संकेत बिंदु – (1) उद्देश्य और विचार में एकता (2) एकता और बल के उदाहरण (3) विभिन्न संगठन एकता के प्रतीक (4) एकता के अभाव के कारण देश गुलाम (5) उपसंहार।
एक होने की अवस्था या भाव एकता है। उद्देश्य, विचार आदि में सब लोगों का मिलकर एक होना एकता है। एक के लिए सब और एक सबके लिए एक, एकता की पहचान है।
अथर्ववेद एकता की पहचान कराते हुए लिखता – ‘समानो मंत्र: समितिः समानी। समानं व्रतं सहचित्तमेषाम्।’ तुम्हारे विचार, तुम्हारी समिति, तुम्हारे कर्म और तुम्हारे मन समान हों। ’सं वः पृच्यन्तां तन्वः मनांसि समुव्रता।’ तुम्हारे शरीर मिले रहें, तुम्हारे मन मिले रहें और तुम्हारे कर्म भी परस्पर मिल-जुल कर होते रहें।
साथ होने पर प्रज्वलित हो उठती हैं। पानी की एक बूँद यदि आग में पड़ जाए तो अपना अस्तित्व खो बैठती है, पर यदि हजारों बूँदें मिलकर आग पर पड़ें तो उसे बुझा देती है। तुच्छ फूस के तिनकों से बनी रस्सी से प्रबल हाथी बंध जाते हैं और शेर भीगी बिल्ली बन जाता है। बालू रेत और सीमेंट के कण की क्या सत्ता? परंतु एकता के प्रभाव से बनी दीवार चट्टान के तरह अटूट हो जाती है। कहना असंगत न होगा, यदि चिड़ियाँ एका कर लें तो शेर की खाल खींच सकती हैं। एक चींटी एक फूँक में हनुमान-कूद का स्वाद लेती है, पर वे सब मिलकर आक्रमण करें तो विषधर भी दम तोड़ देता है।
हाथ की पाँच उंगलियाँ ‘एकता में बल है’ का प्रमाण हैं। कोई छोटी है, कोई बड़ी – सभी असमान। लेकिन हाथ से किसी चीज को उठाना है तो पाँचों इकट्ठा होकर उठाती हैं। इस प्रकार पाँचों उँगलियों के सहयोग से हाथ काम करता है। उसमें से एक भी छूट जाए अथवा असहयोग कर बैठे तो कार्य में बाधा पड़ती है।
विचार और उद्देश्य की एकता के कारण आज इस्लाम धर्म विश्व पर शासन करता है। कुरान पर अगाध श्रद्धा उसका बल है। धर्म, धर्म-ग्रंथों तथा पैगम्बरों के प्रति आलोचकों के मुँह पर ताले लगाकर, उन्हें आतंकित कर, वश में रखने में उनकी एकता प्रकट होती है। ‘द सेटेनिक वर्सेज’ के विरुद्ध सलमान रुश्दी को मौत का फरमान सुनाना, ‘मुहम्मद’ नामक कहानी के बाल नायक को लेकर कर्णाटक में उथल-पुथल मचाना, मुस्लिम महिलाओं के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को राजीव सरकार से बदलवाना मुस्लिम समुदाय की एकता के मुँह बोलते उदाहरण हैं।
विभिन्न संगठन ‘एकता में बल’ के प्रतीक हैं। मजदूर एकता संगठन, बैंक कर्मचारी एकता संगठन, राजकीय कर्मचारी एकता संगठन, रेल पॉर्टर, चालक, स्टॉफ संगठन, वाहन कर्मचारी एकता संगठन आदि इतने शक्तिशाली संगठन हैं कि जो जब चाहें संसार की गति को रोक सकते हैं। पहिया जाम करके यातायात को अवरुद्ध कर सकते हैं। बैंक में हड़ताल करके एक दिन के करोड़ों रुपए के लेन-देन पर विराम चिह्न लगा सकते हैं।
एक ओर संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शक्तियों की एकता का परिचायक है तो दूसरी ओर विश्व के सौ तटस्थ, राष्ट्रों की अपनी शक्ति है। अफ्रीकी राष्ट्र एकता के बल पर विश्व को आकर्षित कर रहे हैं, तो ब्रिटिश-किंगडम के राष्ट्र अपने ऐक्य से लाभान्वित हो रहे हैं।
जिस परिवार, समाज, दल या राष्ट्र में लोग अपना-अपना राग आलापेंगे, अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग-अलग बनायेंगे, अपने स्वार्थ-वश भेद बुद्धि पैदा करेंगे, तो निश्चय ही वहाँ अकेला चला भाड़ नहीं फोड़ सकेगा। एकता के अभाव और पारस्परिक फूट के कारण सदा ही हानि उठानी पड़ती है। भारतेंदु बाबू ने सच कहा है-
जग में घर की फूट बुरी
घर की फूट से बिनसाई सुबरन लंक पुरी।
फूटहि सो जयचंद बुलायो, यवनन भारत धाम,
ताको फल अब लौं भोगत, सब आरज होई गुलाम।
हिंदू राजा-महाराजाओं की फूट के परिणामस्वरूप देश यवनों का गुलाम बना। मुगल बादशाहों की फूट के कारण, देश पर मुट्ठी पर अंग्रेजों का राज्य हो गया। विपक्ष की फूट के कारण कांग्रेस चार शताब्दी तक भारत पर निरंकुश राज्य करती रही। सृष्टि का आदिम, सभ्य, सुसंस्कृत तथा संपन्न हिंदू-धर्म फूट के कारण निरंतर पराजय और प्रतिगति के कारण ह्रासमान है। हिंदू-धर्म की सांस्कृतिक एकता भी बलहीन होकर इतिहास के पृष्ठों में समा गई है।
महाभारत में वेदव्यास जी कहते हैं,
न वै भिन्ना जातु चरन्ति धर्मं।
न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्ना।
न वै भिन्ना गौरवं प्राप्नुवन्ति।
न वै भिन्ना प्रशमं रोचयंति॥
‘जो परस्पर भेद-भाव रखते हैं, वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। वे सुख भी नहीं पाते। उन्हें गौरव प्राप्त नहीं होता तथा उन्हें शांति की वार्ता भी नहीं सुहाती।’
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की मान्यता है कि ‘ भेद और विरोध ऊपरी हैं। भीतर मनुष्य एक है। इस एक की दृढ़ता के साथ पहचानने का प्रयत्न कीजिए। जो लोग भेदभाव को पकड़कर ही अपना रास्ता निकालना चाहते हैं, वे गलती करते हैं। हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ तो एकता के बल में विश्वास प्रकट करते हुए कहते हैं- ‘वे सब, जिन्हें समाज घृणा की दृष्टि से देखता है, अपनी शक्तियों को एकत्र करें तो इन महाप्रभुओं और उच्च वंशाभिमानियों का अभिमान चूर कर सकते हैं।’
सरदार पटेल कहते हैं, ‘ अब जात-पाँत, ऊँच-नीच तथा संप्रदाय के भेदभाव भूलकर सब एक हो जाओ। मेल रखिए और निडर बनिए। ‘
यदि मानव मन में एक के लिए सब और सबके लिए एक की भावना उदित हो जाए तो वह व्यक्ति हो या परिवार, समाज हो या राष्ट्र गर्व और गौरव से उन्नत भाल होकर जीवन को सुंदरता से जी सकेगा। जीवन के सुखों को भोग सकेगा।