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पर्वतारोहण – पर एक निबंध

hindi nibandh on parwatarohan or mountaneering essay

संकेत बिंदु – (1) अत्यंत साहसपूर्ण कार्य (2) पर्वतारोहण पर जाने के लिए आवश्यक वस्तुएँ (3) पर्याप्त प्रशिक्षण, श्रम और साधन (4) पर्वतारोहण का प्रारंभ (5) विभिन्न पर्वतारोही अभियान।

पर्वतारोहण व्यक्ति की अत्यंत साहसपूर्ण अभिरुचि है। जान-बूझकर मृत्यु देवता से टक्कर लेने की प्रबल इच्छा है। प्रकृति की चुनौती को स्वीकार करने का अदम्य उत्साह है। जीवन और जगत की खाई को पार करने की अनोखी धुन है। भयंकर तूफान से जूझने का व्यसन है।

पर्वतारोहण अत्यंत दुस्साहसपूर्ण, बहुत महँगा और सामूहिक एकता पर निर्भर होता है। यह इच्छा बिना साथियों के पूर्ण नहीं हो सकती। आधुनिक यंत्र, साज-समान, लाव- लश्कर के बिना पर्वतारोहण करना क्षितिज के पार पहुँचने की कल्पना के समान है।

पर्वतारोहण का अर्थ शिमला, मंसूरी, दार्जिलिंग या कश्मीर की पक्की सड़कों की चढ़ाई नहीं। पर्वतारोहण का अर्थ ऐसे पर्वतों पर चढ़ाई है, जहाँ विधिवत् मार्ग न हों, संकरी और टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियाँ भी न हों, पथ में वृक्ष, लता-गुल्म और घास न हो, मीलों तक पानी न मिले। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मार्ग रोक खड़े हों, बर्फीली चोटियाँ पर्वतारोहण के शौक को चुनौती देती हों। जैसे एवरेस्ट या नन्दादेवी पर्वत पर आरोहण।

पर्वतारोहण करने के लिए मौसम वैज्ञानिक चाहिए, जो मौसम का अनुमान लगा सकें। ‘भूगोलवेत्ता चाहिए, जो पहाड़ पर चढ़ने का मार्ग-दर्शन कर सकें। पर्वत पर हवा का दबाव कम हो जाता है, इसके लिए ऑक्सिजन गैस के सिलैंडर चाहिए। हवा, पानी और बर्फ से सुरक्षा के लिए विशिष्ट वस्त्र और विशेष प्रकार के जूते चाहिए। संदेश-प्रेषण का यंत्र चाहिए। भोजन रखने के डिब्बे चाहिए। भोजन पकाने के लिए चूल्हा और अकस्मात् अहित होने पर दवाइयाँ चाहिए। बर्फ काटने की कुल्हाड़ी, फावड़े और ऊपर चढ़ने के लिए रस्सी तथा खूँटियाँ चाहिए। निवास और विश्राम के लिए तम्बू तथा पहाड़ के नक्शे चाहिए। इस सारे सामान को ढोने लिए प्रशिक्षित कुली चाहिए। कम महत्त्व की वस्तुओं में कैमरा या फोटोग्राफर चाहिए।

पर्वतारोहण के लिए कितना मानव श्रम, कितनी साधन-सामग्री और कितने प्रशिक्षण                                                                                                                                       की आवश्यकता है, इसका अनुमान तो उक्त विवरण से लग गया, किंतु उस पर कितना खर्च आएगा, यह कल्पनातीत है, हिसाब जोड़ें तो लाखों में पड़ता है।

18 मई, 1921 से अब तक पर्वतारोहण करने में कितने साहसियों ने हिमसमाधि ली, कितने हिम में मार्ग-भ्रष्ट होकर सदा-सदा के लिए वहाँ सो गए, कितनों को तूफानी- बर्फीली हवाएँ उड़ाकर पर्वतारोहण का मजा चखा गईं। देवतात्मा हिमालय पूछ बैठा, ‘क्या तुम भी पांडवों की भाँति आत्मसमर्पण करने आए हो?’

पर्वतों में मार्ग ढूँढना, बर्फ काट-काटकर मार्ग बनाना, बर्फ में कील गाड़ना, रस्से के सहारे ऊपर चढ़ना, बर्फीली हवाओं का सामना करना, स्थान-स्थान पर पड़ाव डालना, तम्बू गाड़ना, भोजन तैयार करना, विश्राम करना, रात्रि के भयंकर अंधकार की चुनौती स्वीकार करना, अकस्मात् हिम-खंड गिरने पर सर्वनाश की कल्पना से भी विचलित न होना, तेज वर्षा और बर्फीली आँधी आने पर अपना, अपने साथियों तथा सामान का बचाव कर पाना बहुत जीवट का काम है, आत्म-विश्वास संजोये रखने का धैर्य है और है मृत्यु की चुनौती का वीरता से प्रतिकार करना। कारण, बर्फ पर चढ़ाई अत्यंत जोखिम की चढ़ाई है।

पर्वतारोहण का कार्य सन् 1857 में अल्पाइन क्लब की स्थापना से आरंभ हुआ। सन् 1907 में इस क्लब की ओर से मिस्टर मऊ पहले पर्वतारोही चुने गए, किंतु भारत सरकार की अनुमति के अभाव में यह प्रस्ताव स्थगित कर दिया गया। 28 मई, 1921 को जनरल सर चार्ल्स ब्रूस के नेतृत्व में पर्वतारोहियों की पहली टोली हिमालय पर एवरेस्ट आरोहण के लिए गई। इस टोली ने चार मास में हिमालय के कुछ रहस्यों का पता लगाया। इसके बाद तो विभिन्न राष्ट्र अपने-अपने ढंग से हिमालय को पराजित कर आरोहण करने लगे। दस बार आरोहण-योजनाएँ असफल हुईं। अंतत: 29 मई, 1953 के दिन कर्नल हंट के नेतृत्व में स्वयं कर्नल हंट और शेरपा तेनसिंह ने मध्याह्न साढ़े ग्यारह बजे एवरेस्ट पर मानव-पग रख दिए। बीस मिनट तक एवरेस्ट शिखर पर रहने वाले ये प्रथम पर्वतारोही थे।

इसी प्रकार नीलकंठ शिखर के आरोहण का प्रारंभ सन् 1913 में ब्रिटिश पर्वतारोही श्री मीड ने किया। उसके पश्चात् 1937, 47, 51 में पर्वतारोही योद्धाओं ने भगवान शंकर के मस्तक को स्पर्श करने का दुस्साहस किया, किंतु वे असफल रहे। सन् 1959 में पहला भारतीय पर्वतारोह दल एअर वायस मार्शल एस. एन. गोयल के नेतृत्व में गया। दूसरा दल सन् 1961 में गया। इसे हिमालय पर्वतारोहण प्रशिक्षण विद्यालय दार्जिलिंग नें सत्ताईस वर्षीय कप्तान नरेंद्रकुमार के नेतृत्व में भेजा था। अकस्मात् हिम वर्षा हो गई दल का साहस टूट गया, किंतु श्री ओ. पी. शर्मा विचलित नहीं हुए और दो शेरपाओं के साथ मौत से खेलते हुए शेष 440 फुट की चढ़ाई चढ़ गए। पाँच बज चुके थे, अंधकार छा गया था, फिर भी उन्होंने नीलकंठ भगवान की पूजा की। तीनों वीरों ने नीलकंठ की चोटी पर खड़े रात बिताई।

पर्वतारोहण अत्यंत साहस, शौर्य, धैर्य तथा सहनशीलता का परिचायक है। यह बिना प्रशिक्षण पूरा नहीं हो सकता। प्रशिक्षण के बाद भी बिना टीम-टोली के, बिना टीम स्प्रिंट के तथा बिना उपकरण और साधनों के पर्वतारोहण स्वप्न बनकर रह जाता है।

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