Aaroh Class – XI,  Sumitranandan Pant – Ve Aankhen, The best solutions

मूल नामः गोसाँई दत्त

जन्मः सन् 1900, कौसानी, ज़िला अल्मोड़ा (उत्तरांचल)

प्रमुख रचनाएँ :  वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन , युगवाणी, ग्राम्या, चिंदबरा, उत्तरा, स्वर्ण किरण, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन आदि

सम्मानः भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, पद्मभूषण

मृत्युः सन् 1977

छायावाद के महत्वपूर्ण स्तंभ सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के चितेरे कवि हैं। हिंदी कविता में प्रकृति को पहली बार प्रमुख विषय बनाने का काम पंत ने ही किया। उनकी कविता प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों का दस्तावेज है। 

इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के गाँव में तथा उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उसके बाद स्वतंत्र लेखन करते रहे। 

प्रकृति के अद्भुत चित्रकार पंत का मिज़ाज कविता में बदलाव का पक्षधर रहा है। शुरुआती दौर में छायावादी कविताएँ लिखीं। पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश इन्हें ज़ादू की तरह आकृष्ट कर रहा था। बाद में चल कर प्रगतिशील दौर में ताज और वे आँखें  जैसी कविताएँ भी लिखीं। इसके साथ ही अरविन्द के मानववाद से प्रभावित होकर  मानव तुम सबसे सुंदरतम जैसी पंक्तियाँ भी लिखते रहे। उन्होंने नाटक, कहानी, आत्मकथा, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्र में भी काम किया है। रूपाभ नामक पत्रिका का संपादन भी किया जिसमें प्रगतिवादी साहित्य पर विस्तार से विचार-विमर्श होता था। 

पंत जी भाषा के प्रति बहुत सचेत थे। इनकी रचनाओं में प्रकृति की ज़ादूगरी जिस भाषा में अभिव्यक्त हुई है उसे स्वयं पंत चित्र भाषा (बिंबात्मक भाषा) की संज्ञा देते हैं। ब्रजभाषा और खड़ी बोली के विवाद में उन्होंने खड़ी बोली का पक्ष लिया और पल्लव की भूमिका में विस्तार से खड़ी बोली का समर्थन किया। 

प्रस्तुत कविता वे आँखें पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। कविता ऐसे ही दुश्चक्र में फँसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।

भारत गाँवों का देश है और गाँवों में जीविका का मुख्य साधन है- खेती-बाड़ी। परंतु किसान प्रतिदिन के कठिन परिश्रम के बाद भी प्रकृति के कोप का भाजन तथा महाजन और जमींदार के घोर अत्याचारों के पात्र बनते हैं। ये दुखद स्थिति आज़ादी से पहले से चली आ रही है जो आज आज़ादी के बाद भी कमोबेस उसी रूप में विद्यमान है। सरकार द्वारा इनकी सुध हर पाँचवें वर्ष में ही ली जाती है और इनके भले के लिए जो वायदे किए जाते हैं वे कागज़ी ही होते हैं।

वे आँखें

अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्य दुख का नीरव रोदन!

वह स्वाधीन किसान रहा,

अभिमान भरा आँखों में इसका,

छोड़ उसे मँझधार आज

संसार कगार सदृश बह खिसका!

लहराते वे खेत दृगों में

हुआ बेदखल वह अब जिनसे,

हँसती थी उसके जीवन की

हरियाली जिनके तृन-तृन से!

आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी आँखों का तारा,

कारकुनों की लाठी से जो

गया जवानी ही में मारा!

बिका दिया घर द्वार,

महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,

रह-रह आँखों में चुभती वह

कुर्क  हुई बरधों की जोड़ी!

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

अह, आँखों में नाचा करती

उजड़ गई जो सुख की खेती!

बिना दवा दर्पन के घरनी

स्वरग चली, – आँखें आती भर,

देख-रेख के बिना दुधमुँही

बिटिया दो दिन बाद गई मर!

घर में विधवा रही पतोहू,

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

पकड़ मँगाया कोतवाल ने,

डूब कुएँ में मरी एक दिन!

खैर, पैर की जूती, जोरू

न सही एक, दूसरी आती,

पर जवान लड़के की सुध कर

साँप लोटते, फटती छाती।

पिछले सुख की स्मृति आँखों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।

1. गुहा – गुफा

2. सरीखी – की तरह

3. दारुण – भयानक

4. नीरव – मौन

5. रोदन – रोना

6. मँझधार – धाराओं के बीच में

7. कगार – किनारे

8. दृग – झूमते

9. तृन – तिनका

10. कारकुन – जमींदारों के गुंडे

11. महाजन – सेठ

12. कौड़ी – एक पैसा भी

13. कुर्क – नीलाम

14. बरंधों – बैलों

15. उजरी – सफ़ेद

16. अह – आह

17. दवा-दर्पण – दवा आदि

18. घरनी – पत्नी

19. पतोहू – बहू

20. घातिन – हत्यारिन

21. कोतवाल – थानेदार

22. जोरू – पत्नी

23. सुध – याद

24. चितवन – दृष्टि

1. अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

क. आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

उत्तर – आमतौर पर हमें असाध्य रोग, आर्थिक हानि, अपमान, हिंसात्मक गतिविधियाँ, प्रियजन की मृत्यु आदि बातों से डर लगता है।

ख. उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – ‘उन आँखों’ से किसान की ओर संकेत किया गया है।

ग. कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

उत्तर – कवि को उन आँखों में दिखने वाली असीम वेदना से डर लगता है।

घ. डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

उत्तर – डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन समाज को किसान की वास्तविक स्थिति से अवगत कराने के लिए किया है ताकि लोग किसान के प्रति सहानुभूति रखें और अत्याचारी महाजनों और थानेदारों और सरकार की लचर नीतियों को बेनकाब कर सके।

ङ. यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?

उत्तर – यदि कवि किसान की आँखों में असीम पीड़ा देखकर भय से आतुर न हो जाता तो शायद उन्हें किसानों की पीड़ा का बोध न होता और कविता न लिखी जाती क्योंकि कविता लिखने के लिए मन में भावों का होना आवश्यक है।

2. कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें ज़िम्मेदार बताया गया है?

उत्तर – कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन, कोतवाल व वर्तमान सरकार को ज़िम्मेदार बताया गया है। महाजन ने अपना ब्याज और ऋण वसूलने के लिए किसान के खेत, गाय-बैल और घर-बार बिकवा दिया। उसके कारकुनों ने विरोध करने के कारण उसके जवान बेटे को मरवा दिया। दवाई के अभाव में उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई और इसी कारण उसकी दूध-मुँही बच्ची की भी मृत्यु हो गई। अंत में किसान की दुर्गति कोतवाल ने उसकी विधवा बहू के साथ कुकर्म करके पूरा कर दिया। इस कारण उसकी पुत्रवधू ने कुएँ में कूदकर अपने प्राण ले लिए।  

3. पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती  –  इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति में किसान के पूर्व सुखों की ओर संकेत किया गया है – जब किसान स्वाधीन था उसके घर के पास लहलहाते खेत थे। दुधारू गाय और हृष्ट-पुष्ट बैलों की जोड़ी थी। घर में उसका एक जवान बेटा, पत्नी, बेटी और बहू भी थी। इस तरह से किसान एक सुखी और संतुष्ट जीवन व्यतीत करता था और इन्हीं सब की स्मृति उसकी आँखों में चमक ला देती थी।

4. संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें—

(क) उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

उत्तर – संदर्भ– प्रस्तुत काव्यांश पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित ‘वे आँखें’ कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। 

आशय – कवि कहते हैं कि किसान के पास उजरी नाम की सुंदर सफ़ेद एक गाय थी। उस गाय के प्रति किसान का कुछ विशेष स्नेह था। वह गाय भी केवल किसान को ही दूध दूहने देती थी।

(ख) घर में विधवा रही पतोहू

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

उत्तर – संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित ‘वे आँखें’ कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के जवान पुत्र के मरने का संदर्भ है कि किस प्रकार किसान के बेटे को विरोध करने के लिए मार दिया गया। 

आशय – किसान के बेटे को कारकूनों (गुंडों) ने मार दिया और उसकी मृत्यु का आरोप जमींदार और पुलिस ने मिलकर उसकी पत्नी पर डाल दिया। उसके मरने में उसकी पत्नी का कोई दोष नहीं था फिर भी समाज ने उसे पति-घातिन अर्थात् पति की हत्या करने वाली कहकर उसे दोषी बना दिया। हालाँकि वह घर के लिए लक्ष्मी से कम नहीं थी।

(ग) पिछले सुख की स्मृति आँखों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।

उत्तर – संदर्भ –प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित ‘वे आँखें’ पाठ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के अतीत के सुखों के बारे में बताया गया है। 

आशय – किसान जब अपने पूर्व वैभव को याद करता है तो क्षण भर के लिए उसे असीम सुख और आनंद का अनुभव होता है। उसकी आँखों में चमक भर आती है। परंतु किसान का यह सुखद अहसास क्षण भर में विलीन हो जाता है और तीखी नोक की भाँति वह सारी सुख की बातें उसकी आँखों में चुभने लगती है क्योंकि आज उस किसान के पास कुछ भी नहीं है।

5. “घर में विधवा रही पतोहू ……/ खैर पैर की जूती, जोरू/एक न सही दूजी आती’’ इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए ‘वर्तमान समाज और स्त्री’ विषय पर एक लेख लिखें।

उत्तर – प्रस्तुत कविता में स्त्री की स्थिति बड़ी ही दयनीय दिखाई गई है। यहाँ स्त्री को किसी वस्तु की तरह माना गया है, पैर की जूती के समान माना गया है। यहाँ तो यहाँ तक कह दिया गया है कि अगर एक स्त्री चली भी जाए तो दूसरी आ सकती है, जैसे स्त्री का कोई वजूद ही नहीं। इस कविता में भी विधवा स्त्री से सहानुभूति रखने के बजाय जमींदार और कोतवाल की मिलीभगत से उसे पति की हत्यारिन करार दिया जाता है। कोतवाल उस निर्दोष और बेबस विधवा महिला को बिना किसी कारण के डराता और धमकाता है और उसके साथ कुकर्म करने से भी नहीं चूकता। उसे इतना प्रताड़ित किया जाता है कि आत्महत्या करने के अतिरिक्त उसके पास और कोई भी मार्ग शेष नहीं रह जाता।

वर्तमान युग की बात करें तो स्त्रियों की स्थिति पहले की तुलना में कई गुना बेहतर हुई है। आज स्त्री शिक्षा और सह शिक्षा को बल मिल रहा है। महिलाएँ भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। हम कह सकते हैं कि आज का युग स्त्री-जागरण का स्वर्णयुग है। भारत में तो सर्वोच्च राष्ट्रपति पद की कमान भी अभी तक दो स्त्रियों ने बखूबी सँभाली है। घर-गृहस्थी, शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, चिकित्सा, शासन कार्य और यहाँ तक कि सैनिक बनकर देश की रक्षा के लिए मोर्चों पर जाने में भी वे अव्वल हैं। अब स्त्री अबला नहीं रही है वह तो अपराजिता बन चुकी है और उसकी जीत में पुरुषों का योगदान ठीक वैसे ही है जैसे एक पुरुष की जीत में स्त्री का योगदान।

किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

उत्तर – किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। उन्हें अपने इस पुश्तैनी कृषिकार्य में अंधकार के अलावा और कुछ नज़र नहीं आ रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं –

  • आय में कमी।
  • घोर परिश्रम का कार्य।
  • सम्मान का नितांत अभाव।
  • आधुनिक तकनीक के प्रयोग व उपलब्धता की कमी।
  • सिंचाई की उत्तम व्यवस्था का न होना।  

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