Aaroh Class – XI,  Awataar Singh Paash – Sabse Khatarnaak, The best solutions

जन्मः सन् 1950, तलवंडी सलेम गाँव, ज़िला जालंधर (पंजाब)

प्रमुख रचनाएँ  :  लौह कथा, उड़दें बाजां मगर, साडै समिया बिच, लड़ेंगे साथी (पंजाबी); बीच का रास्ता नहीं होता, लहू है कि तब भी गाता है (हिंदी अनुवाद)

मृत्युः सन् 1988

पाश समकालीन पंजाबी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। मध्यवर्गीय किसान परिवार में जन्मे पाश की शिक्षा अनियमित ढंग से स्नातक तक हुई। पाश जन आंदोलनों से जुडे़ रहे और विद्रोही कविता का नया सौंदर्य विधान विकसित कर उसे तीखा किंतु सृजनात्मक तेवर दिया। पाश की कविताएँ विचार और भाव के सुंदर संयोजन से बनी गहरी राजनीतिक कविताएँ हैं जिनमें लोक संस्कृति और परंपरा का गहरा बोध मिलता है। पाश जनसामान्य की घटनाओं पर’ आउटसाइडर’ की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते बल्कि इनकी कविताओं में वह व्यथा, निराशा और गुस्सा नज़र आता है जो गहरी संपृक्तता के बगैर संभव ही नहीं है।     

पाश ने जनचेतना फैलाने के लिए अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया और सिआड़, हेमज्योति, हॉक, एंटी-47 आदि पत्रिकाओं का संपादन किया। कुछ समय तक अमेरिका में रहे। 

यह कविता दिनोदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही दुनिया की विद्रूपताओं के चित्रण के साथ उस खौफ़नाक स्थिति की ओर इशारा करती है, जहाँ प्रतिकूलताओं से जूझने के संकल्प क्षीण पड़ते जा रहे हैं। पथरायी आँखों-सी तटस्थता से कवि की असहमति है। कवि इस प्रतिकूलता की तरफ़ विशेष संकेत करता है जहाँ आत्मा के सवाल बेमानी हो जाते हैं। जड़ स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के गुम हो जाने को कवि सबसे खतरनाक स्थिति मानता है।    

पाश उर्फ़ अवतार सिंह संधू की प्रगतिवादी चेतना की कविता ‘सबसे खतरनाक’ हमारी आँखें खोलती हैं। इस कविता के माध्यम से कवि सभी पाठकों को अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़े होने की प्रेरणा देना चाहते हैं। अपने इस कविता से वे यही बताना चाहते हैं कि मेहनत का लुट जाना, पुलिस की मार सहना या गद्दारी-लोभ का शिकार होना इतना खतरनाक नहीं होता। सहमी-सी चुप्पी में सिमटे रहना, कपट के शोर में दब जाना, संघर्ष के लिए कसमसा कर रह जाना भी इतना बुरा नहीं है जितना कि मुर्दा होकर शांत जीवन जीना। जी हाँ जीते-जीते मुर्दा हो जाना और शांत जीवन जीना, सब कुछ सहन कर जाना, रोजमर्रा के जीवन में खो जाना। हमारे सपनों का मर जाना अपनी उन्नति के साथ कदम न मिला पाना ही सबसे खतरनाक होता है। सबसे खतरनाक होता है आँखों का जड़ हो जाना जिसमें न प्यार को महसूस करने की ताकत होती है और न ही अन्याय के वक्त रोष व्यक्त करने का साहस, जो रोजमर्रा की नाइंसाफी को जीवन का हिस्सा मानकर आँख होने के बाद भी नहीं देखते। सबसे खतरनाक वह चाँद भी होता है जो हत्याकांड के बाद भी शीतलता बिखेरता रहता है। खतरनाक वह गीत भी होता है जो हमेशा करुण रस के भाव व्यक्त करके सहमे हुए लोगों को और भी डराता है। वह रात खतरनाक होती है जो जिंदा आत्माओं पर उल्लू और गीदड़ की तरह चिपकी रहती है। वह दिशा खतरनाक होती है जो आत्मा के सूरज को खिलाने की बजाय मुर्दा धूप के टुकड़े को ही अपना लेती है। आशय यह है कि मुर्दों की तरह ज़िंदा रहने से कहीं बेहतर है कि अपने अंदर की आवाज़ सुनें।

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी  सबसे खतरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना – बुरा तो है

सहमी-सी चुप में जकड़े जाना – बुरा तो है

पर सबसे खतरनाक नहीं होता

कपट के शोर में

सही होते हुए भी दब जाना – बुरा तो है

किसी जुगनू की लौ में पढ़ना – बुरा तो है

मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना – बुरा तो है

सबसे खतरनाक नहीं होता

सबसे खतरनाक होता है

मुर्दा शांति से भर जाना

न होना तड़प का सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आना

सबसे खतरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो

आपकी निगाह में रुकी होती है

सबसे खतरनाक वह आँख होती है

जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है

जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

सबसे खतरनाक वह चाँद होता है

जो हर हत्याकांड के बाद

वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है

पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है

सबसे खतरनाक वह गीत होता है

आपके कानों तक पहुँचने के लिए

जो मरसिए पढ़ता है

आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर

जो गुंडे की तरह अकड़ता है

सबसे खतरनाक वह रात होती है

जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है

जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़

हमेशा के अँधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं

सबसे खतरनाक वह दिशा होती है

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए

और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती।

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी  सबसे खतरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना – बुरा तो है

सहमी-सी चुप में जकड़े जाना – बुरा तो है

पर सबसे खतरनाक नहीं होता

शब्दार्थ :

गद्दारी-देश और शासन के विरोध में खड़े होकर उसे हानि पहुँचाने का भाव।

सहमी – डरी हुई।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। कथन की पृष्ठभूमि बनाते हुए वे कुछ खतरनाक स्थितियों का उल्लेख करते हैं—

व्याख्या–

कवि कहते हैं कि यह मान लेना कि मेहनत के बदले उचित पारिश्रमिक न मिलना खतरनाक होता है, परंतु यह सबसे खतरनाक बात नहीं है। यह भी माना कि पुलिस की मार पड़ना खतरनाक होता है, परंतु इससे भी अधिकतर खतरनाक बातें कुछ और हैं। लोभ में पड़कर देश के विरुद्ध षड्यंत्र रचना खतरनाक काम है, परंतु यह संसार का सबसे खतरनाक काम नहीं है। संघर्ष किए बिना पुलिस द्वारा पकड़े जाना और जेल में डाल दिए जाना बुरी बात है। अन्याय के विरुद्ध चुपचाप सह पड़े रहना भी बुरी बात है। परंतु इन बातों को सबसे खतरनाक नहीं कहा जा सकता।

कपट के शोर में

सही होते हुए भी दब जाना – बुरा तो है

किसी जुगनू की लौ में पढ़ना – बुरा तो है

मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना – बुरा तो है

सबसे खतरनाक नहीं होता

शब्दार्थ :

कपट- छल, धोखा।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। कथन की पृष्ठभूमि बनाते हुए वे कुछ खतरनाक स्थितियों का उल्लेख करते हैं-

व्याख्या

कवि कहते हैं कि यह बात बुरी है कि चारों ओर छल-कपट को देखकर भी व्यक्ति चुप रहे। उसके विरुद्ध आवाज़ न उठाए। यह बात भी बहुत बुरी है कि व्यक्ति जुगनू के प्रकाश में पढ़े अर्थात् अज्ञानी या अल्पज्ञानी को गुरु बनाकर ज्ञान प्राप्त करे। बात यह भी बुरी है कि व्यक्ति अन्याय के विरोध में संघर्ष करना चाहे किंतु कुछ कर न सके, केवल अपनी मुट्ठियाँ भींचता रहे। ये सब बातें बुरी हैं। परंतु इनसे भी बुरी और खतरनाक स्थितियाँ और हैं। उनके परिणाम दूरगामी हैं।

सबसे खतरनाक होता है

मुर्दा शांति से भर जाना

न होना तड़प का सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आना

सबसे खतरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो

आपकी निगाह में रुकी होती है

शब्दार्थ :

मुर्दा शांति-निष्क्रिय जीवन, निठल्ला होना।

सपनों का मरना- इच्छाओं का नष्ट होना।

निगाह – दृष्टि।

प्रसंग –

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। कथन की पृष्ठभूमि बनाते हुए वे कुछ खतरनाक स्थितियों का उल्लेख करते हैं। वे कामनाहीन, उद्देश्यहीन और निष्क्रिय जीवन की निंदा करते हुए कहते हैं-

व्याख्या – जीवन में सबसे खतरनाक होता है – निष्क्रिय होकर चुपचाप बिना कुछ किए रहना। चाहे कितने भी संकट आएँ, उन्हें बिना तड़पे मौन होकर सह जाना। इसी तरह रोज़-रोज़ अपने कामकाज के लिए घर से निकलना और काम के बाद सीधे घर को लौट आना – ऐसा निष्क्रिय निठल्ला जीवन खतरनाक होता है। सबसे अधिक खतरनाक स्थिति यह होती है कि हमारे सपने मर जाएँ, जीवन की आकांक्षाएँ नष्ट हो जाएँ। हमारी चेतना, हमारी सोच मर जाए। सबसे खतरनाक दृष्टि वह है जो अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को सामने चलता देखकर भी यह सोचे कि जीवन स्थिर है। अर्थात् जो मनुष्य नित्य होते परिवर्तनों को देखकर भी उसके अनुसार न तो बदलता है, न बदलना चाहता है किंतु अपने रोज़मर्रा के मुर्दा जीवन को सच मानता है, वह खतरनाक है।

सबसे खतरनाक वह आँख होती है

जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है

जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

शब्दार्थ :

मुहब्बत- प्रेम।

रोजमर्रा – रोज-रोज का जीवन।

क्रम-ढर्रा।

लक्ष्यहीन-बिना किसी उद्देश्य के।

दुहराव-दोहराना, फिर से वही काम करना।

उलटफेर–गतिविधि करना।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। वे संवेदनाशून्य ढर्रेदार जीवन-शैली की निंदा करते हुए कहते हैं-

व्याख्या

जीवन में सबसे खतरनाक वह दृष्टि होती है, जो सब कुछ देखकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं करती, केवल जमी हुई बर्फ के समान जमी रहती है। ऐसी दृष्टि जो दृष्टि संसार को प्रेम नहीं कर पाती। ऐसी दृष्टि जो अंधेपन और कट्टरता – भरी बातों को ही सच मानकर ठहरी रहती है। ऐसी दृष्टि जो रोजमर्रा की जड़ जीवनधारा को ही निभाती चली जाती है। ऐसी दृष्टि जो दृष्टि बिना किसी लक्ष्य के रोज-रोज की बेकार बातों को थोड़े-बहुत उलटफेर के साथ दोहराती चली जाती है, वह खतरनाक होती है। उसके कारण जीवन व्यर्थ हो जाता है। उसमें कोई नई गति नहीं आ पाती।

सबसे खतरनाक वह चाँद होता है

जो हर हत्याकांड के बाद

वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है

पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है

शब्दार्थ :

हत्याकांड – हत्या का कर्म।

वीरान-अकेला, एकांत।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। वे चाँद को आस्था और विश्वास के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-

व्याख्या

वह चाँद सबसे खतरनाक होता है जो हर हत्याकांड के बाद हत्या के शिकार लोगों के सूने आँगन पर चढ़ता है। फिर भी वह आँखों में खटकता नहीं। आशय यह है कि जब लोगों के साथ घोर अत्याचार और नरसंहार किए जाते हैं, तब भी उनके आँगन में आस्था, विश्वास, शांति और भगवान भक्ति के नाम पर मनमोहक बातें की जाती हैं। उन्हें यह आभास दिलाया जाता है कि तुम्हारे साथ जितना बुरा हुआ है उससे और कहीं अधिक बुरा हो सकता है। आश्चर्य यह है कि ये बातें पीड़ित लोगों को चिढ़ाती नहीं, उन्हें हत्याकांड करने वाले लोगों के प्रति भड़काती नहीं, बल्कि उन्हें शांत ही करती हैं। ऐसी शांति बहुत खतरनाक होती है। इससे मानवीय समस्याओं का कोई हल नहीं निकलता।

सबसे खतरनाक वह गीत होता है

आपके कानों तक पहुँचने के लिए

जो मरसिए पढ़ता है

आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर

जो गुंडे की तरह अकड़ता है

शब्दार्थ :

मरसिए – मृत्यु पर पढ़े जाने वाले कारुणिक गीत।

आतंकित – डरे हुए।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक ‘ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। वे डरे हुए लोगों की मृत्यु पर करुणा व्यक्त करने को खतरनाक मानते हुए कहते हैं-

व्याख्या

सबसे खतरनाक ऐसे गीत होते हैं जो आपका ध्यान खींचने के लिए करुणा-भरे स्वर व्यक्त करते हैं। जो डरे हुए लोगों को गुंडों की भाँति और अधिक धमकाते हैं, उन्हें लज्जित करते हैं, चिढ़ाते हैं तथा भयभीत करते हैं। वास्तव में वे उन्हें यह विश्वास दिला देना चाहते हैं कि वे कुछ भी नहीं कर सकते। यहाँ गीतकार का दायित्व बनता है कि वह डरे हुए लोगों को सहारा दे और प्रेरणा दे। उसकी बजाय उन्हें रुलाना या डराना दोनों निंदनीय बातें हैं।

सबसे खतरनाक वह रात होती है

जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है

जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़

हमेशा के अँधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं

शब्दार्थ :

ज़िंदा रूह – जीवित आत्मा।

चौगाठों-चौखट।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। वे अंधी परंपराओं को रात के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-

व्याख्या

वह रात सबसे खतरनाक होती है, जो जीवित आत्माओं के संसार पर आ घिरती है। जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते हैं या गीदड़ हुआँ-हुआँ करते हैं। ये उल्लू और गीदड़ हमेशा-हमेशा के लिए बंद हुए अँधेरे दरवाजों और चौखटों पर जाकर चिपक जाते हैं। आशय यह है कि वे अंधी रूढ़ियाँ सबसे खतरनाक होती हैं जो जीवित मनुष्यों के मनों पर सवार हो जाती हैं। उन रूढ़ियों का महिमागान करने वाले लोग उल्लुओं की भाँति और गीदड़ों की भाँति हुआँ- हुआँ करते हुए अज्ञानी लोगों के हृदयों पर सवार हो जाते हैं ताकि ये कभी भी विद्रोह का स्वर न उठाए। वे उन्हें रूढ़ियों को तोड़कर बाहर नहीं निकलने देते।

सबसे खतरनाक वह दिशा होती है

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए

और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती।

शब्दार्थ :

जिस्म – शरीर।

पूरब-पूर्व दिशा।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पंजाबी भाषा के प्रगतिवादी कवि पाश द्वारा रचित, चमन लाल द्वारा अनूदित ‘सबसे खतरनाक’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने देशवासियों को जड़ न होने, संघर्षशील होने तथा कुछ करने की इच्छा से संपन्न होने की बात कही है। वे आत्मा की आवाज़ को अनसुना करने वाली चिंतन-शैली को धिक्कारते हुए कहते हैं-

व्याख्या

जीवन की वह दिशा सबसे खतरनाक होती है जो आत्मा के सूरज को अस्त कर देती है। आशय यह है कि आत्मा की आवाज़ को अनसुना करने वाली सोच बहुत खतरनाक होती है। वह विचारधारा सबसे खतरनाक होती है जो मुर्दा धूप की तरह होती है तथा मनुष्य के शरीर में काँच के टुकड़े की तरह चुभी रहती है। उद्देश्य यह है कि ऐसी विचारधारा जो रूढ़ियों से ग्रस्त होती है, मनुष्य के मन को बराबर कचोटती रहती हैं।

1. कवि ने किस आशय से मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ को सबसे खतरनाक नहीं माना।

उत्तर – कवि मेहनत की लूट, पुलिस की मार या गद्दारी-लोभ को बुरा तो मानता है किंतु सबसे खतरनाक नहीं मानता। कारण यह है कि इनका प्रभाव सीमित या कभी-कभी होता है। इनसे उबरा जा सकता है। इनके विरुद्ध संघर्ष किया जा सकता है। परंतु कुछ खतरनाक बातें ऐसी होती हैं जो मनुष्य के मन में कुसंस्कारों के रूप में इस तरह जम जाती हैं कि मनुष्य का उद्धार ही नहीं हो पाता। उनकी तुलना में ये बातें सबसे खतरनाक नहीं हैं।

2. सबसे खतरनाक शब्द के बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या असर पैदा हुआ?

उत्तर –  सबसे खतरनाक शब्द के बार-बार दोहराए जाने से कविता का कथ्य प्रभावशाली ढंग से हमारे सामने उभर कर आता है। कविता में पाठकों की रुचि और जिज्ञासा बनी रहती है। पाठक खतरनाक और सबसे खतरनाक में अंतर जान पाता है। 

3. कवि ने कविता में कई बातों को बुरा है न कहकर बुरा तो है कहा है। तो के प्रयोग से कथन की भंगिमा में क्या बदलाव आया है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘बुरा है’ तथा ‘बुरा तो है’ दो अलग-अलग कथन-भंगिमाएँ (शैलियाँ) हैं। ‘बुरा है’ में स्पष्ट रूप से आरोप है। ‘बुरा तो है’ में कोई-न-कोई बचाने वाला कारण साथ संलग्न है। ‘तो’ में बचाव है या कोई-न-कोई औचित्य है। ‘बुरा तो है’ कहते ही एक अज्ञात कारण इसके साथ संबद्ध हो जाता है। ‘बुरा है’ कहने से वाक्य पूर्ण हो जाता है। ‘बुरा तो है’ कहकर हम बात आगे बढ़ाते हैं, श्रोता के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं। उसे और अधिक जानने के लिए बाध्य करते हैं।

4. मुर्दा शांति से भर जाना और हमारे सपनों का मर जाना- इनको सबसे खतरनाक माना गया है। आपकी दृष्टि में इन बातों में परस्पर क्या संगति है और ये क्यों सबसे खतरनाक है?

उत्तर –  जब हम निष्क्रिय होकर बेजान की तरह चुपचाप शांति से अन्याय, अत्याचार को सहन करते जाते हैं तब हम ‘मुर्दे’ जैसी स्थिति में आ जाते हैं ऐसी तटस्थता निश्चय ही खतरनाक होती है। ‘हमारे सपनों का मर जाना’ उस स्थिति की ओर इशारा करता है जब हम अपने भविष्य के सुनहरे सपने बुनना बंद कर देते हैं और यथास्थिति को स्वीकार कर लेते हैं। ये दोनों की स्थितियाँ सबसे खतरनाक होती है और एक जैसी ही हैं।

5. सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है/आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो/आपकी निगाह में रुकी होती है। इन पंक्तियों में घड़ी शब्द की व्यंजना से अवगत कराइए।

उत्तर – इन पंक्तियों में घड़ी कलाई घड़ी न होकर जीवन की प्रतीक है। जैसे घड़ी निरंतर चलती रहती है, उसी प्रकार जीवन भी निरंतर प्रगतिशील होता है। कवि ऐसे लोगों पर व्यंग्य करता है जो जीवन की गति को निरंतर देखते हुए भी यथास्थितिवादी और अपरिवर्तनीय बने रहते हैं। और यह स्वीकार कर लेते हैं कि उनके जीवन में कुछ अच्छा कभी भी नहीं होने वाला।

6. वह चाँद सबसे खतरनाक क्यों होता है, जो हर हत्याकांड के बाद/आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है?

उत्तर – यहाँ चाँद हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है, जो हर हत्याकांड के बाद भी ज्यों-का-त्यों बना रहता है। हम हत्याकांड जैसा अत्याचार सहन करके भी अपनी आस्था को डगमगाने नहीं देते। होना तो यह चाहिए कि हत्याकांड होने के बाद हमारी आस्थाएँ हिलें, विश्वास हिलें, हम उन पर प्रश्नचिह्न लगाएँ, क्रुद्ध हों किंतु ऐसा होता नहीं है। ऐसे समय में जब हम निर्लिप्त भाव लिए रहते हैं तो ऐसी संवेदनशून्यता वास्तव में खतरनाक होती है।

1. कवि ने मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती से कविता का आरंभ करके फिर इसी से अंत क्यों किया होगा।

उत्तर – कवि ने ‘मेहनत की लूट सबसे खतरनाक होती है’ से कविता का आरंभ किया है और इसी पर अंत किया है। वह बताना चाहते हैं कि शोषण जैसी बातों से अधिक खतरनाक बातें और भी हैं। और उन्हीं बातों पर ध्यान लाने के लिए कवि ने यह प्रयोग किया होगा।

2. कवि द्वारा उल्लिखित बातों के अतिरिक्त समाज में अन्य किन बातों को आप खतरनाक मानते हैं?

उत्तर – कवि द्वारा उल्लिखित बातों के अतिरिक्त समाज में निम्न बातों को मैं खतरनाक मानता हूँ – 

1. बाल मजदूरी 

2. स्त्री शोषण 

3. सांप्रदायिकता 

4. आतंकवाद

5. विश्वयुद्ध

6. भ्रष्टाचार

7. मिलावट

3. समाज में मौजूद खतरनाक बातों को समाप्त करने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?

उत्तर – समाज में मौजूद खतरनाक बातों को समाप्त करने के लिए हमें संघर्ष करना चाहिए। हमें अपने विचारों को बदलना चाहिए तथा निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए। हमें अपनी रूढ़ियों को छोड़ना चाहिए। घटनाओं के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए। धार्मिक धर्मांधता की भावनाओं से ऊपर उठना चाहिए।

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