धर्मवीर भारती
जन्म : सन् 1926, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
प्रमुख रचनाएँ : कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठंडा लोहा (कविता संग्रह); बंद गली का आखिरी मकान (कहानी-संग्रह); सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता (उपन्यास); अंधा युग (गीतिनाट्य); पश्यंती, कहनी-अनकहनी, मानव मूल्य और साहित्य, ठेले पर हिमालय (निबंध-संग्रह)
प्रमुख सम्मान : पद्मश्री, व्यास सम्मान एवं साहित्य के कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार
निधन : सन् 1997
अपनी सहज प्रवृत्तियों को मारो मत, लेकिन उनके दास भी न बनो।
जीवन के सहज प्रवाह में उन्हें आने दो, फलीभूत होने दो।
पर यदि वे निरंकुशता से हावी होने लगें तो उन्हें
भस्म कर देने की तेजस्विता और आत्मनियंत्रण भी रखो।
गुनाहों का देवता उपन्यास से लोकप्रिय धर्मवीर भारती का आज़ादी के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज हिंदी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। भारती जी के लेखन की एक खासियत यह भी है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच उनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। वे मूल रूप से व्यक्ति स्वातंङ्क्ष, मानवीय संकट एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता एवं उत्तरदायित्वों के बावजूद उनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। रु मानियत उनकी रचनाओं में संगीत में लय की तरह मौजूद है। उनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ा पर हिंदी फ़िल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता के बाद गिरते हुए जीवन मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति अंधा युग में हुई है। अंधा युग गीतिसाहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।
इन विधाओं के अलावा भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। उनके गघ लेखन में सहजता और आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात वो बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। एक लंबे समय तक हिंदी की साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग (फ़िलहाल प्रकाशन बंद है) के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया।
पाठ का सामान्य परिचय
प्रस्तुत संस्मरण काले मेघा पानी दे में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामर्थ्य। इसमें कौन कितना सार्थक है, यह प्रश्न पढ़े-लिखे समाज को उद्वेलित करता रहता है। इसी दुविधा को लेकर लेखक ने पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवारा बीत जाने के बाद भी खेती और बहुकाज प्रयोग के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है और उन चुनौतियों का निराकरण विज्ञान न कर पाए तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज चुप नहीं बैठता। वह किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा और बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।
लेखक ने अपने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि दूर करने के लिए गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगते चलती है और लेखक का तर्क शील किशोर मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बरबादी के रूप में देखता है। इसे किशोर मन का वितर्क नहीं, वैज्ञानिक तर्क ही कहना चाहिए और विज्ञान विषय की इतने दीर्घकाल तक पढ़ाई और विज्ञानोपलब्ध आविष्कारों से अपने जीवन को भौतिक सुख-सुविधाओं से भरते रहने के बावजूद इस देश के जनमानस में ऐसी वैज्ञानिक दृष्टि का न जनम पाना अफ़सोसनाक ही कहा जा सकता है। पर जनता के सामूहिक चित्त में बैठे विश्वासों का क्या करें, जिन से संचालित होने वाले कुछ लौकिक कर्मकांड संस्कृति की घटना के रूप में हमें लगते हैं। यदि वे विश्वास प्रत्यक्षतः जानलेवा या नस्ल-जाति, मज़हब और लिंग के आधार पर किसी समुदाय के लिए अपमानजनक हों, तब तो उन्हें अंधविश्वास कहकर उनका शीघ्रातिशीघ्र निराकरण ही एकमात्र कर्तव्य है, पर यदि कुछ विश्वास विज्ञानसम्मत न होकर भी उक्त तरह से हानिकर न हों तो उनके साथ भी उसी प्रकार का बर्ताव क्या उचित है? ऐसा करने में क्या हमारे सांस्कृतिक मन के खाली-खाली हो जाने का खतरा नहीं है?
काले मेघा पानी दे – प्रतिपाद्य
काले मेघा पानी दे – प्रतिपाद्य
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लोक- प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामर्थ्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा (14 दिन) बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।
काले मेघा पानी दे – पाठ का सारांश
लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धड़ंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये आठ से अठारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को धार्मिक मानसिकता के लोग इंदर सेना और पढे-लिखे लोग मेढक – मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं- “काले मेघा पानी दे, पानी दे गुड़धानी दे, गगरी फूटी बैल पियासा, काले मेधा पानी दे।”
जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे। पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाते थे तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे? इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।
लेखक स्वयं मेढक-मंडली वालों की उमर का था। वह आर्यसमाजी था तथा कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। उसमें समाजसुधार का जोश ज्यादा था। उसे सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जीजी से थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। जिन अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था। वे ये सब कार्य लेखक को पुण्य मिलने के लिए करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया। उन्होंने कहा कि यह अंधविश्वास नहीं है।
यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे? यह पानी की बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाना है। दान-पुण्य करने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है। बिना त्याग के दान नहीं होता। करोड़पति दो-चार रुपये दान में दे दे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि तू बहुत पढ़ गया है। वह अभी भी अनपढ़ है। किसान भी तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।
ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे। यह आदमी का आचरण है जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सच नहीं है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं। लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम- निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, परंतु गगरी फूटी की फूटी रह जाती है। बैल प्यासे ही रह जाते हैं। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?
काले मेघा पानी दे
उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होनेवाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढक-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ़ एक जाँघिया या कभी-कभी सिर्फ़ लंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे, बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धड़ंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थीः
काले मेघा पानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा
पानी दे, गुड़धानी दे
काले मेघा पानी दे।
उछलते-कूदते, एक-दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रु क जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है।” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी या घड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। हाथ, पाँव, बदन, मुँह, पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बाँध कर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, “काले मेघा पानी दे।” वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर ज़मीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खा कर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी, हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेज़ों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था – सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज़्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ़ तो तरकस में तीर रख कर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज़्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़ कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमार-सुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। दीवाली है तो गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाने में लगा हूँ, जन्माष्टमी है तो रोज़ आठ दिन की झाँकी तक को सजाने और पँजीरी बाँटने में लगा हूँ, हर-छठ है तो छोटी रंगीन कुल्हियों में भूजा भर रहा हूँ। किसी में भुना चना, किसी में भुनी मटर, किसी में भुने अरवा चावल, किसी में भुना गेहूँ। जीजी यह सब मेरे हाथों से करातीं, ताकि उनका पुण्य मुझे मिले। केवल मुझे।
लेकिन इस बार मैंने साफ़ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज़्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आ कर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, “देख भइया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं। “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज़ मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँ चा स्थान दिया है।”
“ऋषि-मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी? क्या उन्होंने कहा था कि जब आदमी बूँद-बूँद पानी को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ।”
कुछ देर चुप रही जीजी, फिर मठरी मेरे मुँह में डालती हुई बोलीं, “देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रु पये हैं और उसमें से तू दो-चार रु पये किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम है, जिसकी तुझको भी ज़रूरत है तो अपनी ज़रूरत पीछे रख कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है।”
“फल-वल कुछ नहीं मिलता सब ढकोसला है।” मैंने कहा तो, पर कहीं मेरे तर्कों का किला पस्त होने लगा था। मगर मैं भी जिद्द पर अड़ा था।
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानीवाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ़ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गांधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गांधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।
इन बातों को आज पचास से ज़्यादा बरस होने को आए पर ज्यों की त्यों मन पर दर्ज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
शब्दार्थ
1. मेघा- बादल
2. इंदर- इंद्र
3. कादो- कीचड़
4. अगवानी- स्वागत
5. छज्जा-बारजा, छत के आगे का निकला हुआ हिस्सा
6. जयकारा- नारा
7. गगरी- घड़ा
8. समवेत- इकट्ठी
9. गुड़धानी- गुड़ और चने से बना लड्डू
10. जेठ- जून
11. सहेज- सँभाल
12. टेरते- आवाज़ करते
13. भुन- जल
14. त्राहिमाम-मुझे बचाओ
15. पखवारा- 15 दिनों का समय
16. क्षितिज- Horizon
17. दसतपा- तपते दस दिन
18. ढोर-ढंगर- पशु आदि
19. निर्मम- कठोर
20. क्षति- हानि
21. खान- भंडार
22. सतिया- स्वास्तिक का निशान
23. अर्घ्य- जल चढ़ाना
24. ढकोसला- दिखावा
25. किला पस्त होना- हारजाना
26. कुल्ही- मिट्टी का बर्तन
27. मदरसा- स्कूल
28. कचोटना-बुरालगाना
29. झमाझम- पूरी तरह
30. संदर्भ- प्रसंग
पाठ के साथ
1. लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी?
उत्तर – गाँव के बच्चे-किशोर समूह में एकत्रित होकर अर्धनग्न अवस्था में उछलते-कूदते, अत्यधिक शोर-शराबा तथा गंगा मैया का जयकारा लगाते हुए, गलियों में कीचड़ करते हुए घूमते थे। इसी आधार पर गाँव के पढ़े-लिखे लोगों ने इस टोली को मेंढक-मंडली नाम दे दिया था। यह टोली स्वयं को इंदर सेना कहकर पुकारती थी। ये टोली अनावृष्टि से छुटकारा पाने हेतु लोक-आस्था के कारण इंद्र महाराज को खुश करने के लिए ऐसा कार्य करती थी। इस टोली का मानना था कि वे इंद्र की सेना के सैनिक हैं और उनके इसी कार्य से प्रसन्न होकर इंद्र देवता काले मेघों द्वारा वर्षा करेंगे, जिससे गाँव, शहर, खेत-खलिहान खिल उठेंगे।
2. जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर – जीजी ने लेखक को बताया कि इंदर सेना पर पानी फेंका जाना पानी की बर्बादी नहीं है, बल्कि यह पानी का अर्घ्य चढ़ाना है। जो चीज मनुष्य पाना चाहता है, उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? अगर तीस चालीस मन गेहूँ उगाना है, तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। उसे बुवाई कहते हैं। उसी प्रकार इंदर सेना पर जो पानी फेंका जाता है, वह भी पानी की बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे, तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि मुनि यही कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना अठगुना करके लौटाएँगे। इस तरह जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को सही ठहराया।
3. पानी दे, गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?
उत्तर – ‘गुड़धानी’ गुड़ व अनाज के मिश्रण से बने खाद्य पदार्थ को कहते हैं। यहाँ ‘गुड़धानी’ से अभिप्राय उतनी ही बारिश से है जितने में गुड़ और धान की फसल अच्छे से हो जाए। गाँव की अर्थ-व्यवस्था कृषि पर आधारित होती है जो वर्षा पर निर्भर है। यहाँ मेघों से वर्षा होकर ही सूखी भूमि फिर से कृषि योग्य बनेगी, फसलें लहलहाने लगेंगी, अनाज की पैदावार होगी तथा पशु भी प्यासे नहीं मरेंगे जिनसे धन्य-धान्य की प्राप्ति होगी। चारों ओर खुशहाली फैल जाएगी। सबको खाने-पीने के लिए भरपूर सामग्री मिलेगी, इसलिए मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग की जा रही है।
4. ‘गगरी फूटी बैल पियासा’ इंदर सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?
उत्तर – भारतीय समाज एक कृषि प्रधान समाज है। हमारे समाज में किसान और बैलों के बीच का संबंध बहुत गहरा होता है। किसान बैलों को अपने परिवार वालों के समान ही सम्मान देता है। किसान अपने बैलों को भूखा प्यासा नहीं देख सकता। वह तब तक खुश नहीं रह सकता जब तक उसकी बैलों की प्यास नहीं बुझती। इसलिए वह काले मेघा से जल्दी बरसने का निवेदन करता है। गगरी फूटी का आशय है कि गाँव में सूखा होने के कारण गाँव के घरों में पानी की एक भी बूँद नहीं है। मनुष्य, बैल और पेड़ पौधों के समान घड़े भी पानी के लिए तरस रहे हैं।
5. इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?
उत्तर – इंदर सेना टोली बनाकर पानी माँगने जब निकलते थे, तब एक स्थान पर इकट्ठे होकर जयकारा लगाते थे “बोल गंगा मैया की जय”। जयकारा सुनते ही घर की औरतें और लड़कियाँ सावधान हो जाती थी। भारतीय नदियों में गंगा का प्रमुख स्थान है। भारतीय विश्वास करते हैं कि गंगा स्वर्ग से उतरकर धरती पर आई है। देवलोक की नदी होने के कारण इसे पवित्र माना जाता है। गंगा भारतीयों के लिए एक नदी ही नहीं है बल्कि देवी है, माँ है, मोक्षदायिनी है। गंगा में नहाकर भारतीय अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। भारत में हर उत्सव और मंगल कार्य गंगा के बिना अपूर्ण है। यही कारण है कि मंगल कार्य के आरंभ से पहले इंदर सेना गंगा मैया की जय बोलते हैं।
भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में नदियों का विशेष महत्त्व है। भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ की तरह पूजा जाता है। देश के लगभग सभी प्रमुख बड़े नगर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं। नदियों के किनारे ही सभ्यताओं का विकास हुआ है। अधिकतर धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी नदी-तट पर ही विकसित हुए हैं। धर्म से भी नदियों का प्रत्यक्ष संबंध है। श्रद्धालु दूर-दूर से आकर गंगा जैसी पावन नदी में स्नान करके पापमुक्त होते हैं। नदियों के पवित्र जल में स्नान करने हेतु समय-समय पर उनके किनारों पर मेलों का आयोजन किया जाता है।
6. रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमज़ोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – यह कथन पूर्णत: सत्य है कि रिश्तों में जब हमारी भावना-शक्ति बँट जाती है तो वह विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती, हमारी बुद्धि की शक्ति को कमज़ोर करती है। प्रस्तुत पाठ में जीजी लेखक को अपने बच्चों से अधिक प्यार करती है। वह अनेक तरह की धार्मिक क्रियाएँ लेखक से करवाती हैं जिन्हें लेखक अंधविश्वास मानता था। कभी-कभी ऐसा होता है कि रिश्तों को बनाए रखने के लिए अंधविश्वास का भागीदार बनना पड़ता है। भारतीय संस्कृति विश्वासों और अंधविश्वासों की खान है। ज्यादातर बड़े-बूढ़े अपने अंधविश्वास को छोड़ने का नाम नहीं लेते। यह नई पीढ़ी के युवा वर्ग अंधविश्वासों को उखाड़ कर फेंकना चाहती हैं लेकिन रिश्तों को बनाए रखने के लिए इन्हीं अंधविश्वासों का भागीदार बन जाते हैं। पाठ में लेखक को जीजी से बहुत लगाव था। इसलिए जीजी की पूजा अनुष्ठान, तीज त्योहार आदि में लेखक को भागीदार बनना पड़ता था। यद्यपि लेखक में इन अंधविश्वासों के प्रति विरोध की भावना मौजूद थी फिर भी जीजी के प्रति आदर और प्रेम के कारण वे मना नहीं कर पाते थे। इस तरह उन्हें अपनी बुद्धि शक्ति को परे रखकर भावना शक्ति में बह जाना पड़ता था।
पाठ के आस-पास
1. क्या इंदर सेना आज के युवा वर्ग का प्रेरणास्रोत हो सकती है? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव है जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो, उल्लेख करें।
उत्तर – हाँ, इंदर सेना आज के युग वर्ग की प्रेरणास्रोत हो सकती है क्योंकि किसी भी सामाजिक समस्या को यदि सुलझाना हो तो उसके लिए सामूहिक प्रयास ही आवश्यक होता है और यही प्रयास इंदर सेना द्वारा भी किया जाता था। सामूहिक शक्ति से हम किसी भी आंदोलन को सफल बना सकते हैं, जैसे पर्यावरण संबंधी ‘चिपको आंदोलन’, महात्मा गाँधी जी के सभी आंदोलन इसी सामूहिक प्रयास से ही सफल हुए। आज भी युवा यदि संगठित होकर कार्य करें, तो अशिक्षा, आंतकवाद, स्त्री-अत्याचार, स्वच्छता मिशन, सड़क सुरक्षा, वृक्षारोपण एवं तरु-रक्षण कार्य, प्लास्टिक की थैलियों का वर्जन जैसे समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य समूह में बड़े ही आसानी से पूरे किए जा सकते हैं।
2. तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता है?
उत्तर – आषाढ़ का महीना वर्षा ऋतु का प्रतीक माना जाता है। इस महीने में अधिकतर वर्षा होती है। सूखी धरती खेती के योग्य हो जाती है। किसानों को आशा की नई किरण दिखने लगती है। खेतों में धान, मक्के आदि बोए जाते हैं जिससे कृषि समाज में चहुँ ओर उल्लास और उमंग का वातावरण छा जाता है।
3. पाठ के संदर्भ में इसी पुस्तक में दी गई निराला की कविता बादल-राग पर विचार कीजिए और बताइए कि आपके जीवन में बादलों की क्या भूमिका है?
उत्तर – कवि निराला की कविता ‘बादल राग’ में बादलों को क्रांति के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। बादल शोषित वर्ग को शोषकों द्वारा मुक्त कर उन्हें उनका अधिकार दिलाता है। हमारे जीवन में बादलों की मुख्य भूमिका है। यह सत्य है कि जल ही जीवन है। मानव भोजन बिना कुछ पल बिता सकता है लेकिन पानी बिना वह अधीर हो उठता है। बादलों से ही हमारी कृषि उत्पादन निर्भर है, जिससे हमें धन और अनाज मिलता है। ये पेड़-पौधे, कुएँ, तालाब, नदियाँ आदि बादलों से ही सिंचित होती हैं, जिनसे हमारा पल-पल का साथ है।
4. त्याग तो वह होता… उसी का फल मिलता है। अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।
उत्तर – मेरे जीवन में भी एक बार ऐसी ही स्थिति आई थी जब मैंने त्याग के महत्त्व को समझा था। मैं जिस कंपनी में काम करता हूँ उसकी तरफ से मुझे एक क्वार्टर मिलने वाला था और उस क्वार्टर में जाने की मेरी इच्छा भी थी और आवश्यकता भी। पर मेरे एक सहकर्मी ने मुझसे कहा कि वो क्वार्टर मैं उसे दे दूँ क्योंकि उसे उसकी आवश्यकता मुझसे कहीं अधिक है। मैंने उसकी बात मानी और अपने क्वार्टर को उसके नाम करवा दिया। इस घटना के तीन महीने बाद कंपनी द्वारा मुझे और भी बड़ा क्वार्टर एलॉट हुआ।
5. पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से संबद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए।
उत्तर – पानी का संकट वर्तमान स्थिति में सबसे बड़ा संकट है। पानी की निरंतर होती कमी के कारण पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पानी की कमी से निम्नलिखित संकट हमारे समक्ष आ सकते हैं –
1. पानी की कमी से पेड़-पौधे सूख जाएँगे।
2. कृषि योग्य भूमि बंजर हो जाएगी।
3. पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा।
4. अकाल व सूखा पड़ जाएगा।
5. पशु-पक्षी, मानव प्यास के कारण अधीर हो जाएँगे।
6. धरती के तापमान में बढ़ोतरी हो जाएगी आदि।
7. भूजल का स्तर अत्यधिक नीचे चला जाएगा।
8. जलीय जीवों के प्राण संकट में आ जाएँगे।
6. आपकी दादी-नानी किस तरह के विश्वासों की बात करती हैं? ऐसी स्थिति में उनके प्रति आपका रवैया क्या होता है? लिखिए।
उत्तर – मेरे परिवार में मेरी दादी-नानी दादी-नानी अनेक प्रकार के व्रत-उपवास, तीज-त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान आदि में गहरी आस्था रखती हैं। उनकी इस आस्था से हम सभी प्रभावित होते हैं। हम उनकी कुछ मान्यताओं, जैसे- गुरुवार को बाल-नाखून न काटना, शनिवार को नई चीज़ें न खरीदना, बिल्ली का रास्ता काटना, निकलते समय छींक का आना, आँख का फड़कना, पशुओं का रोना आदि को अंधविश्वास भी मानते हैं। परंतु फिर भी उसका विरोध नहीं कर पाते क्योंकि नुझे लगता है कि इसका कारण उनका अशिक्षित और पुराने ख्यालों का होना है। मेरे विरोध से उन्हें दुख पहुँचेगा और साथ ही पारिवारिक शांति भी भंग होगी और वैसे भी वे जो कुछ भी इन मान्यताओं के वशीभूत होकर करती हैं, उसके पीछे उनका उद्देश्य तो पारिवारिक भलाई ही है इसलिए मैं उनकी बातों को बिना कोई तर्क दिए मान लेता हूँ।
चर्चा कीजिए
1. बादलों से संबधित अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित गीतों का संकलन करें तथा कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
2. पिछले 15-20 सालों में पर्यावरण से छेड़-छाड़ के कारण भी प्रकृति-चक्र में बदलाव आया है, जिसका परिणाम मौसम का असंतुलन है। वर्तमान बाड़मेर (राजस्थान) में आई बाढ़, मुंबई की बाढ़ तथा महाराष्ट्र का भूकंप या फिर सुनामी भी इसी का नतीजा है। इस प्रकार की घटनाओं से जुड़ी सूचनाओं, चित्रों का संकलन कीजिए और एक प्रदर्शनी का आयोजन कीजिए, जिसमें बाज़ार दर्शन पाठ में बनाए गए विज्ञापनों को भी शामिल कर सकते हैं। और हाँ ऐसी स्थितियों से बचाव के उपाय पर पर्यावरण विशेषज्ञों की राय को प्रदर्शनी में मुख्य स्थान देना न भूलें।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
विज्ञापन की दुनिया
1. ‘पानी बचाओ’ से जुड़े विज्ञापनों को एकत्र कीजिए। इस संकट के प्रति चेतावनी बरतने के लिए आप किस प्रकार का विज्ञापन बनाना चाहेंगे?
पाठ से जुड़े अन्य बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न-1 लोग बच्चों की टोली को इन्दर सेना या फिर ___________कहते थे?
(क) गायक मंडली
(ख) सेवक मंडली
(ग) मेंढ़क मंडली
(घ) वादक मंडली
उत्तर- (ग) मेंढ़क मंडली
प्रश्न-2 लेखक बच्चों की टोली में क्यों नहीं शामिल था?
(क) लेखक पानी फेंकने को अंधविश्वास मानता था।
(ख) लेखक को कीचड़ पसंद नहीं था।
(ग) इस टोली को लोग गालियाँ देते थे।
(घ) जीजी उसे मना करती थीं।
उत्तर- (क) लेखक पानी फेंकने को अंधविश्वास मानता था।
प्रश्न – 3 लेखक जीजी की हर बात मानता था क्योंकि-
(क) जीजी उसे बहुत मानती थीं और उनके प्राण लेखक में बसते थे।
(ख) जीजी अन्धविश्वासी थीं।
(ग) जीजी उसे खाने के लिए लड्डू मठरी देती थीं।
(घ) जीजी उसे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाया करती थीं।
उत्तर- (क) जीजी उसे बहुत मानती थीं और उनके प्राण लेखक में बसते थे।
प्रश्न – 4 जीजी ने अपनी बात कौन-सा उदाहरण देकर सही साबित किया?
(क) किसान और उसकी खेती का
(ख) इंद्र और उसकी सेना का
(ग) बच्चों की टोली का
(घ) पूजा-पाठ और धर्म-कर्म का
उत्तर- (क) किसान और उसकी खेती का
प्रश्न – 5 अंत में लेखक को जीजी की बात कैसी लगी?
(क) फालतू और अतार्किक
(ख) अन्धविश्वास से पूर्ण
(ग) सही और तार्किक
(घ) किसान के पक्ष में
उत्तर- (ग) सही और तार्किक
प्रश्न-6 लेखक समाज की किस कुरीति को खत्म करना चाहता था?
(क) अपराध
(ख) भ्रष्टाचार
(ग) अंधविश्वास
(घ) चोरी-डकैती
उत्तर- (ग) अंधविश्वास
प्रश्न-7 लेखक बचपन में कुमार – सुधार सभा में किस पद पर था?
(क) सेनापति
(ख) रक्षा मंत्री
(ग) सिपाही
(घ) उपमंत्री
उत्तर- (घ) उपमंत्री
प्रश्न-8 किसान तीस-चालीस मन गेहूँ की फ़सल पाने के लिए क्या करता है?
(क) खेत की रखवाली करता है।
(ख) खेतों में पानी देता है।
(ग) पशुओं को चारा खिलाता है।
(घ) पाँच-छह सेर गेहूँ बोता है।
उत्तर- (घ) पाँच-छह सेर गेहूँ बोता है।
प्रश्न- 9 ऋषि-मुनियों ने जीवन में किस आचरण को अधिक महत्व दिया है?
(क) पहले खुद दो तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे
(ख) पहले अपना भला देखना चाहिए
(ग) दूसरों का ध्यान नहीं रखना चाहिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (क) पहले खुद दो तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे
प्रश्न-10 लेखक के अनुसार गाँधी जी किस बात को सच नहीं मानते थे?
(क) त्याग और आदर्श
(ख) यथा प्रजा तथा राजा
(ग) यथा राजा तथा प्रजा
(घ) चरित्र और संयम
उत्तर- (ग) यथा राजा तथा प्रजा
पाठ से जुड़े अन्य प्रश्न
प्रश्न 1. वर्षा न होने पर गाँववासी कौन-कौन से उपाय करते हैं?
उत्तर- वर्षा न होने पर असहाय गाँववासी बारिश लाने के लिए आकाश में तो नहीं जा सकते। वे अपनी भावना, आस्था और शुभकामना व्यक्त करने के लिए जोर लगा सकते हैं। इसलिए वे पूजा-पाठ, कथा-कीर्तन आदि में किसी प्रकार की कमी नहीं रखते। जब इन उपायों से भी वर्षा नहीं होती, तो वे मेंढक-मंडली की सहायता से गाँव वालों से जल दान कराते हैं ताकि इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा कर दें।
प्रश्न 2. लेखक किस चीज को निर्मम बरबादी की संज्ञा देता है और क्यों ?
उत्तर- लेखक की नजरों में भयंकर गर्मी और जल की कमी के दिनों में इंदर-सेना पर कीमती पानी उड़ेलना पानी की निर्मम बरबादी है। उसे लगता है कि बूँद-बूँद पानी का संचय होना चाहिए। उसे व्यर्थ में गँवाना, विशेष रूप से इंद्र देवता की प्रसन्नता के लिए नष्ट करना पानी की बरबादी है।
प्रश्न 3. ऋषि–मुनियों पर लेखक भी आस्था रखता है और जीजी भी। आपको किसका तर्क सही प्रतीत होता है? उत्तर–जीजी ऋषियों-मुनियों के तर्कों का अपने पक्ष में प्रयोग करती है। वह कहती है-‘सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-आठगुना करके लौटाएँगे। जीजी इन तर्कों के आधार पर इंद्र देवता को जल चढ़ाने की परंपरा को सही मानती है।
लेखक आर्यसमाजी है। वह ऋषियों-मुनियों के वचनों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने का पक्षधर है। इसलिए जब वह अंधविश्वासों की पुष्टि में ऋषि-मुनियों का नाम जुड़ता हुआ देखता है तो आहत हो उठता है। वह जीजी को कहता है- “’ऋषि-मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी ? क्या उन्होंने कहा था कि जब आदमी बूँद-बूँद पानी को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ।”
प्रश्न 4. आपको जीजी की आस्था अधिक प्रभावित करती है या लेखक के तर्क?
उत्तर- इस पाठ को पढ़कर हमें जीजी की आस्था अधिक प्रभावित करती है। कारण यह है कि जीजी की व्याख्याएँ भी तर्कसम्मत हैं। वह परंपराओं पर आस्था रखती है। वह अनपढ़ होते हुए भी परंपराओं में छिपे मर्म को जानती है। वह तर्क की मारक शक्ति, सीमा और कमी को भी जानती है। इसके अतिरिक्त उसके व्यक्तित्व में अपार ममता है, स्नेह है और आत्मविश्वास है। यह विश्वास लेखक के तर्कों को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। सच तो यह है कि लेखक भी जीजी की आस्था से अभिभूत हो जाता है।
प्रश्न 5. इस पाठ के आधार पर त्याग और दान की महिमा पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- ‘काले मेघा पानी दे’ नामक पाठ में त्याग और दान की महिमा पर प्रकाश डाला गया है। लेखक का कहना है कि मनुष्य को वही दान करना चाहिए जो त्यागपूर्वक किया गया हो। मनुष्य के पास जिस चीज़ की कमी हो, उसी का त्याग महत्त्वपूर्ण होता है। करोड़ों रुपयों में से दो-चार रुपये दान कर देना दान नहीं है। स्वयं के लिए परमावश्यक वस्तु को दूसरे के भले के लिए किया गया त्याग ही सच्चा त्याग होता है।
प्रश्न 6. पानी की बुवाई किसे कहा गया है? आप इसे कितना सच मानते हैं?
उत्तर– जिस प्रकार किसान फसल पाने के लिए उसी बीज की बुवाई करता है। वह अधिक पाने के लिए थोड़ा-बहुत त्याग और दान भी करता है। उसी प्रकार बादलों से वर्षा पाने के लिए मनुष्य को पहले अपने संचित जल का दान करना पड़ता है। यह एक प्रकार से जल की बुवाई है। आज हमने एक घड़ा जल बोया है तो बादल कई घड़े जल प्रदान करेंगे। इस बात की वैज्ञानिकता पर मेरे मन में स्पष्ट प्रश्नचिह्न हैं। इसमें सत्य की संभावना हो सकती है। शायद गलियों में बिखरे जल की वाष्प बादलों को बरसने के लिए बाध्य कर पाती हो।
प्रश्न 7. जीजी मनुष्य के किस आचरण को महत्त्व देती है ?
उत्तर– जीजी मनुष्य के आचरण को समाज के अनुकूल बनाना चाहती है। वह कहती है- यदि मनुष्य त्यागपूर्वक दान करता है तो उसे उसका सुफल अवश्य प्राप्त होता है। दूसरे, हर आदमी का आचरण मिलकर ही समाज का आचरण बनता है। जैसी प्रजा होती है, वैसा ही राजा बनता है। वह ‘यथा प्रजा तथा राजा’ की सूक्ति पर विश्वास करती है।
पाठ से जुड़े गद्यांश आधारित प्रश्न
गद्यांश 1
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था – सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज़्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ़ तो तरकस में तीर रख कर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज़्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़ कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमार-सुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। दीवाली है तो गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाने में लगा हूँ, जन्माष्टमी है तो रोज़ आठ दिन की झाँकी तक को सजाने और पँजीरी बाँटने में लगा हूँ, हर-छठ है तो छोटी रंगीन कुल्हियों में भूजा भर रहा हूँ। किसी में भुना चना, किसी में भुनी मटर, किसी में भुने अरवा चावल, किसी में भुना गेहूँ। जीजी यह सब मेरे हाथों से करातीं, ताकि उनका पुण्य मुझे मिले। केवल मुझे।
(1) लेखक किसका उपमंत्री था?
(अ) आर्य समाज का
(ब) अंधविश्वास का
(स) मेढक- मंडली का
(द) कुमार – सुधार सभा का
उत्तर – (द) कुमार – सुधार सभा का
(2) लेखक किसके खिलाफ तरकस में तीर लेकर घूमता रहता था?
(अ) समाज
(ब) आर्य समाज
(स) मेंढक- मंडली
(द) अंधविश्वास
उत्तर – (द) अंधविश्वास
(3) लेखक की जीजी की उम्र लेखक की माँकी उम्र से-
(अ) ज्यादा थी
(ब) कम थी
(स) बराबर थी
(द) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर – (अ) ज्यादा थी
(4) जीजी के प्राण किसमें बसते थे ?
(अ) उनके बेटे में
(ब) उनकी बहू में
(स) लेखक की माँ में
(द) लेखक में
उत्तर – (द) लेखक में
(5) जीजी अपने सभी पूजा विधान किस से करवाती थी ?
(अ) अपने बेटे से
(ब) अपनी बहू से
(स) अपने पड़ोसी से
(द) लेखक से
उत्तर – (द) लेखक से
गद्यांश 2
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानीवाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ़ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गांधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गांधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।
(1) किसान 30 – 40 मन गेहूँ के लिए कितना गेहूँ जमीन में क्यारियों में बुवाई करता है।
(अ) दस-बीस सेर
(ब) पंद्रह-बीस सेर
(स) पाँच-छह सेर
(द) पच्चीस-तीस सेर
उत्तर – (स) पाँच-छह सेर
(2) पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना – अठ गुना करके लौटाएँगे। यह किसने कहा-
(अ) भगवान ने
(ब) ऋषि-मुनियों ने
(स) जीजी ने
(द) लेखक ने
उत्तर – (ब) ऋषि-मुनियों ने
(3) ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का अर्थ होता है।
(अ) जैसी प्रजा वैसी राजा
(स) राजा के विपरीत प्रजा का आचरण
(ब) प्रजा के अनुसार राजा का आचरण
(द) राजा के आचरण के अनुसार प्रजा का आचरण
उत्तर – (द) राजा के आचरण के अनुसार प्रजा का आचरण
(4) यथा प्रजा तथा राजा का अर्थ है-
(अ) राजा प्रजा एक समान
(ब) प्रजा बड़ी राजा छोटा
(स) राजा बड़ा प्रजा छोटी
(द) प्रजा के अनुसार राजा का आचरण
उत्तर – (द) प्रजा के अनुसार राजा का आचरण
(5) पुलिस की लाठी किसने खाई थी?
(अ) लेखक ने
(ब) प्रजा ने
(स) लेखक के लड़के ने
(द) जीजी के लड़के ने
उत्तर – (द) जीजी के लड़के ने
गद्यांश – 3
उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होनेवाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढक-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ़ एक जाँघिया या कभी-कभी सिर्फ़ लंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे, बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धड़ंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थीः
(1) गाँव से पानी माँगने वालों को लोग किस नाम से पुकारते थे?
(अ) किशोर बच्चे
(ब) बच्चों की मंडली
(स) उछल कूद करते बच्चे
(द) मेढक मंडली या इंदर सेना
उत्तर – (द) मेढक मंडली या इंदर सेना
(2) मेंढक मंडली से क्या आशय है?
(अ) इंद्रसेना
(ब) 12 बरस के बच्चे
(स) मेंढकों की मंडली
(द) मेंढक की तरह उछल – कूद करते बच्चे
उत्तर – (द) मेंढक की तरह उछल – कूद करते बच्चे
(3) मेढक मंडली में कैसे बच्चे होते थे?
(अ) 10 बरस के बच्चे
(ब) 16-18 बरस के
(स) 16 बरस के बच्चे
(द) 10- 12 बरस से 16-18 बरस के बच्चे
उत्तर – (द) 10- 12 बरस से 16-18 बरस के बच्चे
(4) इंदर सेना की जयकारे की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
(अ) लोग घबरा जाते थे।
(ब) लोग घर छोड़कर भाग जाते थे।
(स) लोग उछल कूद करने लगते थे।
(द) लोग सावधान हो जाते थे।
उत्तर – (द) लोग सावधान हो जाते थे।
(5) वे लोग पानी क्यों माँगते थे?
(अ) खेतों को पटाने के लिए
(स) नहाने के लिए
(ब) अपनी प्यास बुझाने के लिए
(द) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर – (द) उपर्युक्त कोई नहीं।