आनंद यादव
जन्मः 1935, कागल, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में। पूरा नाम आनंद रतन यादव। पाठकों के बीच आनंद यादव के नाम से परिचित। मराठी एवं संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर डॉ. आनंद यादव बहुत समय तक पुणे विश्वविघालय में मराठी विभाग में कार्यरत रहे। अब तक लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित। उपन्यास के अतिरिक्त कविता-संग्रह समालोचनात्मक निबंध आदि पुस्तकें भी प्रकाशित। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित नटरंग हिंदी-पाठकों के बीच भी चर्चित। यहाँ प्रस्तुत अंश जूझ उपन्यास से लिया गया है जो सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है।
‘जूझ’ पाठ का सामान्य परिचय
‘जूझ’ कहानी मूलरूप से मराठी उपन्यास ‘झोबी’ से ली गई हैं। जिसके लेखक डॉ. आनंद यादव हैं। इस मराठी कहानी का हिंदी अनुवाद केशव प्रथम वीर द्वारा किया है। डॉ. आनंद रतन यादव का मूल नाम आनंदा रत्नाप्पा ज़काते हैं। जूझ (अर्थात जूझना या संघर्ष करना) कहानी आनंद यादव की आत्मकथा का एक हिस्सा है।
जूझ
पाठशाला जाने के लिए मन तड़पता था। लेकिन दादा के सामने खड़े होकर यह कहने की हिम्मत नहीं होती कि, “मैं पढ़ने जाऊँगा।” डर लगता था कि हड्डी -पसली एक कर देगा। इसलिए मैं इस ताक में रहता कि कोई दादा को समझा दे। मुझे इसका विश्वास था कि जन्म-भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। जो बाबा के समय था, वह दादा के समय नहीं रहा। यह खेती हमें गइे में धकेल रही है। पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आण्णा की तरह कुछ धंधा कारोबार किया जा सकेगा।’ अंदर-ही-अंदर इस तरह के विचार चलते रहते।
दीवाली बीत जाने पर महीना-भर ईख पेरने का कोल्हू चलाना होता। कोल्हू ज़रा जल्दी शुरू किया तो दादा की समझ से ईख की अच्छी-खासी कीमत मिल जाती। यह उसकी समझ कुछ हद तक सही थी। जब चारों ओर कोल्हू चलने लगते तो बाज़ार में गुड़ की बहुतायत हो जाती और भाव नीचे उतर आते। उस समय नबंर एक और नबंर दो का गुड़ बहुत आता और हमारे जैसे खेतों पर ही बनाए गए नंबर तीन के गुड़ को कौन पूछता। बाकी के किसान दूसरे ढंग से विचार करते थे। उनका मत था कि यदि ईख को और कुछ दिन खेत में खड़ी रहने दिया गया तो गुड़ ज़रा ज़्यादा निकलता है। देर तक खड़ी रहने वाली ईख के रस में पानी की मात्रा कम होती है और रस गाढ़ा हो जाता है जिसके कारण ज़्यादा गुड़ निकलता है। लेकिन दादा की समझ से गुड़ ज़्यादा निकलने की अपेक्षा भाव ज़्यादा मिलना चाहिए। इसलिए सारे गाँव भर में हमारा कोल्हू सबसे पहले शुरू होता था।
इसी कारण वह इस वर्ष भी शुरू हुआ और हम उससे जल्दी निपट गए। आगे के काम में लग गए।
सभी जन धूप में लेटे हुए थे। माँ धूप में कंडे थाप रही थी- मैं बाल्टी में पानी भर-भरकर उसे दे रहा था। कुछ-न-कुछ बातचीत भी कर रहे थे। हम दोनों ही थे इसलिए यह सोचकर कि बात माँ से कहनी चाहिए और मैंने अपने पढ़ने की बात छेड़ दी।
माँ ने कहा, “अब तू ही बता, मैं का करूँ?” पढ़ने-लिखने की बात की तो वह बरहेला सूअर की तरह गुर्राता है। तुझे मालूम है।”…माँ के मन में जंगली सूअर बहुत गहराई में बैठा हुआ था।
“अब मॢा (खेती) के सभी काम बीत गए हैं। मेरे लिए अब कुछ तो करना नहीं रह गया है। इसलिए कहता हूँ तू दत्ता जी राव सरकार से मेरे पढ़ने के बारे में कह। आज ही रात को उनके यहाँ चलेंगे। मैं चलूँगा तेरे साथ। तू उन्हें सब कुछ समझाकर बता दे। तो वे दादा को ठीक तरह से समझा सकेंगे।”
“ठीक है चलेंगे।” माँ ने हाँ तो की लेकिन अंदर से माँ के स्वर में उदासी थी। मुझे भी मालूम था कि इतना करने पर भी कोई लाभ नहीं होगा। लेकिन वह मेरा मन रखने के लिए जाने को तैयार हो गई। मेरी तड़पन वह समझती थी। सातवीं तक पढ़ाने की उसके मन में तैयारी थी। लेकिन दादा के आगे उसका बस नहीं चलता था।
रात को मैं और माँ दत्ता जी राव देसाई के यहाँ गए। माँ ने दीवार के सहारे बैठकर दत्ता जी राव से सब कुछ कह दिया। वे भी इस बात से सहमत हो गए। माँ ने यह भी बताया कि दादा सारे दिन बाज़ार में रखमाबाई के पास गुज़ार देता है। खेती के काम में हाथ नहीं लगाता है। माँ ने देसाई को यह विश्वास दिला दिया कि दादा को सारे गाँव भर आज़ादी के साथ घूमने को मिलता रहे, इसलिए उसने मेरा पढ़ना बंद कर मुझे खेती में जोत दिया है। यह सुनते ही देसाई दादा चिढ़ गए और बोले, “आने दे अब उसे, मैं उसे सुनाता हूँ कि नहीं अच्छी तरह, देख।”
उठते-उठते मैंने भी दत्ता जी राव से कहा, “अब जनवरी का महीना है। अब परीक्षा नज़दीक आ गई है। मैं यदि अभी भी कक्षा में जाकर बैठ गया और पढ़ाई की दुहराई कर ली तो दो महीने में पाँचवीं की सारी तैयारी हो जाएगी और मैं परीक्षा में पास हो जाऊँगा। इस तरह मेरा साल बच जाएगा। अब खेती में ऐसा कुछ काम नहीं है। मेरा पहले ही एक वर्ष बेकार में चला गया है।”
“ठीक है, ठीक है। अब तुम दोनों अपने घर जाओ – जब वह आ जाए तो मेरे पास भेज देना और उसके पीछे से घड़ी भर बाद में तू भी आ जाना रे छोरा।”
“जी!” कहकर हम खड़े हो गए। उठते-उठते हमने यह भी कहा कि “हमने यहाँ आकर ये सभी बातें कही हैं, यह मत बता देना, नहीं तो हम दोनों की खैरर नहीं है। माँ अकेली साग-भाजी देने आई थी। यह बता देंगे तो अच्छा होगा।”
“ठीक है, ठीक है। मुझे जो करना है मैं करूँगा। देख, उसके सामने ही तुझसे कुछ पूछूँगा तो निडर होकर साफ़-साफ़ उत्तर देना। डरना मत।”
“नहीं जी।”
मैं माँ के साथ लौट आया। एक घंटा रात बीते दादा घर पर आया। मैं घर में ही था। आते ही माँ ने दादा से कहा, “साग-भाजी देने देसाई सरकार के यहाँ गई थी तो उन्होंने कहा कि बहुत दिनों से तेरा मालिक दिखाई नहीं दिया है। खेत से आ जाने पर ज़रा इधर भेज देना।”
“कुछ काम-वाम था?” दादा ने अधीरता से पूछा।
“मुझे तो कुछ बताया नहीं उन्होंने।”
“तो मैं हो आता हूँ। तब तक तू रोटियाँ सेंक ले। गणपा आए तो उसे खेतों पर भेज देना पहले ही।”
दादा तुरंत उठ खड़ा हुआ। देसाई के बाड़े का बुलावा दादा के लिए सम्मान की बात थी। आधा घंटा बीतने पर माँ ने मुझसे कहा कि “अब तू जा, कहना जीमने बुलाया है।”
“अच्छा।”
मैं पहुँचा तो सरकार मेरी राह देख रहे थे।
“क्यों आया रे छोरे?”
“दादा को बुलाने आया हूँ, अभी खाना नहीं खाया है।”
“बैठ, बैठ थोड़ी देर। अभी तो आया है वह मेरे पास।”
“जी,” मैं बैठ गया।
धीरे-धीरे दत्ता जी राव पूछने लगे, “कौन-सी में पढ़ता है रे तू?”
“जी, पाँचवीं में था किंतु अब नहीं जाता हूँ।”
“क्यों रे?”
“दादा ने मना कर दिया है। खेतों में पानी लगाने वाला कोई नहीं है।”
“क्यों रतनाप्पा?”
“हाँ जी!”
“फिर तू क्या करता है?” सरकार ने दादा से जिरह करना शुरू किया तो सारा इतिहास बाहर निकल आया। सरकार ने दादा पर खूब गुस्सा किया। उन्होंने दादा की खूब हजामत बनाई। देसाई के मॢा (खेत) को छोड़ देने के बाद दादा का ध्यान किस तरह काम की तरफ़ नहीं रहा। मन लगाकर वह खेत में किस तरह श्रम नहीं करता है फ़सल में लागत नहीं लगाता है, लुगाई और बच्चों को काम में जोतकर किस तरह खुद गाँव भर में खुले साँड़ की तरह घूमता है और अब अपनी मस्ती के लिए किस तरह छोरा के जीवन की बलि चढ़ा रहा है। यह सब उन्होंने सुनाया।
दादा के हरेक तर्क को दत्ता जी राव ने काट दिया और मुझसे कहा, “सवेरे से तू पाठशाला जाता रह, कुछ भी हो, पूरी फ़ीस भर दे उस मास्टर की। और मन लगाकर पढ़ाई कर और किसी भी तरह साल नहीं मारा जाए, इसका ध्यान रख। यदि इसने तुझे पढ़ने नहीं भेजा तो सीधा चला आ इधर। सुबह-शाम जो हो सके, वह काम कर यहाँ और पाठशाला जाते रहना। मैं पढ़ाऊँगा तुझे। इसके पास ज़रा ज़्यादा बच्चे हो गए हैं इसलिए तुम्हारे साथ कुत्तों की तरह बर्ताव करता है।”
“मैंने मना कब किया है जी? इसको ज़रा गलत-सलत आदत पड़ गई थी इसलिए पाठशाला से निकालकर ज़रा नज़रों के सामने रख लिया है।”
“कैसी आदतें?”
“चाहे जैसी। यहाँ-वहाँ कुछ भी करता है। कभी कंडे बेचता, कभी चारा बेचता, सिनेमा देखता, कभी खेलने जाता। खेती और घर के काम में इसका बिलकुल ध्यान नहीं है।” दादा ने मेरे ऊपर अचानक हल्ला बोल दिया।
“क्यों रे छोकरे?”
“नहीं जी! कभी एक बार मेले में पटा पर पैसे लगा दिए थे। दादा तो कभी भी सिनेमा के लिए पैसे नहीं देते हैं। इसलिए खेत पर गोबर बीन-बीनकर माँ से कंडे थपवा लिए थे और उन्हें बेचकर ही कपड़े भी बनवाए थे। उसी समय एक बार सिनेमा भी गया था।” मैंने भी झूठ-सच मिलाकर ठोंक दिया।
“अब यह सब बंद कर और सिर्फ़ पढ़ाई में मन लगा। ना पास नहीं हुआ है कभी?”
“नहीं जी। पाठशाला जाना ही बंद करा दिया इसलिए परीक्षा में नहीं बैठा हूँ।”
“अच्छा-अच्छा। अब तू घर जा और सवेरे से पाठशाला जाने लग।”
“जी।” मैं उठ खड़ा हुआ। बाहर निकलते-निकलते मैंने सुना, “अरे, बच्चे की जात है। एकाध वक्त सिनेमा चला गया तो क्या हुआ? एकाध बार खेलने में लग गया तो क्या हुआ? इस बात पर उसका पढ़ना-लिखना बंद कर देना है क्या?”
“जी।” आप कहते हैं तो भेज देता हूँ कल से। देखते हैं एकाध वर्ष में कुछ सुधार हो जाए तो।” दादा ने मन मारकर कहा। इस समय उसका कोई बस नहीं चला था।
खाना खाते-खाते दादा ने मुझसे वचन ले लिया। पाठशाला ग्यारह बजे होती है। दिन निकलते ही खेत पर हाज़िर होना चाहिए। ग्यारह बजे तक पानी लगाना चाहिए। खेत पर से सीधे पाठशाला पहुँचना। सवेरे आते समय ही पढ़ने का बस्ता घर से ले आना। छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना और कभी खेतों में ज़्यादा काम हुआ तो पाठशाला में गैर-हाज़िरी लगाना. ..समझे! मंज़ूर है का?”
“हाँऽ। खेत में काम होगा तो गैरहाज़िर रहना ही चाहिए।” मैं ऐसे बोल रहा था मानो मुझे सारी बातें मंज़ूर हैं। मन आनंद से उमड़ रहा था।
“हाँऽ, इतना मंज़ूर हो तो पाठशाला जाना। नहीं तो यह पढ़ना-लिखना किस काम का?”
“मैं सवेरे-शाम खेतों पर आता रहूँगा न।”
“हाँ, यदि नहीं आया किसी दिन तो देख गाँव में जहाँ मिलेगा वहीं कुचलता हूँ कि नहीं-तुझे। तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होनेवाला है तू?” दादा बार-बार कुर-कुर कर रहा था-मैं चुपचाप गरदन नीची करके खाने लगा था।
रोते-धोते पाठशाला फिर से शुरू हो गई। गरमी-सरदी, हवा-पानी, वर्षा, भूख-प्यास आदि का कुछ भी खयाल न करते हुए खेती के काम की चक्की में, ग्यारह से पाँच बजे तक पिसते रहने से छुटकारा मिल गया। उस चक्की की अपेक्षा मास्टर की छड़ी की मार अच्छी लगती थी। उसे मैं मज़े से सहन कर लेता था।
दोपहरी-भर की कड़क धूप का समय पाठशाला की छाया में व्यतीत हो रहा था-गरमी के दो महीने आनंद में बीत गए। फिर से पाँचवीं में जाकर बैठने लगा। फिर से नाम लिखवाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ‘पाँचवीं नापास’ की टिप्पणी नाम के आगे लिखी हुई थी। वह पाँचवीं के ही हाज़िरी रजिस्टर में लिखा रह गया था। पहले दिन कक्षा में गया तो गली के दो लड़कों को छोड़कर कोई भी पहचान का नहीं था। मेरे साथ के सभी लड़के आगे चले गए थे। मेरी अपेक्षा कम उम्र के और मैं जिन्हें कम अकल का समझता था, उन्हीं के साथ अब बैठना पड़ेगा, यह बात कक्षा में पहुँचने पर समझ में आई। मन खट्टा हो गया। बाहरी-अपरिचित जैसा एक बेंच के एक सिरे पर कोने में जा बैठा। मास्टर कौन है, इसका पता नहीं था। पुरानी किताबों और पुरानी कापियों का उस कक्षा से कोई संबंध नहीं था – फिर भी लट्ठे के बने थैले में उन्हें ले आया था। बस अें पर कोई लड़का अपनी पोटली सँभाले किसी इंतज़ार में जैसे बैठा होता है, उसी तरह मैं अपनी पढ़ाई की पुरानी धरोहर सँभाले बैठा था।
“क्या नाम है मेहमान? नया दिखाई देता है। या गलती से इस कक्षा में आ बैठे हो?”
कक्षा के सबसे ज़्यादा शरारती चह्वाण के लड़के ने सामने आकर खिल्ली उड़ाने के स्वर में पूछा। मेरे ध्यान में आया कि मेरी पोशाक भी अजनबी जैसी है। बालुगड़ी की लाल माटी के रंग में मटमैली हुई धोती और गमछा पहनकर मैं अकेला ही था।
“देखें-देखें तुम्हारा गमछा।” कहते हुए उसने मेरा गमछा खींच लिया।…गया अब मेरा गमछा। पूरी कक्षा में इसकी खींचातानी होगी और फट जाएगा। मन में मैं यह सोचकर रुआँसा हो गया। लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं। उस लड़के ने उसे अपने सिर पर लपेट लिया और मास्टर की नकल करते हुए उसे उतारकर टेबल पर रखकर अपने सिर पर हाथ फेरते हुए हुश्शऽऽ की आवाज़ की। इतने में मास्टर आ गए और वह गुंडा झट से अपनी जगह पर जा बैठा। मेरा गमछा टेबल पर ही रहा। पहले दिन ही इस घटना ने मेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी और छाती में धक-धक होने लगी।
रणनवरे मास्टर कक्षा में आए। टेबल पर मटमैला गमछा देखकर उन्होंने पूछा, “किसका है रे?”
“मेरा है मास्टर।”
“तू कौन है?”
“मैं जकाते। पिछले साल फेल होकर इसी कक्षा में बैठा हूँ।”
“गमछा ले जा पहले।” उसने छड़ी से मेरा गमछा उठाकर नीचे डाल दिया। मैं उसे उठाने गया तो कहा, “यहाँ क्यों रखा है मूर्खों की तरह?”
“मैंने नहीं रखा मास्टर, उस लड़के ने मेरे सिर से छीन लिया और यहाँ रख दिया है।”
“यह चह्वाण का बच्चा बिना बात के उठक-पटक करता है।” कहते हुए मास्टर उस लड़के की ओर चले गए।
मास्टर ने मेरे बारे में और भी पूछताछ की और वामन पंडित की कविता पढ़ाने लगे। बीच की छुट्टी में मेरी धोती की काछ उस लड़के ने दो बार खींचने की कोशिश की। लेकिन मैं फिर दीवार की तरफ़ पीठ करके जा बैठा तो पूरी छुट्टी होने से पहले उठा ही नहीं। खिलौने के लिए बनाए गए कौआ के बच्चे को खुले में रख देने पर जैसे कौए चारों ओर से उस पर चोंच मारते हैं, वैसा ही मेरा हाल हो गया। मेरी ही पाठशाला मुझे चोंच मार-मारकर घायल कर रही थी।
घर जाते समय सोच रहा था कि लड़के मेरी खिल्ली उड़ाते हैं – धोती खींचते हैं – गमछा खींचते हैं, तो इस तरह कैसे निबाह होगा…? नहीं जाऊँगा ऐसी पाठशाला में। इससे तो अपना खेत ही अच्छा है – चुपचाप काम करते रहो। गली के दो ही लड़के हैं कक्षा में, वे भी मुझसे भी कमज़ोर हैं। वे क्या मदद करेंगे?…
मन उदास हो गया। चौथी से पाँचवीं तक पाठशाला अपनी लगती थी। लेकिन अब वह एकदम पराई-पराई जैसी लगने लगी है। अपना वहाँ कोई नहीं है। सवेरे हो जाने पर मैं उमंग में था – फिर से पाठशाला चला गया। माँ के पीछे पड़कर एक नयी टोपी और दो नाड़ीवाली चड्डी मैलखाऊ रंग की आठ दिन में मँगवा ली। चड्डी पहनकर पाठशाला में और धोती पहनकर खेत पर जाना शुरू हुआ। धीरे-धीरे लड़कों से परिचय बढ़ गया।
मंत्री नामक मास्टर कक्षा अध्यापक के रूप में बीच में आए। वे प्रायः छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। हाथ से गरदन पकड़कर पीठ पर घूसा लगाते थे। पीठ पर एक ज़ोर का बैठते ही लड़का हूक भरने लगता। लड़कों के मन में उनकी दहशत बैठी हुई थी। इसके कारण ऊधम करने वाले लड़कों को प्रायः मौका नहीं मिलता था। पढ़ने वाले लड़कों को शाबाशी मिलने लगी। मंत्री मास्टर गणित पढ़ाते थे। एकाध सवाल गलत हो जाता तो उसे वे अपने पास बुलाकर समझा देते। एकाध लड़के की कोई मूर्खता दिखाई दी तो वे उसे वहीं ठोंक देते। इसलिए सभी का पसीना छूटने लगता। सभी लड़के घर से पढ़ाई करके आने लगे।
वसंत पाटील नाम का एक लड़का शरीर से दुबला-पतला, किंतु बड़ा होशियार था। उसके सवाल हमेशा सही निकलते थे। स्वभाव से शांत। हमेशा पढ़ने में लगा रहता। घर से पूरी तैयारी करके आता होगा। दूसरों के सवालों की जाँच करता था। मास्टर ने उसे कक्षा मॉनीटर बना दिया था। हमेशा पहली बेंच पर बैठता बिलकुल मास्टर के पास। कक्षा में उसका सम्मान था।
मुझे यह लड़का मेरी अपेक्षा छोटा लगता था…मैं उससे पहले ही पाँचवीं में पहुँच गया था। गलती से पिछड़ गया हूँ मैं। इसलिए मास्टर को कक्षा की मॉनीटरी मेरे हाथ में सौंपनी चाहिए, मुझे ऐसा लगने लगा। दूसरी ओर यह भी लगता था कि मुझे दो महीने में पाँचवीं की पूरी तैयारी करके अच्छी तरह पास होना है। कक्षा में दंगा करना और पढ़ाई की उपेक्षा करना मेरे लिए मुनासिब नहीं। हम तो इस कक्षा में ऊपरी हैं, यह नहीं भूलना चाहिए।
इन सब बातों के कारण मेरा सारा ध्यान पढ़ाई की ओर ही रहा और वसंत पाटिल की तरह ही पढ़ाई का काम करने लगा। मैंने अपनी किताबों पर अखबारी कागज़ के कवर चढ़ा दिए। अपना बस्ता व्यवस्थित रखने लगा। हमेशा कुछ-न-कुछ पढ़ते बैठता था। उसने यदि कक्षा में कोई शाबाशी का काम किया तो मैं भी दूसरे दिन वैसा ही कुछ करने लगा। मन की एकाग्रता के कारण गणित झटपट समझ में आने लगा और सवाल सही होने लगे।
कभी-कभी वसंत पाटील के साथ-साथ, एक तरफ़ से वह तो दूसरी तरफ़ से मैं लड़कों के सवाल जाँचने लगा। इसके कारण मेरी और वसंत की दोस्ती जम गई। एक-दूसरे की सहायता से कक्षा में हम अनेक काम करने लगे। मास्टर मुझे ‘आनंदा’ कहकर बुलाने लगे। मुझे पहली बार किसी ने ‘आनंदा’ कहकर पुकारा। माँ कभी ‘आनंदा’ कहती, परन्तु बहुत कम। मास्टरों के इस अपनेपन के व्यवहार के कारण और वसंत की दोस्ती के कारण पाठशाला में मेरा विश्वास बढ़ने लगा।
न.वा.सौंदलगेकर मास्टर मराठी पढ़ाने आते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं रम जाते थे। विशेषतः वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। सुरीला गला, छंद की बढ़िया चाल और उसके साथ ही रसिकता थी उनके पास। पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेज़ी कविताएँ कंठस्थ थीं। अनेक छंदों की लय, गति, ताल उन्हें अच्छी तरह आते थे। पहले वे एकाध कविता गाकर सुनाते थे – फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते। उसी भाव की किसी अन्य कवि की कविता भी सुनाकर दिखाते। बीच में कवि यशवंत, बा.भ.बोरकर, भा.रा. ताँबे, गिरीश, केशव कुमार आदि के साथ अपनी मुलाकात के संस्मरण सुनाते। वे स्वयं भी कविता करते थे। याद आ गई तो वे अपनी भी एकाध सुना देते। यह सब सुनते हुए, अनुभव करते हुए, मुझे अपना भान ही नहीं रहता था। मैं अपनी आँखों और कानों में प्राणों की सारी शक्ति लगा कर-दम रोककर मास्टर के हाव-भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस पीता रहता।
सुबह-शाम खेत पर पानी लगाते हुए या ढोर चराते हुए अकेले में खुले गले से वे सारी कविताएँ मास्टर के ही हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार ही गाता। उन कविताओं के अर्थों से खेलता हुआ मैं आगे-पीछे आता-जाता था। मास्टर जिस प्रकार बैठे-बैठे ही अभिनय करते थे, मैं पानी लगाते-लगाते वैसा अभिनय करता था। क्यारियाँ पानी से कब की भर गई हैं, इसका भान भी नहीं रहता था। मास्टर की चाल पर दूसरी कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं, इसका पता भी मुझे उसी समय चला।
इन कविताओं के साथ खेलते हुए मुझे दो बड़ी शक्तियाँ प्राप्त हुईं – पहले ढोर चराते हुए, पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए, अकेलापन बहुत खटकता था – किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हँसी-मज़ाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था – हमेशा कोई-न-कोई साथ में होना चाहिए, ऐसा लगता था। लेकिन अब अकेलेपन से कोई ऊब नहीं होती। मैं अपने आप से ही खेलने लगा। उलटा अब तो ऐसा लगने लगा कि जितना अकेला रहूँ, उतना अच्छा। इस कारण कविता ऊँची आवाज़ में गाई जा सकेगी। किसी भी तरह का अभिनय किया जा सकेगा। कविता गाते-गाते थुई-थुई करके नाचा जा सकता था। मैं सचमुच ही नाचने लगता था। मैंने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया। अनंत काणेकर की कविता, जिसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है-“चाँद रात पसरिते पाँढरी गाया धरणीवरी” को मैंने मास्टर की चाल से अलग अपनी चाल में बिठाकर गाई। यह चाल एक सिनेमा के गाने के आधार पर थी। वह गाना, ‘केशव करणी जाति’ नामक छंद में था। उस कविता को मैं मास्टर की अपेक्षा ज़्यादा अभिनय के साथ गाता था – चेहरे पर कविता के भाव पैदा करने का प्रयत्न करता था। मास्टर को मेरा प्रयत्न इतना अच्छा लगा कि उन्होंने छठी-सातवीं कक्षा के सभी लड़कों के सामने मुझे बुलाकर गवाया। पाठशाला के एक समारोह में भी उसे गवाया…इसके कारण मुझे लगा कि मेरे कुछ नए पंख निकल आए हैं।
मास्टर स्वयं कविता करते थे। अनेक मराठी कवियों के काव्य-संग्रह उनके घर में थे। वे उन कवियों के चरित्र और उनके संस्मरण बताया करते थे। इसके कारण ये कवि लोग मुझे ‘आदमी’ ही लगने लगे थे। खुद सौंदलगेकर मास्टर कवि थे। इसलिए यह विश्वास हुआ कि कवि भी अपने जैसा ही एक हाड़-माँस का; क्रोध-लोभ का मनुष्य ही होता है। मुझे भी लगा कि मैं भी कविता कर सकता हूँ। मास्टर के दरवाज़े पर छाई हुई मालती की बेल पर मास्टर ने एक कविता लिखी थी। वह कविता और वह लता मैंने दोनों ही देखी थी। इसके कारण मुझे लगता था कि अपने आसपास, अपने गाँव में, अपने खेतों में, कितने ही ऐसे दृश्य हैं जिन पर मैं कविता बना सकता हूँ। यह सब कुछ अनजाने में ही होता रहता था। भैंस चराते-चराते मैं फ़सलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। उन्हें ज़ोर से गुनगुनाता भी था और मास्टर को दिखाने भी लगा। कविता लिखने के लिए खीसा में कागज़ और पेंसिल रखने लगा। कभी वह न होते तो लकड़ी के छोटे टुकड़े से भैंस की पीठ पर रेखा खींचकर लिखता था या पत्थर की शिला पर कंकड़ से लिख लेता। जब कंठस्थ हो जाती तो पोंछ देता। किसी रविवार के दिन एकाध कविता बन जाती तो सोमवार के दिन मास्टर को दिखाता।
बहुत बार तो सवेरा होने तक का धीरज छूट जाता और मैं रात को ही मास्टर के घर जाकर कविता दिखाता। वे उसे देखते और शाबाशी देते। और फिर कभी-कभी तो कविता के शास्त्र पर एक पूरी महफ़िल हो जाती। बोलते-बोलते मास्टर बताते – कवि की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का उपयोग कविता के लिए किस तरह होता है, छंद की जाति कैसे पहचानें, उसका लयक्रम कैसे देखें, अलंकारों में सूक्ष्म बातें कैसी होती हैं, अलंकारों का भी एक शास्त्र होता है, कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं, आदि अनेक विषयों पर वे सहज बातें बताते रहते। मुझे उनके प्रति अपनापा अनुभव होता। वे मुझे पुस्तक देते। अलग-अलग प्रकार के कविता-संग्रह देते। उन्होंने कई नयी तरह की कविताएँ सुनाईं तो लगा मैं इस ढर्रे पर कविता बनाऊँ। फिर तो सारे दिन उस दिशा में मेरी कोशिश चलती। इन बातों से मैं सौंदलगेकर मास्टर के बहुत नज़दीक पहुँच गया और जाने-अनजाने मेरी मराठी भाषा सुधरने लगी। उसे लिखते समय मैं बहुत सचेत रहने लगा। अलंकार, छंद, लय आदि को सूक्ष्मता से देखने लगा। शब्दों का नशा चढ़ने लगा और ऐसा लगने लगा कि मन में कोई मधुर बाजा बजता रहता है।
अनुवाद केशव प्रथम वीर
शब्दार्थ
1. मन तड़पना -मन अशांत होना
2. कोल्हू – वह यंत्र जिसके द्वारा रस निकाला जाता है।
3. बहुतायत – अत्यधिक
4. कंडे – पशुओं के गोबर से बने जलावन, उपले
5. जोत देना – लगादेना
6. छोरा – लड़का
7. बाड़ा – अहाता, fence
8. जीमने – खाना खाने
9. जिरह – बहस
10. हजामत बनाना – डाँटना, बाल काटना
11. लुगाई – स्त्री
12. लागत – Cost
13. ढोर चराना – पशुओं को चराना
14. बालिस्टर – बैरिस्टर
15. गमछा – तौलिया
16. काछ – धोती की लाँग
17. निबाह – निर्वाह
18. मैलखाऊ -जिसमें मैल दिखाई न दे
19. दहशत – भय
20. ऊधम करना – शोर मचाना
21. ठोंक देना – पिटाई करना
22. भान – आभास
23. कंठस्थ – याद करना
24. ढर्रे –शैली
जूझ – पाठ का सारांश
यह पाठ लेखक (आनंद यादव) के बहुचर्चित आत्मकथात्मक उपन्यास अंश का है। यह एक किशोर के देखे और भोगे हुए गँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके रंगारंग परिवेश की मजेदार और विश्वसनीय जीवंत गाथा है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास में निम्न मध्यवर्गीय मराठी कृषक जीवन की अनूठी झाँकी प्रस्तुत हुई है। इस पाठ में हर स्थिति में पढ़ने की लालसा लिए धीरे-धीरे साहित्य, संगीत और अन्य विषयों की ओर बढ़ते किशोर आनंद यादव के कदमों की आकुल आहट सुनी जा सकती है। आनंद के पिता ने उसे पाठशाला जाने से रोक दिया तथा खेती के काम में लगा दिया। उसका मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था, परंतु वह पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं रखता था। उसे पिटाई का डर था। उसे विश्वास था कि खेती से कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि क्रमश: इससे मिलनेवाला लाभ घट रहा है। पढ़ने के बाद नौकरी लगने पर उसके पास कुछ पैसे आ जाएँगे। दीवाली के बाद ईख पेरने के लिए कोल्हू चलाया जाता था क्योंकि उसके पिता को सबसे पहले गुड़ बेचना होता था ताकि अधिक कीमत मिल सके। हालाँकि पहले ईख काटने से उसमें रस कम निकलता था। इस वर्ष भी लेखक के पिता ने जल्दी कार्य शुरू किया। अत: ईख पेरने का काम सबसे पहले संपन्न हो गया। एक दिन लेखक की माँ धूप में कंडे थाप रही थीं और वह बाल्टी में पानी भर – भरकर उसे दे रहा था। अच्छा मौका देखकर लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की। माँ ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा कि तेरी पढ़ाई-लिखाई की बात करने पर वह (आनंद का पिता) बरहेला सुअर की तरह गुर्राता है। लेखक ने सुझाव दिया कि वह दत्ता जी राव सरकार से उसकी पढ़ाई के बारे में बात करे। माँ तैयार हो गई। वह बच्चे की तड़पन समझती थी।
अतः रात को लेखक की पढ़ाई के संबंध में बात करने के लिए दत्ता जी राव देसाई के पास गई और उनसे सारी बात बताई। उसने यह भी बताया कि दादा सारे दिन बाजार में रखमाबाई के पास गुजार देता है। वह खेती का काम नहीं करता। उसने बच्चे की पढ़ाई इसलिए बंद कर दी है ताकि वह सारे गाँव भर में आजादी के साथ घूमता रहे। यह बात सुनकर देसाई चिढ़ गए। चलते-चलते लेखक ने यह भी कहा कि यदि वह अब भी कक्षा में पढ़ने लगे तो दो महीने में पाँचवीं पास कर लेगा और इस तरह उसका साल बच जाएगा। पहले ही उसका एक साल खराब हो चुका है। राव ने लेखक से कहा कि घर आने पर दादा को मेरे पास भेज देना और घड़ी भर बाद तुम भी आ जाना। माँ-बेटा ने राव को सचेत किया कि हमारे आने की बात उसे मत बताना। राव ने उन्हें निर्भय होकर जाने को कहा।
जब रात को दादा घर पर आए तो लेखक की माँ ने उनसे कहा कि आज दत्ता जी राव सरकार के यहाँ सब्ज़ी देने गई थी तो आपके बारे में पूछ रहे थे और बोले कि कि खेत से आ जाने पर इधर भेजना।
यह सुनकर दादा सम्मान की बात समझकर तुरंत चला गया। आधा घंटे बाद लेखक उन्हें खाने के लिए बुलाने चला गया। राव ने लेखक से पूछा कि कौन-सी कक्षा में पढ़ता है रे तू? लेखक ने बताया कि वह पाँचवीं में था, अब स्कूल नहीं जाता क्योंकि दादा ने मना कर दिया। उन्हें खेतों में पानी लगाने वाला चाहिए था। राव ने दादा से पूछा तो उसने लेखक के कथन को स्वीकार कर लिया। देसाई ने दादा को खूब फटकार लगाई और कहा कि तुम्हारा ध्यान खेती में नहीं है। बीवी-बच्चों को खेत में जोतकर खुले साँड़ की तरह घूमता है तथा अपनी मस्ती के लिए लड़के के जीवन की बलि चढ़ा रहा है। उसने लेखक को कहा कि तू सवेरे पाठशाला जा तथा मन लगाकर पढ़। यदि यह मना करे तो मेरे पास आना। मैं तुझे पढ़ाऊँगा। लेखक के पिता ने उस पर गलत आदतों का आरोप लगाया-कंडे बेचना, चारा बेचना, सिनेमा देखना या जुआ खेलना, खेती व घर के काम पर ध्यान न देना आदि पर लेखक ने भी अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट कर दिया।
देसाई ने लेखक से पूछा कि कभी नापास तो नहीं हुआ इस पर लेखक ने बता दिया कि वह कभी नापास नहीं हुआ है। देसाई ने उसे पाठशाला जाने का आदेश देकर घर भेज दिया। बाद में उसने रतनाप्पा को समझाया। दादा ने भी पाठशाला भेजने की हामी भर दी। घर आकर दादा ने लेखक से यह वचन ले लिया कि दिन निकलते ही खेत पर जाना और वहीं से पाठशाला पहुँचना। पाठशाला से छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना और खेतों में ज्यादा काम होने पर पाठशाला से गैर-हाजिर रहना होगा। लेखक ने सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। लेखक पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठने लगा। कक्षा के दो लड़कों को छोड़कर सभी नए बच्चे थे। वह बाहरी – अपरिचित जैसा एक बेंच के एक सिरे पर कोने में जा बैठा। वह पुरानी किताबों को ही थैले में भर लाया। कक्षा के शरारती लड़के ने उसका मजाक उड़ाया और उसका गमछा छीनकर मास्टर की मेज पर रख दिया। फिर उसे सिर पर लपेटकर मास्टर की नकल उतारनी शुरू की। तभी मास्टर जी आ गए। लेखक ने उसे सब कुछ बता दिया। बीच की छुट्टी में लड़कों ने उसकी धोती खोलने की कोशिश की, परंतु असफल रहे। वे उसे तरह-तरह से परेशान करते रहे। उसका मन उदास हो गया। उसने माँ से नयी टोपी व दो नाड़ी वाली चड्ढी मैलखाऊ रंग की पैंट मँगवा ली। धीरे-धीरे लड़कों से परिचय बढ़ गया। मंत्री नामक मास्टर आए। वे गणित पढ़ाते थे। वे छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। वे लड़के की पीठ पर घूसा लगाते थे। शरारती लड़के उनसे बहुत डरते थे।
इस कक्षा में वसंत पाटील नाम का कमजोर शरीर वाला व होशियार लड़का था। वह शांत स्वभाव का था तथा हमेशा पढ़ने में लगा रहता था। मास्टर ने उसे कक्षा मॉनीटर बना दिया था। लेखक भी उसकी तरह पढ़ने में लगा रहा। वह अपनी कापी-किताबों को व्यवस्थित रखने लगा। शीघ्र ही वह गणित में होशियार हो गया। दोनों में दोस्ती हो गई। मास्टर लेखक को ‘आनंदा’ कहने लगे। अब उसका मन पाठशाला में लगने लगा। न.वा. सौंदलगेकर मास्टर मराठी पढ़ाते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं रम जाते थे। सुरीले कंठ, छंद व रसिकता के कारण वे कविता बहुत अच्छी पढ़ाते थे। उन्हें मराठी व अंग्रेजी की अनेक कविताएँ याद थीं। वे कविता के साथ ऐसे जुड़े थे कि अभिनय करके भावबोध कराते थे। वे स्वयं भी कविता रचते थे। लेखक उनसे बहुत प्रभावित था। खेत पर पानी लगाते समय या ढोर चराते समय वह मास्टर के अनुसार ही कविताएँ गाता था। वह उन्हीं की तरह अभिनय करता। उसी समय उसे अनुभव हुआ कि अन्य कविताएँ भी इसी तरह पढ़ी जा सकती हैं। लेखक को महसूस हुआ कि पहले जिस काम को करते हुए उसे अकेलापन खटकता था, अब वह समाप्त हो गया। उसे एकांत अच्छा लगने लगा। एकांत के कारण वह ऊँचे स्वर में कविता गा सकता था, नृत्य कर सकता था। उसने कविता गाने की अपनी पद्धति विकसित की। वह अभिनय के साथ गाने लगा तथा अब उसके चेहरे पर कविता के भाव आने लगे। मास्टर को लेखक का गायन अच्छा लगा और उससे छठी-सातवीं कक्षा के बालकों के सामने गवाया। पाठशाला के एक समारोह में भी उससे गवाया। मास्टर स्वयं कविता रचते थे। उनके पास मराठी कवियों के काव्य-संग्रह थे। वे उन कवियों के संस्मरण भी सुनाते थे। इस कारण अब वे कवि लेखक को भी ‘आदमी’ लगने लगे थे जो पहले लेखक की कल्पना में दिव्य शक्तियों से युक्त हुआ करते थे।
सौंदलगेकर स्वयं कवि थे। इस कारण लेखक को यह विश्वास हुआ कि कवि भी उसकी तरह ही हाड़-मांस का व क्रोध-लोभ का मनुष्य होता है। लेखक को लगा कि वह स्वयं भी कविता कर सकता है। मास्टर ने अपने दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर एक कविता लिखी। लेखक ने मालती लता व कविता दोनों ही देखी थी। इससे उसे लगा कि वह अपने आस-पास, अपने गाँव, खेतों आदि पर कविता बना सकता है।
भैंस चराते-चराते वह फसलों व जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। वह उन्हें जोर से गुनगुनाता तथा मास्टर को दिखाता। कविता लिखने के लिए वह कागज व पेंसिल रखने लगा। उनके न होने पर वह लकड़ी के छोटे टुकड़े से भैंस की पीठ पर रेखा खींचकर लिखता या पत्थर की शिला पर कंकड़ से लिख लेता। कंठस्थ हो जाने पर उसे पोंछ देता। वह अपनी कविता मास्टर को दिखाता था। कभी-कभी वह रात को ही मास्टर के घर जाकर कविता दिखाता। वे उसे कविता के शास्त्र के बारे में समझाते। वे उसे छंद, अलंकार, शुद्ध लेखन, लय का ज्ञान कराते। वे उसे पुस्तकें व कविता-संग्रह भी देते थे। उन्होंने उसे कविता रचने के अनेक ढर्रे सिखाए। शब्दों का महत्व एवं उसका उचित प्रयोग जल्दी ही उसकी समझ में आने लगा। इस प्रकार लेखक को मास्टर की निकटता मिलती गई और उसकी मराठी भाषा में सुधार आने लगा।
अभ्यास
1. ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
उत्तर – इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ पूरे पाठ में अपनी छवि लिए हुए है। ‘जूझ’ का अर्थ है – संघर्ष। इसमें कथानायक आनंद ने पाठशाला जाने के लिए घोर संघर्ष किया। पढ़ने की तीव्र इच्छा के कारण ही उसने पिता की शर्तें मानी और उनका पालन किया। विद्यालय में भी कुछ शरारती बच्चों ने उसे परेशान किया फिर भी बिना निराश हुए उसने अपने पढ़ाई पर ध्यान दिया। गणित और मराठी विषयों में अधिक रुचि लेने के कारण तथा अपनी व्यवहारकुशलता से वह शिक्षकों का चहेता भी बन गया। खेती के कामों और अध्ययन कार्य में वह सही संतुलन बना पाया। इस तरह यह पाठ ‘जूझ’ शीर्षक को चरितार्थ करती है।
2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर – लेखक जब पाँचवीं कक्षा के विद्यार्थी थे, तब उनकी कक्षा में न. वा. सौंदलगेकर नामक अध्यापक मराठी पढ़ाते थे। वे कक्षा में सस्वर कविता-पाठ करते थे तथा लय, छंद, गति-यति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। उनसे प्रभावित होकर लेखक भी उन्हीं की हाव-भाव, ध्वनि, ताल, रस और चाल को पूरी तल्लीनता के साथ खेतों में काम करते समय गाया करते थे। मास्टर जी भी आनंद के कविता गाने में रुचि लेने लगे थे। उन्होंने आनंद को भाषा-शैली, छंद, अलंकारों के साथ-साथ शुद्ध लेखन की बारीकियाँ सिखा दीं। वे उन्हें अलग-अलग प्रकार की कविताओं के संग्रह देते थे। इस प्रकार लगातार अभ्यास से वे मराठी में कविताएँ लिखने लगे। जब लेखक से ऊँची कक्षाओं में कविता पाठ करवाया गया और सबने उनकी तारीफ की तो इस प्रकार लेखक के मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास पैदा हुआ।
3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
उत्तर – श्री सौंदलगेकर कथानायक के पाँचवीं कक्षा के मराठी के शिक्षक थे। वे कविता के अध्यापन के साथ कविता गाया भी करते थे। जब वे कक्षा में कविता पढ़ाया करते तो उसे गाने के साथ, हाव-भाव के अनुसार अभिनय भी किया करते थे। वे कविता को गाते समय ताल, छंद, लय, गति और यति का पूरा ध्यान रखते थे। यह सब सुनते हुए, अनुभव करते हुए लेखक अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। वो भी मास्टर की तरह ही कविता गाने का और तुकबंदी करने का प्रयास करते थे। उन्होंने मास्टर से छंद, लय, अलंकार, भाषा-शैली और शुद्ध लेखन के बारे में भी सीखा। मास्टर के अध्यापन की इन्हीं विशेषताओं के कारण कवि के मन में कविता के प्रति रुचि पैदा होने लगी।
4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर – कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए, पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए अकेलापन बहुत खटकता था। लेकिन कविता के प्रति लगाव होने के पश्चात् उन्हें अकेलापन नहीं खटकता था बल्कि अब उन्हें अकेलापन अच्छा लगता था, क्योंकि अकेलेपन में कविता ऊँची आवाज़ में गाई जा सकती थी। कविता के भाव के अनुसार अभिनय भी किया जा सकता था। लेखक अब कविता गाते-गाते नाचने भी लगा था। इस प्रकार कविता के प्रति लगाव ने लेखक की अकेलेपन की धारणा को बदल दिया।
5. आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर – पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था। लेखक का दृष्टिकोण पढ़ाई के प्रति उचित था। उसे पता था कि खेती से गुज़ारा नहीं होने वाला है। पढ़ने से ही उसे कोई-न-कोई नौकरी मिल सकती है, जिससे गरीबी दूर हो जाएगी। वह सोचता है – पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी। चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा की तरह कुछ धंधा कारोबार किया जा सकेगा। दत्ता जी राव का रवैया भी सही है। उन्होंने लेखक के पिता को धमकाया तथा लेखक को पाठशाला भिजवाया। यहाँ तक कि खुद खर्चा उठाने तक की धमकी लेखक के पिता को दी। इसके विपरीत लेखक के पिता का रवैया एकदम अनुचित था। उसकी यह सोच, “तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है बालिस्टर नहीं होने वाला है तू” एकदम निम्न है। वह खेती के काम को ज़्यादा बढ़िया समझता है तथा स्वयं ऐय्याशी करने के लिए बच्चे को खेती में झोंकना चाहता है।
6. दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर – दत्ता जी राव ‘जूझ’ उपन्यास में एक महत्त्वपूर्ण चरित्र है। वे गाँव के बड़े व्यक्ति हैं। गाँव के लोग उनके सामने सिर नवाते हैं। चूँकि लेखक के पिता ने लेखक को पाँचवीं कक्षा से हटाकर खेतों में काम पर लगा दिया था। इसलिए लेखक के मन में यह विचार आया कि यदि पिता जी को कोई समझा दे तो मैं फिर अपनी पढ़ाई शुरू कर सकता हूँ। पढ़ाई से ही मेरा जीवन सुधर सकता है वरना खेती के काम में ऐसे ही ज़िंदगी गुज़र जाएगी और कुछ हाथ नहीं आएगा। इसलिए वह अपनी माँ के साथ दत्ता जी राव के पास यह झूठ बोलकर कि दादा (पिता जी) सारा दिन बाज़ार में रखमाबाई के पास गुज़ार देते हैं। खेती के काम में हाथ नहीं लगाते हैं। माँ दत्ता जी राव को यह विश्वास दिलाती है कि दादा जी को सारे गाँव में आज़ादी से घूमने को मिलता रहे, इसलिए उन्होंने आनंद का पढ़ना बंद कर खेती में जोत दिया है। बस, यह सुनते ही दत्ता जी चिढ़ गए। बाद में उन्होंने दादा को बुलाकर खूब खरी-खोटी सुनाई और लेखक को सुबह पाठशाला जाने को कहा। इस प्रकार लेखक एक बार फिर अपनी पढ़ाई शुरू कर पाते हैं। अगर लेखक की पढ़ाई शुरू करने में इस झूठ का सहारा न लिया जाता तो लेखक की सारी ज़िंदगी खेत जोतने में ही गुज़र जाती। उसका कवि मन मचल कर रह जाता।
‘जूझ’ पाठ से बहुविकल्पीय प्रश्न
1. दादा कोल्हू जल्दी क्यों लगाना चाहते थे?
(क) काम जल्दी खत्म करने के लिए
(ख) गुड़ की ज्यादा कीमत के लिए
(ग) दूसरी फसल के लिए
(घ) आराम करने के लिए
उत्तर : (ख) गुड़ की ज्यादा कीमत के लिए
2. ‘जूझ’ कहानी के शीर्षक का अर्थ क्या हैं?
(क) संघर्ष करना
(ख) चालाकी
(ग) मेहनत करना
(घ) कठिनाई
उत्तर : (क) संघर्ष करना
3. ‘जूझ’ कहानी किस उपन्यास से ली गई है?
(क) गुजराती उपन्यास ‘नटरंग’
(ख) गुजराती उपन्यास”झोबी”
(ग) मराठी उपन्यास ‘नटरंग’
(घ) मराठी उपन्यास ‘झोबी’
उत्तर : (घ) मराठी उपन्यास ‘झोबी’
4. “झोबी” उपन्यास किस भाषा में लिखा गया हैं?
(क) राजस्तानी
(ख) हरियाणवी
(ग) गुजराती
(घ) मराठी
उत्तर : (घ) मराठी
5. लेखक आनंद यादव के पिता ने उनकी पढ़ाई कब छुड़वा दी?
(क) जब वो चौथी में पढ़ते थे।
(ख) जब वो पाँचवी में पढ़ते थे।
(ग) जब वो छूठी में पढ़ते थे।
(घ) जब वो सातवी में पढ़ते थे।
उत्तर : (ख) जब वो पाँचवी में पढ़ते थे।
6. लेखक ने दुबारा कौन सी कक्षा में दाखिला लिया?
(क) पाँचवी कक्षा में
(ख) छठी कक्षा में
(ग) सातवी कक्षा में
(घ) आठवी कक्षा में
उत्तर : (क) पाँचवी कक्षा में
7. लेखक के पिता का क्या नाम था?
(क) कणहप्पा
(ख) राजप्पा
(ग) रत्नाप्पा
(घ) सरहप्पा
उत्तर : (ग) रत्नाप्पा
8. लेखक की कक्षा के मॉनीटर का नाम क्या था?
(क) वसंत पाटील
(ख) चव्हाण पाटील
(ग) मनोहर पाटील
(घ) राव पाटील
उत्तर : (ख) वसंत पाटील
9. ‘जूझ’ उपन्यास मूलतः किस भाषा में रचित है?
(क) अवधी
(ख) ब्रज
(ग) मराठी
(घ) गुजराती
उत्तर: (ग) मराठी
10. ‘जूझ’ के कथानायक का क्या नाम बताया गया है?
(क) आनंद
(ख) आनंदा
(ग) नित्यानंदा
(घ) परमानंदा
उत्तर : (ख) आनंदा
11. पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले किससे की?
(क) दादा से
(ख) माँ से
(ग) दत्ता जी राव से
(घ) सौंदलगेकर
उत्तर : (ख) माँ से
12. न. वा. सौंदलगेकर किस विषय का अध्यापक थे?
(क) अंग्रेजी के
(ख) गणित के
(ग) मराठी के
(घ) संस्कृत के
उत्तर : (ग) मराठी के
13. खेत का कौन-सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की?
(क) पानी लगाने का काम
(ख) बिजाई का काम
(ग) कटाई का काम
(घ) कोल्हू का काम
उत्तर : (घ) कोल्हू का काम
14. पाठ के अनुसार लेखक के घर कोल्हू कब शुरू होता था?
(क) साल की शुरुआत में
(ख) होली पर
(ग) दिवाली के बाद
(घ) नवरात्रि में
उत्तर : (ग) दिवाली के बाद
15. लेखक पढ़ना क्यों चाहता है?
(क) ज्ञान के लिए
(ख) कवि बनने के लिए
(ग) विद्वान बनने के लिए
(घ) नौकरी के लिए
उत्तर : (घ) नौकरी के लिए
16. लेखक की माँ के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता कैसे गुर्राता है?
(क) कुत्ते के समान
(ख) शेर के समान
(ग) जंगली सूअर के समान
(घ) चीते के समान
उत्तर : (ग) जंगली सूअर के समान
17. लेखक की माँ के अनुसार उसके पति ने लेखक को पाठशाला जाने से क्यों रोक दिया?
(क) खर्चे से बचने के लिए
(ख) बीमारी से बचने के लिए
(ग) अनपढ़ता से बचने के लिए
(घ) खुद काम से बचने के लिए
उत्तर : (घ) खुद काम से बचने के लिए
18. दादा राव साहब के यहाँ तत्काल क्यों चला गया?
(क) अपना सम्मान समझकर
(ख) डरकर
(ग) पैसों के लालच से
(घ) घबराकर
उत्तर : (क) अपना सम्मान समझकर
19. स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को कितने घंटे पशु चराने होते थे?
(क) दो घंटे
(ख) तीन घंटे
(ग) चार घंटे
(घ) एक घंटा
उत्तर : (घ) एक घंटा
20. लेखक के कक्षा अध्यापक का नाम क्या था?
(क) वसंत
(ख) सौंदलगेकर
(ग) मंत्री
(घ) रत्नप्पा
उत्तर : (ग) मंत्री
21. ‘जूझ’ कहानी से लेखक की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन हुआ है?
(क) पढ़ने की प्रवृत्ति का
(ख) कविता करने की प्रवृत्ति का
(ग) लेखन प्रवृत्ति का
(घ) संघर्षमयी प्रवृत्ति का
उत्तर : (घ) संघर्षमयी प्रवृत्ति का
22. जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था, उसका नाम क्या था?
(क) वसंत
(ख) चह्वाण
(ग) मनोहर
(घ) सुन्दर
उत्तर : (ख) चह्वाण
23. लेखक के दादा (पिता) की कैसी प्रवृत्ति थी?
(क) परिश्रमी
(ख) गुस्सैल और हिंसक
(ग) विनम्र
(घ) अहिंसक
उत्तर : (ख) गुस्सैल और हिंसक
24. लेखक को गणित पढ़ाने वाले मास्टर का क्या नाम था?
(क) वसंत
(ख) सौंदलगेकर
(ग) मंत्री
(घ) रत्नप्पा
उत्तर : (ग) मंत्री
25. “आने दे अब उसे, मैं उसे सुनाता हूँ कि नहीं अच्छी तरह देख।” यह कथन किसने व किससे कहा?
(क) दत्ता राव ने लेखक के पिता से
(ख) दत्ता राव ने लेखक की माता से
(ग) लेखक के पिता ने लेखक से
(घ) लेखक के पिता ने दत्ता राव से
उत्तर : (ख) दत्ता राव ने लेखक की माता से
26. मराठी अध्यापक की किस बात से लेखक को लगा कि वह भी कविता कर सकता है?
(क) जब मास्टर ने अपने घर के दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर कविता लिखी।
(ख) जब मास्टर ने विद्यालय में एक प्रतियोगिता रखी।
(ग) जब गाँव में मास्टर जी ने लेखक की तारीफ की।
(घ) जब मास्टर ने उन्हे कविता लिखना सिखाया।
उत्तर : (क) जब मास्टर ने अपने घर के दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर कविता लिखी
27. ‘जूझ’ पाठ का शीर्षक उपयुक्त है क्योंकि-
(क) लेखक पढ़ता रहता था।
(ख) लेखक खेती के काम में संघर्ष करता था।
(ग) लेखक के पिता का संघर्ष करने के कारण।
(घ) लेखक के संघर्ष से जूझने की प्रवृत्ति के कारण।
उत्तर : (घ) लेखक के संघर्ष से जूझने की प्रवृत्ति के कारण।
28. ‘जूझ’ पाठ के अनुसार कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
(क) अकेलापन डरावना है।
(ख) अकेलापन उपयोगी है।
(ग) अकेलापन अनावश्यक है।
(घ) अकेलापन सामान्य प्रक्रिया है।
उत्तर : (ख) अकेलापन उपयोगी है।
29. जूझ कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?
(क) खेतीबाड़ी में कोई भविष्य नहीं होता।
(ख) अच्छे कार्य के लिए झूठ बोलना गलत नहीं है।
(ग) सहपाठी तो हँसी मज़ाक करते हैं उनसे दोस्ती बना कर रखनी चाहिए।
(घ) जीवन में कितनी तकलीफें क्यों न आएँ, हमें हमेशा जुझारू रहना चाहिए।
उत्तर : (घ) जीवन में कितनी तकलीफें क्यों न आएँ, हमें हमेशा जुझारू रहना चाहिए।
30. ‘मंत्री’ गणित के अध्यापक के बारे में कौन सी बातें असत्य है?
(क) वह उधम करने वाले बच्चों की पिटाई कर देते थे।
(ख) वह पढ़ाई करने वाले लड़कों को शाबाशी देते थे।
(ग) बच्चे ‘मंत्री’ गणित के अध्यापक के डर से पढ़कर आते थे।
(घ) मंत्री अध्यापक बच्चों को रोज दो कविताएँ सुनाते थे।
उत्तर : (घ) मंत्री अध्यापक बच्चों को रोज दो कविताएँ सुनाते थे।
31. लेखक किस बच्चे से प्रभावित होकर पढ़ाई के सभी काम करने लगा?
(क) वसंत सैनी
(ख) वसंत पटेल
(ग) वसंत पाटील
(घ) वसंत दत्ता
उत्तर : (ग) वसंत पाटील
32. मराठी अध्यापक के अध्यापन के विषय में क्या असत्य है?
(क) वे कविता को सुरीले गले, छंद की बढ़िया चाल, रसिकता के साथ पढ़ाते थे।
(ख) वे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे।
(ग) वे प्रसिद्ध कवियों के संस्मरण भी सुनाते थे।
(घ) कविता सुनाते समय अगर कोई बच्चा बोल दे तो उसकी पिटाई कर देते थे।
उत्तर : (घ) कविता सुनाते समय अगर कोई बच्चा बोल दे तो उसकी पिटाई कर देते थे।
33. मराठी अध्यापक के अध्यापन से लेखक में क्या-क्या नए परिवर्तन आए?
(क) वह खेत में अकेले काम करते हुए कविता गाता
(ख) मास्टर के अभिनय, यति-गति, आरोह-अवरोह की नकल करते हुए खुले कंठ से कविता गाता
(ग) लेखक को अब अकेले रहना अच्छा लग गया
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर : (घ) उपर्युक्त सभी
34. कक्षा में किस बच्चे को मॉनिटर बनाया गया था?
(क) वसंत पाटिल
(ख) चाहवान
(ग) आनंदा
(घ) वसंत दत्ता
उत्तर : (क) वसंत पाटिल
35. आनंद का विश्वास विद्यालय में पुनः क्यों बढ़ने लगा?
(क) विद्यालय में पुरस्कार मिलने के कारण
(ख) मंत्री अध्यापक से वाह वाही मिलने के कारण
(ग) अध्यापकों के अपनेपन और वसंत पाटिल से दोस्ती के कारण
(घ) दत्ता राव साहब के कारण
उत्तर : (ग) अध्यापकों के अपनेपन और वसंत पाटिल से दोस्ती के कारण
36. मास्टर सौंदलगेकर किन कवियों के साथ अपनी मुलाकात के संस्मरण सुनाते?
(i) दिनकर, नरेंद्र कोहली,
(ii) निराला जी के
(iii) बोरकर, तांबे
(iv) गिरीश और केशव कुमार
उपरिलिखित कथनो में से कौन-सा / कौन-से सही है / हैं?
(क) केवल (i)
ख) केवल (ii)
(ग) (ii) और (iii)
(घ) (iii) और (iv)
उत्तर : (घ) (iii) और (iv)
37. कविताओं को मास्टर के बताए राग से अलग भी गाया जा सकता है। ये आनंदा को कब अनुभव हुआ?
(क) कक्षा के दूसरे बच्चों को कविता सुनाते समय
(ख) कविता लिखते समय
(ग) रात को सोते समय
(घ) खेत में ही काम करते समय मास्टर द्वारा गाये कविताओं को गाते गाते
उत्तर : (घ) खेत में ही काम करते समय मास्टर द्वारा गाये कविताओं को गाते गाते
38. लेखक को यह क्यों लगने लगा कि जितना वह अकेले रहे उतना अच्छा है?
(क) अकेलेपन में वह थोड़ा आराम कर सकता था।
(ख) अकेले में वह सिनेमा देख सकता है।
(ग) अकेले में वह अलग-अलग चालों से तेज़ आवाज़ में कविता गा सकता था।
(घ) अकेले में वह स्वयं से बाते कर सकता था।
उत्तर : (ग) अकेले में वह अलग-अलग चालों से तेज़ आवाज़ में कविता गा सकता था।
39. ‘चाँद रात पसरिते’ कविता के सम्बंध में कौन सी बात सत्य है?
(क) यह दिनकर द्वारा रचित है।
(ख) यह अनंत काणेकर द्वारा रचित है।
(ग) यह केशव कुमार द्वारा रचित है।
(घ) यह सैंदलगेकर द्वारा रचित है।
उत्तर : (ख) यह अनंत काणेकर द्वारा रचित है।
40. आनंद ने ‘चाँद रात पसरिते’ कविता को सिनेमा के एक गीत की तर्ज पर गाया। वह गाना किस छंद की तर्ज पर था?
(क) दोहा
(ख) मनोरम
(ग) सवैया
(घ) केशव करणी जाति
उत्तर : (घ) केशव करणी जाति
41. मास्टर जी ने आनंदा के नए तर्ज़ पर गीत गाने से प्रभावित होकर क्या किया?
(क) आनंद को कविता के राग बदलने पर समझाया कि यह गलत राग है।
(ख) छठी-सातवीं कक्षा के विद्यार्थियों के सामने उसे बुलाकर गवाया।
(ग) उसे पुरस्कार दिया।
(घ) उसे कविता न गाने को कहा।
उत्तर: (ख) छठी-सातवीं कक्षा के विद्यार्थियों के सामने उसे बुलाकर गवाया
42. आनंदा को कब यह लगने लगा कि कवि भी उसके जैसे ही हाड़ माँस के व्यक्ति हैं?
(i) जब उसने मराठी अध्यापक को देखा।
(ii) खुद मास्टर भी कवि थे।
(iii) जब मराठी अध्यापक उसे कवियों के चरित्र और संस्मरण सुनाते।
(iv) इनमे कोई नही।
उपरिलिखित कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है। हैं?
(क) (i) और (ii)
(ख) (ii) और (iii)
(ग) (iii) और (iv)
(घ) (i) और (iv)
उत्तर : (ख) (ii) और (iii)
43. आनंद ने कविता लिखने की शुरआत में तुकबंदी के लिए किन विषयों को चुना?
(क) अपने परिवार के लोग
(ख) फसलों, जंगली फूलों अपने आस पास के वातावरण पर
(ग) रोज़मर्रा की क्रियाओं पर
(घ) पशु और पक्षीयों पर
उत्तर : (ख) फसलों, जंगली फूलों अपने आस पास के वातावरण पर
44. मास्टर सौंदलगेकर द्वारा आनंदा को कविता की बारीकियों को समझाने का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
(क) कविता के प्रति असीम प्रेम बढ़ गया।
(ख) विद्यालय के प्रति अपनत्व और बढ़ गया।
(ग) खेतों में काम करना बंद कर दिया।
(घ) पढाई पर ध्यान देने लगा।
उत्तर : (क) कविता के प्रति असीम प्रेम बढ़ गया।
45. जूझ’ कहानी के नायक द्वारा पढ़ाई के साथ-साथ खेती का काम करने से संबंधित कौन सी बात असत्य है?
(क) उसकी पढ़ाई के प्रति रुचि कम हो गई।
(ख) वह और संघर्षशील हो गया।
(ग) वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा।
(घ) प्रतिकूल परिस्थितियों ने उसके दृढ़ निश्चय को बढा दिया।
उत्तर : (क) उसकी पढ़ाई के प्रति रुचि कम हो गई।
46. कविता पाठ करने के समय मराठी अध्यापक क्या करते थे?
(क) कविता की लय भूल जाते थे।
(ख) कविता लिखने को कहते थे।
(ग) कविता के सिद्धांतों पर चर्चा करते थे।
(घ) कविता पाठ के बीच-बीच में संस्मरण सुनाते थे।
उत्तर : (घ) कविता पाठ के बीच-बीच में संस्मरण सुनाते थे।
47. इस कहानी के माध्यम से किसके संघर्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की गई है?
(क) खेतिहर मजदूर के संघर्ष
(ख) आनंदा के जीवन का संघर्ष
(ग) गरीब माँ का संघर्ष
(घ) गरीब किसान का संघर्ष
उत्तर: आनंदा के जीवन का संघर्ष
48. ‘जूझ’ कहानी में आनंदा के उच्च स्तरीय कवि बनने तक का सफर किस बात का प्रमाण है?
(क) उसके परिश्रम एवं लगन का
(ख) पिता की बात को महत्व ना देने का
(ग) झूठ बोल कर पढ़ाई करने का
(घ) केवल अपने मन की करने का
उत्तर : (क) उसके परिश्रम एवं लगन का
49. ‘जूझ’ पाठ के अनुसार लेखक ने अपनी जन्मजात प्रतिभा का परिचय किस प्रकार दिया?
(क) विद्यालय में प्रवेश लेकर
(ख) पिता का विरोध करके
(ग) नए-नए विषयों पर कविता लिख कर
(घ) माता की आज्ञा का पालन करके
उत्तर : (ग) नए-नए विषयों पर कविता लिख कर
50. ‘जूझ’ पाठ में आनंदा की कक्षा में शरारत किस कारण कम होने लगी?
(क) वसंत के आ जाने से
(ख) गणित के अध्यापक द्वारा शरारती लड़कों की पिटाई किए जाने से
(ग) मराठी अध्यापक सौंदलगेकरके आने से
(घ) विद्यार्थियों में जागरूकता पैदा होने से
उत्तर : (ख) गणित के अध्यापक द्वारा शरारती लड़कों की पिटाई किए जाने से
51. मास्टर सौंदलगेकर ने किस पर कविता लिखी थी?
(क) आनंद की जुझारू प्रवृत्ति पर
(ख) विद्यालय के अनुशासन पर
(ग) मालती लता की सुंदरता पर
(घ) प्रकृति की सुंदरता पर
उत्तर : (ग) मालती लता की सुंदरता पर
52. आनंदा के पिता द्वारा स्वयं खेती ना करके अपने बेटे से खेती का काम करवाना उनके किस चरित्र की ओर संकेत करता है?
(i) पिता अपने बेटे को परिश्रमी बनाना चाहता है।
(ii) पिता के आलसी और कमजोर कामचोर रूप को दर्शाता है।
(iii) पिता दूरदर्शी है।
(iv) पिता के लिए पुत्र ही उसका सब कुछ है।
उपरिलिखित कथन/कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है / हैं?
(क) केवल (i)
(ख) केवल (ii)
(ग) (i), (iii) और (iv)
(घ) (iii) (iv)
उत्तर : (ख) केवल (ii)
53. आनंदा जब पहले दिन पाठशाला गया तो उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
(क) उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
(ख) वह क्रोधित हुआ।
(ग) वह अत्यंत उदास था।
(घ) उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।
उत्तर: वह अत्यंत उदास था।
54. आनंदा और उसकी माँ द्वारा झूठ का सहारा ना लिए जाने की स्थिति में क्या होता?
(i) आनंदा के जीवन में अकेलापन ठहर जाता।
(ii) वह अपनी कविता लिखने के गुण को नहीं निकाल पाता।
(iii) वह शिक्षित होने से वंचित रह जाता।
(iv) उपर्युक्त सभी।
उपरिलिखित कथन/ कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है / हैं?
(क) (i) और (ii)
(ख) (ii) और (iii)
(ग) (iii) और (iv)
(घ) (iv)
उत्तर : (घ) (iv)
55. कविता के साथ खेलने से आनंदा को कौन-सी शक्ति प्राप्त हुई?
(i) दिव्य शक्ति की
(ii) कविता के साथ नृत्य और अभिनय करने की
(iii) गायक बनने की
(iv) अकेलेपन में भी आनंद अनुभव करने की
उपरिलिखित कथनो में से कौन-सा / कौन-से सही है। हैं?
(क) केवल (i)
(ख) केवल (iii)
(ग) (ii), (iv)
(घ) (iii), (iv)
उत्तर: (ग) (ii), (iv)
56. ‘जूझ ‘ पाठ के अनुसार पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था क्योंकि –
(i) लेखक खेती बाड़ी नहीं करना चाहता था।
(ii) दत्ता जी राव जानते थे कि खेती-बाड़ी में लाभ नहीं है।
(iii) लेखक का पढ़ लिखकर सफल होना बहुत आवश्यक था।
(iv) लेखक का पिता नहीं चाहता था कि वह आगे की पढ़ाई करें।
उपरिलिखित कथनो में से कौन-सा / कौन-से सही है/ हैं?
(क) केवल (i)
(ख) केवल (ii)
(ग) केवल (iii)
(घ) (ii) और (iii)
उत्तर : (ग) केवल (iii)
57. दत्ता जी राव की सहायता के बिना जूझ कहानी का ‘मैं’ पात्र क्या सब नहीं कर पाता?
(i) पढ़ नहीं पाता
(ii) कविता, उपन्यास न लिख पाता
(iii) खेती नहीं कर पाता
(iv) वह कभी स्कूल नहीं जा पाता
उपरिलिखित कथन/कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है / हैं?
(क) केवल (i)
(ख) केवल (ii)
(ग) (i) (ii) और (iii)
(घ) (i) (ii) और (iv)
उत्तर : (घ) (i) (ii) और (iv)
58. कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
(i) कविता को रटवाना।
(ii) कविता को रस, लय, छंद के आधार पर पढ़ाना।
(iii) छात्र को प्रोत्साहित करना।
(iv) काव्य उपकरणों की जानकारी देना।
उपरिलिखित कथन/कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है/ हैं?
(क) (i) (iii) और (iv)
(ख) (ii) (iii) और (iv)
(ग) (i) (ii) और (iii)
(घ) (i) (ii) और (iv)
उत्तर : (ख) (ii) (iii) और (iv)
59. आनंदा को गणित समझ आने के संबंध में कौन सा/से कथन सत्य है?
(क) मन की एकाग्रता के कारण
(ख) वसंत पाटिल की सहायता से
(ग) अध्यापक की सहायता से
(घ) मित्रो की सहायता से
उत्तर : (क) मन की एकाग्रता के कारण
60. कहानी में आनंदा लेखन का अभ्यास कैसे करता था?
(क) मिट्टी पर लिखकर
(ख) श्यामपट्ट पर लिखकर
(ग) अपने पशुओं की पीठ पर लिखकर
(घ) घर की दीवारों पर लिखकर
उत्तर : (ग) अपने पशुओं की पीठ पर लिखकर
61. ‘जूझ’ पाठ में लेखक अपनी पढ़ाई के विषय में किससे कहता है?
(क) अपने पिता से
(ख) दत्ताजी राव से
(ग) अपनी माँ से
(घ) सौन्दलगेकर से
उत्तर – (ग) अपनी माँ से
62. ‘जूझ’ पाठ में लेखक को कक्षा में किसका साथ मिलता है?
(क) बसंत पाटिल का
(ख) रतनाप्पा का
(ग) मास्टर रणनवरे का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) बसंत पाटिल का
63. बच्चे को शिक्षा देने के विषय में दत्ताजी राव का नजरिया कैसा है?
(क) अनुचित है।
(ख) उचित है।
(ग) पक्षपातपूर्ण है।
(घ) विरोध में है।
उत्तर – (ख) उचित है।
64. ‘जूझ’ कहानी किस शैली में लिखी गई है?
(क) वर्णनात्मक शैली में
(ख) भावात्मक शैली में
(ग) उपदेशात्मक शैली में
(घ) आत्मकथात्मक शैली में
उत्तर – (घ) आत्मकथात्मक शैली में
65. लेखक की माँ उसे किस कक्षा तक पढ़ाना चाहती थी?
(क) सातवीं
(ख) आठवीं
(ग) पाँचवीं
(घ) आठवीं
उत्तर – (क) सातवीं
66. लेखक पहले दिन कक्षा में दीवार से पीठ सटाकर क्यों बैठ गया था?
(क) क्योंकि उसे पढ़ना अच्छा नहीं लगा।
(ख) क्योंकि शरारती बच्चे उसकी धोती खोल देते थे।
(ग) क्योंकि उसके कपड़े गंदे थे।
(घ) क्योंकि उसकी पहचान का कोई बच्चा साथ नहीं था।
उत्तर – (ख) क्योंकि शरारती बच्चे उसकी धोती खोल देते थे।
67. लेखक को कब लगा कि कवि भी हाड़-मांस का बना होता है?
(क) मास्टर स्वयं एक कवि थे।
(ख) वे कवियों के संस्मरण सुनाया करते थे।
(ग) उनके पास मराठी कवियों के काव्य-संग्रह थे।
(घ) इनमें से सभी
उत्तर – (घ) इनमें से सभी
पाठ ‘जूझ’ के कुछ स्मरणीय बिंदु –
1. लेखक जुझारू योद्धा है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर -लेखक जुझारू योद्धा है। वह दीवार में भी खिड़की निकालना जानता है। उसके मन में संघर्ष करने की इच्छा इतनी बलवती है कि वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए असंभव-से प्रयत्न भी कर डालता है। वह छोटी-सी आयु में अपने अपनी माँ से बात करता है। माँ को निराश देखकर उसे संभावित रास्ता बतलाता है। फिर वह राव साहब के घर जाकर युक्तियाँ भिड़ाता है। इस प्रकार वह अपने दादा की अवरोधी चट्टान में से रास्ता निकाल लेता है।
2. लेखक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान बालक है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर-लेखक बहुत बुद्धिमान तथा प्रतिभाशाली बालक है। वह बचपन में ही बड़ों जैसी युक्तियाँ खोजकर अपने लिए रास्ते बनाता है। माँ को समझाना, राव साहब को विश्वास दिलाना, पिता को बाध्य करना उसकी बुद्धिमत्ता के चिह्न हैं। वह प्रतिभाशाली बालक है। विद्यालय में जाते ही वह गणित और साहित्य में अग्रणी स्थान पा लेता है। गणित के सवाल ठीक करने के कारण उसे मॉनीटर बना दिया जाता है। कविता सुनकर गाने, अभिनय करने और नाचने में वह बहुत कुशल है। वह अपने अध्यापक से भी अच्छी लय निकाल लेता है। धीर-धीरे वह नए-नए विषयों पर कविताएँ लिखकर अपनी जन्मजात प्रतिभा का परिचय देता है।
3. वसंत पाटील कौन था? उसकी लेखक से दोस्ती क्यों और कैसे बनी?
उत्तर- वसंत पाटील एक दुबला-पतला किंतु होशियार लड़का था। उसका स्वभाव शांत था। उसके गणित के सवाल ठीक निकलते थे। वह घर से तैयारी करके आता था। गणित के अध्यापक ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया था। लेखक भी उसकी देखादेखी मेहनत करने लगा। उसके भी सवाल ठीक निकलने लगे। तब उसे भी मॉनीटर की तरह अन्य बच्चों की कापियाँ देखने के काम में लगा दिया गया। इस प्रकार उसकी वसंत पाटील से दोस्ती हो गई।
4. मराठी के मास्टर जी से कविता पढ़कर लेखक को क्या लाभ मिला?
उत्तर-मराठी के मास्टर न.वा. सौंदलगेकार जी से कविता पढ़कर लेखक को निम्नलिखित लाभ हुए वह स्वयं गति-लय, छंद और अभिनय के साथ कविता पढ़ने लगा। उसका काव्य-पाठ अपने अध्यापक से भी अलग और आकर्षक था। इसलिए उसे पूरी कक्षा के सामने गाने का अवसर दिया गया। स्कूल के समारोह में भी उसे गाने का मौका मिला। इससे उसका उत्साह बढ़ा। अब उसे अकेलेपन में भी आनंद मिलने लगा। वह अकेले में और खुलकर ऊँचे स्वर से गा-नाच और अभिनय कर सकता था। उस कविता लिखने का भी शौक लग गया। मास्टर जी से प्रोत्साहन पाकर उसका यह शौक आगे भी बढ़ता।
‘जूझ’ पाठ से जुड़े कुछ स्मरणीय बिंदु –
1. लेखक का दादा गुड़ की अधिक कीमत के लिए जल्दी कोल्हू चलाता था।
2. लेखक की कक्षा के मॉनीटर का नाम वसंत पाटील था।
3. कहानी के शीर्षक ‘जूझ’ का अर्थ है- संघर्ष
4. ‘जूझ’ पाठ के रचयिता का नाम है- आनंद यादव
5. ‘जूझ’ उपन्यास मूलतः मराठी भाषा में रचित है।
6. ‘जूझ’ के कथानायक का ‘आनंदा’ नाम बताया गया है।
7. पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले माँ से की।
8. पढ़ाई के लिए लेखक अपनी माँ के साथ दत्ता जी राव के पास गया।
9. सौंदलगेकर मराठी विषय के अध्यापक थे।
10. लेखक की माँ के अनुसार उसका पति दिनभर रखमाबाई के पास रहता है।
11. खेत का कोल्हू का काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की।
12. लेखक पढ़ना नौकरी/व्यापार के लिए चाहता है।
13. लेखक की माँ के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता जंगली सूअर के समान गुर्राता है।
14. लेखक की माँ के अनुसार उसके पति ने लेखक को पाठशाला जाने से रोक दिया ताकि खुद काम से बच सके।
15. आनंद के पिता रत्नाप्पा दत्ता राव साहब के यहाँ अपना सम्मान समझकर तत्काल चला गया।
16. लेखक के पिता का नाम ‘रतनाप्पा’ था।
17. शर्त के अनुसार पाठशाला जाने से पहले लेखक को सवेरे 11 बजे तक खेत में काम करना होता था।
18. स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को एक घंटा पशु (ढोर) चराने होते थे।
19. लेखक के कक्षा अध्यापक का नाम मंत्री मास्टर था।
20. ‘जूझ’ कहानी से लेखक की संघर्षमयी प्रवृत्ति का उद्घाटन हुआ है।
21. जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था, उसका नाम चह्वाण था।
22. लेखक को गणित पढ़ाने वाले मास्टर का मंत्री नाम था।
23. लेखक के दादा (पिता) की गुस्सैल और हिंसक प्रवृत्ति थी।
‘जूझ’ पाठ से जुड़े अन्य लघु उत्तर
1.जूझ कहानी के लेखक कौन हैं – डॉ आनंद यादव
2.आनंद यादव का पूरा नाम क्या हैं – आनंद रतन यादव
3.जूझ कहानी में नायक का क्या नाम बताया गया है – आनंदा
4.आनंद यादव का जन्म कब हुआ था – सन 1935
5.जूझ कहानी किस उपन्यास से ली गई है – मराठी उपन्यास ‘झोबी’
6.इस उपन्यास को कौन सा पुरस्कार मिला है – साहित्य अकादमी
7.’झोबी’ उपन्यास किस भाषा में लिखा गया हैं – मराठी
8.जूझ कहानी के शीर्षक का अर्थ क्या हैं – संघर्ष करना / जूझारुपन
9.जूझ कहानी क्या संदेश देती है – संघर्ष करने की सीख देती है।
10. जूझ कहानी से लेखक की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन (पता) हुआ – संघर्षमयी
11.जूझ कहानी किस शैली में लिखी गई हैं – आत्मकथात्मक शैली या आत्मकथात्मक उपन्यास । दरअसल जूझ कहानी लेखक आनंद यादव की आत्मकथा का एक हिस्सा है।
12.जूझ उपन्यास किस श्रेणी का उपन्यास है – आत्मकथात्मक
13.जूझ कहानी मराठी उपन्यास झोबी का एक हिस्सा हैं। इसका हिंदी अनुवाद किसने किया – केशव प्रथम वीर ने
14.जूझ कहानी के नायक की चरित्र की विशेषताएँ क्या हैं – संघर्षशील , जुझारूपन , परिश्रमी और कविता के प्रति लगाव
15.आनंद यादव ने कौन से विषय में स्नातकोत्तर किया – मराठी एवं संस्कृत
16.लेखक आनंद यादव के पिता ने उनकी पढ़ाई कब छुड़वा दी – जब वो पाँचवी में पढ़ते थे।
17.लेखक ने दुबारा कौन-सी कक्षा में दाखिला लिया – पाँचवी कक्षा में
18.लेखक के पिता का क्या नाम था – रत्नाप्पा
19.लेखक अपने पिता को क्या कहकर पुकारते थे – दादा
20.गाँव के मुखिया का नाम क्या था – दत्ताजी राव सरकार देसाई
21.लेखक अपने दादा यानी पिता के सामने बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते थे – क्योंकि उसके दादा गुस्सैल व हिंसक स्वभाव के व्यक्ति थे।
22.लेखक क्यों पढ़ना चाहते थे – वो पढ़ – लिखकर कोई अच्छी नौकरी पाना चाहते थे।
23.पढ़ाई के लिए पिता को राजी करने का दबाव डालने के लिए लेखक अपनी माँ के साथ किसके पास गया – दत्ताजी राव के पास
24.पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले किससे की – अपनी माँ से
25.लेखक को सातवीं कक्षा तक कौन पढ़ाना चाहता था – माँ
26.लेखक की माँ के अनुसार उसके पति ने लेखक को पाठशाला जाने से क्यों रोक दिया – खुद काम से बचने के लिए
27.किसके कहने पर लेखक के पिता ने लेखक को स्कूल भेजना शुरू किया – गाँव के मुखिया दत्ताजी राव के कहने पर
28.पाठशाला जाने का समय किस समय से था – सुबह 11:00 बजे से
29.शर्त के अनुसार पाठशाला जाने से पहले लेखक को सवेरे कितने बजे तक खेत में काम करना होता था –11 बजे तक
30. लेखक का दादा (पिता) जल्दी कोल्हू क्यों चलवाता था – क्योंकि वह अपने गुड से अच्छी कमाई करना चाहता था या अधिक पैसे कमाने के लिए
31.जूझ पाठ के अनुसार लेखक के घर कोल्हू चलना कब से शुरू होता था – दिवाली के बाद
32.लेखक को किसने कविताएँ लिखने के लिए प्रोत्साहित किया – उनके मराठी शिक्षक न. वा. सौंदलगेकर ने
33.सौंदलगेकर किस विषय के अध्यापक थे – मराठी
34.लेखक पढ़ना क्यों चाहता था – नौकरी करने के लिए
35.लेखक की कक्षा के मॉनिटर का क्या नाम था – वसंत पाटिल
36.पढ़ाई में सुधार के लिए लेखक ने किसका अनुसरण किया – वसंत पाटिल
37.वसंत पाटिल की नकल करने से लेखक को क्या लाभ पहुँचा – वो गणित विषय में प्रवीण हो गए, कक्षा में मॉनिटर जैसा सम्मान मिला व अध्यापक की नजरों में एक अच्छे छात्र की जगह बनी।
38.खेत का कौन-सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की – कोल्हू का काम
39.लेखक की माँ के अनुसार उसका पति दिन भर बाहर किसके पास रहता था – रखमाबाई
40.लेखक का कौन-सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने अपनी माँ से पढ़ाई की बात की – कोल्हू का काम
41.लेखक की माँ के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता कैसे गुर्राता है – जंगली सूअर के समान
42.लेखक के दादा (पिता) की प्रवृत्ति कैसी थी – गुस्सैल और हिंसक
43.दत्ता राव सरकार ने दादा को क्यों डाँटा – लेखक को स्कूल न भेजने के कारण
44.लेखक का पिता, दत्ताजी राव के यहाँ तत्काल क्यों चला गया – अपना सम्मान समझ कर
45.दत्ताजी राव सरकार ने लेखक को क्या निर्देश दिए – अगले दिन से स्कूल जाने, मन लगाकर पढ़ाई करने तथा पिता के स्कूल ना भेजने पर तुरंत उनके पास आने का निर्देश दिया।
46.स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को कितने घंटे पशु चराने होते थे – एक घंटा
47.लेखक के कक्षा – अध्यापक का क्या नाम था – मंत्री
48.जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था , उसका क्या नाम था – चह्वाण
49.लेखक को गणित पढ़ाने वाले मास्टर का क्या नाम था – मंत्री
50.दादा ने दत्ताजी राव सरकार के सामने लेखक पर क्या आरोप लगाए – सिनेमा देखने जाना, घर व खेती के कार्य में मन न लगाना और व्यर्थ यहाँ – वहाँ घूमना।
51.दादा ने अपने बेटे के सामने स्कूल जाने के लिए क्या शर्त रखी – स्कूल जाने से पहले खेतों में पानी भरना, स्कूल से आने के बाद जानवर चराना और घर/खेत में काम अधिक होने पर स्कूल न जाना।
52.लेखक पहले दिन अपनी कक्षा की दीवार से पीठ सटाकर क्यों बैठ गया – क्योंकि शरारती बच्चे उनकी धोती खींच रहे थे।
53.आनंदा की कक्षा में शरारत किस कारण कम होने लगी – गणित के अध्यापक द्वारा शरारती बच्चों की पिटाई किए जाने के बाद।
54.लेखक को अकेलेपन में आनंद क्यों आने लगा – क्योंकि अकेले में वो अपनी कविताओं को लिख सकते थे, उनको खुलकर गा सकते थे और उनमें अभिनय भी कर सकते थे।
55.जूझ कहानी के अनुसार कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया – अब उन्हें अकेलापन अच्छा लगने लगा या अकेलेपन से बोरियत खत्म हो गई।
56. लेखक के मराठी शिक्षक की क्या विशेषताएँ थी – उनको कविता में छंद, अलंकार, गति आरोह – अवरोह का अच्छा ज्ञान था।
57.मराठी भाषा की कविताओं के अलावा सौंदलगेकर को किस भाषा की कविताएँ कंठस्थ याद थी – अंग्रेजी
58.आनंदा और उसकी माँ ने, दत्ताजी राव से किस बात के लिए आग्रह किया – उन दोनों की उनके पास आने की बात दादा को न बताने का आग्रह किया।
59.“आने दे अब उसे, मैं उसे सुनाता हूँ कि नहीं, अच्छी तरह देख”। यह कथन किसने किससे कहा था – दत्ताजी राव ने लेखक की माता से कहा
60.अगर आनंदा और उसकी माँ ने झूठ का सहारा ना लिया होता तो – आनंदा अशिक्षित ही रह जाते और वो कविताएँ भी नहीं लिख पाते
61.कविता पाठ करते समय मराठी अध्यापक क्या करते थे – बीच बीच में अपने संस्मरण सुनाते थे।
पात्र परिचय
आनंद रतन यादव (आनंदा) (मुख्य)
आनंद की माँ (मुख्य)
रतनप्पा आनंद के पिता (मुख्य)
दत्ता जी राव सरकार (मुख्य)
न.वा. सौंदलगेकर मराठी के मास्टर (मुख्य)
वसंत पाटील कक्षा का सबसे होशियार लड़का (मुख्य)
विठोबा आण्णा कारोबारी (गौण)
रखमाबाई (गौण)
चह्वाण (गौण)
रणनवरे मास्टर (गौण)
मंत्री नामक मास्टर कक्षा अध्यापक गणित पढ़ाते थे। (गौण)