अर्थात् देशवासियों की सेवा ईश्वरीय सेवा है। सेवा-धर्म का यथार्थ अनुष्ठान करने से संसार का बंधन सुगमता से छिन्न हो जाता है। देश- सेवा के मार्ग में विघ्न-बाधाएँ आएँगी हीं, किंतु हमें शपथ लेनी होगी-

विपदाएँ आती हैं आएँ, हम न रुकेगें, हम न रुकेंगे।

आघातों की क्या चिंता है, हम न झुकेंगे, हम न झुकेंगे॥

– अटलबिहारी वाजपेयी (‘मेरी इक्यावन कविताएँ, पृष्ठ 78)

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